Class 11 Hindi Chapter 18 हे भूख मत मचल | हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

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SCERT Class 11 Hindi Chapter 18 हे भूख मत मचल | हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

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(क) हे भूख मत मचल (ख) हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

Chapter – 18

काब्य खंड

(1) हे भूख ! ब्यमत मचल

प्यास, तड़प मत

हे नींद ! मत सता

क्रोध, मचा मत उथल-पुथल 

हे मोह ! पाश अपने ढील

लोभ, मत ललचा

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हे मद! मत कर मदहोश

ईर्ष्या, जला मत

ओ चराचर ! मत चुक अवसर

आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का।

प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ वचन से लीया गया हैं। इसके कवयित्री हैं, अक्क महादेवी। | इसमें कवयित्री ने इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दिया हैं। परंतु संदेश उपदेशात्मक न होकर प्रेम-भरा मुनहार हैं।

कवयित्री कहती हैं, वे चन्नमल्लिकार्जुन का संदेश लेकर आई हैं। वे भूख को मचलने से रोकती हैं, वह व्यास को न तड़पाने की बात कहती है। वह कहती हैं, है नींद तुम भी मत सता। वह कहती है, मनुष्यों ने अपने चारों ओर जो माया-मोह का बंधन है, उसे ढोला कर देने की बात कहती है। वे कहती है, लोभ तू मत ललचा, हे नशा तुम मदहोश मत कर । ईर्ष्या तू मत जला। कवयित्री संपूर्ण जड़ और चेतन जगत को संबोधित करती हुई कहती हैं, कि उन्हें कोई भी अवसर नहीं चुकना चाहिए। यहीं चन्नमल्लिकार्जुन (शिव) का संदेश हैं, जो कवियत्री लोगों तक पहुँचाना चाहिए।

( 2 ) हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

मँगवाओ मुझसे भीख

और कुछ ऐसा करो

कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह 

कोइ हाथ बढ़ाए कुछ देने को 

तो वह गिर जाए नीचे

झोली फैलाऊँ और न मिले भीख

और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने

तो कोई कुत्ता आ जाए

और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

संदर्भ: कवयित्री जो चन्नमल्लिकार्जुन की भक्त है, वे हर भौतिक वस्तु से अपनी झोली खाली रखना चाहती हैं। वे ऐसी निस्पृह स्थिति की कामना करती हैं, जिससे उनका स्व या अंहकार पूरी तरह से नष्ट हो जाएँ।

कवयित्री ने यहाँ अपने अराध्य देव को जूही की फूल से संबोधित किया है। वह कहती है, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर मुझसे इसप्रकार भीख मँगवाये जिससे में अपना अस्तित्व, अपना घर द्वार सबकुछ भूल जाउ। भीख के लिए जब झोली फैलाऊँ तो भीख भी न मिले। अगर कोई हाथ भी बढ़ाये देने के लिए तो वह नीचे गिर जाए। और अगर मैं नीचे झुककर उस वस्तु को उठाने की कोशिश करूँ भी तो कोई कुत्ता आ जाएँ और उसे झपटकर मुझसे छीन ले जाये। किसी भी तरह वस्तु मुझे न मिले। तभी उनके अंदर का अंहकार पूरी तरह से नष्ट हो जायेगी।

प्रश्नोत्तर

1. लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रिया बाधक होती हैं- इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए। 

उत्तर: लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं। ये ईश्वर भक्ति में बाधक होती है। हमारे शरीर की निम्नलिखित इंद्रियों को क्रोध, लोभ, मद, मोह, अहंकार इन्हें अगर नियंत्रण नहीं किया गया तो ये ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में बाधक बनती हैं। ये इंद्रियाँ भक्ति मार्ग से विचलित करती रहती हैं। जिससे मनुष्य माया मोह सांसरिक आवरण में पड़कर ईश्वर भक्ति को भूल जाता है।

2. ओ चराचर । मत चूक अवसर इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर: इस पंक्ति में कवियत्री जड़ और चेतन जगत को संबोधित करती हुई कहती कि ईश्वर प्राप्ति के लिए मिले किसी अवसर को गवाना नहीं चाहिए।

3. ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।

उत्तर: यहाँ ईश्वर के लिए ‘जूही के फूल’ दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। ‘जूही के फूल’ बहुत ही कोमल होता है, और इसे प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। दूसरी तरफ ईश्वर भी दया और करूणा के सागर माने जाते हैं। अत:― वे भी बहुत कोमल होते हैं।

4. अपना घर से क्या तात्पर्य हैं? इसे भूलने की बात क्यों कही गई हैं? 

उत्तर: अपन घर अर्थात अपना अस्तित्व स्व या अहंकार की भावना।

 कवियत्री अपने आस्तित्व स्व या अहंकार को भूलने की बात करती है, क्योंकि जब ये भावनाएँ शरीर में रहेंगे तब तक मनुष्य को ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी।

5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?

उत्तर: कवयित्री जो चन्नमल्लिकार्जुन की भक्त है, वे हर भौतिक वस्तु से अपनी झोली खाली रखना चाहती हैं। वे ऐसी निस्पृह स्थिति की कामना करती हैं, जिससे उनका स्व या अंहकार पूरी तरह से नष्ट हो जाएँ।

कवयित्री ने यहाँ अपने अराध्य देव को जूही की फूल से संबोधित किया है। वह कहती है, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर मुझसे इसप्रकार भीख मँगवाये जिससे में अपना अस्तित्व, अपना घर द्वार सबकुछ भूल जाउ। भीख के लिए जब झोली फैलाऊँ तो भीख भी न मिले। अगर कोई हाथ भी बढ़ाये देने के लिए तो वह नीचे गिर जाए। और अगर मैं नीचे झुककर उस वस्तु को उठाने की कोशिश करूँ भी तो कोई कुत्ता आ जाएँ और उसे झपटकर मुझसे छीन ले जाये। किसी भी तरह वस्तु मुझे न मिले। तभी उनके अंदर का अंहकार पूरी तरह से नष्ट हो जायेगी।

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