Class 11 Hindi Chapter 13 पथिक

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पथिक

Chapter – 13

काब्य खंड

( 1 ) प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला 

रवि के सम्मुख थिरक रही है नथ में वारिद-माला। 

नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।

 घन पर बैठ, बीज में बिचरुँ यही चाहता मन है।

प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकालित ‘पथिक’ नामक कविता से ली गई हैं। इसकी रचना रामनरेश त्रिपाठी ने की हैं।

संदर्भ: यहाँ कवि प्रकृति पर मुग्ध होकर उसके सौंदर्य का वर्णन कर रहे हैं। 

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व्याख्या: कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा हैं, कि प्रकृति हरक्षण नूतन रंग-बिरंगा तथा निराला वेश बनाती हैं। आसमान से गिरती हुई वर्षा को लड़ियाँ) को देखकर ऐसा प्रतीत होता हैं, कि वह रवि के सम्मुख थिरक रही हैं। नीचे नीला समुद्र बह रहा है, तथा ऊपर मनोहर नीला गगन हैं। कवि अपनी इच्छाओं को व्यक्त करते हुए कहा हैं, वह घन (बादलों) पर बैठकर आसमान में विचरण करना चाहते। हैं।

(2) रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है। 

हरदम हय हौसला हृदय मे प्रिये ! भरा रहता है। 

इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के 

कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरु जी भर के।

संदर्भ: कवि प्रकृति के इस अद्भुत सौन्दर्य के प्रति आर्कषित हैं। यहाँ प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि

व्याख्या: सागर गरजता है तथा मलय पर्वत से आनेवाली सुगंधित हवा बह रही है। कवि कहता है कि यह देखकर उनके हृदय का हौसला बना रहता है। इस विशाल, विस्तृत महिमामय सागर को देखकर कवि अपने मन की इच्छा व्यक्त करते हुए कहता है सागर के लहरों पर बैठकर कोने-कोने में जी भर के घुमूँ।

(3) निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा ! 

कमला के कंचन-मंदिर का मानो कार कंगुरा।

लाने को निज पुण्य-भूमिपर लक्ष्मी की असवारी। 

रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-लड़क अति प्यारी॥ 

सदर्भ: कवि इस दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं। | व्याख्या: कवि कहते हैं कि सागर के तल पर सूर्य का अधूरा बिम्ब प्रतिफलित हो रहा है। कवि सूर्य के अधूरा विम्ब की तुलना गुंबद से करते हुए कहते हैं, ऐसा लग रहा है कि यह कमला के काँच के मंदिर का सुंदर गुबंद हैं। कवि और कहते है कि उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि लक्ष्मी की सवारी को अपनी पुण्य-भूमि पर लाने के लिए सागर ने बहुत ही प्यारी स्वर्ण सड़क का निर्माण कर दिया हैं।

(4) निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।

लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है। 

कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी? 

अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी॥

संदर्भ: कवि रामनरेश त्रिपाठी ने प्रस्तुत पंक्तियों में प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया हैं।

व्याख्या: कवि कहता है कि सागर निर्भय होकर दृढ़ तथा गंभीरनासे गरज रहा है। सागर के लहरों पर जब दूसरे लहरों का आगमन होता है, तो बहुत ही सुन्दर लगता हैं। कवि कहते हैं, क्या कोई प्राणी इससे बढ़कर कोई सुख पा सकता है। इस प्रेम भरी कल्याणी को कवि हृदय से अनुभव करने के लिए कह रहे हैं।

(5) जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है। 

अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है। 

सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है। 

तट पर खड़ा गगन-गगां के मधुर गीत गाता है।

संदर्भ: कवि इस दुनिया के दुखों से विरक्त होकर सौंदर्य से भरपूर प्रकृति की गोद में बसना चाहता हैं।

व्याख्या: कवि कहता है, जब गहरा अंधेरा अद्धरात्रि में संपूर्ण जगत को ढक लेता है।जब रात्रि अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है। जब सस्मित-वदन लेकर जगत का स्वामी मृदु गति से आगमन करता है। तब कवि का मन समुद्र तट पर खड़ा होकर आसमान तथा गंगा के मधुर गीत गाता है।

(6) उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है। 

वृक्षी विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।

पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं। 

फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं।

संदर्भ: कवि प्रकृति की सुंदरता का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या: कवि कहते हैं कि मधुर गीत सुनकर आसमान में चाँद विमुग्ध होकर हँस  देता है। वृक्ष तरह-तरह के पत्तों तथा पुष्पों द्वारा अपने तन को सजा लेता हैं। मधुर गीत को सुनकर पक्षी भी अपने आनन्द को नहीं छिपा सकते तथा मुग्ध होकर चहक उठते हैं। मधुर गीत को सुनकर फुल भी साँस लेकर सुख से आनन्द से महक उठते हैं।

( 7 ) वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं। 

मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं। 

पढ़ो लहर, तट, तृण, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी। 

लिखी हुई यह मधुर काहानी विश्व-विमोहनहारी।

संदर्भ: कवि प्रकृति को अपनी दुखद कहानी सुनाता हैं।

व्याख्या: कवि कहता है कि उसकी मधुर गीत सुनकर वन, उपवन, पर्वत, समतल भूमि, कुंज सभी स्थानों पर मेघ बरस पड़ता है। कवि कहते है उस समय कवि का भी आत्म-प्रलय होता है तथा आँखों से पानी झड़ने लगते हैं। कवि लहर, तट, वृक्ष, पर्वत, आकाश, किरण तथा जलद पर लिखी प्यारी मधुर कहानी को पढ़ने का आह्वान करते हैं। कवि द्वारा लिखी हुई यह कहानी विश्व विमोहनहारी हैं।

(8) कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम कहानी।

जो में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।

स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है। 

अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर हैं। 

संदर्भ: कवि सौंदर्य से भरपूर प्रकृति की गोद में बसना चाहता है। 

व्याख्या: कवि कहता है कि जो कहानी लिखी गई है, वह बहुत ही मधुर मनोहर तथा उज्जवल प्रेम कहानी है। यह मधुर प्रेम कहानी स्थिर, पवित्र, सदैव आनन्द प्रवाहित करनेवाली, सदा शान्ति देने वाली तथा सदा सुखकर हैं। कवि प्रेम के महत्व को बताते हुए कहते हैं कि प्रेम का राज्य बहुत ही सुंदर है।

प्रश्नोत्तर

1. पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?

उत्तर: पथिक का मन मेघों पर बैठकर समुचे आसमान में विचरण करना चाहता है।

2. सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिम्बों का प्रयोग हुआ है? 

उत्तर: कवि कहते हैं कि सूर्योदय को देखकर ऐसा लगता है कि पूर्ण्य धरती पर लक्ष्मी जी की सवारी को उतारने के लिए सागर ने आसमान से स्वर्ण की बहुत ही सुंदर सा रास्ता बना दिया है।

3. आशय स्पष्ट करें-

(क) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है। तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पवन, हवा को जगत का स्वामी कहाँ है। वे कहते हैं कि जगत स्वामी हवा सस्मित शरीर लेकर मृदु गति से आगमन करता है और गंगा तट पर खड़ा होकर गंगा और गगन (आसमान) के मधुर गीत गाता है।

(ख) कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम कहानी। 

जो में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपनी इच्छा को प्रकट किया है। सागर के किनारे खड़ा पथिक उसके सौंदर्य पर मुग्ध है। प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को वह मधुर मनोहर उज्जवल प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है। कवि अपनी कामना को प्रकट करते हुए कहते हैं, वह मधुर उज्जवल प्रेम कहानी के अक्षर बनकर इसके द्वारा विश्व की बानी बनना चाहते हैं।

(ग) कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गयाहै। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें।

उत्तर: कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। उदाहरणस्वरूप •एक स्थान पर सागर के निर्भय, दृढ, गंभीर भाव से गर्जन करने की बात कहीं गई हैं। ऐसा लगता है, वहाँ सागर की नहीं बल्कि मनुष्य की बात कहीं गई है। एक स्थान पर कवि ने पवन को जगत का स्वामी बताते हुए इस प्रकार वर्णन किया गया है कि लगता है किसी मनुष्य का आगमन हो रहा है। जो गंगा किनारे खड़ा होकर गीत गाता है। कवि ने अन्य एक स्थान पर पक्षियों का हँसना तथा फूलों का साँस लेना वर्णित किया है।

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