Class 11 Hindi Chapter 1 नमक का दारोगा

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SCERT Class 11 Hindi Chapter 1 नमक का दारोगा

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नमक का दारोगा

Chapter – 1

गद्य खंड

प्रश्नोत्तर

1. कहानी का कौस-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है, और क्यों? 

उत्तर: ‘नमक का दारोगा’ कहानी में मुंशी वंशीधर का चरित्र सर्वाधिक प्रभावित करता है। मुंशी वंशीधर को चरित्र को प्रभावित करने वाले गुणों में से कुछ निम्नलिखित हैं

(क) कर्तव्यनिष्ठ: मुंशी वंशीधर में कर्तव्यनिष्ठा की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। रात के समय भी जब गाड़ियों की गड़गड़ाहट सुनता हैं, तो वह अपने कर्तव्य का पालन कर वरदी पहने वहाँ चाँज करने आता है।

(ख) ईमानदार: मुंशी वंशीधर बहुत ही ईमानदार व्यक्ति थे। उनकी ईमानदारी का प्रमाण उस समय मिलता है, जब मुंशी वंशीधर पंडित आलोपीदीन द्वारा दिये गये चालीस हजार की रिश्वत की रकम लेने से इनकार कर देते हैं। एक स्थान पर मुंशी वंशीधर कहते हैं- ‘एक हजार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते।’

2. ‘नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित आलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?

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उत्तर: ‘नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित आलोपीदीन के व्यक्तित्व के निम्नलिखित दो पहलू उभरकर आते हैं―

(क) एक सफल व्यापारी: पंडित आलोपीदीन एक सफल व्यवसायी के रूप में चित्रित किये गये हैं। वर्तमान समय में वहीं सफ़ल व्यवसायी है, जो धन प्राप्त करने के लिए साम-दाम-दंड भेद की नीति अपनाता है। पंडित आलोपीदीन भी नमक चोरी करते हुए पकड़े जाने पर रिश्वत की नीति को अपनाते हैं। वह वंशीधर को चालीस हजार तक की रकम रिश्वत देने की कोशिश करता है।

(ख) सज्जन पुरुष: अलोपीदीन एक सज्जन व्यक्ति भी है। वंशीधर द्वारा हिरासत में लिये जाने पर भी आलोपीदीन उसी के पास नौकरी का प्रस्ताव लेकर जाता है।

3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं―

(क) वृद्ध मुंशी। 

(ख) वकील। 

(ग) शहर की भीड़।

उत्तर: (क) वृद्ध मुंशी: वृद्ध मुंशी एक संसारिक व्यक्ति हैं, जो अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समाज के उन वर्गों के लोगों के प्रतीक हैं, जो ऊपरी आय को अनुचित नहीं समझते। जो मासिक वेतन को केवल पूर्णमासी का चाँद समझते हैं।

(ख) वकील: वकील समाज की उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जो समाज के धनवान तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति को हर समस्या से बचाने के लिए तत्पर रहते हैं। अतः जब आलोपीदीन जब कानून के पंजे में आए तो वकीलों की एक सेना बड़ी तत्परता से इस आक्रमण को रोकने के लिए तैयार हो गई।

(ग) शहर की भीड़: शहर की भीड़ समाज के उन लोगों की सच्चाई का उजागर करती है, जो हर घटना का उपयोग करते हैं। कोई भी घटना घटी नहीं कि उसे देखने के लिए पूरी भीड़ आ जाती है।

4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार हैं। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद जो एक दिन दिखाई देता हैं और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीहोती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।

(क) यह किसकी उक्ति है?

(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया हैं?

(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्ततव्य से सहमत है? 

उत्तर: (क) यह उक्ति वृद्ध वंशीधर की है।

(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद इसलिए कहा गया है, क्योंकि पूर्णिमा के दिन ही चाँद अपने पूरे आकार में उभरा है, और उसके घटते-घटते लुप्त हो जाता है, ठीक उसी प्रकार मासिक वेतन भी महिने में एक बार मिलता और घटते-घटते लुप्त हो जाता है।

(ग) जी नहीं, इस वक्तव्य में एक पिता ने अपने जीवन के अनुभवों को बताया हैं। जीवन में धन का कितना महत्व हैं, वे अपने बेटे को समझाते हुए कहते हैं कि नौकरी में कभी ओहदे की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए। बल्कि निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूढ़ना चाहिए जहाँ ऊपरी आय हो। क्योंकि मासिक वेतन पूर्णमासी का चाँद होता है, जो घटते-घटते एक दिन लुप्त हो जाती है। वेतन मनुष्य देता है, और ऊपरी आमदनी ईश्वर देता हैं। परन्तु अगर हर मनुष्य वृद्ध मुंशी जी की बातें स्वीकार कर ले तो इमानदारी, सच्चाई न्याय इत्यादि पर से आम मनुष्य का विश्वास हट जायेगा। हर आदमी रिश्वत लेने लगेगा और इस तरह अपराध को बढ़ावा मिलेगा।

5. ‘नमक का दारोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इमानदारी की जीत: संपूर्ण कहानी एक ईमानदार नमक का दारोगा वंशीधर पर आधारित हैं। वंशीधर चाहता तो चालीस हजार की रिश्वत की रकम लेकर नमक चोरी के मामले को दबा सकता था, परंतु उसने ऐसा नहीं किया। वंशीधर ने सदैव ईमानदारी का साथ दिया और इसके लिए वंशीधर को अपनी नौकरी से ही हाथ धोना पड़ा। परंतु वंशीधर को इस बात का अफसोस नहीं था। अतः इस कहानी के माध्यम सो प्रेमचंद्र कहना चाहते हैं, कि ईमानदारी का साथ कहीं नहीं छोड़ना चाहिए। अतः ‘ईमानदारी की जीत’ इस कहानी का शीर्षक हो सकता है।

मुंशी वंशीधर कभी-कभी कहानी का नामाकरण मुख्य पात्र नाम के आधार पर किया जाता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो इस कहानी का मुख्य पात्र मुंशी वंशीधर हैं। पूरी कहानी मुंशी वंशीधर के इर्द-गिर्द ही घुमती हैं। अतः इस काहनी का नामाकरण ‘मुंशीवंशीधर’ किया जा सकता है।

6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर के नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकती है? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?

उत्तर: कहानी के अंत में अलोपीदीन वंशीधर को अपनी संपत्ति का व्यवस्थापक के रूप में नियुक्त करते है, क्योंकि मुंशीवंशीधर की ईमानदारी, कतर्व्यनिष्ठा आदि गुणों से बहुत ही प्रभावित मुंशी वंशीधर के सम्मुख चालीस हजार की बड़ी रकम का लोभ भी दिया गया था, परन्तु उन्होंने उसे लेने से इनकार कर दिया। वंशीधर चाहते तो उस रिश्वत की रकम को ले सकते थे परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। वंशीधर अपने कर्तव्य के प्रति इतने निष्ठावान थे कि अलोपीदीन द्वारा दिया जाने वाला रिश्वत को लेने । मना कर दिया।

मैं इस कहानी का अंत बिल्कुल ऐसा ही करना चाहती जैसा प्रेमचंद्र ने किया है। कहानी के अंत में अलोपीदीन का मुंशी वंशीधर के पास आना न दिखाया जाए तो कहानी का उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा।

अति संक्षेप प्रश्न:

1. “मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पहूँ।”- किसका कथन है।

उत्तर: वृद्ध मुंशी ।

2. मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया हैं?

उत्तर: मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा जाता है, क्योंकि जिस प्रकार चाँद पूर्णिमा के दिन अपने पूरे आकार में निकलता हैं, ठीक उसी प्रकार वेतन भी महीने के एक दिन ही मिलता हैं।

3. मुंशी वंशीधर को किस विभाग में नौकरी मिली? 

उत्तर: मुंशी वंशीधर को नमक विभाग में दारोगा के पद पर नौकरी मली।

4. कम समय में ही मुंशी वंशीधर कैसे अफ़सरों को मोहित कर लिया था?

उत्तर: मुंशी वंशीधर अपनी कार्यकुशलता तथा उतम आचार से अफ़सरों को मोहित कर लिया।

5. पंडित अलोपीदीन कौन हैं?

उत्तर: पंडित अलोपीदीन एक प्रतिष्ठित जमीदार थे।

6. गाड़ियाँ कहाँ जा रही थी?

उत्तर: गाड़ियाँ कानपुर जा रही थी।

7. गाड़ियों में क्या लदा हुआ था?

उत्तर: गाड़ियों में नमक का ढेला लदा हुआ था।

8. संसार का तो कहना ही क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य हैं- किसका कथन है ?

उत्तर: पंडित अलोपीदीन का कथन है।

9. मुंशी वंशीधर के किसी एक चारित्रिक विशेषता बताइए। 

उत्तर: ईमानदारी।

10. एक हजार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते यह किसका कथन हैं।

उत्तर: यह कथन मुंशी वंशीधर का है।

11. बदलू सिंह कौन हैं?

उत्तर: बदलू सिंह जमादार हैं।

12. पंडित अलोपीदीन क्यों मूर्च्छित होकर गिर पड़े।

उत्तर: पंडित अलोपीदीन जब अपने को हथकड़ी पहनाने के लिए आने तक व्यक्ति को देखा तो हैं, मूर्च्छित हो गये।

13. डिप्टी मजिस्ट्रेट ने क्या फैसला सुनाया?

उत्तर: उन्होंने यह फैसला सुनाया कि पंडित अलोपीदीन के विरूद्ध जो प्रमाण दिये गये हैं, वह निर्मूल और भ्रमात्मक है। 

14. मुंशी वंशीधर को नौकरी क्यों छोड़नी पड़ी?

उत्तर: पंडित अलोपीदीन मुंशी वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर के रूप में नियुक्त करना चाहते थे। वहीं प्रस्ताव लेकर उनके घर आये।

व्याख्या:

1. मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद हैं, जो एक दिन दिखाई देता है, और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत हैं, जिससे सदैव प्यास बुझती है, वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।

उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पठित पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कहानी ‘नमक का दारोगा’ से ली गई हैं। इसके कहानिकार हैं- मुंशी प्रेमचंद्र। प्रस्तुत पंक्तियाँ वृद्ध मुंशी का अपने बेटे मुंशी वंशीधर के प्रति हैं। यहाँ वृद्ध मुंशी अपने जीवन में प्राप्त अनुभव को अपने बेटे के सम्मुख व्यक्त कर रहे हैं। उनके अनुसार मासिक वेतन पूर्णमासी का चाँद होता है, जो एक दिन मिलता है, और घटते-घटते समाप्त हो जाता है। परन्तु ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत हैं, जिससे सदैव प्यास बुझती है? वेतन में वृद्धि इसलिए नहीं होती है, क्योंकि वह मनुष्य देता है, और ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, और इसी आय से मनुष्य की बरकत होती है। वे अपन बेटे से कहते हैं, तुम स्वयं समझदार हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।

2. मैंने हजारों रईस और अमीर देखे, हज़ारो-उच्च पदाधिकारियों से काम पड़ा, किन्तु मुझे परास्त किया तो आपने। 

उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कहानी ‘नमक का दारोगा’ से ली गई है। इसके कहानीकार है- मुंशी प्रेमचंद्र । प्रस्ततु पंक्तियाँ पंडित अलोपीदीन का मुंशी वंशीधर के प्रति हैं।

पंडित अलोपीदीन वंशीधर के ईमानदारी से बहुत दी प्रभावित होते हैं। जब मुंशी वंशीधर को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी तो पंडित अलोपीदीन एक प्रस्ताव लेकर आते हैं। वह कहता है, कि उन्होंने हजारों रईस तथा अमीर व्यक्ति देखे जो आसानी से धन के सामने परास्त हो जाते हैं, परन्तु मुंशी वंशीधर की ईमानदारी ने अलोपीदीन को ही परास्त कर दिया।

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