Assam Jatiya Bidyalay Class 7 Hindi Chapter 11 प्रतिशोध

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प्रतिशोध

Chapter – 11

অসম জাতীয় বিদ্যালয়

अभ्यास-माला

१. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो: (सम्पूर्ण वाक्य में)

(i) मित्रता का निर्वाह कैसे होता है?

उत्तर: मित्रता की मर्यादा का निर्वाह समानता और निरहंकारिता के सहारे होता है।

(ii) दो ब्रह्मचारी कौन-कौन हैं?

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उत्तर: दो ब्रह्मचारी द्रोण और द्रुपद है। 

(iii) गुरुदेव ने अपने शिष्यों को कौन-सा सूत्रोपदेश दिया?

उत्तर: गुरुदेव ने अपने शिष्यों को- सत्यं वद, धर्म चर का सूत्रोपदेश दिया।

(iv) अश्वत्थमा कौन था?

उत्तर: अश्वत्थामा आचार्य द्रोण का पुत्र था। 

(v) द्रोण एक गाय के लिए किसके पास गये थे?

उत्तरः द्रोण एक गाय के लिए अपने वाल सखा द्रुपद के पास गये थे।

(vi) किससे मिलने हेतु द्रोण हस्तिनापुर चले गये ?

 उत्तर: अपनी बहन कृपी से मिलने हेतु द्रोण हस्तिनापुर चले गये।

(vii) हस्तिनापुर में द्रोणाचार्य किससे मिले थे ?

उत्तर: हस्तिनापुर में द्रोणाचार्य बाल-ब्रह्मचारी पितामह भीष्म से मिले थे।

(viii) एक दिन बालक अश्वत्थामा को माँ ने दुध के नाम पर क्या पिलाकर बहलाया था?

उत्तर: बालक अश्वत्थामा को माँ ने एक दिन चावल का घोला दूध के नाम पर पिलाकर बहलाया था।

(ix) द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में शिष्यों से क्या माँग की? 

उत्तरः द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा में शिष्यों से पांचाल नरेश द्रुपद को बन्दी बनाने की माँग की ?

२. उत्तर दो : (३० से ५० शब्दों में)

(i) शिक्षा समापन समारोह के अवसर पर गुरु ने अपने शिष्यों से क्या कहा था?

उत्तरः शिक्षा समापन समारोह के अवसर पर गुरु ने अपने शिष्यों से सत्यंवद, धर्मचर वाला सूत्रोपदेश दिया। ईश्वर में आस्था रखते हुए लोक हित में संलग्न रहना ही सभ्यजन का कर्त्तव्य है। इस तरह सबके मंगलमय जीवन की कामना करते हुए गुरुदेव ने अपने वक्यव्य को विराम दिया। 

(ii) द्रुपद और द्रोण कौन थे?

उत्तर: गुरु आश्रम में दो ब्रह्मचारी एक द्रुपद और दूसरा द्रोण परम मित्र थे। इनमें द्रुपद पाँचाल राज्य का होनहार राजकुमार और द्रोण एक भिक्षाजीवी ब्राह्मण-पुत्र। एक वैभव और ऐश्वर्य का स्वामी और दूसरा विद्या का अकिंचन साधक। लक्ष्मी और सरस्वती के ऐ दो रुप थे ।

(iii) किस घटना को देखने पर द्रोणाचार्य के धैर्य का बाँध टुट गया? 

उत्तरः द्रोण पुत्र- अश्वत्थामा को पाकर प्रशन्न अवशय थे, पर नन्हे शिशु के लिए पीने योग्य दूध भी जुटा सकने में स्वयं को असमर्थ पा रहे थे। एक दिन दूध के नाम पर चावल का घोल बनाकर माँ रोते हुए नन्हें अश्वत्थामा को बहला रही थी। उस दिन द्रोण के धैर्य का बाँध टुट गया।

(iv) राजसभा में राजा द्रुपद से एक गाय की माँग करने पर द्रोण को क्या उत्तर मिला?

उत्तरः द्रोण राजसभा में पहुँचे। मित्र द्रुपद मुझे एक गाय दान में दे दो ताकि मै अपने लाड़ले को उसका दूध पिला सकूँ। द्रुपद की भौंहें तन गई, “सावधान द्रोण! क्या तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि मित्रता समान स्तर के व्यक्तियों में होती है। एक राजा की रंक के साथ कैसी मैत्री?” 

(v) बंदी द्रुपद से द्रोण ने क्या कहा?

उत्तरः बंदी द्रुपद से सिर ऊँचा उठाए गुरु द्रोण बोल परे, “द्रुपद याद है न तुम्हें, एक दिन तुमने कहा था मित्रता बराबर वालों में होती है। आज तुम्हारे पुरे राज्य पर मेरा अधिकार है। अपने राज्य का आधा भाग मैं तुम्हें दे रहा हूँ। इस आधे भाग से मेरे समान स्तर पाकर तुम मेरी मित्रता के योग्य बन सकोगे।” 

(vi) पारखी नेत्रों ने देख लिया का मतलब क्या है? वे पारखी नेत्र किनके हैं? 

उत्तर: पितामह एक महान योद्धा थे। धनुर्विद्या के पारंगत थे। उन्होंने द्रोणाचार्य के कार्य को देखकर ही पहचान गये कि यह हमारे राजकुमारों के लिए उपयुक्त गुरु हैं। क्योकि जोहरी ही हीरा को पहचान सकता है। एक धनुर्धारी हो दूसरे धनुर्धर को पहचानता है। वे पारखी नेत्र पितामह भीष्म के हैं। 

३. किसने, किससे कहा :

(i) “पांचाल नरेश अहंकारी द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे सामने लाओ, यही मेरे लिए तुम्हारी गुरु-दक्षिणा होगी।” 

उत्तर: गुरु द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर के राजकुमारों से कहा। 

(ii) “देव, हमारी गेंद उस कुँए में गिर गई। अब हम क्या करें?”

उत्तर: हस्तिनापुर के राजकुमारों ने द्रोण से कहा।

(iii) “सावधान द्रोण ! क्या तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि मित्रता समान स्तर के व्यक्तियों में ही होती है। एक राजा की रंक के साथ कैसी मैत्री?” 

उत्तर: पांचाल नरेश द्रुपद ने द्रोणाचार्य से कहा। 

४. क अंश के साथ ख अंश को मिलओ :

क अंशख अंश
द्रोणाचार्यकौरव-पांडवों के पितामह
द्रुपदद्रोणाचार्य के पुत्र
भीष्मतृतीय पाँडव
अश्वत्थामाकौरवों और पांडवों के गुरु
अर्जुनपांचाल के राजा

उत्तर: 

क अंशख अंश
द्रोणाचार्यकौरवों और पांडवों के गुरु
द्रुपदपांचाल के राजा
भीष्मकौरव-पांडवों के पितामह
अश्वत्थामाद्रोणाचार्य के पुत्र
अर्जुनतृतीय पाँडव

५. आशय स्पष्ट करो :

(i) एक वैभव और ऐश्वर्य का स्वामी और दूसरा विद्या का अकिंचन साधक। 

उत्तर: यहाँ पर दो विपरीत वस्तु को दर्शाया गया है। एक वैभव और ऐश्वर्य का पुजारी है, और दूसरा विद्या का निर्धन पुजारी। ऐ दोनो विपरीत होते हुए भी एक प्रेम के सूत्र में बंधे थे। लक्ष्मी और सरस्वती भिन्न होते हुए भी जैसे एक हैं। ठीक उसी प्रकार इन दोनों में मित्रता थी।

(ii) ईश्वर में आस्था रखते हुए लोक हित में संलग्न रहना ही सभ्यजन का कर्तव्य है।

उत्तर: यहाँ पर गुरु अपने शिष्य को सदोपदेश दे रहे हैं। जब शिष्य विद्या अर्जन करके अपने घर के लिए विदा माँगता है, तब आश्रम के वातावरण में इतने दिनों तक रहने के वाद, एक पारिवारीक जीवन आरम्भ करने के लिए आचार्य बता रहे है। ईश्वर में आस्था रखना। कोई भी कार्य करना तो ध्यान रहे लोक हित में हो। यही सभ्यजन का कर्त्तव्य होना चाहिए। क्योकि कहा गया है- परोपकाराय पूर्णाय पापाय परपिर्णम। 

६- टिप्पणी लिखो : 

पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य, द्रुपद

उत्तरः पितामह भीष्म : सान्तनु और गंगा के पुत्र देवव्रत थे। उन्होंने अपने पिता के लिए भीषण प्रतिज्ञा की, जिससे उनका नाम भीष्म पड़ा। उनके शिक्षा गुरु भगवान परशुराम थे। वे बाल ब्रह्मचारी थे। वे कौरव और पांडव के पितामह थे। वे महान योद्धा भी थे। उन्हें परास्त करना नामुमकीन था। पिता ने उन्हें ईच्छा-मृत्यु का बरदान दिया था। काशी नरेश की पुत्री ‘अम्बा’ को हरण कर लाये थे। परन्तु उससे विवाह नहीं कर सकते थे। क्योंकि अपने प्रतिज्ञा से बंधे हुए थे। अम्बा के कारण अपने गुरु से भी युद्ध किए थे। वही अंबा दूसरे जन्म में शिखण्डी नाम से जन्म ग्रहण किया । पर भीष्म उसे औरत समझते थे। उनका प्रण था औरत को देखते ही अस्त्र रख देंगे। महाभारत का युद्ध चल रहा था और भीष्म परास्त नहीं हो रहे थे। जबतक भीष्म हैं महाभारत का युद्ध को जय करना कठिन था। पांडव घवड़ा गए तब श्रीकृष्ण ने मंत्रणा दी कि शिखण्डी को सामने कर युद्ध किया जाय। वही किया गया और शिखण्डी को सामने रख अर्जुन युद्धक्षेत्र में उतरे शिखण्डी को देखते ही पितामह भीष्म ने अपने अस्त्र रख दिए। तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को वाण चलाने को कहा। अर्जुन अपने गांडिव से पितामह भीष्म को घायल कर दिया पितामह भीष्म सरसज्या पर छः महिने तक पड़े रहे। फिर अपनी इच्छा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन अपने प्राण त्याग दिए। 

द्रोणाचार्य : द्रोण एक गरीब ब्राह्मण थे। उन्होंने गुरु आश्रम में रहकर धनुर्विद्या में महारथ हासिल की थी। अपने धनुर्विद्या के बल पर उन्होंने हस्तिनापुर के राजकुमारों का आचार्य बन गये। उन्हें श्राप था कि पुत्र शोक से मरेंगे। परन्तु अश्वत्थामा अमर है उन्हें पुत्र शोक हो ही नहीं सकता। उधर पांचाल नरेश द्रोणाचार्य से बदला लेने के लिए पुत्रेष्ठ यज्ञ करवाया। उस यज्ञ से दो बच्चे का जन्म हुआ। एक पुत्र एक पुत्री। पुत्र का नाम घृष्ठधूम्न और पुत्री दोपदी हुयीं। महाभारत के युद्ध में जब द्रोणाचार्य सेना का संचालन कर रह थे तब श्रीकृष्ण ने भीम के द्वारा एक अश्वत्थामा नाम के हाथी को मरबा दिया और युधिष्ठिर द्वारा ये सुचना दिए की “अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजड़ों” ये सुनकर द्रोणाचार्य पुत्रशोक से व्यथित होकर अपने अस्त्र को रख दिया उसी समय घृष्टभूम्न ने द्रोणाचार्य का बध कर दिया। 

द्रुपद : द्रुपद पांचाल राज्य के राजकुमार थे। वे जब गुरु आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने गये तब उन्हें एक गरीब ब्राह्मण द्रोण से मित्रता हो गई। वे दोनो परम मित्र हो गये। एक वैभव और ऐशर्य का स्वामी और दूसरा विद्या का अकिंचन साधक ये मित्र लक्ष्मी और सरस्वती के पुत्र थे। गुरु आश्रम में विद्या समापन समारोह सम्पन्न हुआ। सव अपने अपने घर को गये। द्रुपद पाँचाल के राजा बन गये। द्रोण अपने गरीबी से लड़ते रहे। एक दिन अश्वत्थामा को दूध के बदले चावल का घोल पिलाते देख द्रोण ने अपना धैर्य खो दिया। द्रोण सोचने लगे क्यों न द्रुपद के पास जाया जाय। वह मेरा मित्र है और राजा भी। वह मेरा मदद जरुर करेगा। यही सोच कर द्रोण पांचाल नरेश के दरवार में उपस्थित हुए। द्रोण ने द्रुपद से कहा- मित्र द्रुपद तुम मुझे एक गाय दान दे दो। जिससे मेरे लड़के को दुध मिल सके। द्रुपद अपने राज्यमद में अन्धे हो गए थे। उन्होंने गरज कर वोला, द्रोण सावधान तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि राजा और रंक में कैसी मैत्री। तुम भिखारीयों के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। यही राज्यमद द्रुपद को बहुत मँहगा पड़ा। द्रोण के सामने झुकना पड़ा। फिर द्रुपद ने द्रोण को मारने के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। उस यज्ञ से एक बालक घृष्टधूम्न और एक बालिका द्रौपदी का प्रादुर्भाव हुआ। महाभारत युद्धकाल में द्रुपदसेना पांडवों केसाथ थी। 

७. भाषा-अध्ययन :

पाठ से चुनकर इनके विपरीतार्थक शब्द लिखो

समानतादास
शान्तिशत्रु
मूर्खसमर्थ
अयोग्यअनुपस्थित
दुर्भाग्यराजा

उत्तर:

समानता – असमानतादास – स्वामी
शान्ति – अशान्तिशत्रु – मित्र
मूर्खसमर्थ – असमर्थ
मूर्ख – पंडितअनुपस्थित – उपस्थित
दुर्भाग्य – भाग्यराजा- रंक

८. निम्नलिखित अभिव्यक्तियों का वाक्यों में प्रयोग करो :

लज्जा से, चारों ओर, मित्रता की मर्यादा, कोलाहल से, वैभव की चकाचौंध।

उत्तरः लज्जा से : लज्जा से पांचाल नरेश का मस्तक अवनत था। 

चारों ओर : तत्काल सेवकों को चारों ओर दौड़ाया गया।

मित्रता की मर्यादा : मित्रता की मर्यादा का निर्वाह समानता और निरहंकारिता के सहारे होता है।

कोलाहल से : नगर के कोलाहल से दूर गुरु आश्रम में आज विशेष समारोह का वातावरण दिखाई दे रहा है।

वैभव की चकाचौंध : वैभव की चकाचौंध में राजकुमार द्रुपद के दृष्टिपटल से द्रोण के मैत्री- चित्र क्रमशः धुंधलाते चले गये। 

९. वाक्य का निर्माण शब्दों के समूह से होता है। वाक्य रचना के कुछ नियम याद रखो :

(i) कर्ता / उद्देश्य (उदयेश) का उल्लेख पहले करो।

(ii) वाक्य में दो कर्म हो तो गौण कर्म पहले और मुख्य कर्म बाद में (पीछे) लिखो। 

(iii) विशेषण को प्रायः विशेष्य के पहले लिखो और क्रिया-विशेषण को क्रिया के पहले।

(iv) तो, भी, ही, तक जैसे अव्ययों को उन शब्दो के पीछे लगाओ जिन पर इनके जरिए जोर देना हो जैसे –

आप तो कुछ समझते ही नहीं।

मैं भी चौराहे तक आऊँगा।

(v) निषेधात्मक अव्यय को क्रिया के पहले रखा करो। जैसे – 

राजू नहीं पढ़ेगा।

वे कभी नही हँसेंगे।

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