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NCERT Class 9 Hindi Chapter 7 धर्म की आड़
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धर्म की आड़
Chapter: 7
स्पर्श भाग – 1 (गघ-भाग)
गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(1) अर्जी देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार हो धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंचवक्ता नमाज भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत को दे चुकने के पश्चात् यदि आप अपने को दिनभर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुंचाने के लिए आजाद समझते हैं तो इस धर्म को अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब तो आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी। सबसे कल्याण की दृष्टि से आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज और रोजे, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों को आजादी को रौदने और देश भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आजाद न छोड़ सकेगी।
प्रश्न (i) क्या धर्म नहीं है?
(क) शंख बजाना
(ख) नाक दवाना
(ग) नमाज पढ़ना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) कौन-सा धर्म टिकने वाला नहीं?
(क) दूसरों को तकलीफ पहुँचाने वाला
(ख) दिनभर बेईमान करने वाला
(ग) रिश्वत देने-लेने वाला
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iii) इस पाठ के रचयिता हैं-
(क) गणेशशंकर विद्यार्थी
(ख) काका कालेलकर
(ग) योगराज विद्यार्थी
(घ) यशपाल
उत्तर: (क) गणेशशंकर विद्यार्थी।
(iv) इस पाठ का शीर्षक है:
(क) धर्म का स्वरूप
(ख) धर्म की आड़
(ग) धर्म में ढाँग
(घ) धर्म और मनुष्य
उत्तर: (ख) धर्म की आड़।
(v) ‘बेईमानी’ शब्द कैसे बना है?
(क) बे + ईमान + ई
(ख) बेई + मानी
(ग) बे + ईमानी
(घ) बेईमान + ई
उत्तर: (क) बेईमान + ई
(2) पाश्चात्य देशों में, घनी लोगों की, गरीब मजदूरों की झोपड़ी का मजाक उड़ाती हुई अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती हैं। गरीबों की कमाई हो से वे मोटे पड़ते हैं, और उसी के बल से वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सवा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! इसी के कारण, साम्यवाद, बोलिविय आदि का जन्म हुआ। हमारे देश में, इस समय धनपतियों का इतना जोर नहीं है। यहां धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं।
प्रश्न (i) पाश्चात्य देशों में क्या होता है?
(क) धनी लोग गरीबों का मजाक उड़ाते हैं।
(ख) वहाँ बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ हैं।
(ग) ये गरीबों का शोषण करते हैं।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) शोषण के विरुद्ध किसका जन्म हुआ?
(क) साम्यवाद
(ख) बोरिशेविम
(ग) कख दोनों
(घ) वंशवाद
उत्तर: (ग) कख दोनों।
(iii) ‘दुरुपयोग’ में किस उपसर्ग का प्रयोग है?
(क) दु
(ख) दुर
(ग) उप
(घ) योग
उत्तर: (ख) दुर।
(iv) इस पाठ के रचयिता कौन हैं?
(क) गणेश शंकर विद्यार्थी
(ख) यशपाल
(ग) जैनेंद्र
(घ) आनंद स्वामी
उत्तर: (क) गणेश शंकर विद्यार्थी।
(v) हमारे देश में किनका जोर है?
(क) धनपतियों का
(ख) धर्म के ठेकेदारों का
(ग) सभी का
(घ) किसी का नहीं
उत्तर: (ख) धर्म के ठेकेदारों का।
(3) ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो वे ला मजहब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखते हैं। और जो मूखों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिकों और ला मजहब लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो।
प्रश्न (i) किस प्रकार के लोगों को धार्मिक माना जा सकता है?
(क) जिनका आचरण अच्छा हो
(ख) जो दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखते हो
(ग) जो किसी को अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए न उकसाते हो
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) ईश्वर किनको अधिक प्यार करेगा?
(क) तथाकथित आस्तिकों को
(ख) उन नास्तिकों को जो दूसरों का भला करते हैं
(ग) ला- मजहब लोगों को
(घ) सभी को
उत्तर: (ख) उन नास्तिकों को जो दूसरों का भला करते हैं।
(iii) ईश्वरत्व किसके मानने से कायम होता है?
(क) हमारे
(ख) भले लोगों के
(ग) आस्तिकों के
(घ) नास्तिकों के
उत्तर: (ख) भले लोगों के।
(iv) ईश्वर क्या बनने को कहता है?
(क) मनुष्य
(ख) पशु
(ग) दानव
(घ) दुष्ट
उत्तर: (क) मनुष्य।
(v) ‘मनुष्यत्व’ में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) मन
(ख) प्य
(ग) त्व
(घ) व
उत्तर: (ग) त्व।
(4) पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब मजदूरों की झोपड़ी का मजाक उड़ाती हुई अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती है। गरीबों की कमाई ही से ये मोटे पड़ते हैं, और उसी के बल से ये सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! इसी के कारण साम्यवाद, बोल्शेवितम आदि का जन्म हुआ। हमारे देश में इस समय धनपतियों का इतना जोर नहीं है। यहाँ धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थी की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है। वहाँ है मन की सार यहाँ है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है, और फिर मनमाना पन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
प्रश्न (i) पाश्चात्य देशों में क्या है?
(क) धनिकों की अट्टालिकाएँ गरीबों को झोंपड़ी का मजाब उड़ाती हैं
(ख) धने लोग गरीबों की कमाई से ही मोटे हुए हैं
(ग) ये गरीबों को चूमते रहते हैं।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) इसी कारण यहाँ किसका जन्म हुआ?
(क) साम्यवाद
(ख) बोल्शेवितम
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) समाजवाद
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(iii) हमारेदेश में किनका जोर है?
(क) धनपतियों का
(ख) इने-गिने लोगों का
(ग) स्वार्थी लोगों का
(घ) ख-ग दोनों
उत्तर: (घ) ख-ग दोनों।
(iv) किसकी मार ज्यादा बुरी है?
(क) धन की मार
(ख) धर्म को मार
(ग) बुद्धि की मार
(घ) अन्य मार
उत्तर: (ख) धर्म को मार।
(v) कुछ स्वार्थी लोग क्या करते हैं?
(क) भोले लोगों की बुद्धि पर परदा डाल दिया जाता है
(ख) ईश्वर का स्थान अपने लिए ले लिया जाता है
(ग) फिर अपनी स्वार्थ-सिद्धि की जाती है
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(5) धर्म की उपासना के मार्ग में कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे धर्म और ईमान मन का सौवा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। वह किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे उस तरह का धर्म आप मानें, और दूसरों का मन चाहे उस प्रकार का धर्म वह माने दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले 1 कहीं जबरदस्ती टांग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।
प्रश्न (i) मन का सौदा क्या है?
(क) धर्म
(ख) ईमान
(ग) पूजा
(घ) सभी
उत्तर: (घ) सभी।
(ii) धर्म किसका माध्यम है?
(क) ईश्वर को जानने
(ख) आत्मा को शुद्ध करने
(ग) ऊँचा उठाने का
(घ) उपर्युक्त सभी का
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी का।
(iii) धर्म में किसको स्थान नहीं है?
(क) टकराने का
(ख) मानने का
(ग) सौदेबाजी का
(घ) रुकावट का
उत्तर: (क) टकराने का।
(iv) ‘टाँग अड़ाना’ मुहावरे का अर्थ है-
(क) बीच में रुकावट बनना
(ख) मानने का
(ग) गिराना
(घ) कुछ न करना
उत्तर: (क) बीच में रुकावट बनना।
(v) ‘स्वाधीनता’ शब्द किस प्रकार बना है?
(क) स्व + अधीन + ता
(ख) स्वा + धीनता
(ग) स्वा + धीन + ता
(घ) स्व + अधीन + ता
उत्तर: (क) स्व + अधीन + ता।
(6) हमारे देश में, इस समय धनपतियों का इतना जोर नहीं है। यहाँ धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने होन स्वार्थों की सिद्धि के लिए करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ है बुद्धि की मार वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है, और फिर मनमाना घन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर पर्दा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा को स्थान अपने लिए लेना और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
प्रश्न (i) हमारे देश में किसका जोर है?
(क) धनपतियों का
(ख) धर्म के ठेकेदारों का
(ग) स्वार्थियों का
(घ) ताकतवर लोगों का
उत्तर: (ख) धर्म के ठेकेदारों का।
(ii) ‘दुरुपयोग’ शब्द में किस उपसर्ग का प्रयोग है?
(क) दु
(ख) दुर्
(ग) दुरु
(घ) दुरुप
उत्तर: (ख) दुर्।
(iii) सबसे बुरा क्या है?
(क) धनाढ्यों की मार
(ख) धन की मार
(ग) बुद्धि की मार
(घ) दोनों (ख) और (ग)
उत्तर: (घ) दोनों (ख) और (ग)।
(iv) धर्म के ठेकेदार क्या करते हैं?
(क) धर्म का प्रयोग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं
(ख) लोगों को आपस में लड़ाते हैं
(ग) आत्मा धर्म की आड़ लेते हैं
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(v) इस पाठ का शीर्षक है :
(क) धर्म की आड़
(ख) धर्म का ठेका
(ग) धर्म के नाम पर छल
(घ) धर्म
उत्तर: (क) धर्म की आड़।
(7) साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजिब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्वों को क्या जाने? लकीर पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत बेजा फायदा उठा रहे हैं।
देश के सभी शहरों का यहाँ हाल है। उबल पड़नेवाले साधारण आदमी का इनमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता बुझता और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरजे, पढ़े-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार, जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी।
प्रश्न (i) साधारण आदमी का क्या हाल है?
(क) वह कुछ नहीं समझता
(ख) उसे किधर भी जोत दिया जाता है
(ग) उसका शोषण किया जाता है
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) कौन लोग शोषण कर रहे हैं?
(क) कुछ चलते-पुरजे किस्म के लोग
(ख) गरीब लोग
(ग) मूर्ख लोग
(घ) कम पढ़े-लिखे
उत्तर: (क) कुछ चलते पुरजे किस्म के लोग।
(iii) किनका शोषण हो रहा है?
(क) मूर्ख लोगों की शक्तियों का
(ख) कम पढ़े-लिखे लोगों का
(ग) क-ख दोनों का
(घ) धार्मिक लोगों का
उत्तर: (ग) क-ख दोनों का।
(iv) नेता किसका सहारा लेते हैं?
(क) जाहिलों का
(ख) धर्म का
(ग) बुराइयों का
(घ) इन सभी का
उत्तर: (घ) इन सभी का।
(v) ‘बड़प्पन’ शब्द क्या है?
(क) भाववाचक संज्ञा
(ख) जातिवाचक संज्ञा
(ग) विशेषण
(घ) सर्वनाम
उत्तर: (क) भाववाचक संज्ञा।
(8) महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु उनकी बात ले उड़ने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्माजी के ‘धर्म’ का स्वरूप क्या है? धर्म से महात्माजी का मतलब धर्म ऊँचे और उतार तत्त्वों ही का हुआ करता है। उनके मानने में किसे एतराज हो सकता है।
अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। वो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्ता नमाज भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत केदे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुंचाने के लिए आजाद समझते हैं तो, इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा।
प्रश्न (i) महात्मा गाँधी किसको सर्वत्र स्थान देते हैं?
(क) सच्चाई
(ख) धर्म
(ग) ईमान
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (ख) धर्म।
(ii) किसे धर्म नहीं कहा जा सकता?
(क) दो घण्टे बैठकर पूजा करना
(ख) पाँच वक्त नमाज अदा करना
(ग) शंख बजाना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iii) धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या है?
(क) शंख बजाना
(ख) पूजा-पाठ करना
(ग) शुद्ध आचरण और सदाचार
(घ) ऊजाँ देना
उत्तर: (ग) शुद्ध आचरण और सदाचार।
(iv) महात्मा गांधी के लिए धर्म का क्या अर्थ था?
(क) ऊँचे विचार
(ख) मन की उदारता
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(v) बेईमानी में किस प्रत्यय का प्रयोग हुआ है?
(क) ई
(ख) ता
(ग) ईय
(घ) इक
उत्तर: (क) ई
प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर)
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1. आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है?
उत्तर: आज धर्म के नाम पर झगड़े-फसाद किए जाते हैं, लोगों को ठगा जाता है। धर्म के नाम पर उत्पात होते हैं।
प्रश्न 2. धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए?
उत्तर: धर्म के व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होने चाहिए। हमें कुछ लोगों की धूर्तता के जाल में नहीं उलझना चाहिए, अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। इन धूर्त लोगों का आसन ऊँचा करने से बचना चाहिए।
प्रश्न 3. लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन-सा दिन बुरा था?
अथवा
देश की स्वाधीनता के लिए कौन सा दिन अत्यंत बुरा था और क्यों? ‘धर्म की आड़’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था, जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला-मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। इस प्रकार हमने स्वाधीनता आंदोलन में अपना एक कदम पीछे कर दिया। इसी पाप का फल हमें आज तक भुगतना पड़ रहा है।
प्रश्न 4. साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है?
उत्तर: साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह पर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना उचित है। साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को तो नहीं समझता, पर धर्म के नाम पर उबल पड़ना जानता है।
प्रश्न 5. धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?
उत्तर: धर्म के स्पष्ट चिह्न दो हैं:
1. शुद्धाचरण,
2. सदाचार।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. चलते पुरजे लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं?
उत्तर: चलते-पुरजे लोग धर्म के नाम पर मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग करते हैं। उन्हें धर्म का भय दिखाकर अपनी मनमर्जी से जिधर चाहे जोत देते हैं। वे इन लोगों का नेतृत्व कर अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं। वे धर्म की आड़ लेते हैं और लोगों को ठगते हैं।
प्रश्न 2. चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं?
उत्तर: चालाक लोग साधारण आदमी की मूर्खता और अज्ञान की अवस्था का लाभ उठाते हैं। साधारण आदमी तो धर्म के बारे में अधिक नहीं जानता। चालाक लोग उसकी अज्ञानता का लाभ उठाकर उसकी शक्तियों एवं उत्साह का शोषण करते हैं। साधारण आदमी कुछ भी समझता-बूझता नहीं, वह चालाक किस्म के आदमी के बहकावे में आ जाता है। चालाक किस्म का आदमी उसे अपने ढंग से जिस काम में जोत देता है, वह उधर ही जुत जाता है। इससे चालाक आदमी का काम बन जाता है। वह अपना नेतृत्व और बड़प्पन कायम करने में सफल हो जाता है।
प्रश्न 3. आने वाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा?
उत्तर: आने वाला समय उस धर्म को नहीं टिकने देगा, जिसमें पूजा-पाठ करने पर तो बल होगा, पर बेईमानी करने के लिए ईश्वर को रिश्वत दी जाएगी। इस प्रकार के धर्म में दिन भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने की आजादी दी जाती है। इस प्रकार का धर्म शीघ्र ही उखड़ जाएगा।
प्रश्न 4. कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा?
उत्तर: वह कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा, जिसमें दूसरे धर्म के मानने वाले के काम में जबरदस्ती टाँग अड़ाई जाती हो। सभी को अपने-अपने ढंग से धर्म को मानने की स्वतंत्रता है। किसी को अन्य धर्मावलंबी की आजादी को रौंदने की आजादी नहीं होगी।
प्रश्न 5. पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है?
उत्तर: पाश्चात्य देशों में धनी लोग आकाश को चूमती शानदार इमारतों में रहते हैं, जबकि लोग झोपड़-पट्टी में रहते हैं। अमीर लोग इन गरीब लोगों की मेहनत का फायदा उठाकर अथाह संपत्ति अर्जित कर रहे हैं। यहाँ भयानक असमानता है।
प्रश्न 6. कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे हैं?
उत्तर: जिनका आचरण अच्छा है और जो दूसरों के सुख-दुःख का ख्याल रखते हैं। जो अनपढ़ों को किसी स्वार्थ सिद्धि के लिए उकसाने को बुरा समझते हैं। ऐसे लोग धार्मिक लोगों से कहीं अधिक अच्छे हैं, भले ही वे नास्तिक ही क्यों न हों।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए हमें साहस और दृढ़ता से काम लेना होगा। हमें उन धूर्त लोगों का पर्दाफाश करना होगा जो हमें धर्म और ईमान के नाम पर उल्लू बनाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। हमें धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझना होगा। धर्म के नाम पर हो रहे ढोंग आडंबरों से भी स्वयं को बचाना होगा। हमें कुछ लोगों को ऊँचा उठाने के लिए अपनी शक्ति और उत्साह को बर्बाद करने से रोकना होगा।
प्रश्न 2. ‘बुद्धि की मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: बुद्धि की मार के संबंध में लेखक के विचार है-भारत में कुछ तथाकथित धर्म के ठेकेदार (संत) सामान्य लोगों की बुद्धि पर परदा डाल देते हैं। इससे उनके सोचने-समझने की शक्ति मारी जाती है। ऐसा करके ये चालाक लोग ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए सुरक्षित करा लेते हैं। इसी तरह बुद्धि को भ्रमित करके ये लोग साधारण आदमियों को धर्म, ईमान और आत्मा के नाम पर आपस में लड़ा देते हैं।
प्रश्न 3. लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
उत्तर: लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना यह होनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन के अनुरूप धर्म को मानने और पालने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। धर्म ईमान और मन को ऊँचा उठाने का माध्यम है। धर्म ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध करने वाला होना चाहिए। धर्म दूसरों की स्वाधीनता की रक्षा करे, उसे छीने नहीं। धर्म की उपासना में सभी स्वतंत्र होने चाहिए। जो जिसे चाहे, उसे माने।
प्रश्न 4. महात्मा गाँधी के धर्म-संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: महात्मा गाँधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते थे। धर्म के बिना वे एक पग भी चलने को तैयार नहीं होते थे। हमें महात्माजी के बताए धर्म संबंधी विचारों को गहराई से जानना होगा। महात्माजी का धर्म से अभिप्राय था-धर्म में ऊँचे और उदार तत्त्वों का स्थान होता है। धर्म उदारता की रक्षा करता है। इसमें संकीर्णता नहीं है।
प्रश्न 5. सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
उत्तर: सबके कल्याण के लिए हमें अपने आचरण को सुधारना होगा, अच्छा आचरण ही धर्म का चिह्न है। हमें दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखना चाहिए। अपना स्वार्थ न देखकर दूसरों का कल्याण देखना चाहिए। यदि हमने अपने आचरण को नहीं सुधारा तो रोजा, नमाज, पूजा-पाठ सब व्यर्थ हो जाएगा।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
1. उबल पड़ने वाले साधारण आदमी को इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि साधारण आदमी धर्म के बारे में बहुत नहीं जानता। वह तो धर्म के नाम पर किसी छोटे से संकट की बात सुनकर क्रोधित हो उठता है। ऐसा आदमी दूसरों के हाथ की कठपुतली होता है। चालाक किस्म के लोग उसे अपने हित साधन के लिए अपने निर्देशित काम में उलझा देते हैं और वह उस काम में जुत भी जाता है।
2. यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर: भारत में धर्म के कुछ ठेकेदार साधारण लोगों की बुद्धि को भ्रमित कर देते हैं। वे कुछ सोच-समझ नहीं पाते। इसके बाद इन ठेकेदारों का खेल शुरू होता है। वे स्वयं को ईश्वर के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लोगों को धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर लड़ाते हैं और अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं। इस प्रकार वे साधारण लोगों का दुरुपयोग कर शोषण करते हैं।
3. अब तो आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर: आने वाले समय में केवल पूजा-पाठ के बलबूते पर समाज में महत्त्व नहीं मिल सकेगा। आपकी भलमनसाहत ही आपके अच्छे होने की कसौटी होगी। आपके आचरण को जाँचा-परखा जाएगा।
4. धर्म के संबंध में गाँधी जी के विचारों पर प्रकाश डालें।
उत्तर: महात्मा गाँधी धर्म के बिना एक कदम भी नहीं चलते थे, किंतु उनके धर्म की परिभाषा अलग थी। उनका धर्म शुद्ध पवित्र भावनाओं से परिपूर्ण था, जिनमें लोक कल्याण तथा सदाचारी भावनाएँ थीं। वे सत्य तथा अहिंसा को परम धर्म मानते थे। उनके अनुसार, धर्म उदारता की रक्षा करता है, इसलिए धर्म में केवल ऊँचे और उदार विचारों को ही स्थान मिलना चाहिए।
भाषा-अध्ययन
1. उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए-
सुगम – दुर्गम
उत्तर:
धर्म – अधर्म
ईमान – बेईमान
साधारण – असाधारण
स्वार्थ – निःस्वार्थ
दुरुपयोग – सदुपयोग
नियंत्रित – अनियंत्रित
स्वाधीनता – पराधीनता।
2. निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए-
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर
उत्तर:
ला – लाइलाज
बिला – बिलावजह
बे – बेदर्द
बद – बदनाम
ना – नाखुश
खुश – खुशहाल
हर – हररोज
गैर – गैरहाजिर
3. उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए-
उदाहरण : देह + त्व = देवत्व
उत्तर: महत्त्व
लघुत्व
मनुष्यत्व
राक्षसत्व
पशुत्व
4. निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आएसंयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण : चलते – पुरजे
उत्तर: समझता – बूझता
पूजा – पाठ
इने – गिने
स्वार्थ – सिद्धि
नित्य – प्रति।
5. ‘भी’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए-
उदाहरण : आज मुझे बाजार होते हुए अस्पताल भी जाना है।
उत्तर: 1. मुझे भी पुस्तक पढ़नी है।
2. राम को खाना भी खाना है।
3. सीता को भी नाचना है।
4. तुम्हें भी आना।
5. इन लोगों को भी खाना खिलाइए।
योग्यता-विस्तार
‘धर्म एकता का माध्यम है’- इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर: इस विषय पर छात्र कक्षा में परिचर्चा का आयोजन करें। इसमें धर्म का सही स्वरूप बताया जाए। धर्म को एकता के साथ जोड़ा जाए।
परीक्षा उपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(क) लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. नास्तिक व्यक्तियों का आचरण अच्छा कैसे है?
उत्तर: वैसे लोग जो ईश्वर को नहीं मानते या किसी धर्म को नहीं मानते, किंतु उनके आचरण अच्छे हैं, वे मानवता से प्रेम करते हैं, आदमी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं तथा दूसरों के सुख-दुःख में उनका ध्यान रखते हैं। स्वयं की स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी का गलत उपयोग नहीं करते तथा दूसरों को लड़ाते उकसाते नहीं हैं। ऐसे ही लोग धार्मिक लोगों की अपेक्षा अधिक अच्छे हैं। ये दूसरों की सरलता व उनकी पवित्र भावना का मज़ाक नहीं उड़ाते।
प्रश्न 2. गरीब और अधिक गरीब कैसे हो रहे हैं? धर्म की आड़’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर: गरीब व्यक्तियों का आर्थिक शोषण करके ही धनी लोग और अधिक धनी बनते जा रहे हैं। गरीब मजदूरों के श्रम के बल पर ही समाज का पूँजीपति वर्ग अधिक पूँजी का संग्रह करता जाता है तथा वह हमेशा इसके लिए प्रयत्न करता रहता है कि गरीब सदा चूसे जाते रहें, उसकी अट्टालिकाएँ मजदूरों की झोपड़ी का हमेशा मजाक उड़ाती हुई आकाश से बातें करती रहें। गरीबों का निरंतर आर्थिक शोषण जारी रहने से ही वे और अधिक गरीब होते जा रहे हैं।
प्रश्न 3. वर्तमान में हमें धर्म का कैसा रूप देखने को मिलता है? ‘धर्म की आड़’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर: वर्तमान में हमें धर्म का अत्यंत उथला रूप देने को मिलता हैं धर्म के नाम पर समाज के भोले-भाले निरीह लोगों को बहकाया जाता है, उनकी शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है तथा कुछ संकीर्ण स्वार्थी लोग अपने हितों की पूर्ति करते हैं। अधिकांश धर्म भीरु जनता को धर्म के ठेकेदार अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए गुमराह करते हैं। धर्म के नाम पर अंधविश्वासों एवं कुरीतियों को बढ़ावा दिया जाता है तथा जन-सामान्य को बाह्याडंबरों में ही उलझाए रखा जाता है।
प्रश्न 4. आपके विचार से धर्म कैसा होना चाहिए? ‘धर्म की आड़’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर: मेरे विचार से धर्म का वास्तविक संबंध मानव-समाज में व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले शुद्ध आचरणों अथवा कर्त्तव्यों का समुचित पालन करने से है। धर्म का सच्चा बोध हमारे मन-मस्तिष्क में विद्यमान प्रेम, सहिष्णुता, अहिंसा, ईमानदारी, परोपकारिता, भाईचारा आदि के द्वारा होता है। धर्म का संबंध जन कल्याण की भावना से है। मनुष्य मात्र के प्रति प्रेम तथा सहानुभूति की भावना ही समाज में मानवीय मूल्यों को स्थापित करती है और धर्म का मूल उद्देश्य इसी से संबंधित है। अतः धर्म का स्वरूप मनुष्य-मनुष्य के बीच प्रेम, भाईचारा, सहिष्णुता आदि की भावनाओं को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
प्रश्न 5. पाश्चात्य देशों में धन कहाँ से आया?
उत्तर: पाश्चात्य देशों में धनी लोग गरीब मजदूरों की झोंपड़ी का मजाक उड़ाते हैं। वहाँ अमीरों ने बड़ी-बड़ी ऊँची इमारतें खड़ी कर ली हैं। ये सभी गरीबों की कमाई स ही तो बनी हैं। वे गरीबों की कमाई से ही मोटे सेठ बने हैं। वहाँ के अमीर सदा यह प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह अवस्था भयंकर हैं। इसी की प्रतिक्रिया स्वरूप साम्यवाद, बोल्शेविज़्म आदि का जन्म हुआ।
(ख) निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. “अज देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है।” आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि धर्म के नाम पर होने वाले बाह्य आडंबरों को धर्म की संज्ञा नहीं दी जा सकती। प्रायः मस्जिद में अर्जी देने, मंदिर में शंख बजाने, नाक दाबने तथा नमाज पढ़ने को धर्म का पर्याय मान लिया जाता है, पर यह ठीक नहीं है। इनके माध्यम से ईश्वर को धोखा देने का प्रयास किया जाता है। ढोंग आडंबरों को धर्म का नाम देना गलत है। ये केवल भ्रम उत्पन्न करते हैं। शुद्धाचरण और सदाचार धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पाँच वक्त नमाज भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत दे चुकने के पश्चात् यदि आप अपने को दिनभर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आजाद समझते हैं तो यह ब्लैक मेलिंग होगी, धर्म नहीं। धर्म के लिए हमें अपना आचरण सुधारना होगा। उपर्युक्त क्रियाकलाप तो धर्म के नाम पर ढोंग-दिखावा है।
प्रश्न 2. “गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं है जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ है बुद्धि की मार।” आशय स्पष्ट कीजिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: लेखक बताता है कि इस समय हमारे देश में धनपतियों का इतना जोर नहीं है। हमारे यहाँ तो धर्म के नाम पर कुछ गिने-चुने लोग अपने हीन स्वार्थ सिद्धि के लिए करोड़ों लोगों को मूर्ख बनाते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना उतना बुरा नहीं है जितना बुरा है कि वहाँ धन की मार और यहाँ है बुद्धि की मार। वहाँ धन दिखाकर लोगों को वश में किया जाता है, फिर मनमाना धन पैदा करने के लिए उन्हें जोत दिया जाता है। पर हमारे यहाँ बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को आपस में लड़ाना-भिड़ाना। यह काम ज्यादा बुरा है। ये लोग दूसरों की बुद्धि को वश में करके अपनी इच्छानुसार चलाते हैं।
प्रश्न 3. धूर्त तथा चालाक लोग क्या करते हैं और साधारण आदमी की किस अवस्था का फायदा उठाते हैं?
उत्तर: धूर्त तथा चालाक लोग सामान्य लोगों की शक्ति एवं उत्साह का फायदा उठाते हैं। वे इनके कारण अपना आसन ऊँचा करते हैं तथा अपना नेतृत्व एवं सत्ता बनाए रखते हैं। मूलत: धूर्त व चालाक लोग साधारण आदमी की धार्मिक निष्ठा को अपनी ढाल बनाते हैं तथा आगे बढ़ने के लिए इसी की वैशाखी तैयार करते हैं। साधारण आदमी धर्म के मर्म की समझ-बूझ नहीं रखता। अतः धूर्त लोग उनकी अज्ञानता का लाभ उठाते हुए उनकी शक्ति तथा उत्साह को भटकाकर उनका मनोवैज्ञानिक शोषण करते हैं। इस प्रकार धूर्तों के सभी स्वार्थों की पूर्ति आसानी से होती रहती है और उनका बड़प्पन एवं नेतृत्व कायम रहता है।
प्रश्न 4. देश के लिए कौन-सा दिन अत्यंत बुरा था?
उत्तर: जब देश की स्वाधीनता के लिए उद्योग किया जा रहा था तब वह दिन निःसंदेह सबसे बुरा था, जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान देना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता के क्षेत्र में एक कदम पीछे हटाकर रखा था। अपने उसी पाप का फल हमें भोगना पड़ रहा है। देश को स्वाधीनता संग्राम ने ही मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया गया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया गया। हमारे इस काम का यह दुष्परिणाम हुआ कि इस समय, हमारे हाथों ही बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पाद का राज्य स्थापित कर रही हैं।
प्रश्न 5. धर्म के बारे में होना क्या चाहिए?
उत्तर: धर्म के बारे में यह होना चाहिए कि धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट नहीं। जिसकामन, जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार की धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म ओर ईमान मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचा उठाने का साधन हो। धर्म किसी भी दशा में, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बन जाए। जिसे आपका मन चाहे, आप उसी तरह के धर्म को मानें। दूसरे भी अपने मन के अनुसार धर्म को अपनाएँ। दो भिन्न धर्म के मानने वाले कहीं भी जबरदस्ती टाँग न अड़ाएँ। उनके सभी कार्य देश की स्वाधीनता की रक्षा के लिए हों।