NCERT Class 12 Economics Chapter 7 परिचय

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NCERT Class 12 Economics Chapter 7 परिचय

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Chapter: 7

व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय

अभ्यास

1. अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर: हर समाज को यह निर्णय लेना होता है कि किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए और उनकी कितनी मात्रा हो। यदि एक वस्तु का उत्पादन अधिक किया जाए, तो दूसरी वस्तुओं का उत्पादन कम हो सकता है। यदि एक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन अधिक किया जाए तो अर्थव्यवस्था में दूसरी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन कम हो सकता है तथा विपरीत। एक अर्थव्यवस्था को यह निर्धारित करना पड़ता है कि वह खाद्य पदार्थों का उत्पादन करे या मशीनों का, शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च करे या सैन्य सेवाओं के गठन पर, उपभोक्ता वस्तुएँ बनाए या पूँजीगत वस्तुएँ। निर्णायक सिद्धान्त यह है कि ऐसे संयोजन का उत्पादन करें, जिससे कुल समाप्त उपयोगिता अधिकतम हो।

2. अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से आपका क्या अभिप्राय है?

उत्तर: “अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से तात्पर्य उन वस्तुओं अथवा सेवाओं के विभिन्न संयोजनों से है, जिन्हे अर्थव्यवस्था में उपलब्ध सीमित संसाधनों की मात्रा तथा उपलब्ध प्रौद्योगिकीय ज्ञान के द्वारा उत्पादित किया जा सकता हैं।

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3. सीमांत उत्पादन संभावना क्या है?

उत्तर: सीमांत उत्पादन संभावना अनाज तथा कपास के उन संयोगों को दर्शाती है, जिनका उत्पादन अर्थव्यवस्था के संसाधनों का पूर्णरूप से उपयोग करने पर किया जाता है। ध्यान दीजिए कि सीमांत उत्पादन संभावना के ठीक नीचे स्थित कोई भी बिंदु अनाज तथा कपास का वह संयोग दर्शाता है, जो तब उत्पादित होगा जब सभी अथवा कुछ संसाधनों का उपयोग या तो पूरी तरह न किया गया हो अथवा उनका अपव्यय करते हुए किया गया हो।

यदि दुर्लभ संसाधनों का अधिक उपयोग अनाज के उत्पादन में किया जाएगा, तो स्वाभाविक रूप से कपास के उत्पादन के लिए कम संसाधन उपलब्ध रहेंगे। इसी प्रकार, यदि कपास के उत्पादन को प्राथमिकता दी जाती है, तो अनाज के लिए सीमित संसाधन बचेंगे। इसलिए, यदि हम किसी एक वस्तु की अधिक मात्रा प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें दूसरी वस्तु की कुछ मात्रा का त्याग करना होगा। इस प्रक्रिया में, किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए दूसरी वस्तु की जो मात्रा छोड़नी पड़ती है, उसे अवसर लागत  कहा जाता है।

प्रत्येक अर्थव्यवस्था को उपलब्ध संसाधनों के आधार पर अनेक उत्पादन संभावनाओं में से किसी एक का चयन करना होता है। दूसरे शब्दों में, सीमित संसाधनों के कारण बहुत-सी उत्पादन संभावनाओं में से किसी एक को चुनना ही अर्थव्यवस्था की एक मूलभूत समस्या है।

यह ध्यान देने योग्य है कि अवसर लागत की संकल्पना केवल व्यक्ति विशेष पर ही नहीं, बल्कि पूरे समाज पर लागू होती है। यह अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है और अर्थशास्त्र में इसका व्यापक उपयोग किया जाता है। इसी कारण, कभी-कभी अवसर लागत को ही आर्थिक लागत भी कहा जाता है।

4. अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।

उत्तर: अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु को दो भागों में बांटा गया है-

(i) व्यष्टि अर्थशास्त्र।

(ii) समष्टि अर्थशास्त्र।

(i) व्यष्टि अर्थशास्त्र: व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत हम बाज़ार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न आर्थिक अभिकर्ताओं के व्यवहार का अध्ययन करके यह जानने का प्रयास करते हैं कि इन बाज़ारों में व्यक्तियों की अंतःक्रिया द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्राएँ और कीमतें किस प्रकार निर्धारित होती है।

(ii) समष्टि अर्थशास्त्र: समष्टि अर्थशास्त्र में हम कुल निर्गत, रोज़गार तथा समग्र कीमत स्तर आदि समग्र उपायों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए पूरी अर्थव्यवस्था को समझने का प्रयास करते हैं। अतः जिस प्रकार व्यष्टि अर्थशास्त्र में विभिन्न बाज़ारों का अध्ययन किया जाता है, वैसा समष्टि अर्थशास्त्र में नहीं। समष्टि अर्थशास्त्र में हम अर्थव्यवस्था के कार्य निष्पादन की समग्र अथवा समष्टिगत उपायों के व्यवहार का अध्ययन करने का प्रयास करते हैं।

5. केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाज़ार अर्थव्यवस्था के भेद को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाज़ार अर्थव्यवस्था के भेद निचे उल्लेख किया गया है-

केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्थाबाज़ार अर्थव्यवस्था
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था के अंतर्गत सरकार या केंद्रीय सत्ता उस अर्थव्यवस्था के सभी महत्त्वपूर्ण क्रियाकलापों की योजना बनाती है।केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था के विपरीत बाजार अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाकलापों का निर्धारण बाज़ार की स्थितियों के अनुसार होता है।
वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, विनिमय तथा उपभोग से संबद्ध सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा किये जाते हैं।दूसरे शब्दों में, बाज़ार व्यवस्थाओं का ऐसा समुच्चय है जहाँ आर्थिक अभिकर्ता मुक्त रूप से अपने धन अथवा अपने उत्पादों का परस्पर निर्वाध आदान-प्रदान कर सकते हैं। 
इसमें उत्पादन कारकों पर सरकारी स्वामित्व होता है।इसमें कारकों पर उत्पादन निजी स्वामित्व होता है।

6. सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?

उत्तर: सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से हम यह अध्ययन करते हैं कि क्या हम किसी क्रियाविधि के अंतर्गत होने वाले कार्यों का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं अथवा उसका मूल्यांकन करने का प्रयास कर रहे हैं। सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण के अंतर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि आर्थिक क्रियाएँ किस प्रकार कार्य करती हैं। दूसरी ओर, आदर्शक आर्थिक विश्लेषण में यह समझने का प्रयास किया जाता है कि वे क्रियाएँ समाज या व्यक्ति के लिए उपयुक्त हैं या नहीं। हालाँकि, इन दोनों विश्लेषणों के बीच अंतर हमेशा पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता। क्योंकि किसी भी केंद्रीय आर्थिक समस्या का अध्ययन करते समय सकारात्मक और आदर्शक दोनों पहलुओं की भूमिका होती है, और इनमें से किसी एक को पूरी तरह अलग करके दूसरे को समझना कठिन हो जाता है।

7. आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?

उत्तर: आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस आर्थिक अध्ययन या विश्लेषण से है जो किसी आदर्श स्थिति (Ideal Conditions) पर आधारित होता है, न कि वास्तविक जीवन की जटिलताओं पर। इसमें अर्थव्यवस्था को कुछ सरल और परिकल्पित मान्यताओं के आधार पर समझने और समझाने का प्रयास किया जाता है। आदर्शक आर्थिक विश्लेषण का उद्देश्य यह होता है कि इन आदर्श स्थितियों के अंतर्गत यह समझा जाए कि किसी नीति, घटना या निर्णय का क्या परिणाम हो सकता है।

8. व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर निम्नलिखित हैं–

व्यष्टि अर्थशास्त्रसमष्टि अर्थशास्त्र
यह व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन करता है, जैसे कि एक उपभोक्ता या एक उत्पादक।यह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के बड़े आर्थिक घटकों और उनके परस्पर संबंधों का अध्ययन करता है, जैसे कि समग्र माँग, समग्र पूर्ति, राष्ट्रीय आय आदि।
इसकी मुख्य समस्या मूल्य निर्धारण होती है, इसलिए इसे ‘मूल्य सिद्धांत’ भी कहा जाता है।इसकी प्रमुख समस्या आय और रोजगार का निर्धारण होता है, इसलिए इसे ‘आय और रोज़गार सिद्धांत’ भी कहा जाता है।
इसका उद्देश्य संसाधनों के सर्वोत्तम आबंटन से होता है।इसका उद्देश्य संसाधनों के पूर्व रोज़गार व विकास से होता है।

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