NCERT Class 11 Hindi Antra Chapter 10 खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहिं भावति

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NCERT Class 11 Hindi Antra Chapter 10 खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहिं भावति

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Chapter: 10

अंतरा

काव्य-खंड

प्रश्न-अभ्यास

1. ‘खेलन में को काको गुसैयाँ’ पद में कृष्ण और सुदामा के बीच किस बात पर तकरार हुई?

उत्तर: इस पद में कृष्ण और सुदामा खेलते समय तकरार करते हैं। खेल में कृष्ण हार जाते हैं, जिससे वे नाराज हो जाते हैं। सुदामा उनसे पूछते हैं कि हारने पर गुस्सा क्यों कर रहे हैं, जबकि जाति-पाँति का कोई भेद नहीं है। वे कृष्ण के अधिक गायों वाले अधिकार जताने पर भी तंज करते हैं। यह तकरार उनकी गहरी मित्रता और बाल सुलभ नोकझोंक का सुंदर चित्रण मिलता है।

2. खेल में रूठनेवाले साथी के साथ सब क्यों नहीं खेलना चाहते?

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उत्तर: रूठने वाले साथी के साथ कोई खेलना नहीं चाहता क्योंकि वह हार स्वीकार नहीं करता और खेल की सहजता को बिगाड़ देता है। ऐसा साथी खेल में आनंद लेने के बजाय क्रोध या अधिकार जताने लगता है, जिससे अन्य खिलाड़ियों का उत्साह कम हो जाता है। खेल का उद्देश्य मनोरंजन और मित्रता होता है, लेकिन यदि कोई बार-बार रूठे, तो दूसरे उसे नजरअंदाज करने लगते हैं।

3. खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए क्या-क्या तर्क दिए?

उत्तर: खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने डाँटते हुए ये तर्क दिए-

(i) खेल में कभी कोई जीतता है, तो कोई हारता है, इसलिए हारने पर गुस्सा करना उचित नहीं।

(ii) सुदामा कहते हैं कि सभी समान हैं, फिर भी कृष्ण अपना विशेष अधिकार जताकर रूठ रहे हैं।

(iii) यदि कोई बार-बार रूठेगा, तो बाकी ग्वालबाल उसके साथ खेलना पसंद नहीं करेंगे।

(iv) खेल का मकसद मनोरंजन और मित्रता है, न कि झगड़ा या गुस्सा करना।

(v) सुदामा व्यंग्य करते हैं कि अधिक गायों का मालिक होने से कोई खेल के नियम नहीं बदल सकता।

4. कृष्ण ने नंद बाबा को दुहाई देकर दाँव क्यों दिया?

उत्तर: कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर यह सुनिश्चित किया कि वे अपनी बारी देंगे और अंत में सबको हराकर ही रहेंगे। क्योंकि नंद बाबा उनके पिता हैं, इसलिए उनका नाम लेकर वे झूठ नहीं बोल सकते। इससे सभी को विश्वास हो गया कि कृष्ण अपनी बात से नहीं हटेंगे। उन्होंने इस तरह अपनी चतुराई से खेल में अपनी जीत सुनिश्चित करने का प्रयास किया।

5. इस पद से बाल-मनोविज्ञान पर क्या प्रकाश पड़‌ता है?

उत्तर: इस पद से बाल-मनोविज्ञान की कई महत्वपूर्ण विशेषताएँ उजागर होती हैं। बच्चे स्वभाव से चंचल, प्रतिस्पर्धी और अधिकार जताने वाले होते हैं, जैसा कि कृष्ण के व्यवहार में दिखता है। वे हार को आसानी से स्वीकार नहीं करते और कभी-कभी अपनी बात मनवाने के लिए भावनात्मक तर्क या किसी बड़े का नाम लेकर अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास करते हैं। साथ ही, खेल में तकरार के बावजूद बच्चों के बीच गहरी मित्रता बनी रहती है, जो उनके सरल और निष्कपट स्वभाव को दिखाती है। इस पद में बाल-मन की सहजता, हठ, चतुराई और मित्रता का सुंदर चित्रण मिलता है।

6. ‘गिरिधर नार नवावति’ से सखी का क्या आशय है?

उत्तर: इस पद में गोपियाँ कृष्ण पर व्यंग्य करती हैं कि वे प्रेमवश अपनी बाँसुरी के प्रति इतने आसक्त हैं कि उसे बजाते समय सिर झुका लेते हैं। गोपियाँ बाँसुरी को अपनी सौत मानकर उससे ईर्ष्या करती हैं और उसे स्त्री के रूप में देखते हुए कृष्ण पर तंज कसती हैं। वे नहीं चाहतीं कि कृष्ण बाँसुरी को इस प्रकार अपने होठों से लगाए रखें।

7. कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है?

उत्तर: कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से इसलिए की गई है क्योंकि उनके होंठ अत्यंत कोमल हैं, जैसे एक नरम शय्या। जब वे बाँसुरी बजाते हैं, तो बाँसुरी उनके अधरों पर इस प्रकार स्थित होती है मानो वह उस कोमल सेज पर विश्राम कर रही हो। यह तुलना बाँसुरी और कृष्ण के अधरों के बीच के मधुर संबंध को दिखाती है, जहाँ बाँसुरी कोमल अधरों पर सोती हुई प्रतीत होती है।

8. पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर: सूरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के प्रमुख कवि हैं, जिनकी रचनाएँ मुख्यतः कृष्ण भक्ति पर आधारित हैं।

उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

(i) भाषा: सूरदास ने ब्रजभाषा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, जिससे यह साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई। उनकी भाषा सरल, सरस और प्रभावशाली है, जिसमें प्रसाद और माधुर्य गुणों की प्रधानता है। 

(ii) रस और भाव: उनके काव्य में श्रृंगार और वात्सल्य रस की प्रचुरता है। कृष्ण के बाल लीलाओं, राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों और गोपियों के साथ संवादों में मानवीय भावनाओं का सजीव चित्रण मिलता है। 

(iii) अलंकार प्रयोग: सूरदास ने रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, यमक और श्लेष जैसे अलंकारों का स्वाभाविक और प्रभावशाली प्रयोग किया है, जिससे उनकी रचनाएँ अधिक आकर्षक बन गई हैं। 

4. प्रकृति चित्रण: उनके काव्य में प्रकृति का सूक्ष्म और सजीव वर्णन मिलता है, जो उनके चित्रण कौशल को दर्शाता है। 

5. भक्ति भावना: सूरदास की रचनाएँ भक्ति रस से ओतप्रोत हैं, जहाँ भक्त और भगवान के बीच के प्रेम को मार्मिकता से प्रस्तुत किया गया है।

9. निम्नलिखित पद्यांशों को संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए–

(क) जाति-पाँति ..…………… तुम्हारै गैयाँ।

उत्तर: प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति सूरदास द्वारा लिखित ग्रंथ सूरसागर से ली गई हैं। इस पंक्ति में कृष्ण द्वारा वारी न दिए जाने पर ग्वाले कृष्ण को नाना प्रकार से समझाते हुए अपनी वारी देने के लिए विवश करते हैं।

व्याख्या: सूरदास के पद “खेलन में को काको गुसैयाँ” में श्रीकृष्ण और उनके प्रिय सखा श्रीदामा के बीच खेल के दौरान एक विवाद उत्पन्न होता है। श्रीदामा खेल में विजयी होते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण हार मानने से इंकार कर देते हैं और क्रोधित हो जाते हैं। इस पर श्रीदामा उन्हें समझाते हैं कि खेल में कोई किसी का स्वामी नहीं होता। वे यह भी बताते हैं कि जाति-पाँति के भेदभाव में कोई बड़ा-छोटा नहीं होता और न ही वे श्रीकृष्ण के अधीन हैं। श्रीदामा यह इंगित करते हैं कि संभवतः श्रीकृष्ण यह अधिकार इसलिए जता रहे हैं क्योंकि उनके पास अधिक गायें हैं। अंत में, वे कहते हैं कि जो व्यक्ति रूठता है, उसके साथ कोई नहीं खेलता, और फिर सभी ग्वालबाल खेल छोड़कर जहाँ-तहाँ बैठ जाते हैं। इस प्रकार, इस पद में सूरदास ने खेल के माध्यम से समानता का संदेश दिया है और जाति-पाँति के भेदभाव को अस्वीकार करने की भावना व्यक्त की है।

(ख) सुनि री ………….…… नवावति।

उत्तर: प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ सूरदास द्वारा रचित ग्रंथ सूरसागर से ली गई हैं। इन पंक्तियों में गोपियों की ईर्ष्या प्रकट होती है। वे श्रीकृष्ण की बाँसुरी को अपनी सौत के समान मानती हैं और उससे जलन रखती हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण हर समय उसे अपने अधरों से लगाए रहते हैं।

व्याख्या- सूरदास के पद ‘मुरली तऊ गुपालहिं भावति’ में गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी से ईर्ष्या प्रकट करती हैं। वे कहती हैं कि यह बाँसुरी नंदलाल (कृष्ण) को विभिन्न तरीकों से नचाती है। कभी एक पैर पर खड़ा करके अपना अधिकार जताती है, तो कभी कोमल शरीर से आज्ञा करवाती है, जिससे कृष्ण की कमर टेढ़ी हो जाती है। कृष्ण इस बाँसुरी के इतने अधीन हैं कि उसे होठों से लगाते समय सिर झुका लेते हैं। बाँसुरी स्वयं को उनके अधरों की सेज पर रखकर अपने पल्लव रूपी हाथों से उन्हें स्पर्श करती है। अपनी तिरछी भौंहों, आँखों और नासिका से हमें क्रोधित दिखाती है। सूरदास कहते हैं कि एक क्षण के लिए भी प्रसन्न होकर कृष्ण सिर हिलाते हैं।

योग्यता-विस्तार

1. खेल में हारकर भी हार न माननेवाले साथी के साथ आप क्या करेंगे? अपने अनुभव कक्षा में सुनाइए।

उत्तर: अगर मेरे साथ कोई ऐसा साथी हो जो खेल में हारकर भी हार न माने, तो मैं उसकी हिम्मत की सराहना करूंगा। खेल में जीत और हार दोनों आती हैं, लेकिन हार के बाद भी हार न मानना एक बहुत अच्छी आदत है।

मैं उसे समझाऊंगा कि हार से सीखकर अगली बार और बेहतर खेलने की कोशिश करनी चाहिए। अगर वह हतोत्साहित महसूस करेगा, तो मैं उसकी हिम्मत बढ़ाऊंगा और उसे बताऊंगा कि मेहनत और अभ्यास से वह जरूर जीत सकता है।

मुझे खुद भी एक ऐसा अनुभव याद है जब हमारे स्कूल की क्रिकेट टीम फाइनल मैच हार गई थी। लेकिन हमारे कप्तान ने हार मानने की बजाय हमें और ज्यादा मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। अगले टूर्नामेंट में हमने कड़ी मेहनत की और जीत हासिल की। यह अनुभव मुझे हमेशा याद रहेगा और मैं अपने साथियों को भी इसी तरह प्रेरित करता रहूंगा।

2. पुस्तक में संकलित ‘मुरली तक गुलहि भावति’ पद में गोपियों का मुरली के प्रति इंग्यां-भाव व्यक्त हुआ है। गोपियों और किस-किस के प्रति इंष्यां-भाव रखती थीं, कुछ नाम गिनाइए।

उत्तर: गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अत्यधिक प्रेम रखती थीं, इसलिए वे उन सभी से ईर्ष्या करती थीं, जो उनके प्रिय कृष्ण के निकट होते थे। “मुरली तक गुलहि भावति” पद में गोपियों ने मुरली से ईर्ष्या व्यक्त की है क्योंकि वह हमेशा श्रीकृष्ण के अधरों से लगी रहती है।

गोपियाँ केवल मुरली से ही नहीं, बल्कि अन्य कई चीजों और व्यक्तियों से भी ईर्ष्या रखती थीं, जैसे—

(i) यमुना नदी – क्योंकि श्रीकृष्ण उसमें स्नान करते थे और उसका जल पीते थे।

(ii) ग्वाल-बाल (सखा) – जो दिनभर श्रीकृष्ण के साथ खेलते थे और उनके साथ भोजन करते थे।

(iii) मोरपंख – जो श्रीकृष्ण के मुकुट की शोभा बढ़ाता था और सदा उनके सिर पर सुशोभित रहता था।

(iv) बछड़े और गाएँ – जिन्हें श्रीकृष्ण स्वयं स्नेहपूर्वक चराते और सहलाते थे।

(v) राधा – जो श्रीकृष्ण के सबसे निकट मानी जाती थीं और उनके साथ अधिक समय बिताती थीं।

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