NCERT Class 11 Hindi Antral Chapter 2 आवारा मसीहा

NCERT Class 11 Hindi Antral Chapter 2 आवारा मसीहा Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 11 Hindi Antral Chapter 2 आवारा मसीहा Notes and select need one. NCERT Class 11 Hindi Antral Chapter 2 आवारा मसीहा Question Answers Download PDF. NCERT Class 11 Solutions for Hindi Antral Bhag – 1.

NCERT Class 11 Hindi Antral Chapter 2 आवारा मसीहा

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. NCERT Class 11 Hindi Antral Bhag – 1 Textual Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 11 Hindi Antral Bhag – 1 Notes. CBSE Class 11 Hindi Antral Bhag – 1 Textbook Solutions for All Chapters, You can practice these here.

Chapter: 2

अंतराल

प्रश्न-अभ्यास

1. “उस समय वह सोच भी नहीं सकता था कि मनुष्य को दुख पहुँचाने के अलावा भी साहित्य का कोई उद्देश्य हो सकता है।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा? आपके विचार से साहित्य के कौन-कौन से उद्देश्य हो सकते हैं?

उत्तर: लेखक ने यह कथन इसलिए कहा क्योंकि बालक शरत् का साहित्य से पहला परिचय कठोर अनुशासन और भय के वातावरण में हुआ था। स्कूल में उसे कठिन और गंभीर ग्रंथों को पढ़ना पड़ा, जिसमें ‘सीता-वनवास’, ‘चारु पाठ’, ‘सद्भाव-सद्गुरु’ और ‘प्रकांड व्याकरण’ जैसी पुस्तकें शामिल थीं। इन पुस्तकों को पढ़ना ही नहीं, बल्कि प्रतिदिन पंडित जी के सामने परीक्षा भी देनी पड़ती थी। इस कठोर अनुशासन और पढ़ाई के दबाव के कारण उसे साहित्य बोझिल और कष्टदायक लगने लगा। इसलिए उसे लगा कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनुष्य को दुख पहुँचाना ही है।

साहित्य के उद्देश्य:

(i) ज्ञान का स्रोत – साहित्य के माध्यम से व्यक्ति को भाषा, संस्कृति, इतिहास और समाज की जानकारी मिलती है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

(ii) मनोरंजन और आनंद – कहानियाँ, कविताएँ और नाटक लोगों को आनंद और सुकून प्रदान करते हैं।

(iii) प्रेरणा और आत्मविकास – साहित्य महान विचारों को प्रस्तुत कर व्यक्ति को प्रेरित करता है और आत्मचिंतन को बढ़ावा देता है।

(iv) संवेदनशीलता और मानवीय भावनाएँ – साहित्य प्रेम, करुणा, साहस और संघर्ष जैसी भावनाओं को व्यक्त करता है।

(v) सामाजिक जागरूकता – यह समाज में हो रहे अन्याय, कुरीतियों और समस्याओं पर प्रकाश डालकर सुधार की दिशा दिखाता है।

(vi) नैतिकता और जीवन मूल्यों की शिक्षा – साहित्य व्यक्ति को सही-गलत की पहचान कराकर अच्छे आचरण की प्रेरणा देता है।

2. पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय के और वर्तमान समय के पढ़ने-पढ़ाने के तौर-तरीकों में क्या अंतर और समानताएँ हैं? आप पढ़ने-पढ़ाने के कौन से तौर-तरीकों के पक्ष में हैं और क्यों?

उत्तर: उस समय और वर्तमान समय के पढ़ने-पढ़ाने के तौर-तरीकों में अंतर और समानताएँ:

अंतर:

1. अनुशासन और शिक्षण पद्धति – पहले शिक्षा कठोर अनुशासन और दंड पर आधारित थी। विद्यार्थी भय और दबाव में पढ़ते थे, जबकि आज का शिक्षण अधिक सहज, रुचिकर और प्रोत्साहन आधारित है।

2. पाठ्यक्रम और अध्ययन सामग्री – पहले की पढ़ाई मुख्य रूप से धार्मिक ग्रंथों, साहित्य और व्याकरण तक सीमित थी, जबकि आज विज्ञान, गणित, तकनीक, भाषा, कला और अन्य विषयों की व्यापकता बढ़ गई है।

3. स्मृति आधारित बनाम समझ पर आधारित शिक्षा – पहले याद करने (रटने) पर ज़ोर दिया जाता था, और विद्यार्थी को पाठ मौखिक रूप से प्रस्तुत करना होता था। आज, समझ और व्यावहारिक ज्ञान को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।

4. शिक्षा के साधन – पहले पुस्तकें और मौखिक शिक्षण ही मुख्य माध्यम थे, जबकि आज डिजिटल संसाधन, स्मार्ट क्लास, ऑनलाइन लर्निंग, ऑडियो-विज़ुअल सामग्री और प्रायोगिक गतिविधियाँ शिक्षा का अभिन्न अंग बन गई हैं।

समानताएँ:

1. शिक्षा का महत्व – पहले और आज, दोनों समय में शिक्षा को व्यक्ति के भविष्य और समाज के विकास के लिए आवश्यक माना जाता है।

2. गुरु का सम्मान – शिक्षकों को ज्ञान के स्रोत के रूप में माना जाता था और आज भी उनका सम्मान बना हुआ है।

3. प्रतियोगिता और श्रम की आवश्यकता – पहले भी छात्रों को पढ़ाई में परिश्रम करना पड़ता था, और आज भी सफलता के लिए मेहनत आवश्यक है।

मैं किस शिक्षण प्रणाली के पक्ष में हूँ और क्यों?

मैं आधुनिक शिक्षण प्रणाली के पक्ष में हूँ, जहाँ शिक्षा को समझ और व्यावहारिक ज्ञान से जोड़ा जाता है। डिजिटल तकनीकों, ऑडियो-विज़ुअल टूल्स और प्रायोगिक गतिविधियों से सीखना अधिक प्रभावी और रोचक बनता है।

हालांकि, मैं मानता हूँ कि अनुशासन और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी ज़रूरी है, ताकि विद्यार्थी केवल तकनीकी रूप से सक्षम ही नहीं, बल्कि एक अच्छे नागरिक भी बन सकें। इस प्रकार, एक संतुलित शिक्षा प्रणाली, जो आधुनिक तकनीकों और नैतिक मूल्यों का समावेश करे, सबसे अधिक प्रभावी होगी।

3. पाठ में अनेक अंश बाल सुलभ चंचलताओं, शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर करते हैं। आपको कौन सा अंश अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर: पाठ शरतचंद्र की अनेक बाल सुलभ चंचलताओं और शरारतों से भरा पड़ा है। उनका तितली पकड़ना, तालाब में नहाना, उपवन लगाना, पशु-पक्षी पालना, पिता के पुस्तकालय से पुस्तकें पढ़ना और पुस्तकों में दी गई जानकारी का प्रयोग करना— यह उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति और प्रकृति प्रेम को दर्शाते हैं। एक बार तो उन्होंने पुस्तक में साँप को वश में करने का मंत्र पढ़कर उसका प्रयोग तक कर डाला। 

इनमें से उपवन लगाना और पशु-पक्षी पालना वाला अंश विशेष रूप से अच्छा लगा, क्योंकि यह आज के बच्चों में कम ही देखने को मिलता है। शरतचंद्र जैसे कार्यों के माध्यम से हम प्रकृति के करीब आते हैं और जीव-जंतुओं के प्रति प्रेमभाव बढ़ता है। लेकिन आज के समय में बच्चे इमारतों के जंगल में सिमटकर रह गए हैं, जहाँ उनके पास ऐसे कार्य करने के अवसर ही नहीं मिलते। बाल सुलभ गतिविधियों में भी बहुत परिवर्तन आ चुका है—बच्चे अब प्रकृति से अधिक गैजेट्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उनके हाथों में बचपन से ही डिजिटल उपकरण आ जाते हैं, जिनका वे विभिन्न प्रकार से उपयोग और कभी-कभी दुरुपयोग भी करने लगते हैं। यह प्रवृत्ति उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए सही नहीं है। समय बदल रहा है और आधुनिकता का यह प्रभाव बच्चों के बचपन को प्रभावित कर रहा है, जिससे वे वास्तविक दुनिया और प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं।

4. नाना के घर किन-किन बातों का निषेध था? शरत् को उन निषिद्ध कार्यों को करना क्यों प्रिय था? 

उत्तर: शरतचंद्र के नाना बहुत सख्त स्वभाव के व्यक्ति थे, जो मानते थे कि बच्चों का एकमात्र कर्तव्य पढ़ाई करना है। उनकी दृष्टि में खेलकूद या अन्य गतिविधियाँ समय की बर्बादी थीं, इसलिए उन्होंने बच्चों के लिए कई कड़े नियम बना रखे थे। तालाब में नहाना, जानवरों और पक्षियों को पालना, बाहर जाना, उपवन लगाना, पतंग उड़ाना, लहू नचाना, गिल्ली-डंडा और कांच की गोली खेलना जैसी चीजें सख्त मना थीं। जो भी उनकी आज्ञा का पालन नहीं करता, उसे कठोर दंड दिया जाता था। लेकिन शरतचंद्र को ये नियम बिल्कुल पसंद नहीं थे। वे एक स्वतंत्र प्रवृत्ति के बालक थे और अपनी मर्जी से जीना चाहते थे। इसलिए वे अक्सर विद्रोह करके इन बंधनों को तोड़ते रहते थे। नाना द्वारा बनाए गए नियमों का उल्लंघन करना आसान नहीं था, लेकिन शरतचंद्र में अपार साहस और हिम्मत थी। वे हर चुनौती को स्वीकार करते और अपने मन की करने से पीछे नहीं हटते थे। उनका यह जुझारूपन और स्वतंत्रता प्रेम उनके व्यक्तित्व की अनोखी विशेषता थी।

5. आपको शरत् और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में क्या समानताएँ नजर आती हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: शरत् और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में समानताएँ –

(i) शरत् पिता के समान साहित्य पढ़ने और लिखने का शौकीन था। उसने अपने पिता के पुस्तकालय की सभी पुस्तक पढ़ ली थीं।

(ii) उसका सौंदर्य वोध पिता के समान ही था। जो उनके लेखन में स्पष्ट रूप से झलकता है।

(iii) शरतचंद्र की नजर में और उनके पिता की नजर में सभी व्यक्ति एक समान थे वे किसी को छोटा बड़ा नहीं समझते थे।

(iv) दोनों ही स्वतंत्रता प्रिय थे और बंधनों में रहना उन्हें स्वीकार नहीं था।

(v) शरतचंद्र और उनके पिता मोतीलाल जिज्ञासु और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। वे एक स्थान पर रुकना पसंद नहीं करते थे और नए अनुभवों की तलाश में रहते थे। 

6. क्या अभाव, अधूरापन मनुष्य के लिए प्ररेणादायी हो सकता है?

उत्तर: हाँ, अभाव और अधूरापन मनुष्य के लिए प्रेरणादायी हो सकते हैं। जब किसी व्यक्ति के पास कुछ कम होता है या कोई इच्छा अधूरी रह जाती है, तो वह उसे पूरा करने के लिए अधिक मेहनत करता है। संघर्ष और कठिनाइयाँ आत्मनिर्भरता, रचनात्मकता और धैर्य सिखाती हैं। इतिहास में कई महान व्यक्तियों ने अभावों के बावजूद सफलता प्राप्त की, जैसे अब्राहम लिंकन, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय। इस प्रकार, अभाव और अधूरापन केवल बाधाएँ नहीं, बल्कि आगे बढ़ने की प्रेरणा भी बन सकते हैं।

7. “जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मनस्तत्व के व्यापार में प्रसिद्ध होगा।” अघोर बाबू के मित्र की इस टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: अघोर बाबू के मित्र की यह टिप्पणी शरतचंद्र की गहरी संवेदनशीलता और मनोवैज्ञानिक समझ को दर्शाती है। एक बालक का रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानना यह संकेत देता है कि उसमें मानवीय भावनाओं को गहराई से समझने की क्षमता है। यह कोई साधारण गुण नहीं, बल्कि एक अद्भुत प्रतिभा का संकेत है, जो आगे चलकर उसे मनोविज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान दिला सकता है। वास्तव में, शरतचंद्र के साहित्य में मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं का गहन चित्रण मिलता है, जिससे उनकी लेखनी कालजयी बन गई। हालांकि, उनके परिवार में उनकी इस प्रतिभा को प्रारंभ में कोई विशेष महत्व नहीं दिया गया, लेकिन उनका संवेदनशील हृदय और सूक्ष्म दृष्टि आगे चलकर उन्हें महान साहित्यकार बना गई।

8. शरतचंद्र के जीवन की घटनाओं से आपके जीवन की जो भी घटना मेल खाती है उसके बारे में लिखिए।

उत्तर: शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन में संघर्ष और सामाजिक बाधाओं का महत्व था, जो उनके साहित्य में झलकता है। मेरे जीवन में भी एक ऐसी घटना है जो उनसे मेल खाती है।

मेरी भी एक खास दोस्ती है—काबुलीवाला से, जो मुझसे बहुत स्नेह करता है। मेरी माँ इस रिश्ते को लेकर सतर्क रहती हैं, लेकिन मेरे लिए यह अनमोल है। यह संबंध शरतचंद्र की कहानियों के भावनात्मक रिश्तों की याद दिलाता है, जहाँ सच्ची भावनाएँ सामाजिक बंधनों से ऊपर होती हैं।

9. क्या आप अपने गाँव और परिवेश से कभी मुक्त हो सकते हैं?

उत्तर: गाँव और परिवेश हमारे जीवन का आधार होते हैं। वे न केवल हमारी पहचान बनाते हैं, बल्कि हमारी सोच, आदतों और संवेदनाओं को भी गहराई से प्रभावित करते हैं। हालाँकि भौतिक रूप से कोई व्यक्ति अपने गाँव से दूर जा सकता है, लेकिन मन और भावनाओं से पूरी तरह मुक्त होना कठिन होता है।

गाँव की मिट्टी, वहाँ के लोग, बचपन की यादें—ये सब जीवनभर हमारे साथ रहते हैं। जब भी किसी नए शहर या माहौल में जाते हैं, तब भी गाँव की पुरानी बातें, वहाँ की बोली, रिश्ते और संस्कार हमें बार-बार याद आते हैं। यही कारण है कि चाहे हम कहीं भी जाएँ, अपने गाँव और परिवेश से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकते। वे हमारी जड़ों की तरह हमेशा हमारे साथ जुड़े रहते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This will close in 0 seconds

Scroll to Top