बेरोजगारी की समस्या – रचना | Berojagaaree kee Samasya Rachana to each essay is provided in the list so that you can easily browse throughout different essay बेरोजगारी की समस्या and select needs one.
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बेरोजगारी की समस्या
भारतवर्ष जितना प्राचीन और विशाल देश है, उसकी समस्याएँ भी उतनी ही विस्तृत और विकट है। भारतीय नेताओं के सम्मुख नित्य अनेक जटिल प्रश्न आते रहते हैं। कुछ प्रश्नों का समाधान अल्प समय पर कर लिया जाता है, कुछ के समाधान में अधिक समय लग जाता है। परन्तु कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनका समाधान नहीं निकलता और वे दिन-पर-दिन उलझते जाते हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत से सम्मुख राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक आदि विविध क्षेत्रों में अनेक जटिल प्रश्न आए। बेकारी की समस्या भी उन्हीं में से एक हैं।
बेरोजगारी की समस्या एक व्यापक समस्या है। इसे प्रायः अनेक नई समस्याओं का जन्म होता है। बेकारी के कारण समाज में भ्रष्टाचार, चरित्रहीनता, चोरी, हत्या आदि विविध समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है। फलतः समाज में अशान्ति का सूत्रपात होता है। अतः बेकारी की समस्या के समाधान के उपाय अवश्य निकालने चाहिए। इन उपायों की खोज करने से पूर्व बेकारी की जांच कर लेना उपयुक्त होगा।
भारत में बेरोजगारी का मूल कारण है- अत्याधिक आबादी। आज किसी विभाग में यदि दो रिक्त पदों की सूचना दी जाए तो दो सौ प्रार्थी उपस्थित हो जाते हैं। यह दशा शिक्षित- अशिक्षित, पुरुष-नारी सभी वर्गों में हैं। गाँवों में जिस जगह पर एक व्यक्ति अकेले खेती करता है, उसी जगह पर परिवार के अन्य दो-चार सदस्य और मिल जाते हैं। इस प्रकार के एक व्यक्ति का कार्य पांच व्यक्तियों में बँट जाता है, किन्तु इससे उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती। यदि एक व्यक्ति कार्य करें, तो शेष चार व्यक्ति बेकार रहते हैं। इससे व्यक्तियों की कार्यक्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं होता और वह धीरे-धीरे आलसी हो जाते हैं तथा व्यसनों में फंस जाते हैं।
भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देशों के लिए कुटीर उद्योग अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकता है। किन्तु एक ओर देश की जनसंख्या बढ़ती जा रही है, तो दूसरी ओर कुटीर उद्योगों का लोप होता जा रहा है। कुटीर उद्योगों में अपेक्षाकृत अधिक लोग कार्यरत रह सकते हैं। हस्तशिल्प का लोप हो जाने से हस्तशिल्पियों का वर्ग एकदम बेकार हो गया है।
शिक्षा का अभाव भी बेकारी का कारण बताया जाता है, किन्तु भारत में यह बात सर्वथा सत्य नहीं है। यहां बेकारी की संख्या में शिक्षित लोगों का प्रतिशत अधिक है। व्यवसायप्रद या उचित शिक्षा के अभाव में यहां शिक्षित लोग भी वेकार है। प्रति वर्ष विश्वविद्यालयों से स्नातकोत्तरों की बड़ी संख्या परीक्षाएं उत्तीर्ण करके रोजगार दफ्तर के की बात सामने कतारों में खड़ी रहती है। दो वर्ष, चार वर्ष और कभी-कभी आठ-दस वर्ष तक भी किसी को नौकरी नहीं मिलती, क्योंकि लिपिक के अतिरिक्त कुछ करना उनके नहीं होती और दफ्तरों में लिपिकों या बाबुओं की उतनी जगह रिक्त नहीं होती।
इसके विपरीत योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए प्रति वर्ष सहस्रों नए तकनीशियनों की आवश्यकता रहती है। कुल मांग का पचास प्रतिशत भी मुश्किल से प्राप्त होता है। शेष स्थान रिक्त पड़े रहते हैं या फिर विदेशों से द्विगुण वेतन पर तकनीशियनों को बुलाना पड़ता है। इससे प्रत्यक्ष हानि यह होती है कि योजना कार्य की गति धीमी पड़ जाती है और देश का बहुत सा धन बाहर चला जाता है।
ग्रामीण लोगों में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि वे अपने गाँव को छोड़कर कही बाहर आना पसन्द नहीं करते। गांव में आधे पेट भोजन करके रहना वे अपने लिए अधिक श्रेयस्कर समझते हैं। अशिक्षा, आलस्य आदि ऐसे ही कुछ अन्य कारणों से भी बेकारी की समस्या इस देश से दूर नहीं हो पाती।
बेकारी की समस्या से मुक्ति पाने के लिए यह आवश्यक है, कि उपयुक्त सभी कारणों का निवारण किया जाए। इसके लिए यह आवश्यक है कि जनसंख्या की वृद्धि गति को कम किया जाए। देश में सभी प्रकार के कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इससे बेकार लोगों को कार्य प्राप्त होगा, देश में उत्पादन और व्यवसाय दोनों की वृद्धि होगी।
भारत की शिक्षा पद्धति में भी सुधार की आवश्यकता है। योजनाओं के अन्तर्गत नए-नए तकनीशियनों की प्रत्येक वर्ष आवश्यकता रहती है। अतः देश में तकनीकी शिक्षा का बहुत तेजी से प्रसार होना चाहिए। छात्रों को अधिक से अधिक टेक्नीकल शिक्षा दी जानी चाहिए। मात्र पैतृक व्यवसाय की विचारधारा से लोगों को रूढ़िमुक्त होना चाहिए। सभी प्रकार के भेदभाव त्याग, को छोड़कार अवसरानुरूप कार्य में लग जाना चाहिए। इन्हीं उपायों से देश में व्याप्त बेकारी की समस्या दूर होगी और हमारा देश उन्नति, सुख समृद्धि के उच्चतम शिखर पर पहुँच सकेगा।
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