Class 11 Hindi Chapter 20 आओ, मिलकर बचाएँ

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SCERT Class 11 Hindi Chapter 20 आओ, मिलकर बचाएँ

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आओ, मिलकर बचाएँ

Chapter – 20

काब्य खंड

(1) अपनी बस्तियों को 

नंगी होने से

शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठयपुस्तक ‘आरोह’ के ‘आओ, मिलकर बचाएँ। कविता से ली गई हैं। इसकी कवियत्री निर्मता पुतुत हैं। 

आदिवासी समाज जो विनाश की ओर बढ़ रहा है, जो आज सकंट में हैं, उसे बचाने का बात कह रही हैंष वह कहती हैं, कि आदिवासी बस्तियों को बचाना आवश्यक है, जो उजड़ती जा रही हैं। उसे शहर की आबो-हवा (दिखावापन) से बचाने की आवश्यकता हैं।

(2) बचाएँ डूबने से 

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पूरी की पूरी बस्ती 

को हड़िया में।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने आदिवासी समाज को बचाने की बात कही। आदिवासी समाज जो विनाश की ओर अग्रसर हो रहा हैं, उसका एक कारण यह भी है कि शराब की ओर बढ़ता झुकाव । अतः- कवयित्री कहती है, पूरी की पूरी बस्ती को हड़िया में डूबने से बचाएँ।

(3) अपने चेहरे पर

सन्थाल परगना की माटी का रंग

भाषा में झारखंड़ीपन।

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने संथाली समाज के सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव आदि जैसे सकरात्मक तत्व का वर्णन किया हैं। 

कवयित्री कहती हैं, संथाली समाज के प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे पर वहाँ की माटी का रंग देखने को मिलता है। उनकी भाषा में झारखंडीपन देखने को मिलता है।

(4) ठंडी होता दिनचर्या में 

जीवन की गर्माहट 

मन का हरापन 

भोलापन दिल का 

अक्खड़पन, जुझारूपन भी।

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने आदिवासी समाज के लोगों के भोलपन को वर्णन किया हैं।

कवयित्री कहती है, कि भले ही अनके दिनचर्या ठंडा हैं अर्थात् भले ही कड़ी मेहनत बावजूद भी इनकी खराब दशा है, फिर भी इनके जीवन में उत्साह भरा हुआ है। उनके के स्वभाव में भले ही भोलापन हैं, पर मन में जोश हैं। उनमें अक्खड़पन है, और उनके स्वभाव में जुझारूपन भी देखने को मिलता है।

(5) भीतर की आग

धनुष की डोरी

तीर का नुकीलापन 

कुल्हाड़ी की धार

जंगल की ताजा हवा

नदियों की निर्मलता

पहाड़ों का मौन

गीतों का धुन

मिट्टी का सोंधापन

फसलों की लहलहाहट।

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने संथाली समाज का चित्र उपस्थित किया है। कवयित्री कहती है, संथाली समाज में सादगी भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कठोर से परिश्रम जैसे सकरात्मक तत्व हैं। उनके भीतर आग हैं। उनके तीर में नुकीलापन हैं। कुल्हाड़ी में धार हैं। वहाँ जंगल में ताजा हवा है, नदियों की निर्मलता हैं। पहाड़ों में में मौनता हैं, गीतों में धुन हैं, मिट्टी में सोधापन हैं। चारों तरफ फसलों की लहलहाहट हैं। संथाली समाज पूरी तरह से प्रकृति से जुड़े हैं।

(6) नाचने के लिए खुला आँगन

गाने के लिए गीत

हँसने के लिए भोड़ी सी खिलखिलाहट

रोने के लिए मुट्ठी भर एकान्त।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री में संथाली समाज का चित्र उपस्थित किया है। 

कवयित्री कहती है, उनको (संथाली समाज) नाचने के लिए खुला आँगन है। गाने के लिए गीत उपलब्ध हैं। हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट उपलब्ध है। वहीं रोने के लिए थोड़ा सा एकान्त भी उपलब्ध हैं।

(7) बच्चों के लिए मैदान

पशुओं के लिए हरी-हरी घास 

बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति।

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने प्राकृति परिवेश का चित्रण किया है। कवयित्री कहते हैं, वहाँ बच्चों के लिए मैदान उपल्बध है, वहाँ पशुओं के लिएहरी हरी घास उपलब्ध है। बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति उपलब्ध हैं। यहाँ चारों ओर प्राकृति सौन्दर्य ही सौन्दर्य देखने को मिलता है।

(8) और इस अविश्वास भरे दौर में 

थोड़ा-सा विशवास 

थोड़ी सी उम्मीद

थोड़े से सपने

आओ, मिलकर बचाएँ 

कि इस दौर में भी बचाने को 

बहुत कुछ बचा है, 

अब भी हमारे पास।

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री ने संथाली समाज को बचाने की बात कही हैं। कवयित्री कहती है, इस अविश्वास भरे दौर में भी आज आदिवासी समाज में जो थोड़ा सा विश्वास उम्मीद तथा सपने बचे हुए है, उन्हें आज मिलकर बचाना चाहिए। इस कृत्रिम समाज में भी हमारे पास बचाने के लिए बहुत कुछ हैं। आज अगर आदिवासी समाज को नहीं बचाया गया तो यह कहीं खो जायेंगी।

प्रश्नोत्तर

1. माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया हैं? 

उत्तर: ‘माटी का रंग’ प्रयोग कर यह संकेत किया गया है कि संथाली समाज के लोग अपने समाज तथा परिवेश के साथ अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं।

2. भाषा में झारखंड़ीपन से क्या अभिप्राय हैं? 

उत्तर: यहाँ कवयित्री ने संथाली समाज का वर्णन किया हैं, जिनका निवास स्थान झारखंड था। अतः उन संथाली लोगों की भाषा में झारखंडीपन देखने को मिलता हैं।

3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है? 

उत्तर: कवयित्री कहती है, दिल का भोलपन के साथ अक्खड़पन और जुझारूपन इनकी विशेषताएँ है, जो कही नष्ट न हो जाए अतः उसे बचाने की आवश्यकता पर बल दिया है।

4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती हैं? 

उत्तर: कवयित्री आदिवासी समाज की अशिक्षा, कुरीतियाँ तथा शराब की ओर बढ़ता झुकाव आदि बुराइयों की ओर संकेत करती है।

5. इस दौर में बचाने को बहुत बचा है- से क्या आशय हैं? 

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री ने संथाली समाज को बचाने की बात कही हैं। कवयित्री कहती है, इस अविश्वास भरे दौर में भी आज आदिवासी समाज में जो थोड़ा सा विश्वास उम्मीद तथा सपने बचे हुए है, उन्हें आज मिलकर बचाना चाहिए। इस कृत्रिम समाज में भी हमारे पास बचाने के लिए बहुत कुछ हैं। आज अगर आदिवासी समाज को नहीं बचाया गया तो यह कहीं खो जायेंगी। 

6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए।

(क) ठंडी होती दिनचर्या में

जीवन की गर्माहट

उत्तर: कवयित्री कहती है, कि भले ही अनके दिनचर्या ठंडा हैं अर्थात् भले ही कड़ी मेहनत बावजूद भी इनकी खराब दशा है, फिर भी इनके जीवन में उत्साह भरा हुआ है। उनके के स्वभाव में भले ही भोलापन हैं, पर मन में जोश हैं। उनमें अक्खड़पन है, और उनके स्वभाव में जुझारूपन भी देखने को मिलता है।

(ख) थोड़ा-सा विश्वास 

थोड़ी-सी उम्मीद 

थोड़े-से सपने

आओ, मिलकर बचाएँ।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री ने संथाली समाज को बचाने की बात कही हैं। कवयित्री कहती है, इस अविश्वास भरे दौर में भी आज आदिवासी समाज में जो थोड़ा सा विश्वास उम्मीद तथा सपने बचे हुए है, उन्हें आज मिलकर बचाना चाहिए। इस कृत्रिम समाज में भी हमारे पास बचाने के लिए बहुत कुछ हैं। आज अगर आदिवासी समाज को नहीं बचाया गया तो यह कहीं खो जायेंगी।

7. बस्तियों को शहर की किस आवो-हवा से बचाने की आवश्यकता हैं? 

उत्तर: कवयित्री ने शहर की कृत्रिमता से, स्वार्थ आदि आवो-हवा से बस्तियों को बचाने की आश्यकता पर बल दिया हैं।

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