NCERT Class 11 Hindi Antra Chapter 12 संध्या के बाद

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NCERT Class 11 Hindi Antra Chapter 12 संध्या के बाद

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Chapter: 12

अंतरा

काव्य-खंड

प्रश्न-अभ्यास

1. संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर: संध्या के समय सूर्य का प्रकाश लाल आभा लिए हो जाता है। सूर्य अस्त होने लगता है और उसकी लालिमा वृक्षों की चोटी पर सिमट जाती है। पीपल के पत्तों से सुनहरे निर्झर झरने लगते हैं। सूर्य धीरे-धीरे नदी में समाने लगता है, जिससे गंगाजल चितकबरा सा प्रतीत होता है। रेत पर धूप और छाँह के रंग बिखर जाते हैं, और जल में लहरों के साथ विभिन्न रंगों का प्रतिबिंब दिखता है। मंदिरों में शंख-घंटों की ध्वनि गूंजने लगती है, और जल में हल्का कंपन होने लगता है, जो संध्या का एक शांत और मनोहर दृश्य प्रस्तुत करता है।

2. पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

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उत्तर: पंत जी ने संध्या के समय नदी के तट का सुंदर वर्णन किया है। तट पर वृद्ध विधवाएँ ध्यान में मग्न रहती हैं, उन्होंने बताया है कि वे वृद्ध महिलाएँ जो नदी के किनारे बैठी हैं, वह किसी बगुले जैसी लग रही है जो शिकार के इंतजार में बैठा हो, और नदी की धारा में उनका दुःख बहता प्रतीत होता है। 

कवि को बगुले और वृद्ध महिलाएँ समान दिखाई पड़ते हैं क्योंकि दोनों का रंग सफेद होता है। 

3. बस्ती के छोटे से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है?

उत्तर: कवि ने बस्ती के छोटे से गाँव के अवसाद को निम्नलिखित उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया है:

(i) गाड़ी वालों का बिरहा गाना, कुत्तों का लड़ना और सियारों का हुआँ-हुआँ करना वातावरण की उदासी को बढ़ाते हैं।

(ii) टिन की ढबरी अधिक धुआँ छोड़ती है और कम उजाला देती है, जिससे निराशा और अवसाद का भाव प्रकट होता है।

(iii) दुकानों में मंद जलती बत्तियाँ और मौन व्यापारी गाँव की उदासी को दर्शाते हैं।

(iv) दीपक की मंद ज्योति से निराशा और अवसाद झलकता है, मानो लौ के साथ ही लोगों की उम्मीदें भी काँप रही हों।

(v) पूरी बस्ती धीरे-धीरे अंधेरे में डूब जाती है, जो गाँव की गहरी उदासी को व्यक्त करता है।

4. लाला के मन में उठनेवाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: लाला यह सोचता है कि उसे ही दुख गरीबी और उत्पीड़न क्यों झेलना पड़ रहा है? वह खुशी और आराम के साथ अपनी जिंदगी क्यों नहीं व्यतीत कर पाता है? उसके पास अपने परिवार वालों को देने के लिए एक अच्छा घर भी नहीं है ऐसा क्यों? वह शहर में रहने वाले वनियों के समान उठ क्यों नहीं पाता? आखिर किसने उसकी सफलता को रोक रखा है – उसकी मेहनत, भाग्य या परिस्थितियाँ? लाला को लगता है कि उसकी उन्नति को रोकने वाला कोई न कोई कारण जरूर है। वह सोचता है कि शायद उसका समय और भाग्य ही उसका साथ नहीं दे रहे हैं। अपने संघर्षों और असफलताओं पर विचार करते हुए उसका मन उलझन में पड़ जाता है, और यही उसकी सबसे बड़ी दुविधा बन जाती है।

5. सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है?

उत्तर: सामाजिक समानता की छवि निम्नलिखित रूपों में अभिव्यक्त हुई है:

(i) कवि प्रश्न उठाता है कि गरीब व्यक्ति भी महाजन क्यों नहीं बन सकता और उसकी उन्नति के साधन किसने रोके हैं।

(ii) कर्म और गुण के आधार पर आय-व्यय का समान वितरण हो, ताकि कोई शोषित न हो।

(iii) समाज में ऐसा परिवर्तन हो, जो सभी को सामूहिक रूप से जीवन जीने की प्रेरणा दे।

(iv) श्रमिकों का श्रम उन्हीं के हित में बँटे और शोषण समाप्त हो।

(v) दरिद्रता को पापों की जननी बताते हुए, उसके नाश से भय, कष्ट और असमानता को मिटाने की बात कही गई है।

(vi) समाज को धन का अधिकारी मानते हुए, सभी को सुंदर आवास, वस्त्र और सुख-सुविधाएँ मिलने की कल्पना की गई है।

6. ‘कर्म और गुण के समान ……….…….. हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है? 

उत्तर: ‘कर्म और गुण के समान ही सकल आय-व्यय का हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि एक ऐसे समाज की ओर संकेत कर रहा है जहाँ व्यक्ति की आर्थिक स्थिति उसके जन्म या वर्ग के आधार पर नहीं, बल्कि उसके कर्म और गुणों के अनुसार तय हो। वह एक न्यायसंगत व्यवस्था की कल्पना करता है, जहाँ सभी को मेहनत के अनुरूप आय मिले और शोषण का अंत हो। इस पंक्ति में कवि समाज में आर्थिक समानता और न्याय की आवश्यकता पर बल देता है।

7. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

(क) तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ 

विधवाएँ जप ध्यान में मगन,

मंधर धारा में बहता

जिनका अदृश्य, गति अंतर रोदन!

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत ने संध्या के समय नदी के तट पर बैठी वृद्ध स्त्रियों और विधवाओं की दशा का मार्मिक चित्रण किया है। वे ध्यानमग्न होकर परमात्मा का नाम जप रही हैं, जैसे बगुले ध्यानपूर्वक पानी देख रहे हों। उनकी अंतर पीड़ा अदृश्य रूप में नदी की मंथर धारा में बहती प्रतीत होती है। कवि ने विधवाओं के एकाकी जीवन और दुःख को गहराई से दर्शाया है। भाषा में भावुकता और माधुर्य है, तथा उपमा अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग कविता के सौंदर्य को और अधिक प्रभावशाली बनाता है।

8. आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख / झरते चंचल स्वर्णिम निर्झर!

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने संध्या के समय प्रकृति के सौंदर्य का चित्रण किया है। सूर्य की किरणें पीपल के तांबे जैसे रंग के पत्तों पर पड़ती हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है मानो सैकड़ों चमकते हुए स्वर्णिम झरने पेड़ से झर रहे हों। यह दृश्य संध्या के समय की छटा और प्राकृतिक सौंदर्य को उजागर करता है।

(ख) दीप शिखा-सा ज्वलित कलश / नभ में उठकर करता नीराजन!

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने संध्या के समय सूर्यास्त का सुंदर वर्णन किया है। सूर्य आकाश में जलते हुए दीपक की लौ के समान प्रतीत होता है, जो अपने प्रकाश से पूरे आकाश का नीराजन (आरती) कर रहा है। यह दृश्य सूर्यास्त के समय आकाश में फैले सुनहरे प्रकाश और उसकी दिव्यता को दिखाया गया है, जिससे संध्या का वातावरण और अधिक पवित्र और मनोहर हो जाता है।

(ग) सोन खगों की पाँति / आर्द्र ध्वनि से नीरव नभ करती मुखरित!

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने संध्या के समय आकाश में उड़ते हुए सुनहरे रंग के पक्षियों (सोन खग) का चित्रण किया है। ये पक्षी पंक्तिबद्ध होकर उड़ते हैं और अपनी कोमल, गीली (आर्द्र) ध्वनि से शांत आकाश को गुंजायमान कर देते हैं। यह दृश्य संध्या के सौंदर्य और प्रकृति की गतिशीलता को दिखाया गया है, जहाँ पक्षियों की मधुर ध्वनि नीरव आकाश में जीवन और हलचल भर देती है।

(घ) मन से कढ़ अवसाद श्रांति / आँखों के आगे बुनती जाला!

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने अवसाद और मानसिक थकान के प्रभाव को व्यक्त किया है। जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों से उत्पन्न दुःख मन से निकलकर व्यक्ति को घेर लेता है, जिससे आँखों के सामने निराशा का जाल सा बनता जाता है। यह जाल न केवल वास्तविकता को धुंधला कर देता है, बल्कि व्यक्ति को निराशा और हताशा की गहरी भावनाओं में उलझा देता है।

(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों / गोपन मन को दे दी हो भाषा।

उत्तर: इस पंक्ति में कवि दर्शाता है कि क्षीण ज्योति, अर्थात् कमजोर या मंद प्रकाश, चुपके से मन के गुप्त और आंतरिक भावों को प्रकट कर देता है। जैसे यह छोटी सी ज्योति बिना शोर-शराबे के मन की छिपी भावनाओं को उजागर कर देती है, वैसे ही थोड़ी सी प्रेरणा भी मन के भीतर दबी बातों को भाषा दे जाती है। यह सूक्ष्म संकेत है कि अंधकार में भी, एक क्षीण प्रकाश हमारे गहरे, अनकहे अनुभवों को व्यक्त कर सकता है।

(च) बिना आय की क्लांति बन रही / उसके जीवन की परिभाषा!

उत्तर: इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि बस्ती के छोटे व्यापारी की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है। बिना किसी नियमित आय के उसका जीवन अंधकारमय और कष्टों से भर चुका है, जिससे वह अपने जीवन की परिभाषा इसी निरंतर अभाव में देखता है। उसे अब यह मान लेना पड़ा है कि आर्थिक तंगी उसकी नियति बन चुकी है।

(छ) व्यक्ति नहीं, जग की परिपाटी / दोषी जन के दुःख क्लेश की।

उत्तर: यह पंक्ति इस बात पर जोर देती है कि जनों का दुःख किसी एक व्यक्ति की गलती नहीं है, बल्कि समूचे जग की परिपाटी में निहित असमानताओं और संरचनात्मक दोषों का परिणाम है। कवि का तात्पर्य है कि व्यक्ति अपनी सीमाओं के कारण नहीं, बल्कि समाज की व्यवस्था—जिसमें आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकृतियाँ व्याप्त हैं—के कारण पीड़ा और क्लेश का शिकार हो रहा है। इस प्रकार, यहाँ व्यक्तिगत प्रयासों की बजाय समाजिक ढांचे में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

योग्यता-विस्तार

1. ग्राम्य जीवन से संबंधित कविताओं का संकलन कीजिए।

उत्तर: (i) रामधारी सिंह दिनकर की “हिमालय” इस कविता में पर्वतीय और ग्रामीण जीवन की सुंदरता और कठिनाइयों का वर्णन किया गया है।

(ii) जयशंकर प्रसाद की “आँसू” यह कविता ग्रामीण जीवन के दुःखों और उसकी संवेदनाओं को दर्शाती है।

(iii) सुभद्राकुमारी चौहान की “झाँसी की रानी” यह कविता ग्रामीण जीवन के संघर्ष और साहस का चित्रण करती है।

2. कविता में निम्नलिखित उपमान किसके लिए आए हैं, लिखिए –

(क) ज्योति स्तंभ-सा – ……………………………..।

उत्तर: अस्त होते सूर्य के लिए।

(ख) केंचुल-सा – ………………………………….।

उत्तर: गंगा के बहते जल।

(ग) दीपशिखा-सा – ……………………………….।

उत्तर: मंदिर के कलश लिए।

(घ) बगुलों-सी – ………………………………….।

उत्तर: नदी तट पर ध्यान मग्न वृद्धाओं के लिए।

(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी – ………………………………।

उत्तर: गायों के पैरों से उठती धूल के लिए।

(च) सनन् तीर-सा – ………………………………।

उत्तर: पक्षियों के पंखों और कंठों का स्वर।।

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