प्रदूषण की समस्या – रचना | Pradooshan kee Samasya Rachana to each essay is provided in the list so that you can easily browse throughout different essay प्रदूषण की समस्या and select needs one.
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प्रदूषण की समस्या
प्रकृति ने पर्यावरण में कुछ ऐसी सुविधाएँ दी है कि मनुष्य ही नहीं सम्पूर्ण प्राणीजगत जीवित रह सके। मनुष्य ने प्रगति की अंधाधुंध दौड़ में पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया है इसे इतना विषमय बना दिया है कि स्वयं उसका अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है. प्राणियों और वनस्पतियों पर भी उसका कुप्रभाव पड़ा है।
प्रदूषण मानव विकास, विशेषकर औद्योगिक विकास की देन है। प्रकृति में शान्त और सहज परिवर्तन स्वाभाविक गति से होते हैं, किन्तु वैज्ञानिक प्रगति ने प्रकृति के साथ सर्वाधिक छेड़-छाड़ की है। इस हस्तक्षेप से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है और प्रदूषण का विकराल दैत्य मानो सब कुछ निगल जाने को खड़ा है।
वायुमंडल में एक ओर तो ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है और दूसरी ओर विषैली गैसों की मात्रा बढ़ रही है। यातायात के साधनों के विकास से गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ और धूल वायुमंडल को प्रदूषित कर देते हैं। शहरों में कल-कारखाने निरन्तर धुआँ तथा अन्य जहरीली गैसें निकल कर वायुमंडल में फेलते रहते हैं। ऐसी विषैली वायु में साँस लेने के कारण फेफड़ों, गले तथा अन्य रोग बढ़ रहे हैं। शहरों में न स्वच्छ जल उपलब्ध है न वायु। अतः शहरों का जीवन बहुत घातक हो गया है।
मनुष्य ने प्राकृतिक साधनों के साथ क्रूर छेड़-छाड़ की है। वन काट डाले गए हैं। अतः पेड़ों से वायु शुद्धी की संभावना समाप्त हो गई है। दूसरी ओर पेड़ों के कट जाने से और अनेक हानियाँ होती हैं। मिट्टी कटकर बह जाती है तथा वनों में निवास करने वाले पशु-पक्षी नष्ट हो जाने से भी प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है।
औद्योगिक प्रगति ने हमारी नदियों की पवित्रता भी समाप्त कर दी है। गंगा जैसी पवित्र नदी प्रदूषण का शिकार है। यमुना का जल भयंकर रूप से प्रदूषित हो चुका है। नदियों के प्रदूषण का प्रमुख कारण है कल-कारखानों के विषैले अवशेषों को नदी में छोड़ा जाना। इससे नदियों के जल में इतना जहर धुल गया है कि नदियों में पाये जाने वाले मछली आदि जीव नष्ट हो गए हैं।
प्रदूषण की एक और समस्या है- ध्वनि प्रदूषण। मोटर गाड़ियों, यानों, कल कारखानों के कारण शोर की मात्रा बहुत बढ़ गई है। शोर मे रहने और काम करने से मनुष्य के मन-मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। श्रवण शक्ति कम हो जाती है।
शोर के कारण तनाव, घबराहट, डिप्रेशन जैसे मानसिक रोग हो जाते हैं। शहरों में ऐसे रोगियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है। इस प्रकार प्रदूषण आज के युग की भयंकर समस्या बन गया है। विश्व के सभी देश इससे चिंतित है क्योंकि इसका प्रभाव सम्पूर्ण मानव जाति पर पड़ रहा है। विशेष रूप से जो देश औद्योगिक प्रगति में बढ़ रहे हैं। शिकागो, लंदन, न्यूयार्क, बंबई, दिल्ली जैसे
महानगरों में वायु और ध्वनि प्रदूषण की मात्रा सीमा पार कर गई है। इससे पहले कि मानव जाति को अपने ही कर्मों की सजा मिले, उसे अपनी गलतियाँ सुधार लेनी चाहिए। प्रदूषण की समस्या पर सारे विश्व में चिन्ता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में कार्य हो रहा है। भारत में भी प्रदूषण नियन्त्रण के लिए सरकार ने अलग विभाग बनाया है जो विभिन्न क्षेत्रों में प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन करता है और उसके नियंत्रण की योजनाएं बनाता है। इसी क्रम में गंगा और यमुना के पानी के प्रदूषण को कम करने की योजना बनाई जा रही है। अधिक क्षेत्र में वन लगाए जा रहे हैं। अत: आशा की जानी चाहिए कि जिस समस्या को मानव ने स्वयं जन्म दिया है उससे वह स्वयं ही सफलतापूर्वक निपट भी लेगा।
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