NCERT Class 11 Geography Bhugol Main Prayogatmak Karya Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

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Chapter – 4

भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य

अभ्यास

1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प को चुनें:

(i) मानचित्र प्रक्षेप, जो कि विश्व के मानचित्र के लिए न्यूनतम उपयोगी है।

(क) मर्केटर।

(ख) बेलनी।

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(ग) शंकु।

(घ) उपरोक्त सभी।

उत्तर: (ग) शंकु।

(ii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जो न सम-क्षेत्र हो एवं न ही शुद्ध आकार वाला हो तथा जिसकी दिशा भी शुद्ध नहीं होती है।

(क) शंकु।

(ख) ध्रुवीय शिराबिंदु।

(ग) मर्केटर।

(घ) बेलनी।

उत्तर: (क) शंकु।

(iii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जिसमें दिशा एवं आकृति शुद्ध होती है, लेकिन ध्रुवों की ओर यह बहुत अधिक विकृत हो जाती है।

(क) बेलनाकार सम-क्षेत्र।

(ख) मर्केटर।

(ग) शंकु।

(घ) उपरोक्त सभी।

उत्तर: (ख) मर्केटर।

(iv) जब प्रकाश के स्रोत को ग्लोब के मध्य रखा जाता है, तब प्राप्त प्रक्षेप को कहते है –

(क) लंबकोणीय।

(ख) त्रिविम।

(ग) नोमॉनिक।

(घ) उपरोक्त सभी।

उत्तर: (ग) नोमॉनिक।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें:

(i) मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्व निम्नलिखित हैं-

1. पृथ्वी का छोटा रूप – पृथ्वी के मॉडल को छोटी मापनी की सहायता से कागज के समतल सतह पर दर्शाया जाता है। 

2. अक्षांश के समांतर – ये ग्लोब के चारों ओर स्थित वे वृत्त हैं, जो विषुवत वृत्त के समांतर एवं ध्रुवों से समान दूरी पर स्थित होते हैं। 

3. देशांतर के याम्योत्तर – ये अर्द्धवृत्त होते हैं, जो कि उत्तर से दक्षिण दिशा की और, एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक खींचे जाते हैं तथा दो विपरीत याम्योत्तर एक वृत्त का निर्माण करते हैं, जो ग्लोब की परिधि होती है। 

4. ग्लोब के गुण – मानचित्र प्रक्षेप बनाने में, ग्लोब की सतह के निम्नलिखित मूल गुणों को कुछ विधियों के द्वारा संरक्षित रखा जाता है।

(ii) भूमंडलीय संपत्ति से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: एक मानचित्र आकृत, दिशा तथा दूरी की शुद्धता को संरक्षित र भू-मंडलीय गुण क्षेत्रफल, रखा जाता है। लेकिन, किसी भी गुण प्रक्षेप में, ये सभी गुण एक साथ नहीं मिल सकते। इसलिए आवश्यकतानुसार प्रक्षेपों को इस प्रकार खींचा जा सकता है कि उनमें इच्छित गुण बने रहें। इस प्रकार भूमंडलीय गुणों के आधार पर प्रक्षेपों को समक्षेत्र प्रक्षेप, यथाकृतिक प्रक्षेप, समदूरस्थ प्रक्षेप में वर्गीकृत किया जाता है।

(iii) कोई भी मानचित्र ग्लोब को सही रूप में नहीं दर्शाता है, क्यों?

उत्तर: मानचित्र प्रक्षेप अक्षांश और देशांतर रेखाओं का जाल होता है। यह समतल कागज पर बनाया जाता है। ग्लोब पृथ्वी का सही प्रतिनिधित्व करता है। प्रक्षेप ग्लोब की छाया होती है जो कुछ स्थानों पर विकृत हो जाता है। इस तरह प्रक्षेप ग्लोब को सही रूप में नहीं दर्शाता।

(iv) बेलनाकार सम-क्षेत्र प्रक्षेप में क्षेत्र को समरूप कैसे रखा जाता है?

उत्तर: बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप को लैम्बर्ट के प्रक्षेप के नाम से भी जाना जाता है। इसे ग्लोब के विषुवतीय वृत्त पर सटे बेलन पर पड़ने वाली समांतर किरणों के द्वारा प्राप्त किया जाता है। समांतर एवं याम्योत्तर रेखाओं का प्रक्षेपण सीधी रेखा के रूप में तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटते हुए प्राप्त किया जाता है। ध्रुवों को विषुवत वृत्त के समान एवं समांतर दिखाया जाता है, इसलिए उच्च अक्षांशों वाले क्षेत्रों के आकार बहुत अधिक विकृत हो जाते हैं।

3. अंतर स्पष्ट कीजिए-

(i) विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ।

उत्तर: विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ में अन्तर-

विकासनीय पृष्ठअविकासनीय पृष्ठ
(i) विकासनीय पृष्ठ वह होता है, जिसे समतल किया जा सकता है तथा जिस पर अक्षांशों एवं देशांतरों के जाल को प्रक्षेपित किया जा सकता है।(i) अविकासनीय सतह वह है, जिसे बिना सिकोड़े, खंडित किए अथवा तोड़े-मोड़े चपटा नहीं किया जा सकता।
(ii) बेलन, शंकु तथा समतल में विकासनीय पृष्ठ के गुण होते हैं।(ii) ग्लोब या गोलाकार सतह में अविकासनीय पृष्ठ के गुण होते हैं।

(ii) सम-क्षेत्र तथा यथाकृतिक प्रक्षेप।

उत्तर: सम-क्षेत्र तथा यथाकृतिक प्रक्षेप में अंतर–

सम-क्षेत्र प्रक्षेपयथाकृतिक प्रक्षेप
सम-क्षेत्र प्रक्षेप वह प्रक्षेप होता है, जिसमें पृथ्वी के विभिन्न भागों को सही-सही दर्शाया जाता है।यथाकृतिक प्रक्षेप वह प्रक्षेप है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों की आकृतियों को सही-सही चित्रित किया जाता है। इसमें क्षेत्रफल की शुद्धता का ध्यान रखे बिना आकृति को यथावत बनाए रखा जाता है।

(iii) अभिलंब एवं तिर्यक प्रक्षेप।

उत्तर:

अभिलंब प्रक्षेपतिर्यक प्रक्षेप
अगर विकसनीय पृष्ठ ग्लोब पर विषुवत वृत को स्पर्श करता है तो उसे विषुवतीय या अभिलंब प्रक्षेप कहा जाता है।अगर विकसनीय पृष्ठ विषुवत वृत्त या ध्रुव के बीच किसी बिंदु पर स्पर्शरखीय होता तो इसे तिर्यक प्रक्षेप का जाता है।

(iv) अक्षांश के समांतर एवं देशांतर के याम्योत्तर।

उत्तर:

अक्षांश के समांतरदेशांतर के याम्योत्तर
(i) अक्षांश विषुवत वृत्त के उत्तर या दक्षिण में स्थित किसी बिंदु की कोणीय दूरी है, जिसे डिग्री में मापा जाता है।(i) देशांतर विषुवत वृत्त के साथ बनी वह कोणीय दूरी है, जिसे डिग्री में मापा जाता है। इसे ग्रीनविच के पूर्व एवं पश्चिम 0° से 180° तक मापा जाता है।
(ii) सभी अक्षांश विषुवत वृत्त के समांतर होते हैं।(ii) देशांतर से सभी याम्योत्तर ध्रुवों पर मिलते हैं।
(iii) ग्लोब पर अक्षांश समांतर वृत्त के समान प्रतीत होते हैं।(iii) सभी याम्योत्तर वृत्त के समान प्रतीत होते हैं, जो ध्रुवों से गुजरते हैं।
(iv) दो अक्षांशों के बीच की दूरी लगभग 111 किलीमीटर होती है।(iv) याम्योत्तरों के बीच की दूरी विषुवत वृत्त पर अधिकतम (111.3 किलोमीटर) तथा ध्रुवों पर न्यूनतम (0 किलोमीटर) होती है। मध्य में अर्थात् 45° अक्षांश पर यह 79 किलोमीटर होती है।
(v) 0° अक्षांश को विषुवत वृत्त एवं 90° को ध्रुव कहा जाता है।(v) देशांतर 360° के होते हैं जो प्रमुख याम्योत्तर के पूर्व एवं पश्चिम दोनों ओर 180° में बँटे होते हैं।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दीजिए:

(i) मानचित्र प्रक्षेप का वर्गीकरण करने के आधार की विवेचना कीजिए तथा प्रक्षेपों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।

उत्तर: मानचित्र प्रक्षेप का वर्गीकरण करने के आधार-

1. बनाने की तकनीक: बनाने की विधियों के आधार पर प्रक्षेपों को सामान्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है। संदर्श, असंदर्श तथा रूढ़ अथवा गणितीय प्रक्षेप। संदर्श प्रक्षेप विकासनीय पृष्ठ पर ग्लोब के याम्योत्तर तथा समांतर से बने जाल के प्रतिबिंब को प्रक्षेपित करके बनाया जा सकता है।

2. विकासनीय पृष्ठ: विकासनीय पृष्ठ वह होता है, जिसे समतल किया जा सकता है तथा जिसपर अक्षांश एवं देशांतरों के जाल को प्रक्षेपित किया जा सकता है। अविकासनीय सतह वह है, जिसे बिना सिकोड़े, खंडित किए अथवा तोड़े-मोड़े चपटा नहीं किया जा सकता। ग्लोब या गोलाकार सतह में अविकासनीय पृष्ठ के गुण होते हैं, जबकि एक बेलन, शंकु तथा समतल में विकासनीय पृष्ठ के गुण होते हैं।

3. भू-मंडलीय गुण: जैसा कि ऊपर वर्णित है एक मानचित्र में चार भू-मंडलीय गुण क्षेत्रफल, आकृत, दिशा तथा दूरी की शुद्धता को संरक्षित रखा जाता है। लेकिन, किसी भी प्रक्षेप में, ये सभी गुण एक साथ नहीं मिल सकते। इसीलिए आवश्यकतानुसार प्रक्षेपों को इस प्रकार खींचा जा सकता है कि उनमें इच्छित गुण बने रहें। इस प्रकार भूमंडलीय गुणों के आधार पर प्रक्षेपों को समक्षेत्र प्रक्षेप, यथाकृतिक प्रक्षेप, समदूरस्थ प्रक्षेप में वर्गीकृत किया जाता है। समक्षेत्र प्रक्षेप को होमोलोग्राफ़्रीय प्रक्षेप भी कहा जाता है।

4. प्रकाश का स्रोत: प्रकाश के स्रोत की स्थिति के आधार पर प्रक्षेपों को नोमॉनिक, त्रिविम एवं लंबकोणीय प्रक्षेपों में वर्गीकृत किया जा सकता है। नोमॉनिक प्रक्षेप प्रकाश को ग्लोब के केंद्र में रख कर प्राप्त किया जाता है। त्रिविम प्रक्षेप प्रकाश के स्त्रोत, को समतल कागज के ग्लोब से सटे हुए भाग के विपरीत ग्लोब की परिधि में रखकर खींचा जाता है। ग्लोब के जिस बिंदु पर समतल सतह सटी होती है, उसके विपरीत अनंत दूरी पर रखे प्रकाश के स्रोत के द्वारा लंबकोणीय प्रक्षेप खींचा जाता है।

प्रक्षेप की मुख्य विशेषताएँ-

1. यह न तो समक्षेत्र है और न ही शुद्ध आकृति।

2. अक्षांश रेखाएँ समान दूरी पर खिंची संकेंद्रीय वृत्तों की चाप होती हैं एवं देशांतर रेखाएँ समान कोणात्मक अन्तरालों पर खिंची अरीय रेखीय होती है।

3. केंद्र या ध्रुव से प्रत्येक बिंदु अपनी यथार्थ दूरी पर तथा शुद्ध दिशा में स्थित होता है।

4. अक्षांशीय मापक शुद्ध नहीं होता है, यह मानक अक्षांश से परे तेज गति से बढ़ता जाता है। देशांतरीय मापक सर्वत्र शुद्ध रहता है।

(ii) कौन-सा मानचित्र प्रक्षेप नौसंचालन उद्देश्य के लिए बहुत उपयोगी होता है? इस प्रक्षेप की सीमाओं एवं उपयोगों की विवेचना कीजिए।

उत्तर: मर्केटर प्रक्षेप नौसंचालन उद्देश्य के लिए बहुत उपयोगी होता है।

मर्केटर प्रक्षेप की सीमाएँ-

1. याम्योत्तर एवं अक्षांशों के सहारे मापनी का विस्तार उच्च अक्षांशों पर तीव्रता से बढ़ता है। जिसके परिणामस्वरूप, ध्रुव के निकटवर्ती देशों का आकार उनके वास्तविक आकार से अधिक हो जाता है। उदाहरण के लिए, ग्रीनलैंड का आकार संयुक्त राज्य अमेरिका के बराबर हो जाता है, जबकि यह अमेरिका के आकार का 1/10 वाँ हिस्सा है।

2. इस प्रक्षेप में ध्रुवों को प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि 90° अक्षांश समांतर एवं याम्योत्तर रेखाएँ अनंत होती हैं।

मर्केटर प्रक्षेप का उपयोग-

1. यह विश्व के मानचित्र के लिए बहुत ही उपयोगी है तथा एटलस मानचित्रों को बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।

2. यह समुद्र एवं वायु मार्गों पर नौसंचालन के लिए बहुत ही उपयोगी है।

3. अपवाह प्रतिरूपों, समुद्री धाराओं, तापमान, पवनों एवं उनकी दिशाओं, पूरे विश्व में वर्षा का वितरण इत्यादि को मानचित्र पर दर्शाने के लिए यह उपयुक्त है।

(iii) एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप के मुख्य गुण क्या हैं तथा उसकी सीमाओं की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप के मुख्य गुण-

1. सभी अक्षांशों के समांतर वृत्तों के चाप होते हैं तथा उनके बीच की दूरी बराबर होती है।

2. सभी याम्योत्तर रेखाएँ सीधी होती हैं, जो ध्रुवों पर मिल जाती हैं। याम्योत्तर समांतर को समकोण पर काटती हैं।

3. सभी याम्योत्तरों की मापनी सही होती है, अर्थात् याम्योत्तरों पर सारी दूरियाँ सही होती हैं।

4. एक वृत्त का चाप ध्रुव को दर्शाता है।

5. मानक समांतर पर मापनी शुद्ध होती है, लेकिन इससे दूर यह विकृत हो जाती है।

सीमाएँ:

1. यह विश्व मानचित्र के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि जिस गोलार्द्ध में मानक अक्षांश वृत्त चुना जाता है, उसके विपरीत गोलार्द्ध में चरम विकृति होती है।

2. जिस गोलार्द्ध में यह बनाया जाता है, उसके लिए भी यह उपयुक्त नहीं है, क्योंकि उसमें भी ध्रुव पर तथा विषुवत वृत्त के पास विकृति होने के कारण इसका उपयोग बड़े क्षेत्र को प्रदर्शित करने के लिए अनुपयुक्त है।

क्रियाकलाप

1. 30° उ. से 70° उ. तथा 40° प. से 30° प. के बीच स्थित एक क्षेत्र का रेखाजाल एक मानक अक्षांश वाले सामान्य शंकु प्रक्षेप पर बनाइए, जिसकी मापनी 1:20,00,00,000 तथा मध्यांतर 10° है।

उत्तर: पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या = 

= 3.2 से.मी.

मानक अक्षांश 50° उत्तरी है। (30, 40, 50, 60, 70)

देशान्तर = W (40, 30, 20, 10, 0, 10, 20, 30)E

रचना:

चित्र A के अनुसार 3.2 से.मी. का अर्द्धव्यास लेकर वृत्त का चतुर्थांश ABO खींचेंगे। OB रेखा के बिन्दु 0 पर 10° अन्तराल के बराबर कोण DOB तथा मानक अक्षांश के बराबर कोण COB बनाएँगे। C बिन्दु पर लम्ब उठायेंगे जो बढ़ाई गई रेखा को P बिन्दु पर काटता है। अब o को केन्द्र मानकर BD अर्द्धव्यास से वृत्तांश खीचेंगे जो OC रेखा को E बिन्दु पर काटेगा। E बिन्दु से OA रेखा पर EF लम्ब खींचेंगे।

प्रक्षेप बनाने के लिए एक लम्बवत् सरल रेखा P’G’ खींचेंगे। जो इस प्रक्षेप की केन्द्रीय मध्याह्न रेखा होगी तथा प्रश्न के अनुसार इसका मान 0° देशान्तर होगा। अब PC के बराबर दूरी लेकर P’ बिन्दु से एक वृत्तांश खीचेंगे जो प्रक्षेप में 50° उत्तर की मानक अक्षांश रेखा को प्रकट करेगा। अन्य वृत्तांश बनाने के लिए केन्द्रीय मध्याह्न रेखा पर BD दूरी के बराबर अंतर पर मानक अक्षांश से P’ की ओर दो चिन्ह तथा G’ की ओर दो चिन्ह लगाएँगे। P’ बिन्दु को केन्द्र मानकर इन चिन्हों से होकर गुजरते हुए वृत्तों के चाप खींचेंगे तथा चित्र के अनुसार इन चापों पर अक्षांश रेखाओं के अंशों में मान लिखेंगे।

अब EF दूरी के अंतर पर मानक अक्षांश में केन्द्रीय मध्याह्न रेखा के एक ओर तीन एवं दूसरी ओर चार चिन्ह लगाएँगे। इन चिह्नों को P बिन्दु से मिलाते हुए सरल रेखा खींचेंगे। ये सरल रेखाएँ देशान्तर प्रकट करेंगी। देशान्तर रेखाओं पर उनके मान लिखेंगे। प्रक्षेप के नीचे उसकी प्रदर्शक भिन्न लिखेंगे।

2. विश्व का रेखाजाल बेलनाकार सम-क्षेत्र प्रक्षेप पर बनाइए, जहाँ प्रतिनिधि भिन्न 1:15,00,00,000 तथा मध्यांतर 15° है।

उत्तर: ग्लोब का अर्द्धव्यास =

4.2 सेमी.

विषुवत वृत्त की लम्बाई = 2πR = 2 × 22/7 × 4.2 = 26.4 सेमी. 

विषुवत वृत्त के साथ मध्यांतर = 2 × 22/7 × 4.2 = 26.4 सेमी. 

संलग्न देशान्तर रेखाओं के बीच दूरी = 26.4 × 15/360 = 1.09 सेमी. 

रचना:

प्रक्षेप बनाने के लिए किसी बिन्दु 0 को केन्द्र मानकर 4.2 से.मी. के अर्द्धव्यास का एक वृत्त बनाएँगे। जिसमें AC रेखा वृत्त का ध्रुवीय व्यास होगा। 0 तथा B बिंदु को मिलाते हुए आगे बढ़ाएँगे तथा बढ़ाई गई रेखा में 26.4 से.मी. अर्थात् भूमध्य रेखा के बराबर BD रेखा काटेंगे। B बिंदु पर EF तथा D बिंदु पर GH लम्ब खींचेंगे। ये लम्ब रेखाएँ प्रक्षेप में क्रमशः 180° पश्चिम तथा 180° पूर्व की देशान्तर रेखाओं को प्रकट करेंगी। अब OB रेखा के 0 बिंदु पर 15° के अंतराल पर कोण बनाती हुई रेखाएँ खींचेंगे। A, J, K, L, M, N, P, Q, R, S, T, C बिन्दुओं से BD के समान्तर रेखाएँ खींचकर क्रमशः 90° उ., 75° उ., 60° उ., 45° उ., 30° उ., 15° उ. तथा 15° द., 30° द., 45° द., 60° द., 75° द., 90° द. के अक्षांश वृत्त पूर्ण करेंगे। शेष देशान्तर बनाने के लिए 1.09 से.मी. के अंतराल पर 24 भागों में विभाजित करेंगे। इसे ऊपर दिए गए बेलनाकार सम क्षेत्रफल प्रक्षेप के अनुसार बनाया जाएगा।

3. 1:25,00,00,000 की मापनी पर एक मर्केटर प्रक्षेप का रेखाजाल बनाइए, जिसमें अक्षांश एवं देशांतर 20° के मध्यांतर पर खींची जाए।

उत्तर: ग्लोब का अर्द्धव्यास =

= 2.56 सेमी.

भूमध्य रेखा की लंबाई = 2𐍀R 

= 2 × 22/7 × 2.56 = 16.1 सेमी. 

दिए गए अंतराल पर 2 संलग्न देशान्तर रेखाओं के बीच दूरी 

= 2πR/360 × 20 = 16.1 × 20/360 = 9 सेमी.

रचनाः

16.1 से.मी. लम्बी AB भूमध्य रेखा खींचेंगे। AB रेखा के दोनों ओर A बिन्दु पर CD तथा B बिन्दु पर EF लम्ब खींचेंगे। प्रक्षेप में दिए गए अंतराल पर 20°, 40°, 60°, 80° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांश वृत्त बनेंगे। इन अक्षांश वृत्तों की भूमध्य रेखा से दूरियाँ निम्न प्रकार ज्ञात करेंगे।

1. 20° अक्षांश वृत्त की भूमध्य रेखा से दूरी = 0.356 × 2.56 = .91

2. 40° अक्षांश वृत्त की सेमी. भूमध्य रेखा से दूरी = 0 .763 × 2.56 = 1.9

3. 60° अक्षांश वृत्त की सेमी भूमध्य रेखा से दूरी = 1.317 × 2.56 = 3.37

4. 80° अक्षांश वृत्त की सेमी. भूमध्य रेखा से दूरी = 2.436 × 2.56 = 6.23 सेमी.

अब A बिन्दु से 91 से.मी. 1.95 से.मी. 3.37 सेमी, 6.23 से.मी. की दूरी AC रेखा पर क्रमशः G, H, । तथा C बिन्दु एवं AD रेखा पर क्रमश: J, K, L, D बिन्दु अंकित करेंगे। इस प्रकार अंकित बिन्दुओं से AB के समान्तर रेखाएँ खींचकर 20°, 40°, 60°, 80° के उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश वृत्त पूर्ण करेंगे। 20° के अंतराल पर शेष देशान्तर रेखाएँ बनाने के लिए 9 से.मी. के अंतराल के समान भागों में विभाजित कर लम्ब रेखाएँ खींचेंगे। इसे ऊपर दिए मर्केटर प्रक्षेप के चित्र के अनुसार बनाया जाएगा।

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