NCERT Class 11 Biology Chapter 8 कोशिका: जीवन की इकाई

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NCERT Class 11 Biology Chapter 8 कोशिका: जीवन की इकाई

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Chapter: 8

अभ्यास

1. इनमें कौन सा सही नहीं है?

(अ) कोशिका की खोज रार्बट ब्राउन ने की थी।

(ब) श्लाइडेन व श्वान ने कोशिका सिद्धांत प्रतिपादित किया था।

(स) ) वर्चोव के अनुसार कोशिका पूर्वस्थित कोशिका से बनती है।

(द) एक कोशिकीय जीव अपने जीवन के कार्य एक कोशिका के भीतर करते हैं।

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उत्तर: (अ) कोशिका की खोज रार्बट ब्राउन ने की थी।

2. नई कोशिका का निर्माण होता है।

(अ) जीवाणु किण्वन से।

(ब) पुरानी कोशिकाओं के पुनरुत्पादन से।

(स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से।

(द) अजैविक पदार्थों से।

उत्तर: (स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से।

3. निम्न के जोड़ा बनाइए :

(अ) क्रिस्टी(i) पीठिका में चपटे कलामय थैली
(ब) कुडिका(ii) सूत्रकणिका में अंतर्वलन
(स) थाइलेकोइड(iii) गॉल्जी उपकरण में बिंब आकार को थैलो

उत्तर: 

(अ) क्रिस्टी(ii) सूत्रकणिका में अंतर्वलन
(ब) कुडिका(iii) गॉल्जी उपकरण में बिंब आकार को थैलो
(स) थाइलेकोइडi(i) पीठिका में चपटे कलामय थैल

4. इनमें से कौन सा सही है:

(अ) सभी जीव कोशिकाओं में केंद्रक मिलता है।

(ब) दोनों जंतु व पादप कोशिकाओं में स्पष्ट कोशिका भित्ति होती है।

(स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।

(द) कोशिका का निर्माण अजैविक पदार्थों से नए सिरे से होता है।

उत्तर: (स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।

5. प्रोकैरियोटिक कोशिका में क्या मोसोमाम होता है? इसके कार्य का वर्णन करें।

उत्तर: मीसोसोम एक जटिल झिल्लीदार संरचना है जो प्लाज्मा झिल्ली के अंतर्वलन द्वारा प्रोकैरियोटिक कोशिका में बनती है। इसके कार्य इस प्रकार हैं:

(i) ये विस्तार कोशिका भित्ति के संश्लेषण, डीएनए की प्रतिकृति में मदद करते हैं। वे संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों के समान वितरण में भी मदद करते हैं।

(ii) यह विभिन्न एंजाइमेटिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए प्लाज्मा झिल्ली के सतह क्षेत्र को भी बढ़ाता है।

(iii) यह स्राव प्रक्रियाओं के साथ-साथ जीवाणु श्वसन में भी मदद करता है।

6. कैसे उदासीन विलेय जीवद्रव्यझिल्ली से होकर गति करते हैं? क्या ध्रुवीय अणु उसी प्रकार से इससे होकर गति करते हैं? यदि नहीं तो इनका जीवद्रव्यझिल्ली से होकर परिवहन कैसे होता है?

उत्तर: जीवद्रव्य झिल्ली का महत्त्वपूर्ण कार्य “इससे होकर अणुओं का परिवहन है।” यह झिल्ली वर्णनात्मक पारगम्य (selectively permeable) होती है। उदासीन विलेय अणु सामान्य या निष्क्रिय परिवहन द्वारा उच्च सान्द्रता से कम सांद्रता की ओर साधारण विसरण द्वारा झिल्ली से आते-जाते रहते हैं। इसमें ऊर्जा व्यय नहीं होती। ध्रुवीय अणु सामान्य विकिरण द्वारा इससे होकर आ-जा नहीं सकते, इन्हें परिवहन हेतु वाहक प्रोटीन्स की आवश्यकता होती है। इन्हें आयने कैरियर (ion carriers) भी कहते हैं। इनका परिवहन सामान्यतया सक्रिय विसरण द्वारा होता है। इसमें ऊर्जा व्यय होती है। ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है। ऊर्जा व्यय करके आयन या अणुओं का परिवहन निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की ओर भी हो जाता है।

7. दो कोशिकीय अंगकों का नाम बताइए, जो द्विकला से घिरे होते हैं। इन दो अंगकों को क्या विशेषताएं है? इनका कार्य व रेखांकित चित्र बनाइए?

उत्तर:  सूत्रकणिका (माइटोकोंड्रिया) और हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट) दो अंगक हैं जो दोहरी झिल्ली से बंधे होते हैं।

सूत्रकणिका की विशेषताएँ:

(i) सूत्रकणिका दोहरी झिल्ली से बंधी संरचनाएँ हैं। माइटोकॉन्ड्रियन की झिल्ली आंतरिक और बाहरी झिल्लियों में विभाजित होती है, जो स्पष्ट रूप से दो जलीय डिब्बों में विभाजित होती हैं: बाहरी और आंतरिक डिब्बे ।

(ii) बाहरी झिल्ली बहुत छिद्रपूर्ण होती है (जिसमें अंगक होते हैं), जबकि आंतरिक झिल्ली गहराई से मुड़ी हुई होती है।

(iii) इन तहों को क्रिस्टे के रूप में जाना जाता है। क्रिस्टे कोशिका के अंदर सतह क्षेत्र को बढ़ाते हैं। वे ATP-उत्पादक रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए साइट हैं। माइटोकॉन्ड्रियन की झिल्ली में विशिष्ट एंजाइम होते हैं जो विशिष्ट माइटोकॉन्ड्रियल कार्यों के लिए होते हैं। इसलिए, सूत्रकणिका एरोबिक श्वसन के लिए साइट हैं।

(iv) उनके पास अपना स्वयं का DNA और राइबोसोम होता है। इस प्रकार, वे अपने स्वयं के प्रोटीन बनाने में सक्षम हैं। यही कारण है कि उन्हें अर्ध-स्वायत्त अंगक माना जाता है।

सूत्रकणिका की कार्य:

(i) वे कोशिकीय श्वसन के स्थल हैं।

(ii) वे जीवित कोशिकाओं की सभी महत्वपूर्ण गतिविधियों के लिए ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं।

(iii) उनके पास अपना DNA और राइबोसोम हैं। इसलिए, उन्हें अर्ध-स्वायत्त अंगक माना जाता है।

(iv) उनमें कई एंजाइम होते हैं, जो फैटी एसिड, स्टेरॉयड और अमीनो एसिड जैसे विभिन्न रसायनों के संश्लेषण के लिए मध्यवर्ती रूप से आवश्यक होते हैं।

हरित लवक की विशेषताएँ:

(i) हरित लवक दोहरी झिल्ली से बंधी संरचनाएँ हैं।

(ii) वे बाहरी और आंतरिक झिल्लियों में विभाजित हैं, जिन्हें आगे दो अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।

(iii) ग्रेना चपटी डिस्क के ढेर होते हैं जिनमें हरित लवकर अणु होते हैं। चपटी झिल्लीदार थैलियों को थायलाकोइड्स कहा जाता है। स्ट्रोमा लैमेली के रूप में जानी जाने वाली झिल्लीदार नलिकाएँ पड़ोसी ग्रेना के थायलाकोइड्स को जोड़ती हैं।

(iv) स्ट्रोमा एक समरूप मिश्रण है जिसमें ग्रेना अंतर्निहित होते हैं। इसमें कई एंजाइम होते हैं जिनका उपयोग कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन के संश्लेषण के लिए किया जाता है। इसमें अपना स्वयं का डीएनए और राइबोसोम भी होता है।

हरित लवक के कार्यः

(i) वे सौर ऊर्जा को एकत्रित करते हैं और इसका उपयोग पौधों के लिए भोजन बनाने में करते हैं। इसलिए, वे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।

(ii) इनमें कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन के संश्लेषण के लिए आवश्यक एंजाइम होते हैं।

8. प्रॉकैरियोटिक कोशिका की क्या विशेषताएं हैं?

उत्तर: प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ, जिन्हें असीम केन्द्रकीय कोशिकाएँ भी कहा जाता है, वे कोशिकाएँ होती हैं जिनमें स्पष्ट केन्द्रक (केन्द्रक-झिल्ली सहित) नहीं पाया जाता। इन कोशिकाओं में केन्द्रक में उपस्थित प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्ल (DNA और RNA) केन्द्रक-झिल्ली के अभाव में सीधे कोशिकाद्रव्य के संपर्क में रहते हैं। इनमें केवल एक ही वृत्ताकार क्रोमोसोम होता है, जो हिस्टोन प्रोटीन से रहित होता है। इन कोशिकाओं में 70S प्रकार के राइबोसोम पाए जाते हैं। साथ ही, इनमें केन्द्रिक, गॉल्जीकाय, माइटोकॉन्ड्रिया, तथा अन्तःप्रद्रव्य जालिका जैसे झिल्ली-बद्ध कोशिकांग अनुपस्थित रहते हैं। सूत्री विभाजन के लिए आवश्यक संरचनाओं की भी इनमें कमी होती है। अपनी सरल संरचना के कारण इन्हें आदिम कोशिकाएँ माना जाता है। जीवाणुओं और नीली-हरी शैवालों की कोशिकाएँ प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के प्रमुख उदाहरण हैं।

9. बहुकोशिकीय जीवों में श्रम विभाजन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: बहुकोशिकीय जीव लाखों और खरबों कोशिकाओं से बने होते हैं। ये सभी कोशिकाएं विशिष्ट कार्य करती हैं। समान कार्य करने के लिए विशिष्ट सभी कोशिकाएं शरीर में ऊतकों के रूप में एक साथ समूहीकृत होती हैं। इसलिए, शरीर में एक निश्चित स्थान पर कोशिकाओं के समूह द्वारा एक विशेष कार्य किया जाता है। इसी तरह, एक जीव में कोशिकाओं के विभिन्न समूहों द्वारा अलग-अलग कार्य किए जाते हैं। इसे बहुकोशिकीय जीवों में श्रम विभाजन के रूप में जाना जाता है।

10. कोशिका जीवन की मूल इकाई है, इसे संक्षिप्त में वर्णन करें।

उत्तर: एककोशिकीय जीवों में सभी आवश्यक जैविक क्रियाएँ जैसे कि श्वसन, गति, पोषण, उत्सर्जन और जनन एक ही कोशिका द्वारा सम्पन्न होती हैं। इनमें विशिष्ट अंगकों का अभाव होता है और जनन सामान्यतः कोशिका विभाजन द्वारा होता है। कुछ में लैंगिक जनन भी पाया जाता है। इसके विपरीत, बहुकोशिकीय जीवों में विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने के लिए कोशिकाएँ आपस में कार्य बाँट लेती हैं। इसे ही श्रम विभाजन कहते हैं।

सरल बहुकोशिकीय जीवों जैसे स्पंज में अलग-अलग प्रकार की कोशिकाएँ विशेष कार्य करती हैं, परंतु आवश्यकता पड़ने पर वे अन्य कार्य भी कर सकती हैं, इसलिए इनका श्रम विभाजन अस्थायी होता है। कोएलेंट्रेटा संघ के जीवों में कोशिकाएँ विशिष्ट कार्यों के लिए स्थायी रूप से विभेदित हो जाती हैं और अन्य कार्य नहीं करतीं। इस स्थायी श्रम विभाजन को ही वास्तविक श्रम विभाजन माना जाता है।

श्रम विभाजन की संकल्पना सर्वप्रथम वैज्ञानिक हेनरी मिलने एडवर्ड ने प्रस्तुत की थी। बहुकोशिकीय जीवों में समान कार्य करने वाली कोशिकाएँ मिलकर ऊतक और ऊतक तंत्र बनाती हैं। इन कोशिकाओं में कार्य के अनुरूप संरचनात्मक और कार्यात्मक विभेदन (structural and physiological differentiation) पाया जाता है।

11. केंद्रक छिद्र क्या है? इनके कार्य को बताइए।

उत्तर: केन्द्रक छिद्र: केन्द्रक के चारों ओर लगभग 10 से 50 nm मोटी दोहरी झिल्ली होती है, जिसे केन्द्रक-कला (nuclear membrane) कहते हैं। इन दो झिल्लियों के बीच के स्थान को परिकेन्द्रकीय स्थान (perinuclear space) कहा जाता है, जिसकी चौड़ाई लगभग 100-300 Å होती है।

केन्द्रक: कला में अनेक सूक्ष्म छिद्र उपस्थित होते हैं, जिन्हें केन्द्रक छिद्र (nuclear pores) कहते हैं। इन छिद्रों का व्यास लगभग 400-1000 Å के बीच होता है। यह झिल्ली कोशिका द्रव्य में स्थित अन्तःप्रद्रयी जालिका (endoplasmic reticulum) से जुड़ी होती है।

कार्य: केन्द्रक में बनने वाले विभिन्न R.N.A. अणु, विशेषकर RNA, इन केन्द्रक छिद्रों के माध्यम से केन्द्रक से बाहर कोशिका द्रव्य में पहुँचते हैं। वहाँ वे प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाते हैं।

12. लयनकाय व रसधानी दोनों अंतःझिल्लीमय संरचना है फिर भी कार्य की दृष्टि से ये अलग होते हैं। इस पर टिप्पणी लिखें?

उत्तर: लयनकाय (Lysosome):लयनकाय एक एकक कला से युक्त थैलीनुमा कोशिकांग है, जो गॉल्जीकाय से उत्पन्न होता है। इसमें हाइड्रोलिक एन्जाइम्स (जैसे- लाइपेज, प्रोटीज आदि) होते हैं, जो अम्लीय pH पर सक्रिय रहते हैं। ये एन्जाइम्स कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा तथा न्यूक्लिक अम्ल जैसे जैविक अणुओं का अपघटन करते हैं। इन्हें कोशिका का “पाचन केन्द्र” भी कहा जाता है।

रसधानी (Vacuole): रसधानी कोशिका द्रव्य में उपस्थित एक थैलीनुमा संरचना होती है, जो एकक कला, जिसे टोनोप्लास्ट कहते हैं, से घिरी रहती है। इसमें जल, अपशिष्ट पदार्थ तथा कोशिका रस पाया जाता है। पौधों की कोशिकाओं में रसधानी बहुत बड़ी होती है और यह कोशिका के कुल आयतन का लगभग 90% भाग घेर सकती है।

पौधों में टोनोप्लास्ट आयन और अन्य घुलनशील पदार्थों को सान्द्रता विभव के विरुद्ध रसधानी में प्रवेश दिलाता है, जिससे रसधानी की सान्द्रता कोशिका द्रव्य से अधिक बनी रहती है।

प्रोटिस्टा समूह के जीवों जैसे अमीबा में संकुचनशील रसधानी पाई जाती है, जो उत्सर्जन और जल संतुलन का कार्य करती है। इसके अलावा, खाद्य रसधानियाँ (food vacuoles) भी पाई जाती हैं, जो निगले गए खाद्य पदार्थों को पचाने में सहायता करती हैं।

13. रेखांकित चित्र की सहायता से निम्न की संरचना का वर्णन करें।

(i) केंद्रक।

उत्तर: सामान्यतः कोशिका का सबसे बड़ा, स्पष्ट तथा महत्त्वपूर्ण कोशिकांग केन्द्रक है। सर्वप्रथम इसकी खोज रॉबर्ट ब्राउन (1831) ने की। यह एक सघन, गोल अथवा अण्डाकार संरचना है। एक कोशिका में इनकी संख्या सामान्यतः एक (एककेन्द्रकीय) होती है। कभी-कभी इनकी संख्या दो (द्विकेन्द्रकी) अथवा अनेक (बहुकेन्द्रकी) होती है। पादप कोशिका के परिपक्वन के साथ-साथ रिक्तिका के केन्द्र में स्थित होने से यह कोशिका दृति में एक ओर आ जाता है।

संरचना (Structure):

केन्द्रक के चारों ओर दोहरी केन्द्रक कला मिलती है। यह कला एकक कला के समान ही लिपोप्रोटीन की बनी होती है। दोनों कलाओं के मध्य परिकेन्द्रीय स्थान मिलता है। केन्द्रक कला सतत नहीं होती है। इसमें बीच-बीच में छिद्र मिलते हैं। इन्हें केन्द्रकीय छिद्र कहते हैं। इनका व्यास लगभग 400 होता है। ये केन्द्रक द्रव्य तथा कोशिकाद्रव्य में सम्बन्ध बनाए रखते हैं। बाह्य केन्द्रक कला का सम्बन्ध अन्तर्द्रव्यी जालिका से होता है। बाहरी केन्द्रक कला पर राइबोसोम चिपके रहते हैं। केन्द्रक कला के अन्दर प्रोटीनयुक्त सघन तरल होता है, जिसे केन्द्रक द्रव्यू कहते हैं। केन्द्रक द्रव्य में प्रोटीन तथा फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है। इसमें न्यूक्लियोप्रोटीन मिलते हैं। केन्द्रक द्रव्य में केन्द्रिक तथा क्रोमेटिन सूत्र मिलते हैं। केन्द्रिक सामान्यतः एक, परन्तु कभी-कभी अधिक भी हो सकते हैं। केन्द्रिक में r-R.N.A. संश्लेषण होता है, जो राइबोसोम के लिए आवश्यक है। केन्द्रिक कोशिका विभाजन के समय लुप्त हो जाते हैं। 

(ii) तारककाय। 

उत्तर: तारककाय के रूप में जाने जाने वाले अंगक में आमतौर पर दो सेंट्रीओल होते हैं, जो बेलनाकार संरचनाएं होती हैं। अनाकार पेरीसेंट्रीओलर सामग्री उन्हें ढक लेती है। तारककाय के भीतर, एक दूसरे के लंबवत स्थित होते हैं। इनमें नौ समान दूरी वाले ट्यूबुलिन प्रोटीन परिधीय तंतु होते हैं। प्रत्येक परिधीय तंतु तीन से बना होता है। आस-पास के त्रिक भी जुड़े हुए हैं। प्रोटीन से बनी रेडियल स्पोक्स तारककेंद्र हब को परिधीय त्रिक नलिकाओं से जोड़ती हैं।

14. गुणसूत्रबिंदु क्या है? कैसे गुणसूत्रबिंदु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र का वर्गीकरण किस रूप में होता है। अपने उत्तर को देने हेतु विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों पर गुणसूत्रबिंदु की स्थिति को दर्शाने हेतु चित्र बनाइए।

उत्तर: गुणसूत्र बिंदु- प्रत्येक गुणसूत्र दो अर्द्ध गुणसूत्र या क्रोमेटिड्स (chromatids) से बना होता है। क्रोमेटिड्स पर क्रोमोमेरेस (chromomeres) स्थित होते हैं। गुणसूत्र के दोनों क्रोमेटिड्स गुणसूत्र बिन्दु या सेन्ट्रोमीयर (centromere) द्वारा परस्पर जुड़े होते हैं। 

गुणसूत्र बिंदु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(i) अन्तःकेन्द्र (Telocentric) : इसमें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के एक ओर स्थित होता है।

(ii) अग्र बिन्दु (Acrocentric) : इसमें गुणसूत्र का एक भाग बहुत छोटा तथा दूसरा भाग बहुत बड़ा होता 

है। इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक सिरे के पास स्थित होता है।

(iii) उपमध्य केन्द्रीय (Submetacentric) : इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक किनारे के पास होता है। इसे गुणसूत्र की दोनों भुजाएं असमान होती हैं।

(iv) मध्य केन्द्रीय (Metacentric) : इसमें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के बीचों-बीच स्थित होता है। इससे गुणसूत्र की दोनों भुजाएं बराबर लंबाई की होती हैं।

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