NIOS Class 12 Hindi Chapter 18 यक्ष-प्रश्न: चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

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NIOS Class 12 Hindi Chapter 18 यक्ष-प्रश्न: चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

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Chapter: 18

HINDI

प्रथम पृष्ठ – पुस्तक – 1 बोध प्रश्न 18.1

1. नकुल को वन में जल खोजने के लिए किसने भेजा था-

(क) सहदेव।

(ख) भीम।

(ग) अर्जुन।

(घ) युधिष्ठिर।

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उत्तर: (घ) युधिष्ठिर।

2. सरोवर के किनारे वृक्ष पर बैठा बगुला वास्तव में कौन था-

(क) सरोवर का स्वामी।

(ख) गंधर्व।

(ग) यक्ष।

(घ) किन्नर।

उत्तर: (ग) यक्ष।

3. सहदेव, अर्जुन और भीम का नकुल जैसा हाल क्यों हुआ-

(क) बगुले की बात पर ध्यान नहीं देने के कारण।

(ख) जल ले जाने की जल्दी होने के कारण।

(ग) सरोवर का जल पीने के कारण।

(घ) अधिक प्यास लगने के कारण।

उत्तर: (क) बगुले की बात पर ध्यान नहीं देने के कारण।

4. संसार में दुख का कारण क्या है?

(क) लालच।

(ख) त्याग।

(ग) धन।

(घ) अभिलाषा।

उत्तर: (क) लालच।

पाठगत प्रश्न 18.1

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. जन्म का कारण है-

(क) मोह।

(ख) इच्छा।

(ग) संसार से लगाव।

(घ) अतृप्त इच्छाएँ।

उत्तर: (घ) अतृप्त इच्छाएँ।

2. मन को नियंत्रित किया जा सकता है-

(क) इच्छाओं पर नियंत्रण से।

(ख) संसार को समझकर।

(ग) महान आत्मा को जानकर।

(घ) परमात्मा को जानकार।

उत्तर: (क) इच्छाओं पर नियंत्रण से।

3. संसार में दुख का कारण है-

(क) वासनाओं में लिप्त रहना।

(ख) धन की इच्छा रखना।

(ग) स्वयं को नहीं समझना।

(घ) मूल्यों को नहीं अपनाना।

उत्तर: (क) वासनाओं में लिप्त रहना।

4. प्रेम क्या है-

(क) भावना।

(ख) इच्छा।

(ग) मूल्य।

(घ) लगाव।

उत्तर: (क) भावना।

पाठगत प्रश्न 18.2

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. हम सभी को जोड़ने का काम करता है-

(क) प्रेम।

(ख) धन।

(ग) रिश्ता।

(घ) विचार।

उत्तर: (क) प्रेम।

2. समाज के निर्माण में किसकी भूमिका महत्वपूर्ण है-

(क) राजनेता।

(ख) बुद्धिमान।

(ग) बलवान।

(घ) धनवान।

उत्तर: (ख) बुद्धिमान।

3. संसार पर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति है-

(क) कर्मवादी।

(ख) वैरागी।

(ग) सत्यवादी।

(घ) आत्मज्ञानी।

उत्तर: (घ) आत्मज्ञानी।

पाठगत प्रश्न 18.3

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. यह संसार किसकी इच्छा से चलता है-

(क) सूर्य।

(ख) प्रकृति।

(ग) ईश्वर।

(घ) व्यक्ति।

उत्तर: (ग) ईश्वर।

2. ईश्वर की अनुपम कृति किसे कहा गया है-

(क) सूर्य को।

(ख) चन्द्र को।

(ग) धरती को।

(घ) मनुष्य को।

उत्तर: (घ) मनुष्य को।

3. जीवन की कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है-

(क) धन से।

(ख) बल से।

(ग) धैर्य से।

(घ) सहयोग से।

उत्तर: (ग) धैर्य से।

4. हवा से भी तेज क्या है-

(क) प्रकाश।

(ख) मन।

(ग) आँधी।

(घ) अंधेरा।

उत्तर: (ख) मन।

18.7 पाठांत प्रश्न

1. पिता को आकाश से भी ऊँचा क्यों माना गया है? पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर: पिता को आकाश से भी ऊँचा कहा गया है। आकाश संपूर्ण धरती को अपने भीतर समेटकर रखने के बाद भी अहंकार नहीं करता। पिता समस्त आघातों को सहते हुए अपने परिवार पर छाया बनकर खड़ा रहता है। अपने परिवार पर किसी प्रकार से आँच नहीं आने देता। जिस प्रकार आकाश के विस्तार को नापा नहीं जा सकता, वैसे ही पिता का हृदय आकाश के समान विशाल होता है, जो सबको अपने स्नेह में समेट लेता है।

2. बुद्धिमान व्यक्ति की पहचान किस प्रकार की जा सकती है?

उत्तर: लोक में पुस्तकीय ज्ञान रखने वाले मनुष्य को बुद्धिमान समझा जाता है। पुस्तकीय ज्ञान को ही परम सत्य माना जाता है। लेकिन यह सत्य है कि किसी भी प्रकार की पुस्तक या शास्त्र पढ़ने से बुद्धिमान नहीं बना जा सकता। आज जब हम लोग अपने चारों ओर देखते हैं तो बड़े-बड़े आचार्य, विद्वान, पदाधिकारी आदि निजी स्वार्थ से बँधे हैं। समाज, राष्ट्र तथा लोक से अधिक उन्हें अपनी चिंता है। इसलिए हमें उस व्यक्ति के संपर्क में रहना चाहिए जो महापुरुष है। जो व्यक्ति समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपने जीवन को समर्पित करता है, हमें उसका अनुसरण करना चाहिए।

3. मनुष्य अपने प्रत्येक जन्म में संसार से लगाव क्यों रखता है? कारण सहित उल्लेख कीजिए।

उत्तर: मनुष्य अपने प्रत्येक जन्म में संसार से लगाव रखता है, उसे मरते समय तक संसार की वस्तुओं से लगाव रहता है। जीवन में अनेक इच्छाओं के साथ जीता है और अनेक इच्छाओं को अपने मन में लिए मृत्यु को प्राप्त होता है। जीवन में रहते हुए अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अच्छे-बुरे कर्म करता है। अतृप्त इच्छाओं, जीवन में किये गए कर्म तथा संसार के प्रति लगाव के कारण ही मनुष्य बार-बार जन्म लेता है। अब प्रश्न यह उठता है कि जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कैसे रहा जा सकता है या इस संसार में मुक्त कौन है? युधि ष्ठिर ने कहा कि जो अपने आपको जानता है। अपने आपको जानने का अर्थ अपनी आत्मा को जानना है। शरीर नाशवान है लेकिन आत्मा अजर-अमर है। आत्मा का कोई स्वरूप नहीं होता। वह परमात्मा का एक अंश मात्र है। शरीर के नष्ट होने के बाद आत्मा एक नया शरीर धारण कर लेता है। इस आत्मा के स्वरूप को जानने वाला ही जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो सकता है। वासना का अर्थ लगाव से है। मनुष्य अपने जन्म के साथ विभिन्न भावनाओं और लगाव के साथ जीता है। जिन भावनाओं के साथ मनुष्य मरता है, पुनः उन्हीं भावनाओं के साथ जन्म लेता है। मनुष्य की भावनाएँ अगर पशु जैसी रहीं तो वह पशु बनकर ही जन्म लेगा। अगर भावनाएँ मनुष्य जैसी रहीं तो वह मनुष्य रूप में जन्म लेगा। अभिप्राय यह कि जिन मूल्यों के साथ आप अपना जीवन जीते हैं, उन्हीं मूल्यों के आधार पर आपका अगला जन्म होगा। इन्हीं वासनाओं में लिप्त रहने के कारण मनुष्य दुखी रहता है। संसार में दुख का कारण भी यही है। अधिकांश मनुष्य अपना जीवन लालच, स्वार्थ और भय के साथ जीते हैं।

4. जीवन में सुख-शांति के लिए धन की आवश्यकता पर विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: जीवन में सुख-शांति के लिए धन की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि धन हमारी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने का माध्यम है।धन हमें भौतिक सुख-सुविधाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और मनोरंजन के साधन प्रदान कर सकता है, जो जीवन को सरल और आरामदायक बनाते हैं। इसके बिना जीवन में कई मुश्किलें आ सकती हैं, जो व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।

5. ‘प्रेम का क्षेत्र विस्तृत है-‘ कैसे?

उत्तर: प्रेम एक सार्वभौमिक मूल्य है। संपूर्ण संसार में प्रेम विविध रूपों में व्याप्त है। हम सभी प्रेम के वशीभूत हैं। प्रेम किसी-न-किसी रूप में हम सभी को एक-दूसरे से जोड़े हुए है। प्रेम का क्षेत्र विस्तृत है। लेकिन वर्तमान समय में प्रेम का दायरा संकुचित हो चुका है। हम सभी संकीर्ण सोच के अधीन हो चुके हैं। संपूर्ण संसार को अपना मानना ही सच्चा प्रेम है। हम जितना प्रेम अपने-आप से करते हैं उतना ही संसार की सभी वस्तुओं से प्रेम करना सच्चा प्रेम है। लेकिन मनुष्य संसार के सभी प्राणियों से प्रेम नहीं कर पाता है। उसका दायरा सीमित हो जाता है। वह प्रेम भी स्वार्थ के कारण करता है। स्वार्थ का क्षेत्र संकीर्ण है, जबकि प्रेम का क्षेत्र उदात्त और विस्तृत होना है। जब प्रेम स्वार्थ के दायरे में सिमट जाता है तो सभी से प्रेम नहीं किया जा सकता। मनुष्य सभी में अपने आप को नहीं देख पाता। सांसारिक आकर्षणों से मुक्त नहीं हो पाता। जहाँ उसका स्वार्थ पूरा होता है और जब तक होता है, वह तभी तक वह प्रेम करता है, इसलिए वह सभी से प्रेम नहीं करता।

6. मनुष्य के जीवन में कामनाओं की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: मनुष्य के जीवन में कामनाओं की भूमिका कुछ इस तरह है, प्रगति, प्रेरणा, और सृजनात्मकता का स्रोत हैं। वे जीवन को दिशा देती हैं, लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करती हैं, और संबंधों को मजबूत बनाती हैं। आध्यात्मिक उन्नति की चाह भी इन्हीं से जुड़ी है। लेकिन अनियंत्रित कामनाएँ समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं, इसलिए इन्हें संयमित और सकारात्मक दिशा में रखना आवश्यक है।

7. युधिष्ठिर नकुल के स्थान पर अर्जुन को जीवित करने के लिए यक्ष से कहते तो क्या होता?

उत्तर: युधिष्ठिर ने कहा है कि – “यक्षराज ! मैंने जो नकुल को जीवित करवाना चाहा, वह सिर्फ़ इसी कारण कि मेरे पिता की दो पत्नियों में से माता कुंती का बचा हुआ एक पुत्र तो मैं हूँ, मैं चाहता हूँ कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित हो उठे, जिससे हिसाब बराबर हो जाए। अतः आप कृपा करके नकुल को जीवित कर दें।

8. यक्ष ने युधिष्ठिर से वरदान माँगने के लिए क्यों कहा?

उत्तर: यक्ष ने युधिष्ठिर से वरदान माँगने के लिए इसलिए कहा है कि जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है। युधिष्ठिर ने यक्ष द्वारा पूछे गए प्रश्नों का सही उत्तर दिया था। जब पांडव जंगल में थे, तब यक्ष ने उन्हें एक तालाब के पास मिलकर एक-एक करके सवाल किए। युधिष्ठिर ने सभी सवालों के सही उत्तर दिए, जिससे यक्ष प्रभावित हुआ। उसने युधिष्ठिर को वरदान देने के लिए कहा, ताकि उसे उसकी कड़ी परीक्षा और ज्ञान का पुरस्कार मिल सके। यह काव्यात्मक रूप से युधिष्ठिर के ज्ञान, सत्य और धैर्य की परीक्षा का हिस्सा था।

9. पाठ में निहित पाँच जीवन-मूल्यों को चुनकर उन पर विचार कीजिए।

उत्तर: यहाँ माता, पिता, ईश्वर, धैर्य, विद्या, भूमि, सत्य तथा संतोष के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। आज की परेशानी का कारण इन जीवन-मूल्यों से दूर होना है। सहज, सरल और परिपूर्ण जीवन के लिए इन मूल्यों को अपनाना आवश्यक है।

10. आपकी दृष्टि में इस संवाद को पढ़ने से कौन-कौन से लाभ हैं? लगभग 80-100 शब्दों में लिखिए।

उत्तर: इस संवाद को पढ़ने से कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। सबसे पहले, यह हमें सावधानी और सोच-समझकर कार्य करने का महत्व सिखाता है। जीवन में हमेशा जल्दबाजी करने के बजाय, सही निर्णय लेने के लिए समय और स्थिति का मूल्यांकन करना चाहिए। दूसरा, यह हमें अपने कार्यों में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है, ताकि कोई भी कार्य बिना परिणामों की चिंता किए न किया जाए। इसके अलावा, यह सिखाता है कि हर कदम को सोच-समझ कर और पूरी सतर्कता से उठाना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।

11. ‘तनाव और अविश्वास के माहौल में यह संवाद जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण देता है’- 80-100 शब्दों में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: यह संवाद तनाव और अविश्वास के माहौल में जीवन के प्रति आशा और सकारात्मक दृष्टिकोण का आह्वान करता है। तनाव प्रबंधन विभिन्न प्रकार की रणनीतियों और तकनीकों को संदर्भित करता है जिनका उपयोग कोई व्यक्ति तनाव के स्तर को प्रबंधित करने या कम करने के लिए कर सकता है। तनाव प्रबंधन में आत्म-देखभाल, तनाव के प्रति अपनी प्रतिक्रिया को प्रबंधित करना और तनावपूर्ण स्थिति में जीवन में बदलाव करना शामिल है। जीवन के प्रति नई ऊर्जा और दिशा प्रदान करता है। संवाद से समाधान की संभावनाएँ बढ़ती हैं, और हम एक शांतिपूर्ण और विश्वासपूर्ण वातावरण का निर्माण कर सकते हैं। जो हमें कठिनाइयों का सामना करते हुए भी उम्मीद और आत्मविश्वास से भर देता है। इस संवाद के माध्यम से हम समझते हैं कि जीवन में संघर्ष और चुनौती के बावजूद आशा का दीप जलाए रखना जरूरी है। इस प्रकार, संवाद जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने का माध्यम बनता है। 

12. ‘भारतीय दर्शन में जीवन-मूल्यों के महत्व को स्थापित किया गया है’-पाठ के आधार पर उदाहरण सहित कथन की समीक्षा कीजिए।

उत्तर: भारतीय दर्शन में जीवन-मूल्यों को पुरुषार्थ के नाम से जाना जाता है, ये मूल्य, सार्थक और पूर्ण जीवन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।

भारतीय दर्शन में धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष को पुरुषार्थ के चार अंग माना गया है।

भारतीय दर्शन में आत्मा की सत्ता में विश्वास किया जाता है, उपनिषदों से लेकर वेदांत तक आत्मा की खोज पर ज़ोर दिया गया है।

भारतीय दर्शन में कर्म-सिद्धांत को मान्यता दी जाती है, भारतीय दर्शन में सत्य, अहिंसा, परोपकार, परहित, सहिष्णुता जैसे मूल्यों को महत्व दिया गया है।

भारतीय दर्शन में सत्कर्म करने की ओर ध्यान दिया गया है, उपनिषदों में कहा गया है कि सत्य में ही ईश्वर का वास होता है।

भारतीय दर्शन में धर्म, नैतिक आचरण, और अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों का पालन को महत्व दिया गया है।

भारतीय दर्शन में अर्थ का मतलब है भौतिक सुख-समृद्धि, आर्थिक समृद्धि, और सांसारिक सफलता।

भारतीय दर्शन में काम का मतलब है कामुक आनंद, सौंदर्य तृप्ति, और नैतिकता और नैतिक आचरण की सीमाओं के भीतर आनंद की खोज।

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