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NCERT Class 6 Hindi Chapter 2 गोल
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गोल
Chapter: 2
मल्हार |
पाठ से |
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (☆) बनाइए-
1. “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता।” मेजर ध्यानचंद की इस बात से उनके बारे में क्या पता चलता है?
(i) वे अत्यंत क्रोधी थे।
(ii) वे अच्छे ढंग से बदला लेते थे।
(iii) उन्हें हॉकी से मारने पर वे अधिक गोल करते थे।
(iv) वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए।
उत्तर: (iv) वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए।
2. लोगों ने मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना क्यों शुरू कर दिया?
(i) उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण।
(ii) उनकी हॉकी स्टिक की अनोखी विशेषताओं के कारण।
(iii) हॉकी के लिए उनके विशेष लगाव के कारण।
(iv) उनकी खेल भावना के कारण।
उत्तर: (i) उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण।
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर: (i) पहले प्रश्न में मेजर ध्यानचंद ने खेल में गुस्सा करने के बजाय खेल भावना को प्राथमिकता दी। उन्होंने गुस्से का जवाब खेल के माध्यम से दिया और उन्होंने यह सिखाया कि खेल में प्रतिस्पर्धा से अधिक महत्वपूर्ण है इसे सही भावना से खेलना।
(ii) दूसरे प्रश्न में मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ इसलिए कहा गया क्योंकि उनके पास हॉकी खेलने की असाधारण योग्यता और कौशल था, जो लोगों को चकित कर देता था।
मिलकर करें मिलान |
1. पाठ में से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही अर्थों या संदर्भों से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
शब्द | अर्थ या संदर्भ |
1. लांस नायक | 1. स्वतंत्रता से पहले सूबेदार भारतीय सैन्य अधिकारियों का दूसरा सबसे बड़ा पद था। |
2. बर्लिन ओलंपिक | 2. भारतीय सेना का एक पद (रैंक) है। |
3. पंजाब रेजिमेंट | 3. सैनिकों के रहने का क्षेत्र। |
4. सैंपर्स एंड माइनर्स टीम | 4. वर्ष 1936 में जर्मनी के बर्लिन शहर में आयोजित ओलंपिक खेल प्रतियोगिता, जिसमें 49 देशों ने भाग लिया था। |
5. सूबेदार | 5. स्वतंत्रता से पहले अंग्रेज़ों की भारतीय सेना का एक दल। |
6. छावनी | 6. अंग्रेज़ों के समय का एक हॉकी दल। |
उत्तर:
शब्द | अर्थ या संदर्भ |
1. लांस नायक | 2. भारतीय सेना का एक पद (रैंक) है। |
2. बर्लिन ओलंपिक | 4. वर्ष 1936 में जर्मनी के बर्लिन शहर में आयोजित ओलंपिक खेल प्रतियोगिता, जिसमें 49 देशों ने भाग लिया था। |
3. पंजाब रेजिमेंट | 5. स्वतंत्रता से पहले अंग्रेज़ों की भारतीय सेना का एक दल। |
4. सैंपर्स एंड माइनर्स टीम | 6. अंग्रेज़ों के समय का एक हॉकी दल। |
5. सूबेदार | 1. स्वतंत्रता से पहले सूबेदार भारतीय सैन्य अधिकारियों का दूसरा सबसे बड़ा पद था। |
6. छावनी | 3. सैनिकों के रहने का क्षेत्र। |
पंक्तियों पर चर्चा |
1. पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार कक्षा में अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
(क) “बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है कि उसके साथ भी बुराई की जाएगी।”
उत्तर: इस पंक्ति का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति बुरे कर्म करता है, वह हमेशा चिंतित और भयभीत रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसे लगता है कि जो बुराई उसने दूसरों के साथ की है, वही उसके साथ भी होगी। यह डर उसके मन की अशांति और अपराधबोध का प्रतीक है।
(ख) “मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया।”
उत्तर: इस पंक्ति का अर्थ यह है कि ध्यानचंद हमेशा टीम की सफलता को प्राथमिकता देते थे। वह व्यक्तिगत श्रेय की बजाय टीमवर्क को अधिक महत्व देते थे। अपनी इसी खेल भावना और सहयोगी दृष्टिकोण के कारण वह विश्वभर के खेल प्रेमियों के प्रिय बन गए।
सोच-विचार के लिए |
1. संस्मरण को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
(क) ध्यानचंद की सफलता का क्या रहस्य था?
उत्तर: ध्यानचंद की सफलता का रहस्य उनकी अनुशासन, कठोर परिश्रम, और खेल के प्रति गहरी निष्ठा थी। वह हमेशा अभ्यास को प्राथमिकता देते थे और अपने खेल में लगातार सुधार के लिए प्रयासरत रहते थे। उनकी कुशलता, तेज़ निर्णय क्षमता, और टीमवर्क ने उन्हें महान खिलाड़ी बनाया। इसके साथ ही, उनकी खेल भावना, जिसमें वे व्यक्तिगत श्रेय से अधिक टीम की सफलता को महत्व देते थे, उन्हें खेल प्रेमियों के दिलों में विशेष स्थान दिलाया। 1936 में वे बर्लिन ओलंपिक टीम के कप्तान बने और अपने हॉकी खेलने के ढंग से लोगों को इतना प्रभावित किया कि ‘हॉकी के जादूगर’ कहलाए।
(ख) किन बातों से ऐसा लगता है कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे?
उत्तर: ध्यानचंद का जीवन और खेल यह दिखाते हैं कि वे स्वयं से पहले दूसरों को महत्व देते थे। वे हमेशा टीम की जीत को अपनी व्यक्तिगत सफलता से ऊपर रखते थे। मैदान पर यदि कोई साथी खिलाड़ी बेहतर स्थिति में होता, तो वे उसे गेंद पास कर देते थे। उनकी विनम्रता और अनुशासन उनके निस्वार्थ स्वभाव को दर्शाते हैं। वे अपनी सफलता का श्रेय टीम और देश को देते थे और नए खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने में हमेशा आगे रहते थे। इससे यह दर्शाता है कि वे सच्चे देशप्रेमी थे।
संस्मरण की रचना |
“उन दिनों में मैं, पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करता था।”
1. इस वाक्य को पढ़कर ऐसा लगता है मानो लेखक आपसे यानी पाठक से अपनी यादों को साझा कर रहा है। ध्यान देंगे तो इस पाठ में ऐसी और भी अनेक विशेष बातें आपको दिखाई देंगी। इस पाठ को एक बार फिर से पढ़िए।
(क) अपने-अपने समूह में मिलकर इस संस्मरण की विशेषताओं की सूची बनाइए।
उत्तर: इस संस्मरण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) व्यक्तिगत अनुभव: लेखक अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करता है, जो उसकी जीवन यात्रा और खेल के प्रति उसके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
(ii) भावनात्मक गहराई: लेखक ने अपनी भावनाओं, जैसे गुस्सा, प्रेरणा और खेल भावना, को व्यक्त किया है, जिससे पाठक उसकी मानसिक स्थिति को समझ सकता है।
(iii) यथार्थता: संस्मरण में घटनाएँ वास्तविक और प्रामाणिक होती हैं, जो पाठकों को वास्तविक जीवन के करीब महसूस कराती हैं।
(iv) खेल की भावना: लेखक ने खेल को सही भावना से खेलने की आवश्यकता पर जोर दिया और यह बताया कि खेल केवल व्यक्तिगत सफलता का नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास और देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है।
(v) प्रेरणा: संस्मरण पाठकों को प्रेरित करता है, विशेष रूप से युवा खिलाड़ियों को, कि वे हमेशा ईमानदारी और संघर्ष के साथ खेलें।
(vi) विवरणात्मक चित्रण: लेखक घटनाओं और स्थितियों का सजीव और विस्तृत चित्रण करता है, जिससे पाठक उन घटनाओं को महसूस कर सकता है।
(vii) टीम भावना: लेखक ने यह सिद्ध किया कि खेल में सफलता टीम की एकता और सामूहिक प्रयास पर निर्भर करती है, न कि केवल व्यक्तिगत प्रयासों पर।
(viii) विनम्रता और निस्वार्थता: लेखक ने कभी अपनी व्यक्तिगत सफलता का घमंड नहीं किया और हमेशा टीम की सफलता को प्राथमिकता दी।
(ख) अपने समूह की सूची को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए।
उत्तर: विद्यार्थि स्वयं करें।
शब्दों के जोड़ें, विभिन्न प्रकार के |
(क) “जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई।”
इस वाक्य में ‘जैसे-जैसे’ और ‘वैसे-वैसे’ शब्दों के जोड़े हैं जिनमें एक ही शब्द दो बार उपयोग में लाया गया है। ऐसे जोड़ों को ‘शब्द-युग्म’ कहते हैं। शब्द-युग्म में दो शब्दों के बीच में छोटी-सी रेखा लगाई जाती है जिसे योजक चिह्न कहते हैं। योजक यानी जोड़ने वाला। आप भी ऐसे पाँच शब्द-युग्म लिखिए।
उत्तर: (i) तेज-तेज।
(ii) धीरे-धीरे।
(iii) आगे-आगे।
(vi) उँचे-उँचे।
(v) बड़े-बड़े।
(ख) “खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक की घटनाएँ होती रहती हैं।”
इस वाक्य में भी आपको दो शब्द-युग्म दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इन शब्द-युग्मों के दोनों शब्द भिन्न-भिन्न हैं, एक जैसे नहीं हैं। आप भी ऐसे पाँच शब्द-युग्म लिखिए जिनमें दोनों शब्द भिन्न-भिन्न हों।
उत्तर: (i) धक्का-मुक्की।
(ii) सपना-हकीकत।
(iii) उठाना-गिराना।
(vi) हँसी-खुशी।
(v) प्यार-दुलार।
(ग) “हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।”
“आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं।”
इन वाक्यों में जिन शब्दों के नीचे रेखा खिंची है, उन्हें ध्यान से पढ़िए। हम इन शब्दों को योजक की सहायता से भी लिख सकते हैं, जैसे – हार-जीत, बच्चे-बूढ़े आदि।
आप नीचे दिए गए शब्दों को योजक की सहायता से लिखिए-
अच्छा या बुरा | उत्तर और दक्षिण |
छोटा या बड़ा | गुरु और शिष्य |
अमीर और गरीब | अमृत या विष |
उत्तर:
अच्छा या बुरा | अच्छा-बुरा |
छोटा या बड़ा | छोटा-बड़ा |
अमीर और गरीब | अमीर-गरीब |
उत्तर और दक्षिण | उत्तर-दक्षिण |
गुरु और शिष्य | गुरु-शिष्य |
अमृत या विष | अमृत-विष |
बात पर बल देना |
1. “मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है।”
“मैंने तो अपना बदला ले लिया है।”
इन दोनों वाक्यों में क्या अंतर है? ध्यान दीजिए और बताइए। सही पहचाना! दूसरे वाक्य में एक शब्द कम है। उस एक शब्द के न होने से वाक्य के अर्थ में भी थोड़ा अंतर आ गया है।
हम अपनी बात पर बल देने के लिए कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे- ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ आदि। पाठ में से इन शब्दों वाले वाक्यों को चुनकर लिखिए। ध्यान दीजिए कि यदि उन वाक्यों में ये शब्द न होते तो उनके अर्थ पर इसका क्या प्रभाव पड़ता।
उत्तर: (i) खेल में तो यह सब चलता ही है।
खेल में यह सब चलता है।
(ii) अब हर समय मुझे ही देखते रहता।
अब हर समय मुझे देखते रहता।
(iii) इसका यह मतलब नहीं कि सारे गोल मैं ही करता था।
इसका यह मतलब नहीं कि सारे गोल मैं करता था।
(iv) मेरे इतना कहते ही खिलाड़ी घबरा गया।
मेरे इतना कहते खिलाड़ी घबरा गया।
यदि इन वाक्यों में से ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ जैसे शब्द हटा दिए जाएं, तो वाक्य का प्रभाव कम हो जाता है और उनका बल कमजोर पड़ता है। इन शब्दों का प्रयोग वाक्य को और अधिक सशक्त और स्पष्ट बनाता है। ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ जैसे शब्द वाक्य में एक विशिष्टता और जोर डालते हैं, जो संदेश को और अधिक प्रभावशाली बना देता है। बिना इन शब्दों के वाक्य में एक तरह की अस्पष्टता और कमी महसूस होती है, जिससे पाठक पर वही गहरा असर नहीं पड़ता।
पाठ से आगे |
आपकी बात
(क) ध्यानचंद के स्थान पर आप होते तो क्या आप बदला लेते? यदि हाँ, तो बताइए कि आप बदला किस प्रकार लेते?
उत्तर: अगर मैं ध्यानचंद के स्थान पर होता, तो मैं बदला लेने की बजाय खेल की भावना और अनुशासन को प्राथमिकता देता। खेल में हार या जीत एक सामान्य हिस्सा होते हैं, और बदला लेने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है अपनी टीम के साथ मिलकर सामूहिक प्रयास से जीत प्राप्त करना। हालांकि, अगर बदला लेने की स्थिति आती, तो मैं इसे खेल की सीमाओं के भीतर ही नियंत्रित रखता, जैसे कि अपनी पूरी ताकत और कौशल के साथ खेलकर प्रतिद्वंद्वी को हराना, लेकिन किसी प्रकार की नकरात्मकता या हिंसा से बचते हुए। मेरा उद्देश्य खेल के प्रति सम्मान और श्रेष्ठता को प्रदर्शित करना होता।
(ख) आपको कौन-से खेल और कौन-से खिलाड़ी सबसे अधिक अच्छे लगते हैं? क्यों?
उत्तर: मुझे हॉकी और क्रिकेट खेल सबसे अधिक अच्छे लगते हैं।
हॉकी का खेल मुझे इसलिए पसंद है क्योंकि इसमें तेज़ी, रणनीति और टीम वर्क का मिश्रण होता है। हॉकी में हर खिलाड़ी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और यह खेल सामूहिक प्रयास का प्रतीक है। ध्यानचंद जैसे खिलाड़ी, जिन्होंने हॉकी को अपनी कड़ी मेहनत और खेल भावना से ऊँचाइयों तक पहुँचाया, मुझे प्रेरित करते हैं।
क्रिकेट मुझे इसलिए पसंद है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत कौशल और टीम की रणनीति का संतुलन होता है। खिलाड़ी जैसे सचिन तेंदुलकर, जिनका खेल में संयम, तकनीकी कौशल और आत्मविश्वास अद्वितीय था, मुझे बहुत प्रभावित करते हैं। उनका खेल केवल व्यक्तिगत सफलता का प्रतीक नहीं था, बल्कि उन्होंने खेल में नैतिकता और प्रेरणा का भी उदाहरण प्रस्तुत किया।
इन खेलों और खिलाड़ियों में मुझे उनकी मेहनत, समर्पण और खेल भावना से प्रेरणा मिलती है।
समाचार-पत्र से |
(क) क्या आप समाचार-पत्र पढ़ते हैं? समाचार-पत्रों में प्रतिदिन खेल के समाचारों का एक पृष्ठ प्रकाशित होता है। अपने घर या पुस्तकालय से पिछले सप्ताह के समाचार पत्रों को देखिए। अपनी पसंद का एक खेल-समाचार अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर: विद्यार्थि स्वयं करें।
(ख) मान लीजिए कि आप एक खेल-संवाददाता हैं और किसी खेल का आँखों देखा प्रसारण कर रहे हैं। अपने समूह के साथ मिलकर कक्षा में उस खेल का आँखों देखा हाल प्रस्तुत कीजिए। (संकेत- इस कार्य में आप आकाशवाणी या दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले खेल-प्रसारणों की कमेंटरी की शैली का उपयोग कर सकते हैं। बारी-बारी से प्रत्येक समूह कक्षा में सामने डेस्क या कुर्सियों पर बैठ जाएगा और पाँच मिनट के लिए किसी खेल के सजीव प्रसारण की कमेंटरी का अभिनय करेगा।)
उत्तर: विद्यार्थि स्वयं करें।
डायरी का प्रारंभ |
1. कुछ लोग प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी बातें किसी स्थान पर लिख लेते हैं। जो वे सोचते हैं, या जो उनके साथ उस दिन हुआ या जो उन्होंने देखा, उसे ईमानदारी से लिख लेते हैं या टाइप कर लेते हैं। इसे डायरी लिखना कहते हैं।
क्या आप भी अपने मन की बातों और विचारों को लिखना चाहते हैं? यदि हाँ, तो आज से ही प्रारंभ कर दीजिए-
(i) आप जहाँ लिखेंगे, वह माध्यम चुन लीजिए। आप किसी लेखन-पुस्तिका में या ऑनलाइन मंचों पर लिख सकते हैं।
(ii) आप प्रतिदिन, कुछ दिनों में एक बार या जब कुछ लिखने का मन करे तब लिख सकते हैं।
(iii) शब्दों या वाक्यों की कोई सीमा नहीं है चाहे दो वाक्य हों या दो पृष्ठ। आप जो मन में आए उसे उचित और शालीन शब्दों में लिख सकते हैं।
उत्तर: छात्र/छत्री स्वयं करे।
झरोखे से |
1. आपने भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी के बारे में बहुत कुछ बात की होगी। अब हम हॉकी जैसे ही अनोखे खेल के बारे में पढ़ेंगे जिसे आप जैसे लाखों बच्चे अपने गली-मुहल्लों में खेलते हैं। इस खेल का नाम है- डाँडी या गोथा।
उत्तर: छात्र/छत्री स्वयं करे।
साझी समझ |
(क) आपने इस खेल के नियम पढ़कर अच्छी तरह समझ लिए हैं। अब अपने मित्रों के साथ मिलकर ‘डाँडी’ या ‘गोथा’ खेल खेलिए।
उत्तर: छात्र/छत्री स्वयं करे।
(ख) आप भी ‘डाँडी’ या ‘गोथा’ जैसे अनेक स्वदेशी खेल अपने मित्रों के साथ मिलकर अपने विद्यालय, घर या मोहल्ले में खेलते होंगे। अब आप ऐसे ही किसी एक खेल के नियम इस प्रकार से लिखिए कि उन्हें पढ़कर कोई भी बच्चा उस खेल को समझ सके और खेल सके।
उत्तर: खेल का नाम: “गोटी” (गोथा)
उम्र सीमा: 7 वर्ष और उससे ऊपर के बच्चे
खिलाड़ियों की संख्या: 2 या 4
सामग्री:
(i) एक चौकोर बोर्ड (आमतौर पर यह जमीन पर चाक या सफेद रंग से बनाते हैं)।
(ii) गोटी (छोटे से गोल पत्थर या कोई छोटा वस्तु, जो घुमाई जा सके)।
खेल के नियम:
(i) बोर्ड का निर्माण: सबसे पहले एक वर्गाकार बोर्ड बनाएं जिसमें 4 बड़े खंड होते हैं। प्रत्येक खंड में छोटे-छोटे गोठे होते हैं। इसमें प्रत्येक खिलाड़ी के पास अपनी गोटियाँ होंगी।
(ii) गोटी फेंकना: खेल की शुरुआत में, प्रत्येक खिलाड़ी अपनी बारी पर गोटी को फेंकता है। गोटी को ठीक से खेल में लाने के लिए उसे सही तरीके से फेंकना होता है।
(iii) गोटी का घूमना: खिलाड़ी को अपने गोटी को प्रत्येक खंड में से घुमा कर दूसरे खंड में लाना होता है। पहले खंड से दूसरे खंड में गोटी लाने के बाद अगले खिलाड़ी को गोटी घुमाने का अवसर मिलता है।
(iv) रोकना और वापसी: खेल के दौरान, जब कोई खिलाड़ी गोटी को गलत दिशा में फेंकता है या खेल के नियम का उल्लंघन करता है, तो उसे वापिस लौटना पड़ता है और फिर से खेल की शुरुआत करनी होती है।
(vi) अंतिम उद्देश्य: जिस खिलाड़ी की गोटी सबसे पहले खेल के सभी खंडों में से घुमकर समाप्त हो जाती है, वह विजेता होता है।
इस खेल में खिलाड़ियों को न केवल अपनी सटीकता और चालाकी दिखानी होती है, बल्कि रणनीति बनाने की भी आवश्यकता होती है, ताकि वे खेल के हर चरण को सही तरीके से पार कर सकें।
खोजबीन के लिए |
1. नीचे ध्यानचंद जी के विषय में कुछ सामग्री दी गई है जैसे – फिल्में, साक्षात्कार आदि, इन्हें पुस्तक में दिए गए क्यू.आर. कोड की सहायता से पढ़ें, देखें व समझें।
(i) हॉकी के जादूगर – मेजर ध्यानचंद – प्रेरक गाथाएँ।
(ii) हॉकी के जादूगर- मेजर ध्यानचंद।
(iii) ओलंपिक।
(iv) मेजर ध्यानचंद से साक्षात्कार।
उत्तर: यहाँ दी गई सामग्री से आप ध्यानचंद जी के जीवन और उनके योगदान के बारे में गहरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
(i) “हॉकी के जादूगर – मेजर ध्यानचंद – प्रेरक गाथाएँ” – इस पुस्तक में ध्यानचंद जी के जीवन की प्रेरक घटनाएँ और उनकी महान उपलब्धियों को बताया गया है।
(ii) “हॉकी के जादूगर – मेजर ध्यानचंद” – यह एक और पुस्तक हो सकती है जो उनके खेल जीवन और हॉकी में उनके योगदान पर आधारित है।
(iii) “ओलंपिक” – इस विषय में ध्यानचंद जी के ओलंपिक में भाग लेने और उनके द्वारा जीते गए स्वर्ण पदक पर चर्चा की जा सकती है।
(iv) “मेजर ध्यानचंद से साक्षात्कार” – इस साक्षात्कार में ध्यानचंद जी से उनके खेल जीवन, उनकी मानसिकता, और हॉकी के प्रति उनके प्यार के बारे में पूछा जा सकता है।
आप इन क्यू.आर. कोड्स का उपयोग करके इन सामग्रियों को देख सकते हैं और ध्यानचंद जी के जीवन को और भी गहराई से समझ सकते हैं।