साहित्य समाज का दर्पण है – रचना | Saahity Samaaj ka Darpan hai Rachana to each essay is provided in the list so that you can easily browse throughout different essay साहित्य समाज का दर्पण है and select needs one.
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साहित्य समाज का दर्पण है
ज्ञानराशि के संचित कोष का नाम ही साहित्य है अथवा मानव की आत्मा और अनात्मा भावनाओं की अभिव्यक्ति को ही साहित्य कहते हैं। वह किसी देश, समाज तथा व्यक्ति का सामयिक समर्थन नहीं है अपितु वह सार्वदेशिक गुणों से अनुप्रमाणित रहता है। वास्तव में देखा जाए तो मानव मात्र में जो प्रमुख कामनाएँ तथा अभिलाषाएँ हैं वे ही साहित्य की चिरसंचित निधि हैं। यदि साहित्य को विश्व मानव का हृदय कों तो इसमें अत्युक्ति न होगी क्योंकि इसमें व्यक्तिगत हृदय की भांति ही सुख-दुःख, आशा निराशा, साहस, भय तथा उत्थान-पतन, उत्कर्ष-अपकर्ष एवं अश्रु-हास का स्पष्ट रूपेण स्पन्दन रहता है। संसार के भिन्न-भिन्न राष्ट्रों जातिगत, वर्गगत एवं धर्मगत चाहे कितना ही बाहरी पृथकता क्यों न हो, आन्तरिक रूप से हमारी भावनाएँ तथा जीवन-मरण की समस्या एक-सी है। प्रकृति को देखकर आश्चर्यान्वित होना, प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर पुलकायमान होना सभी के लिए समान है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि साहित्य का क्षेत्र अत्यन्त विशाल एवं विस्तृत है। मान जीवन की विशालता ही साहित्य क्षेत्र की सीमा है। मानव जीवन का उद्देश्य मात्र केव जी कर मरना नहीं, अपितु जीवन में सत्य की प्रतिष्ठा करना है। वस्तुतः सौन्दर्य महत्ता सत्य में है, सत्य की प्राप्ति जीवन का महत्त्व है। उस लक्ष्य सिद्धि की साधना काव्य और काव्य की सार्थकता जीवन के सुसम्पन्न, सतत प्रयत्नशील व चिरमंगल बनाने में हैं।
साहित्य की सीमाएं अत्यन्त विस्तृत हैं, उसमें शास्त्र विद्या, काव्य सभी क सन्निवेश हो जाता है। साहित्यकार में कवि के गुणों के अतिरिक्त विशेष गुणों का होन अनिवार्य है। जिस प्रकार समुद्र में से निकलने वाले रत्नों में अमृत की प्रधानता है, इ प्रकार साहित्य के विभिन्न अंगों में काव्य की प्रधानता है। साहित्य में पुराण, दर्शन सभी विधाओं का निचोड़ विद्यमान रहता है।
साहित्य के बारे में पाश्चात्य विद्वानों ने भी पर्याप्त मात्रा में विवेचना का प्रय किया है। परन्तु उनके विचारों में किसी प्रकार का सामंजस्य उपलब्ध नहीं होता, प्राय सभी विद्वानों ने अपने पृथक-पृथक विचार प्रस्तुत किए हैं, जिन विचारों का एक-दूसरे के साथ प्रत्यक्ष संबंध दिखाई नहीं देता। कुछ विद्वानों के विचार निम्नलिखित है
1. फोर्ड मेडक्स- साहित्य पुस्तकों की वह संसृष्टि है जिसे मनुष्य आनंद प्राप्ति के लिए पढते हैं और पढ़ते ही चले जाते हैं।
2. एमर्सन- भव्य विचारों का संग्रह ही साहित्य है।
3. हडसन- साहित्य में केवल वे ही पुस्तकें सम्मिलित है जो अपने विषय ए उनकी प्रतिपादन शैली के कारण साधारण तथा मानव के लिए उपयोगी और रूचिकर है।
इसी प्रकार अन्य विद्वानों ने भी साहित्य के संबंध में अपनी भिन्न-भिन्न सम्मति की है परन्तु इन सम्पतियों पर सूक्ष्म, मनन और चिन्तन से यह स्पष्ट हो जाता है साहित्य का उद्देश्य महान और विशाल है।
साहित्य और जीवन के अटूट संबंध का कारण है उसका मूल स्रोताधार-कल्पन कुछ क्रिया-व्यापारों का नाम ही जीवन नहीं अपितु जीवन तो प्रगतिशीलता को कहते जीवन में यह प्रगति ऊँचे आदर्शों तथा महान दृश्य की कल्पना के द्वारा ही होती है। इ प्रकार कहा जा सकता है कि कल्पना ही जीवन की प्रेरक शक्ति है। जिस मनुष्य कल्पना उच्च होगी उसका जीवन भी उतना ही उच्च होगा। जब किसी देश में ऐसी उच्च कल्पनाशक्ति वाले महान पुरुष जन्म लेते हैं तो वह देश, वह राज्य एवं समाज उन्नति के शिखर पर पहुंचती है। अतः कहा जा सकता है कि साहित्य समाज का दर्पण है।