राष्ट्रभाषा हिंदी – रचना | Raashtrabhaasha Hindi Rachana to each essay is provided in the list so that you can easily browse throughout different essay राष्ट्रभाषा हिंदी and select needs one.
राष्ट्रभाषा हिंदी
भारतवर्ष कई शताब्दियों तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। विदेशी शासकों ने हमारे देश की धन-संपत्ति को तो लूटा ही, इसके साथ-साथ हमारी भाषा एवं संस्कृति का विनाश भी खूब किया। पहले मुसलमानों ने ‘हम पर उर्दू, फारसी को लादा फिर अंग्रेजों ने अपनी अंग्रेजी को हम पर लाद दिया। लार्ड मैकाले की सलाह पर भारत में शिक्षा का अंग्रेजीकरण कर दिया गया। भारतवर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त किए पचास वर्ष से भी अधिक समय हो गया है, पर हम अभी तक मानसिक पराधीनता से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाए हैं। विदेशी भाषके प्रति हमारा आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है।
स्वतंत्रता मिलने पर संविधान सभा ने एकमत होकर स्वकार किया था- ‘संघ की ने राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।’ इसके साथ-साथ सोलह प्रादेशिक भाषाओं को भी मान्यता दी गई थी। हिंदी भाषा को पूर्ण स्थान प्रदान करने के लिए पंद्रह वर्ष का समय निश्चित किया गया। सरकार ने इसके लिए अपने प्रयत्न भी आरंभ कर दिए थे, पर भारतीय राजनीति एवं सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों को यह अच्छा नहीं लगा। राजनीतिक नेताओं ने अपने स्वार्थ देखे। दक्षिण भारत के लोगों के मन में यह भय बिठा दिया गया कि उन पर हिंदी लादी जा रही है। कुछ लोगों का कहना था कि अंग्रेजी के अभाव में उनके बच्चे नौकरियों में पिछड़ जाएंगे।
मातृभाषा के प्रति हीन भाव एवं अंग्रेजी के प्रति उच्च भाव हमारी मानसिक दासता का प्रतीक है। हमारे मन में अंग्रेजी वेशभूषा, रहन-सहन एवं अंग्रेजी भाषा का आतंक बना हुआ। चिरकाल तक पराधीन रहकर हमने राष्ट्रीयता के विधायक तत्वों को ही भूला दिया है। आधुनिकता के मोह में हममें स्वभाव, स्वसंस्कृति एवं स्वसाहित्य के प्रति कोई मोह नहीं रह गया है। अंग्रेजी भाषा को ज्ञान-विज्ञान का वातायन कहा जाने लगा है, जो तर्क संगत नहीं है।
हिंदी भारत के सर्वाधिक लोगों की भाषा है। अन्य सभी प्रादेशिक भाषाएं लोकप्रियता के आधार पर काफी पीछे हैं। हिंदी समझने में सरल है। यह तर्कपूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी सुबोध, वैज्ञानिक एवं सरल है। कोई भी राष्ट्र तब तक स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता है। राष्ट्रभाषा समूचे राष्ट्र की शक्ति होती है। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है, अतः इसी को पूरी तरह अपनाया जाना चाहिए। हिंदी ही समस्त राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांध सकेगी। हिंदी के प्रति हमारे हृदय में उच्च भाव होना चाहिए। हिंदी के प्रयोग में हमें गौरवान्वित होना चाहिए। विदेशी भाषा और विदेशी संस्कृति हमें कभी आदर नहीं दिला सकती। हमें इस स्थिति को समझना और स्वीकार करना है। नवयुवकों को अंग्रेजी सीखनी चाहिए, पर उसके मोहपाश में नहीं फंसना चाहिए। हिंदी की उन्नति से हमारा स्वाभिमान जागृत होगा।
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