NCERT Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

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NCERT Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

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Chapter: 2

समीक्षात्मक प्रश्न

1. आत्म क्या है? आत्म की भारतीय अवधारणा पाश्चात्य अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: आत्म और व्यक्तित्व का तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके आधार पर हम अपने अस्तित्व को परिभाषित करते हैं। ये ऐसे तरीकों को भी इंगित करते हैं जिसमें हमारे अनुभव संगठित एवं व्यवहार में अभिव्यक्त होते हैं।

पाश्चात्य संस्कृति में आत्मा और समूह को स्पष्ट सीमाओं के साथ दो अलग-अलग इकाइयों के रूप में देखा जाता है। व्यक्ति, समूह का हिस्सा होने के बावजूद अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाए रखता है। इसके विपरीत, भारतीय अवधारणा में आत्म और अन्य के मध्य सीमा रेखा स्थिर न होकर परिवर्तनीय प्रकृति की बताई गई है।

2. परितोषण के विलंब से क्या तात्पर्य है? इसे क्यों वयस्कों के विकास के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है?

उत्तर: परितोषण के विलंब का तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति द्वारा तत्काल संतुष्टि या आनंद को छोड़कर दीर्घकालिक लाभ के लिए प्रतीक्षा करना। यह क्षमता व्यक्ति को तात्कालिक इच्छाओं को नियंत्रित करने और दीर्घकालिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने में सक्षम बनाती है।

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वयस्कों के विकास में इसका महत्व:

वयस्कों के विकास के संदर्भ में परितोषण के विलंब को एक महत्वपूर्ण गुण माना जाता है क्योंकि यह व्यक्तित्व और सामाजिक परिपक्वता का संकेत है। वयस्कता में, व्यक्ति को अक्सर ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं जिनमें तात्कालिक लाभ से अधिक दीर्घकालिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। उदाहरण के लिए, शिक्षा या करियर के लिए कड़ी मेहनत करना, जो भविष्य में सफलता और संतोष का मार्ग प्रशस्त करता है।

इसके अतिरिक्त, परितोषण के विलंब की क्षमता वयस्कों में आत्म-नियंत्रण, योजना, और अनुशासन को दिखाता है। यह गुण विशेष रूप से उन स्थितियों में महत्वपूर्ण है जहां दीर्घकालिक योजनाओं के लिए तत्काल इच्छाओं का त्याग प्रयोजन होता है।

3. व्यक्तित्व को आप किस प्रकार परिभाषित करते हैं? व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम कौन-से हैं?

उत्तर: व्यक्तित्व वह मानसिक और भावनात्मक संरचना है, जो किसी व्यक्ति के विशिष्ट विचारों, भावनाओं और व्यवहारों को निर्धारित करती है। यह शब्द लैटिन के “पर्सोना” से लिया गया है, जिसका अर्थ है- नाटक में अभिनेता द्वारा पहना जाने वाला मुखौटा। हालांकि, वास्तविक जीवन में व्यक्तित्व केवल बाहरी रूप या छवि तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति की आंतरिक विशेषताओं, मानसिक संरचना और सामाजिक प्रतिक्रियाओं का समग्र संयोजन होता है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, व्यक्तित्व वह विशिष्टता है जो प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों से अलग बनाती है। व्यक्तित्व के अध्ययन के लिए अनेक सिद्धांत और उपागम विकसित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य इसके विभिन्न पहलुओं को समझना और उनकी व्याख्या करना है।

इनमें से कुछ प्रमुख उपागम निम्नलिखित हैं-

(i) मानववादी उपागम: यह उपागम व्यक्ति की आत्म-विकास, आत्म-साक्षात्कार और आत्म-सम्मान की प्रक्रिया पर केंद्रित होता है। अब्राहम मस्लो का ‘आत्मवास्तविकता सिद्धांत’ इसका प्रमुख उदाहरण है।

(ii) संवेदनात्मक (व्यवहारवादी) उपागम: यह सिद्धांत व्यक्ति के व्यवहार को बाहरी कारकों जैसे अनुभव और प्रतिक्रियाओं के आधार पर समझता है। बी.एफ. स्किनर के व्यवहारवाद के अनुसार, व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके पर्यावरण से जुड़ी प्रतिक्रियाओं का परिणाम होता है।

(iii) संरचनात्मक उपागम: इसमें व्यक्तित्व को विभिन्न मानसिक संरचनाओं के रूप में देखा जाता है। सिगमंड फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत इसका प्रमुख उदाहरण है, जो अवचेतन मानसिक प्रक्रियाओं और मनोवैज्ञानिक संघर्षों पर आधारित है।

(iv) सामाजिक-अधिगम सिद्धांत: यह उपागम यह बताता है कि व्यक्तित्व का विकास सामाजिक अनुभवों और पर्यावरणीय प्रभावों से कैसे होता है। इस सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति अपने व्यवहार को दूसरों के साथ संपर्क और पर्यावरण से सीखता है।

4. व्यक्तित्व का विशेषक उपागम क्या है? यह कैसे प्ररूप उपागम से भिन्न है?

उत्तर: व्यक्तित्व का विशेषक उपागम विशिष्ट मनोवैज्ञानिक गुणों पर बल देता है जिसके आधार पर व्यक्ति संगत और स्थिर रूपों में भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति कम शर्मीला हो सकता है जबकि दूसरा अधिक; एक व्यक्ति अधिक मैत्रीपूर्ण व्यवहार कर सकता है और दूसरा कम। यहाँ “शर्मीलापन” और “मैत्रीपूर्ण व्यवहार” विशेषको का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके आधार पर व्यक्तियों में संबंधित व्यवहारपरक गुणों या विशेषकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति की मात्रा का मूल्यांकन किया जा सकता है।

5. फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना की व्याख्या कैसे की है?

उत्तर: सिगमंड फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना को तीन प्रमुख घटकों में विभाजित किया है, वह निचे दिए गए हैं-

1. इड (Id):

(a) यह व्यक्तित्व का सबसे आदिम और मौलिक भाग है।

(b) इड पूरी तरह से अवचेतन मन में स्थित होता है और आनंद सिद्धांत (Pleasure Principle) पर कार्य करता है।

(c) इसका मुख्य उद्देश्य तात्कालिक संतुष्टि प्राप्त करना है।

(d) यह नैतिकता या सामाजिक मानदंडों की परवाह नहीं करता।

2. ईगो (Ego):

(a) यह इड से विकसित होता है और वास्तविकता सिद्धांत (Reality Principle) पर कार्य करता है।

(b) इसका कार्य इड की इच्छाओं को वास्तविकता के अनुरूप बनाना है।

(c) ईगो व्यक्ति को सामाजिक और नैतिक सीमाओं के भीतर रहने के लिए प्रेरित करता है।

(d) यह चेतन और अवचेतन दोनों में कार्य कर सकता है।

3. सुपर ईगो (Superego):

(a) यह नैतिकता और आदर्श का प्रतीक है।

(c) सुपरेगो नैतिक और सामाजिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

(d) इसका उद्देश्य नैतिकता के आधार पर इड की इच्छाओं पर नियंत्रण रखना है।

(e) यह व्यक्ति को सही और गलत का भेद करना सिखाता है।

6. हार्नी की अवसाद की व्याख्या अल्फ्रेड एडलर की व्याख्या से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: करेन हार्नी ने अवसाद की व्याख्या मूल चिंता (basic anxiety) के आधार पर की है, जो माता-पिता के असंगत और असमर्थ व्यवहार के कारण बच्चों में उत्पन्न होती है। इससे बच्चों में असुरक्षा, गहरी नाराजगी और मौलिक आक्रामकता की भावना विकसित होती है। इसके विपरीत, अल्फ्रेड एडलर अवसाद को हीनता की भावनाओं और हीनता मनोग्रंथि (inferiority complex) से जोड़ते हैं। एडलर के अनुसार, हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों के माध्यम से सुरक्षा और श्रेष्ठता पाने का प्रयास करता है ताकि वह अपनी हीनता पर विजय पा सके।

7. व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम की प्रमुख प्रतिज्ञप्ति क्या है? आत्मसिद्धि से मैस्लो का क्या तात्पर्य था?

उत्तर: व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम की प्रमुख प्रतिज्ञप्ति यह है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अपनी क्षमताओं, संभावनाओं और प्रतिभाओं को सर्वोत्तम रूप में अभिव्यक्त करने की दिशा में प्रयासरत होता है। मानवतावादी उपागम सकारात्मक पहलुओं पर जोर देता है। मैस्लो के अनुसार, आत्मसिद्धि (self-actualisation) वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी पूर्ण क्षमताओं को विकसित कर चुका होता है। मैस्लो मानते हैं कि मानव प्रेम, खुशी और सृजनात्मकता जैसी क्षमताओं से युक्त होते हैं, और प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को आकार देने और आत्मसिद्धि पाने में स्वतंत्र होता है।

8. व्यक्तित्व-मूल्यांकन में प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख प्रेक्षण विधियों का विवेचन करें। इन विधियों के उपयोग में हमें किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

उत्तर: व्यक्तित्व मूल्यांकन की प्रमुख प्रेक्षण विधियाँ इस प्रकार हैं-

(i) मनोमितीय परीक्षण (Psychometric tests)।

(ii) आत्म-प्रतिवेदन उपाय (Self-report measures)।

(iii) प्रक्षेपी तकनीकें (Projective techniques)।

(iv) व्यवहार विश्लेषण (Behavioural analysis)।

इन विधियों का उपयोग करते समय मुख्य समस्याएँ वैधता, विश्वसनीयता और व्यक्ति की अपने बारे में सही-सही जानकारी देने की क्षमता से संबंधित होती हैं। आत्म-प्रतिवेदन उपायों में व्यक्ति अपने बारे में गलत जानकारी दे सकता है या अपनी भावनाओं को सही-सही अभिव्यक्त करने में असमर्थ हो सकता है। प्रेक्षण विधियाँ समय और संसाधनों के संदर्भ में भी काफी खर्चीली होती हैं।

9. संरचित व्यक्तित्व परीक्षणों से क्या तात्पर्य है? व्यापक रूप से उपयोग किए गए दो संचित व्यक्तित्व परीक्षण कौन से है?

उत्तर: संरचित व्यक्तित्व परीक्षण वे परीक्षण हैं जो मानकीकृत स्वरूप में होते हैं और जिनमें व्यक्ति को निश्चित विकल्पों में से प्रतिक्रिया देनी होती है।

दो प्रमुख संरचित व्यक्तित्व परीक्षण हैं-

(i) मिनेसोटा बहुउद्देशीय व्यक्तित्व सूची (MMPI – Minnesota Multiphasic Personality Inventory)।

(ii) सोलह व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली (16PF – Sixteen Personality Factor Questionnaire)।

10. व्याख्या कीजिए कि प्रक्षेपी तकनीक किस प्रकार व्यक्तित्व का मूल्यांकन करती है? कौन-से व्यक्तित्व के प्रक्षेपों परीक्षण मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग में लाए गए हैं?

उत्तर: प्रक्षेपी तकनीकें व्यक्तित्व का मूल्यांकन अप्रत्यक्ष रूप से करती हैं। इनमें अस्पष्ट उत्तेजक प्रस्तुत किए जाते हैं, जिनकी प्रतिक्रिया में व्यक्ति अपने व्यक्तित्व की छिपी हुई भावनाओं, इच्छाओं और संघर्षों को प्रकट करता है।

प्रमुख प्रक्षेपी परीक्षणों में शामिल हैं-

(i) रोर्शाक स्याही धब्बा परीक्षण (Rorschach Inkblot Test)।

(ii) थीमैटिक एपर्सेप्शन टेस्ट (Thematic Apperception Test – TAT)।

11. अरिहन्त एक गायक बनना चाहता है, इसके बावजूद कि वह चिकित्सकों के एक परिवार से संबंध रखता है। यद्यपि उसके परिवार के सदस्य दावा करते हैं कि वे उसको प्रेम करते हैं कितु वे उसकी जीवनवृत्ति को दृढ़ता से अस्वीकार कर देते हैं। कार्ल राजर्स की शब्दावली का उपयोग करते हुए अरिहन्त के परिवार द्वारा प्रदर्शित अभिवृत्तियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: कार्ल राजर्स के अनुसार, अरिहन्त के परिवार की अभिवृत्तियाँ “सशर्त सकारात्मक आदर” (Conditional Positive Regard) का उदाहरण हैं। यद्यपि वे अरिहन्त को प्रेम करते हैं, लेकिन उसकी पसंद (गायक बनना) को स्वीकार नहीं करते। इससे अरिहन्त के आत्म-संकल्पना (Self-concept) और आत्म-सम्मान (Self-esteem) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि उसके परिवार ने प्रेम और स्वीकृति के लिए अपनी शर्तें लगा दी हैं। इस स्थिति में अरिहन्त को “असशर्त सकारात्मक आदर” (Unconditional Positive Regard) की ज़रूरत है, जिसमें परिवार उसे उसकी व्यक्तिगत इच्छाओं के साथ स्वीकार करे।

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