NIOS Class 12 Hindi Chapter 12 जिजीविषा की विजय: कैलाश चंद्र भाटिया

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NIOS Class 12 Hindi Chapter 12 जिजीविषा की विजय: कैलाश चंद्र भाटिया

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जिजीविषा की विजय: कैलाश चंद्र भाटिया

Chapter: 12

HINDI

प्रथम पृष्ठ – पुस्तक – 1 बोध प्रश्न 12.1

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. लेखक की डॉ. रघुवंश से सर्वप्रथम भेंट कहाँ हुई-

(क) विश्वविद्यालय बैंक रोड, इलाहाबाद स्थित आवास में।

(ख) भारतीय हिंदी परिषद् के जयपुर अधिवेशन में।

(ग) दिल्ली में हुई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में।

(घ) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुए अधिवेशन में।

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उत्तर: (ख) भारतीय हिंदी परिषद् के जयपुर अधिवेशन में।

2. डॉ. रघुवंश दिव्यांग होते हुए भी कैसे लिखते थे-

(क) दोनों बाँहों में कलम फँसा कर।

(ख) हाथ की मुट्ठी में कलम फँसा कर।

(ग) पैर की अँगुली में कलम फँसा कर।

(घ) मुँह से कलम पकड़ कर।

उत्तर: (ग) पैर की अँगुली में कलम फँसा कर।

3. डॉ. रघुवंश ने किस विषय पर डी. फिल. की उपाधि प्राप्त की-

(क) हिंदी साहित्य के भक्तिकाल और रीतिकाल में प्रकृति और काव्य।

(ख) हिंदी भाषा और डॉ. नगेन्द्र का साहित्य।

(ग) साहित्य का नया परिप्रेक्ष्य।

(घ) मन और मस्तिष्क।

उत्तर: (क) हिंदी साहित्य के भक्तिकाल और रीतिकाल में प्रकृति और काव्य।

4. डॉ. रघुवंश की कृति ‘मानस पुत्र ईसा’ किस विधा में लिखी गई है-

(क) उपन्यास।

(ख) कविता।

(ग) संस्मरण।

(घ) जीवनी।

उत्तर: (घ) जीवनी।

5. ‘मन क्या है’ विषय पर अंतरर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कहाँ हुआ-

(क) इलाहाबाद में।

(ख) आगरा।

(ग) दिल्ली में।

(घ) अलीगढ़ में।

उत्तर: (ग) दिल्ली में।

6. डॉ. रघुवंश के किस रूप की चर्चा पाठ में नहीं है:

(क) विचारक।

(ख) कवि।

(ग) राजनीतिक।

(घ) संपादक।

उत्तर: (ग) राजनीतिक।

पाठगत प्रश्न 12.1

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. डॉ. रघुवंश किसके प्रतीक बन गए–

(क) आश्चर्य के।

(ख) संकल्प के।

(ग) संस्मरण के।

(घ) आकर्षण के।

उत्तर: (ख) संकल्प के।

2. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बनकर डॉ. रघवंश ने परिचय दिया-

(क) हठ का।

(ख) अहंकार का।

(ग) दृढ़ता का।

(घ) विवशता का।

उत्तर: (ग) दृढ़ता का।

3. संस्मरण के लिए अनिवार्य नहीं है।

(क) स्मृति।

(ख) सच्चाई।

(ग) व्यक्तित्व।

(घ) कल्पना।

उत्तर: (घ) कल्पना।

पाठगत प्रश्न 12.2

1. निम्नलिखित कथनों में सही के सामने (√) तथा गलत के आगे (x) का निशान लगाइए:

(क) संस्मरण गद्य साहित्य की नवीन विधाओं में समाहित है।

उत्तर: सही।

(ख) संस्मरण के कुछ अंश हमारे लिए आज भी प्रासंगिक हैं।

उत्तर: सही।

(ग) संस्मरण में कल्पना जगत की ऊँची उड़ान भरने की पूरी छूट है।

उत्तर: ग़लत।

(घ) सत्यता, तटस्थता और आत्मीयता अच्छे संस्मरण की विशेषताएँ हैं। 

उत्तर: सही।

(ङ) डॉ. रघुवंश ने ‘अनुशीलन’ पत्र का अनेक वर्षों तक संपादन किया। 

उत्तर: सही।

2. सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 

‘नए राष्ट्र और वर्तमान की चुनौती’ के उद्धृत अंश की विशेषता है कि वह–

(क) स्वतंत्र चिंतन पर बल देता है।

(ख) अनुकरण पर बल देता है।

(ग) दूसरों से पीछे रहने पर बल देता है।

(घ) उन्नत देशों के पिछड़ेपन पर बल देता है।

उत्तर: (क) स्वतंत्र चिंतन पर बल देता है।

3. पाठ में कौन-सी शैलियाँ नहीं है-

(क) आलोचनात्मक और भावात्मक।

(ख) भावात्मक और वर्णनात्मक।

(ग) व्याख्यात्मक और भावात्मक।

(घ) वर्णनात्मक और व्याकरणात्मक।

उत्तर: (क) आलोचनात्मक और भावात्मक।

12.8 पाठांत प्रश्न

1. संस्मरण की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: संस्मरण की चार विशेषताएंँ है–

(i) आत्मीयता।

(ii) स्मरणभाव।

(iii) सत्यता।

(iv) तटस्थ दृष्टि।

2. पाठ में से उन दो अंशों का चयन कीजिए, जब लेखक की डॉ. रघुवंश से भेंट हुई।

उत्तर: डॉ. रघुवंश को देखकर लेखक दंग रह गए। उनके दंग रह जाने का कारण यह था कि लेखक डॉ. रघुवंश के लेखन से अपने विद्यार्थी जीवन से ही प्रभावित हुए थे। लेकिन जब वे उन्हें भारतीय हिंदी जयपुर अधिवेशन में निकट से देखा तो उन्होंने पाया की डॉ. रघुवंश दोनों हाथों से लाचार थे तथा वे अपना सारा लेखन का कार्य अपने पैरों के द्वारा निरंतर (लगातार) कर रहे थे।

3. डॉ. रघुवंश को देखकर लेखक के दंग रह जाने का कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: डॉ. रघुवंश को देखकर लेखक के दंग रह जाने का कारण यह है कि लेखक डॉ. रघुवंश के लेखन से अपने विद्यार्थी जीवन से ही प्रभावित थे। लेकिन जब वे उन्हें भारतीय हिंदी जयपुर अधिवेशन में निकट से देखा तो पाया की वह दोनों हाथों से लाचार थे तथा वे अपना सारा लेखन का कार्य अपने पैरों के द्वारा निरंतर कर रहे थे। उनका विद्वता और प्रतिष्ठा के कारण लेखक को उम्मीद नहीं थी कि ऐसे उच्च स्तर के चिकित्सक इस तरह की जगह पर काम कर रहे होंगे। यह देखकर लेखक को यह एहसास हुआ कि डॉ. रघुवंश न केवल अपने पेशे के प्रति समर्पित थे बल्कि वे समाज की सेवा करने के लिए भी प्रतिबद्ध थे।

4. डॉ. रघुवंश दोनों हाथों से अक्षम थे फिर भी वह कैसे लिखते थे?

उत्तर: डॉ. रघुवंश दोनों हाथों से असमर्थ होने के बावजूद भी वे अपने पैरों का इस्तेमाल करके लिखते थे। वे अपने पैरों की उंगलियों के बीच पेन पकड़कर लिखने का कार्य करते थे। उन्होंने संभवतः लिखने के लिए एक अनुकूली विधि विकसित की, जैसे कि अपने पैरों या मुंह का उपयोग करके कलम या पेंसिल पकड़ा। इस अद्भुत तकनीक और दृढ़ संकल्प के कारण वे अपनी शारीरिक अक्षमता के बावजूद अपने पेशेवर कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम देने में सक्षम थे। 

5. मन क्या है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: लेखक ने ‘मन क्या है’ विषय पर हुई अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के आधार पर यह स्पष्ट किया है कि मन और मस्तिष्क में अंतर है। मस्तिष्क में अनगिनत चेतना की तरंग उठती रहती है और मन उन तरंगों का समुच्चय (संगठन) है। विद्वान मन को तीन मंजिल भवन की भाँति मानते हैं जिनमें भाव तरंगें उठती है और संवेगात्मक प्रक्रिया में विकसित होती हैं, फिर क्रियात्मक रूप धारण करती है। डॉ. रघुवंश ने अपनी अपंगता को संवेगात्मक सशक्तता प्रदान की और मन में सुदृढ़ता से यह निश्चय किया कि यह अपंगता उनके जीवन के किसी कार्य में बाधक नहीं होगी और जीवन भर, उनके मन की सुदृढ़ता कायम रही और वे हर क्षेत्र में आगे बढ़े। उन्होंने निश्चित रूप से मन की गहराई में दृढ़ संकल्प कर लिया था कि जीवन में सफल होना ही है चाहे जैसी भी परिस्थितियाँ आएँ। जिसका मन मजबूत होता है, उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

6. लेखक ने डॉ. रघुवंश को ‘कर्मयोगी’ क्यों कहा है? प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: लेखक ने डॉ. रघुवंश को ‘कर्मयोगी’ इसलिए कहा है क्योंकि वह अपने भाग्य को दोष देने के बजाय अपने कर्म में यकीन रखते थे। उन्होंने शारीरिक चुनौतियों या सीमाओं को कभी भी छोटा या तुच्छ नहीं माना। इसके बावजूद, उन्होंने अप्रत्याशित और कठिन बाधाओं का सामना करते हुए अपने मन को हमेशा कर्म में संलग्न रखा। उनके सतत प्रयास और कर्मशीलता से नई प्रेरणा और सकारात्मकता का प्रकाश फैलता रहा। डॉ. रघुवंश ने न केवल अपने पेशे में उत्कृष्टता प्राप्त की, बल्कि समाज की सेवा के प्रति भी अपनी अटूट प्रतिबद्धता दिखाई। 

7. डॉ. रघुवंश में समझौतावादी प्रवृत्ति कभी नहीं रही। इसकी पुष्टि हेतु उदाहरण दीजिए।

उत्तर: डॉ. रघुवंश की समझौतावादी प्रवृत्ति न होने की पुष्टि उदाहरण यह है कि उन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता के बावजूद चिकित्सा के क्षेत्र में अपना करियर जारी रखा और उत्कृष्टता प्राप्त की। उन्होंने कभी भी अपनी विकलांगता को अपने काम के रास्ते में बाधा नहीं बनने दिया और न ही किसी तरह का समझौता किया। वे योग्यता और क्षमता के बलबूते पर निरंतर अग्रसर रहे और सर्वोच्च पद से अवकाश प्राप्त कर उच्च शिक्षा संस्थान, शिमला में भी प्रतिष्ठित रहे। 

8. डॉ. रघुवंश का विचारक रूप सबसे अधिक मुखर कब हुआ?

उत्तर: डॉ. रघुवंश के व्यक्तित्व का मूल्यांकन अधूरा रह जाएगा यदि उनके विचारक रूप को न समझा जाए। उनके प्रत्येक आलेख में उनकी मौलिकता तो झाँकती ही है। पर विचारक का रूप सबसे अधिक मुखर हुआ जब विचारों का त्रैमासिक ‘क ख ग’ उनके प्रयासों से प्रारंभ हुआ। वह इसके संपादक मंडल में भी थे और संयोजक भी थे।

9. डॉ. रघुवंश के लेखन कार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: डॉ. रघुवंश के मन में निरंतर आगे बढ़ने की इच्छा थी। जीवन के लिए लक्ष्य निर्धारित था। उनका मन सदैव नई प्रेरणा और उत्साह के साथ कार्य करने की ओर अग्रसर रहता था। लेखन के प्रति उनकी समर्पित भावना थी। उनका स्वभाव बहुत ही पवित्र और निर्मल था। उनकी यह पवित्रता उनके रहन-सहन, व्यक्तित्व तथा हर कार्य-व्यापार में दृष्टिगत होती थी। जिसका प्रभाव उनके साहित्य में स्पष्ट दिखाई देता है। उक्त पंक्तियों को विशेष रूप से अर्थ की पवित्रता के संदर्भ में लेखक ने कहा है। डॉ. रघुवंश अर्थ के मामले में कभी भी किसी की दया या एहसान लेने को राजी नहीं थे। वे रिक्शे में भी जाते तो रिक्शे वाले को देने वाली रकम न जाने किस ढंग से पहले ही निकाल कर रख लेते थे। इसीलिए लेखक ने डॉ. रघुवंश को अर्थ की शुचिता का ज्वलंत उदाहरण माना है।

10. डॉ. रघुवंश की विद्रोही और जुझारू प्रकृति को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: डॉ. रघुवंश का विद्रोही और लचीला स्वभाव उनके व्यक्तित्व का एक परिभाषित पहलू था। शारीरिक विकलांगता के साथ जन्म लेने के बावजूद, जिसके कारण वे दोनों हाथों का उपयोग करने में असमर्थ थे, उन्होंने अपनी सीमाओं को खुद पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता के सामने कभी हार नहीं मानी और विपरीत परिस्थितियों में भी डटकर मुकाबला किया। वे समाज और चिकित्सा क्षेत्र की चुनौतियों के सामने कभी झुके नहीं और हमेशा अपने उसूलों पर अडिग रहे। सरकारी अस्पताल में सीमित संसाधनों के बीच काम करते हुए भी उन्होंने उच्चतम स्तर की चिकित्सा सेवा प्रदान की। उनकी यह प्रवृत्ति दिखाती है कि वे किसी भी प्रकार के समझौते या आधे-अधूरे प्रयासों को स्वीकार नहीं करते थे। वह अपने दोनों हाथों से अक्षम होने के बावजूद, उन्होंने अपने पैरों से लिखना और चिकित्सा कार्य करना सीखा। यह उनकी अदम्य इच्छा शक्ति और जुझारू स्वभाव का प्रमाण है।

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