NCERT Class 11 Hindi Vitan Chapter 4 भारतीय कलाएँ

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NCERT Class 11 Hindi Vitan Chapter 4 भारतीय कलाएँ

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Chapter: 4

वितान

अभ्यास

1. कला और भाषा के अंतर्संबंध पर आपकी क्या राय है? लिखकर बताएँ।

उत्तर: भाषा और कला एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। भाषा विचारों को संप्रेषित करती है, जबकि कला उन्हें भावनात्मक और सौंदर्यपूर्ण रूप से प्रस्तुत करती है। चित्रकला, संगीत, नृत्य, और नाटक भाषा के साथ मिलकर सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को समृद्ध बनाते हैं। भारतीय लोककलाएँ भाषाओं और परंपराओं से जुड़ी होती हैं, जिससे हमारी सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है। कला और भाषा मिलकर हमारी भावनाओं, परंपराओं और विचारों को प्रभावी रूप से व्यक्त करने में सहायक होते हैं।

2. भारतीय कलाओं और भारतीय संस्कृति में आप किस तरह का संबंध पाते हैं?

उत्तर: भारतीय कलाएँ और भारतीय संस्कृति एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। भारतीय कला संस्कृति की भावनाओं, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का अभिन्न अंग रही है। यह चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य और नाट्य के माध्यम से संस्कृति की झलक प्रस्तुत करती है। धर्म और अध्यात्म का प्रभाव कला में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जैसे मंदिरों की मूर्तिकला, भित्ति चित्र और भजन-कीर्तन। लोक कलाएँ और नृत्य (मधुबनी, वारली चित्रकला, भांगड़ा, गरबा, कथकली) क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं। साहित्य और कला का गहरा संबंध है, जैसे रामायण, महाभारत, भरतनाट्यम और कथक। भारतीय त्योहारों में भी कला महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जहाँ रंगोली, मूर्तिकला, संगीत और नृत्य उत्सवों का हिस्सा होते हैं। समय के साथ कला और संस्कृति विकसित हुई हैं, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़ी रही हैं। इस प्रकार, भारतीय कला और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं और मिलकर भारत की समृद्ध धरोहर को संजोए हुए हैं।

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3. शास्त्रीय कलाओं का आधार जनजातीय और लोक कलाएँ हैं- अपनी सहमति और असहमति के पक्ष में तर्क दें।

उत्तर: शास्त्रीय कलाओं का आधार जनजातीय और लोक कलाएँ हैं, क्योंकि प्रारंभ में सभी कलाएँ लोक जीवन से जुड़ी थीं। लोक नृत्य, संगीत और चित्रकला समय के साथ परिष्कृत होकर शास्त्रीय रूप में विकसित हुईं। भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी जैसे नृत्य और हिंदुस्तानी व कर्नाटकी संगीत की जड़ें लोक कलाओं में देखी जा सकती हैं। राजाओं और शासकों के संरक्षण में ये कलाएँ नियमबद्ध और तकनीकी रूप से समृद्ध हो गईं। हालांकि, शास्त्रीय कलाएँ अनुशासन और गहन अध्ययन पर आधारित होती हैं, जो उन्हें लोक कलाओं से अलग बनाता है। इसलिए, शास्त्रीय कलाएँ लोक कलाओं की देन तो हैं, लेकिन समय के साथ उनमें बड़ा बदलाव आ चुका है।

चर्चा करें

साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः- भतृहरि के इस में चर्चा करें।

उत्तर: ‘साहित्यसंगीतकलाविहीनः, साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः’ (साहित्य संगीत कला से विहीन मनुष्य साक्षात बिना पूँछ के पशु के समान होता है।

-नीतिशतक, भर्तृहरि

भर्तृहरि के इस श्लोक “साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः” का अर्थ है कि जो व्यक्ति साहित्य, संगीत और कला से रहित है, वह बिना पूँछ और सींग वाला पशु मात्र है। इस श्लोक में भर्तृहरि ने मनुष्य के बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास में साहित्य, संगीत और कला के महत्व को दर्शाया है। ये तीनों तत्व मनुष्य को संवेदनशील, सृजनशील और समाज के प्रति जागरूक बनाते हैं। साहित्य ज्ञान और नैतिकता का स्रोत है, संगीत आत्मा को शुद्ध करता है, और कला मनुष्य के भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम है। इनके बिना मनुष्य केवल जैविक अस्तित्व तक सीमित रह जाता है, जो पशु-जीवन के समान है। इसलिए, भर्तृहरि ने इन कलाओं को मनुष्य की वास्तविक पहचान और सभ्यता का आधार माना है।

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