Class 11 Hindi Chapter 21 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर

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भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ – लता मंगेशकर

Chapter – 21

वितान खंड

सारांश:

कवि परिचय:

बरसों पहले की बात है, एक बार लेखक बीमारी की अवस्था में रेडियों लगाया तो अचानक उन्हें एक अद्वितीय स्वर सुनाई पड़ा। गाना समाप्त होने के पश्चात् जब गायिका का नाम घोषित किया गया तो लेखक चकित हो गये। क्योंकि यह कोई और नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर की बेटी लता मंगेशकर है। लता से पहले नूरजहाँ जैसी प्रसिद्ध गायिका का चित्रपट संगीत में अपना जमाना था। परन्तु उसी क्षेत्र में बाद आई लता को अधिक प्रसिद्धी मिली। कला के क्षेत्र में ऐसे चमत्कार कभी-कभार ही देखने को मिलते हैं। भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई ही नहीं। लता के कारण न केवल चित्रपट संगीत के विलक्षण लोकप्रियता मिली बल्कि शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों के देखने के दृष्टिकोण भी बदल गया। 

लेखक कहते हैं कि लता के कारण ही आजकल बच्चे स्वर में गुनगुनाते हैं। लेखक कहते हैं, कोकिला का स्वर निरंतर कानों में पड़ने से उसको सुनने वाला अवश्य उसका अनुकरण करेगा। चित्रपट संगीत के कारण लोग सुन्दर स्वर मालिकाएँ सुन रहे | तथा संगीत के विविध प्रकारों से उनका परिचय हो रहा है। लोगों का स्वर ज्ञान बढ़ रहा हैं। आकारयुक्त लय के साथ उनकी जान-पहचान होती जा रही है। और इन सबका श्रेय लता को हैं। इस प्रकार लता ने न केवल नयी पीढ़ी के सगंती को संस्कारित किया है, बल्कि सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में | बड़ा हाथ बँटाया हैं। संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को जाता हैं। जिस प्रकार मनुष्यता हो तो वह मनुष्य हैं, वैसे ही ‘गानपन’ हो तो वह संगीत हैं। 

लता के हर गाने में शत-प्रतिशत ‘गानपन’ मौजूद मिलता है। लता की लोकप्रियता का मुख्य कारण उनका ‘गानपन’ हैं। लता के स्वरों में निर्मलता पायी जाती है, उनके स्वरों में कोमलता और मुग्धता पाई जाती है। लेखक कहते हैं, लता के स्वर निर्मलता का जितना उपयोग संगीत दिग्दाको को लेना था वे नहीं ले पाये। लेखक कहते हैं, कि अगर वे संगीत दिग्दर्शक होते तो लता से बहुत जटिल काम लेते। लेखक कहते हैं, लता ने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया हैं। लेखक लता के गायकी की एक कमी का उल्लेख करते हैं कि उनका गाना सामान्यतः ऊँची पट्टी में रहता है।

लेखक कहते हैं कि हमेशा एक प्रश्न उपस्थित किया जाता है, कि शास्त्रीय संगीत में लता का स्थान क्या है। लेखक के अनुसार चित्रपट संगीत और शास्त्रीय संगीत की तुलना ही नहीं सकती है। जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायीभाव है, वहीं जलदलय और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है। जहाँ दोनों में अंतर वहीं यह भी आवश्यक हैं कि चित्रपट संगीत गानेवालों को शास्त्रीय संगीत की जानकारी हो। तीन साढ़े तीन मिनट का चित्रपट संगीत और शास्त्रीय गायकी दोनों का कलात्मक और आनदात्मक मूल्य एक ही है। तीन घंटे के महाफ़िल का सारा रस उनके – तीन मिनट के गाने में पाया जाता है। उनका हरेक गाना संपूर्ण कलाकृति होता है, जिसमें स्वर लय और शब्दार्थ की त्रिवेणी संगम होता है।

संगीत के क्षेत्र में लता का स्थान अव्वल दरजे के खानदानी गायक के समान ही हैं। खानदानी गवैयों ने यह आरोप लगाया है कि चित्रपट संगीत के कारण लोगों की अभिरुचि बिगड़ गई हैं। चित्रपट ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं। परन्तु लेखक का मानना है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ नहीं दिये बल्कि सुधार दिए हैं। शास्त्रीय गायक बड़ी आत्मसंतुष्ट वृत्ति के होते हैं। केवल शास्त्र शुद्धता को ही वे महत्व देते हैं। परन्तु चित्रपट संगीत द्वारा लोगों की अभिजात्य संगीत से जान-पहचान होने लगी हैं। उनमें चिकित्सक तथा चोकस वृत्ति बढ़ने लगी है। 

चित्रपट संगीत में नवनिर्माण की बहुत गुंजाइश होती है। चित्रपट संगीत दिग्दर्शक जिस प्रकार शास्त्रीय राग दारी का उपयोग करते हैं उसी तरह लोकगोतों का भी उपयोग करते हैं। वर्तमान | समय में चित्रपट संगीत दिनोंदिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है। लता जी को संगीत क्षेत्र में अनाभिषिक्त सम्राज्ञी हैं। जितनी लोकप्रियता लता को मिली उतना अन्य को नहीं। आधी शताब्दी तक जन-मन पर प्रभुत्व बनाये रखना आसान नहीं हैं। केवल भारत में ही नहीं परदेश में भी लोग उनका गान सुनकर पागल हो जाते हैं। ऐसा कलाकार शताब्दियों में एक ही पैदा होता है। हमारा यह भाग्य है कि हम ऐसे कलाकार की देख रहे हैं।

प्रश्नोत्तर

1. लेखक ने पाठ में गानपन क उल्लेख किया है। पाठ के सदंर्भ में स्पष्ट करने हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?

उत्तर: लेखक ने गानपन का उल्लेख करते हुए कहा है, जिसप्रकार मनुष्य के लिए मनुष्यता का होना आवश्यक है, उसी प्रकार गाना में गानपन का होना अति आवश्यक है। यह गानपन ही गाने को सजीव बनाता है।

गाने में गानपन शास्त्रीय बैठक के पक्केपन की वजह से ताल सुर के निर्दोष ज्ञान के कारण नहीं आती है। बल्कि गाने की मिठास, उसकी सारी ताकत गानपन में अवलंबित रहती है। गाने को रसिक वर्ग के समक्ष कैसे पहुँचायाँ जाए किस ढंग से प्रस्तुत किया जाए और श्रोताओं में कैसे सुसंवाद साधा जाए यह सभी बाते गानपन में समाविष्ट है। अतः गानपन के लिए इन सभी बातों के अभ्यास की आवश्यकता हैं।

2. लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है। आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नजर आती है। उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर: लेखक ने लता की गायकी की बहुत सारी विशेषताओं का उल्लेख किया है, जिनमें स्वरों निर्मलता, मुग्धता और कोमलता तथा उनका नादमय उच्चार है।

मेरे अनुसार लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं―

1. लता के गाने में एक चुम्बकीय शक्ति है, जो हर श्रोता को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। उनके कोई भी गाना अगर हम ले उदाहरणस्वरूप- यारा सीली सीली, ये कहाँ आ गएँ हम आदि सुनने पर एक खिंचाव सा अनुभव होता है।

2. लताजी के गाने में कोमलता और मधुरता हैं। उनके गाने में इतनी कोमलता और मधुरता है कि उसकी तुलना हम कोकिला से कर सकते हैं। वर्षों पहले जो कोमलता और मधुरता उनके गाने में मौजूद थी वहीं बात आज भी उनके गाने में देखने को मिलती है।

3. लता जी के गाने में स्वरों की निर्मलता पाई जाती है। लताजी हमेशा सादा जीवन की पक्षपाती रही है। जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण उनका रहा है, वहीं दृष्टिकोण गायन की तरफ भी पाया जाता है।

4. लताजी के गाने की एक और विशेषता है, उसका नादमय उच्चार। उनके गीतों में दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुंदर ढंग से प्रस्तुत रहता है। दोनों शब्द विलीन होते होते एक दूसरे में मिल जाते हैं।

3. लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया हैं, जबकि शृंगारपरकगाने बड़ी उत्कटता से गाती हैं। ― इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं। 

उत्तर: मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ। मुझे लगता है, कि लता ने करुण रस के गानों के साथ भी उतना ही न्याय किया है, जितना श्रृंगारपरक गानों के साथ उनके करुण रस वाले गाने उतने ही मनमोहक तथा मधुर लगते हैं, जितने श्रृंगारपरक गाने।

4. संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण हैं। वहाँ अब तक अलाक्षित, असंशोधित और अट्टाष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं- इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: लेखक कहते हैं कि संगीत का क्षेत्र बड़ा ही विस्तीर्ण है। और उस क्षेत्र में आज भी ऐसे बहुत सारा क्षेत्र है, जो अलक्षित, असंशोधित और अट्टाष्टिपूर्व है। और चित्रपट के लोग इन सभी क्षेत्रों का उपयोग और इसकी खोज बड़े जोश से कर रहे हैं। चित्रपट संगीत दिग्दर्शकों ने शास्त्रीय रागदारी का जहाँ चित्रपट संगीत में प्रयोग किया है, वहीं लोकगीतों को भी अपनी संगीत में समाहीत किया है। वर्तमान फ़िल्मी संगीत में कई जगहों के लोकगीतों को समाहित किया गया है। यहाँ तक की धूप का कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीत, रूक्ष और निर्जल राजस्थान में पर्जन्य की याद दिलाने वाले गीत, कृषि गीत, पहाड़ी गीत, ऋतुचक्र समझाने वाले गीतों का उपयोग फ़िलमी संगीत में किया जा रहा है।

5. चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें। 

उत्तर: शास्त्रीय संगीतवाले अक्सर यह आरोप लगाते हैं. कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं। इस पर कुमार गंधर्व कहते हैं कि यह आरोप निराधार हैं। क्योंकि लेखक के अनुसार चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं है, बल्कि सुधार दिए हैं। चित्रपट संगीत के कारण लोगों की रुचि अभिजात्य संगीत की ओर बढ़ी हैं।

मेरे अनुसार भी चित्रपट संगीत के कारण लोगों की रुचि संगीत की तरफ बढ़ी हैं। लोगों की चिकित्सक और चौकस वृत्ति अब बढ़ती जा रही हैं। अब लोगों को सुरीला गाना चाहिए न की शास्त्र शुद्ध और नीरस गाना।

6. शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय हैं? स्वयं आप क्या सोचते है? 

उत्तर: कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्व का आधार इस बात पर ठहरता है कि वे रासिक या श्रोता को कितना आनन्द प्रदान करते हैं। अर्थात दोनों प्रकार के संगीत के लिए यह आवश्यक हैं कि वह श्रोता का आनन्द दे।

मेरे विचार में भी यह बात बिल्कुल आवश्यक है।

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