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SCERT Class 11 Hindi Chapter 17 गज़ल
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गज़ल
काब्य खंड
(1) कहाँ तो तया चिरागों हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ के ‘गजल’ से ली गई हैं। इसके कवि हैं, दुष्यंत कुमार पस्तुत पंक्तियों के माध्यम से शायर ने स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद की राजनीति और समाज व्यवस्था की ओर संकेत किया है। यहाँ शायर ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शासन व्यवस्था की ओर संकेत किया हैं। (स्वतंत्रता के पूर्व जो योजनाएँ बानयी गई थी। स्वतंत्रता के बाद उसे पूरी नहीं की गई। स्वतंत्रता पूर्व यह तय किया गया था कि चिराग अर्थात रोशनी खुशहाली हर घर में पहुँचाया जायेगा परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पूरे शहर के लिए एक चिराग उपलब्ध नहीं हो पाया।
(2) यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में भी कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् शासन व्यवस्था की ओर ही संकेत किया है। उन्होंने कहा है कि यहाँ तो पेड़ के छाये में भी धूप हो | लगती है। पेड़ जो छाया-प्रदान कर सकते हैं, उनसे आज धूप ही मिल रहा हैं। अर्थात् जो शासन व्यवस्था के संचालक थे उनसे भी कोई उम्मीद कोई आशा नहीं दिख रही थी। अतः कवि ने उम्रभर के लिए यहाँ से ले जाने की बात कहीं हैं।
(3) न तो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिव हैं इस सफर के लिए।
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से शायर ने समाज व्यवस्था पर ही व्यंग्य किया है। कवि कहते हैं कि अगर हमारे पहनने के लिए कमीज नहीं हैं, तो कोई बात नहीं हम अपने पाँव से ही पेट को ढँक लेगें। अर्थात् अगर हमारे पास अत्याधिक वस्तु न भी हो हम सीमित वस्तु में संतोष कर लेगें। परंतु हमें यह भी देखना चाहिए कि हमारे साथ चलने वाले लोग हमारे लिए कितने फायदेमंद हैं।
(4) खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही, कोई इसीन नजारा तो है गज़र के लिए।
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से शायर ने समाज व्यवस्था पर ही व्यंग्य किया हैं। शायर कहते हैं कि हमें अगर खुदा नहीं मिल रहा हैं तो न सही। इसका हमें अफसोस भी नहीं। उसकी जगह आदमी का ख्वाब तो हैं हमारे लिए तो यही इतमिनानकी बात है, हमारी आँखों के लिए एक हसीन, सुंदर नजारा (दृश्य) तो हैं।
(5) वे मतुमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए।
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने आवाज में असर लाने की बात की और संकेत दिया है।
शायर उन लोगों की ओर संकेत कर रहे हैं, जो इतमिनान से हर शोषण को सहन कर लेते हैं। वे यह सोचकर आवाज नहीं उठाते की शासन व्यवस्था बदल नहीं सकती है। जिस प्रकार पत्थर पिघल नहीं सकता। उसी प्रकार शासकों के दिल भी पत्थरों के हो चुके हैं, जो पिपल नहीं सकते हैं। लेकिन कवि कहते हैं कि वह अपनी आवाज में असर लाने के लिए बैचेन हैं।
(6) तेरा निज़ाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है एस बहर के लिए।
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि शासकों की तानाशाही प्रवृत्ति की ओर संकेत किया हैं।
कवि कहते हैं, यह तो तुम्हारा ही शासन हैं, जिसमें तुम्हारे विरुद्ध उठनेवाले आवाजों को दबा सकते हैं। तुम्हारा राज हैं, जिसमें शायर के जुबान को तुम सिल सकते हैं, और एहतियात बहुत ही जरूरी है, इस राज्य के लिए।
(7) जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए,
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में शायर ने गुलमोहर का उल्लेख किया हैं। गुलमोहर को यहाँ प्रेम के प्रतीक के रूप में लिया गया हैं। कवि कामना करते हैं कि अगर जिएँ तो अपने बगीचे अपने लोगों के प्रेम के तले और अगर भरे तो दूसरे की खुशियों के लिए।
प्रश्नोत्तर
1. आखिरी शेर में गुलमोहर की चर्चा हुई। क्या उसका आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से हैं या उसमें कोई सांकेतिक अर्थ निहित हैं? समझाकर लिखें।
उत्तर: गुलमोहर एक फूलदार वृक्ष हैं। इस शेर में गुलमोहर को एक सांकेतिक अर्थ में लिया गया है। जिसका सांकेतिक अर्थ हैं, प्रेम शायर कहते हैं, अगर हम जिएँ तो अपने लोगों के बीच उनकी प्रेम के तले। और अगर मरे तो दूसरे लोगों को खुशियों के लिए, दूसरों की भलाई दूसरों के प्रेम के लिए।
2. पहले शेर में चिराग शब्द का एक बार बहुवचन में आया है, और दूसरी बार एकवनच में अर्थ एवं काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से इसका क्या महत्व हैं?
उत्तर: जहाँ शायर ने हर घर में चिराग के उपलब्ध कराने की बात कहीं है, अत: वहाँ चिराग को बहुवचन के रूप में प्रयोग किया गया है। अर्थ की दृष्टि यह महत्वपूर्ण कहा जा सकता हैं, क्योंकि इससे शायर के उद्देश्य को प्रकट करने में सहायता करती हैं। काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से अगर देखा जाएँ तो इससे शेर और आकर्षक लगेन लगा हैं।
3. गज़ल के तीसरे शेर को गौर से पढ़ें। यहाँ दुष्यंत का इशारा किस तरह के लोगों की ओर हैं?
उत्तर: यहा दुष्यंत कुमार उन शासकों की ओर इशारा कर रहे हैं, जो समाज में शोषण ही करते हैं। दूसरी ओर शायर उन लोगों की तरफ भी इशारा कर रहे हैं, जो थोड़े में ही संतोष कर लेते हैं। जो कमीज के न होने पर अफसोस नहीं करते बल्कि पाव से ही कमीज़ का काम करते हैं। लेकिन कवि इस बात पर बल देते हैं, उस सफर में हमसफर कितने फायदेमंद हैं।
4. आशय स्पष्ट करें
“तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि शासको की तानाशाही प्रवृत्ति की ओर संकेत किया हैं। कवि कहते हैं, यह तो तुम्हारा ही शासन हैं, जिसमें तुम्हारे विरूद्ध उठनेवाले आवाजों को दबा सकते हैं। तुम्हारा राज हैं, जिसमें शायर के जुबान को तुम सिल सकते हैं, और एहतियात बहुत ही जरूरी है, इस राज्य के लिए।