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NCERT Class 9 Hindi Chapter 14 अग्नि पथ
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अग्नि पथ
Chapter: 14
स्पर्श भाग – 1 (काव्य भाग)
उपर्युक्त काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर का सही उत्तर चुनकर लिखिए-
1. इस कविता के रचयिता कौन हैं?
(क) हरिवंशराय बच्चन
(ख) रामधारी सिंह दिनकर
(ग) सर्वेश्वर दयाल
(घ) नजीर
उत्तर: (क) हरिवंशराय बच्चन।
2. कवि क्या नहीं माँगना चाहता?
(क) थोड़ा-सा भी आश्रय
(ख) वृक्ष की छाया
(ग) वृक्ष के पत्ते
(घ) वृक्ष
उत्तर: (क) थोड़ा-सा भी आश्रय।
3. कवि किसे अग्नि पथ बता रहा है?
(क) जीवन पथ
(ख) अग्नि की ज्वाला
(ग) कठिन रास्ता
(घ) सरल मार्ग
उत्तर: (क) जीवन पथ।
4. कवि क्या सलाह रहे रहा है?
(क) कभी न धकने की
(ख) कभी न रुकने की
(ग) कभी न मुड़ने की
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
5. यह काव्यांश किस कविता से अवतरित है?
(क) अग्निपथ
(ख) राजपथ
(ग) लथपथ
(घ) अजीव दृश्य
उत्तर: (क) अग्निपथ।
6. इस कविता के रचयिता कौन है?
(क) निराला
(ख) हरिवंशराय बच्चन
(ग) पंत
(घ) अमिताभ बच्चन
उत्तर: (ख) हरिवंशराय बच्चन।
7. मनुष्य के निरंतर चलते जाने का दृश्य कैसा है?
(क) महान
(ख) सामान्य
(ग) बड़ा
(घ) विशेष
उत्तर: (क) महान।
8. मनुष्य की दशा कैसी हो रही है?
(क) वह आँसू बहा रहा है
(ख) वह पसीने से लथपथ है
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) वह संघर्ष कर रहा है
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
काव्यांशों पर आधारित विषय बोध, अर्थ बोध और सराहना संबंधी प्रश्न
प्रश्न 1. कवि बच्चन ने किसे अग्निपथ कहा है और क्यों?
उत्तर: कवि बच्चन ने संघर्षमय जीवन को अग्निपथ कहा है क्योंकि सघर्षमय जीवन और अग्निपथ में काफी समानता है। दोनों में कष्टों और बाधाओं पर विजय पाने की आकांक्षा झलकती है।
प्रश्न 2. वृक्ष किस प्रकार के हों?
उत्तर: वृक्ष बड़े-बड़े और घने हो अर्थात् सुविधासम्पन्न हों।
प्रश्न 3. कवि क्या माँगने के लिए मना कर रहा है?
उत्तर: कवि किसी से भी किसी भी प्रकार को छाया अर्थात् कृपा माँगने के लिए मना कर रहा है। एक पत्ता छाया भी मत माँग अर्थात् कष्टों को स्वयं झेल और आगे बढ़।
प्रश्न 4. कवि संघर्षशील व्यक्ति को क्या शपथ दिलाता है?
उत्तर: वह संघर्षशील व्यक्ति को यह शपथ दिलाता है कि वह संघर्ष के मार्ग पर चलते हुए न तो कभी थकेगा और न रुकेगा और न कभी मुड़कर पीछे देखेगा।
प्रश्न 1. काव्यांश में ‘अग्निपथ’ का क्या आशय है?
उत्तर: काव्यांश में ‘अग्निपथ’ का आशय है-बाधाओं और संघर्ष से भरा रास्ता।
प्रश्न 2. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए।
उत्तर: (क) लथपथ, लथपथ, लथपथ (ख) अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।
प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर)
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(क) कवि ने ‘अग्निपथ’ किसके प्रतीक-स्वरूप प्रयोग किया है?
उत्तर: कवि ने ‘अग्निपथ’ शब्द को संघर्षमय जीवन के प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है। यह मार्ग अग्नि पर चलने के समान कठिन है।
(ख) ‘माँग मत’, ‘कर शपथ, ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इन शब्दों का बार-बार प्रयोग करके कवि यह कहना चाहता है कि तुझे बिना किसी की सहायता लिए, परिश्रमपूर्वक प्रण करके अपने मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते जाना है। ‘बार-बार’ इन शब्दों का प्रयोग कवि ने अपने कथ्य पर बल देने के लिए किया है। इसमें अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न हो गया है।
(ग) एक पत्र-छाँह भी माँग मत’- इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का आशय यह है कि जीवन-मार्ग में किसी से सुख रूपी छाँह की कामना मत कर। तुझे आत्मविश्वासी एवं स्वावलंबी बनना होगा। किसी से आश्रय माँगना अपनी हीनता को प्रदर्शित करता है। अतः किसी से सहारा मत माँग। इससे तेरे निश्चय में दृढ़ता का समावेश हो जाएगा।
प्रश्न 2. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:
(क) तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
उत्तर: इन पंक्तियों का भाव यह है कि व्यक्ति को यह प्रण करके अपने संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ना चाहिए कि वह इस मार्ग पर चलते हुए न तो कभी रुकेगा और न पीछे मुड़कर देखेगा। बस निरंतर आगे बढ़ता चला जाएगा। बढ़ते रहना ही जीवन का लक्ष्य है।
(ख) चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ।
उत्तर: इन पंक्तियों का भाव यह है कि मनुष्य का आगे की ओर चलते जाना ही अपने आप में एक विशेष बात है। संघर्ष-पथ पर चलने में व्यक्ति को कई बार आँसू बहाने पड़ते हैं। थकने पर है। वह पसीने से तर-बतर हो जाता है और शक्ति का व्यय करना भी पड़ता है। वह लथपथ हो जाता है। इस स्थिति से न घबराकर निरंतर आगे बढ़ते जाना ही जीवन का लक्ष्य है।
प्रश्न 3. इस कविता का मूल भाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस कविता का मूल भाव यह है कि जीवनपथ एक संघर्ष के समान है। इस पर सफलतापूर्वक चलने के लिए अनेक संघर्ष करने पड़ते हैं। यह एक प्रकार का अग्निपथ है। इस मार्ग पर आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना है, किसी से आश्रय की कामना नहीं करनी है। मार्ग की विघ्न-बाधाओं से स्वयं टक्कर लेनी है। चलने की क्रिया निरंतर गतिशील रहनी चाहिए। इसमें स्कने, थकने या पीछे मुड़कर देखने का कोई स्थान नहीं है। इस मार्ग पर चलते हुए कई बार व्यक्ति को कष्टों के कारण लथपथ होना भी पड़ता है, पर व्यक्ति की यात्रा अविरल चलती रहनी चाहिए।
योग्यता विस्तार
‘जीवन संघर्ष का ही नाम है’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा का आयोजन कीजिए।
विद्यार्थी इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा का आयोजन करें। परिचर्चा के कुछ बिन्दु इस प्रकार हो सकते हैं –
– जीवन निष्क्रियता का नहीं, सक्रियता का नाम है।
– जीवन एक सरल पटरी नहीं है, इस पर अनेक विघ्न बाधाएँ आती रहती हैं। इनसे संघर्ष करना है।
– संघर्षशील व्यक्ति अंततः सफल होता है।
– संघर्ष आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
– संघर्ष में निरंतरता बनी रहनी चाहिए।
– संघर्ष में विरोध का सामना भी करना पड़ता है।
परियोजना कार्य
‘जीवन संघर्षमय है, इससे घबराकर थमना नहीं चाहिए’ इससे संबंधित अन्य कवियों की कविताओं को एकत्र कर एक एलबम बनाइए।
उत्तर: कुछ इस प्रकार की कविताएँ-
1. मैं
हारा हूँ सौर
गुनाहों से लड़-लड़कर
लेकिन बारंबार लड़ा हूँ
मैं उठ उठ कर,
इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा
मैंने अपने जीवन को इस तरह उबारा
डूबा हूँ हर रोज
किनारे तक आ-आकर
लेकिन मैं हर रोज
उगा हूँ जैसे दिनकर,
इससे मेरी असफलता भी मुझसे हारी
मैंने अपनी सुंदरता इस तरह सँवारी।
2. टूटा पहिया
मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंको मत!
क्या जाने कब
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय!
अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी
बड़े-बड़े महारथी
अकेली-निहत्थी आवाज को
अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें
तब मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया
उसके हाथों में
ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ।
मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ।
सराहना संबंधी/सौंदर्य-बोध संबंधी प्रश्न
प्रश्न : निम्नलिखित काव्यांशों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
(क) वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, अग्नि पथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! माँग मत!
उत्तर: कवि जीवन-संघर्ष के मार्ग को अग्निपथ कहकर है। इस पुकारता मार्ग पर सफलतापूर्वक चलने के लिए व्यक्ति को मार्ग में आने वाली विघ्न-बाधाओं से डटकर सामना करने के लिए स्वयं को तैयार करना होगा। बड़ी-बड़ी बाधाएँ तुम्हारा मार्ग रोकेगी, पर बिना किसी का सहारा लिए निरंतर आगे बढ़कर आत्मविश्वास का परिचय देना होगा।
– ‘एक पत्र – छाँह’ का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है।
– काव्यांश में लाक्षणिकता का समावेश है।
– ‘माँग मत’ और ‘अग्निपथ’ शब्दों की आवृत्ति करके कवि ने अपने कथ्य को पुष्टता प्रदान की है।
– ‘माँग मत’ में अनुप्रास अलंकार है।
– ‘अग्निपथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
(ख) तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
उत्तर: इस काव्यांश में कवि संघर्ष-पथ पर निरंतर आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा दे रहा है। कवि का संदेश स्पष्ट है। इस मार्ग पर चलते हुए न थकना है, न रुकना है और न मुड़कर पीछे देखना है। कवि जीवन-पथ के यात्री को शपथ दिलाकर बाँधना चाहता है। ‘अग्निपथ’ जीवन-संघर्ष मार्ग का प्रतीक है।
-कवि ‘कर शपथ’ और ‘अग्निपथ’ शब्दों की आवृत्ति कर अपने कथ्य पर बल देने में सफल रहा है।
-सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ग) यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
उत्तर: मनुष्य का अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते चले जाना एक अनोखे दृश्य की सृष्टि करता है। कवि संघर्ष-पथ की बाधाओं के प्रति सचेत करता है। इस पथ पर अश्रु, पसीना एवं रक्त से लथपथ होना पड़ता है। इनसे घबराने की आवश्यकता नहीं है।
‘लथपथ’ और ‘अग्निपथ’ शब्दों की आवृत्ति से अपेक्षित प्रभाव की सृष्टि हुई है।
– भाषा सरल एवं सुबोध है।
– शब्दों में मितव्ययता बरती गई है।
परीक्षा उपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(क) लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. ‘अग्निपथ’ कविता के प्रतिपाद्य पर विचार करते हुए वर्तमान समय में इस कविता का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘अग्निपथ’ कविता के माध्यम से वर्तमान समय में ‘जीवन-संघर्ष’ का मार्ग यद्यपि अग्नि के पथ पर चलने जैसा है, पर इस पर निरंतर चलते जाने से ही सफलता चरण चूमती है। व्यक्ति को इस मार्ग की कठिनाइयों से विचलित नहीं होना चाहिए। निरंतरता और गतिशीलता बनाए रखना आवश्यक है। आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
प्रश्न 2. इस कविता की कौन-सी विशेषता आपको आकर्षित करती है?
उत्तर: इस कविता में जहाँ एक ओर शब्दों में मितव्ययता बरती गई है वहीं दूसरी ओर कुछ शब्दों की कई बार आवृत्ति की गई है। इससे एक विशेष प्रभाव का निर्माण हो सका है। कवि का एक अपना विशिष्ट ढंग है। इससे बलाघात आ गया है। कविता की यह विशेषता हमें आकर्षित करती है।
प्रश्न 3. कवि जीवन मार्ग को अग्निपथ क्यों कहता है?
उत्तर: ‘अग्निपथ’ से तात्पर्य है– ‘अग्नि के पथ’ पर चलना अर्थात् संघर्षपूर्ण जीवन बिताना। जिस प्रकार अग्निपथ पर चलना आसान काम नहीं होता, उसी प्रकार संघर्ष का मार्ग भी आसान नहीं होता। इस पर अनेक विघ्न-बाधाएँ आती हैं। अनेक लोगों एवं परंपराओं से संघर्ष करना पड़ता है, पर जो व्यक्ति संघर्ष से पीछे नहीं हटता, सफलता उसी का वरण करती है।
प्रश्न 4. ‘अग्निपथ’ का महान दृश्य कैसा है?
उत्तर: अग्निपथ का महान दृश्य है- जिसमें संघर्षशील व्यक्ति आँसू, खून, पसीने से लथपथ हीकर भी लक्ष्य-मार्ग की ओर अग्रसर है।
प्रश्न 5. ‘अग्निपथ’ कविता में क्या प्रतिज्ञा लेने की बात कही गई है?
उत्तर: कवि ने संघर्षशील मनुष्य को कभी न थकने की, कठिनाइयों से घबराकर न रुकने की और कभी पीछे मुड़कर न देखने की प्रतिज्ञा लेने की बात कही है। वह चाहता है कि मनुष्य संघर्ष के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ने की प्रतिज्ञा ले और उसका निर्वाह करे।
प्रश्न 6. ‘अग्निपथ’ किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर: ‘अग्निपथ’ शीर्षक कविता में कवि ने संघर्षमय जीवन को अग्निपथ कहा है। ऐसा इसलिए कहा गया है हमारे जीवन का पथ अग्निपथ के समान है। इस पर चलना इतना आसान नहीं है। इसमें निरंतर संघर्ष है। यह अग्नि पर चलने के समान है।
(ख) निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. ‘अग्निपथ’ कविता के माध्यम से कवि ने क्या संदेश देने का प्रयत्न किया है?
उत्तर: हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित लघु कविता ‘अग्निपथ’ अत्यंत प्रेरणादायक कविता है।
‘अग्निपथ’ कविता में कवि ने संघर्षमय जीवन को ही अग्निपथ कहा है। हमारा सारा जीवन एक अग्निपथ के समान है। यहाँ रहकर संघर्ष करना अग्निपथ पर चलने के समान है। इस कविता के माध्यम से कवि ने हमें यह संदेश दिया है हमें जीवन में संघर्ष से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। मार्ग की बाधाओं के घबराकर कभी भी सुख रूपी छाँह की चाह नहीं करनी चाहिए। हमें अपनी मंजिल अर्थात् लक्ष्य की ओर कर्मठतापूर्वक, बिना थकान महसूस किए आगे बढ़ते ही चले जाना चाहिए। संघर्ष का मार्ग कष्टों से भरा होता है। इसमें कदम-कदम पर बाधाएँ आती हैं। इस पर चलते समय रक्त और पसीना बहाना पड़ता है। इनमें लथपथ भी होना पड़ता है, पर हमें शपथपूर्वक निरंतर आगे बढ़ते जाने को ही अपना लक्ष्य बना लेना चाहिए। इसी से जीवन में सफलता प्राप्त होती है। यह अग्निपथ हमारी परीक्षा की घड़ी होता है।