NCERT Class 12 Hindi Chapter 14 शिरीष के फूल

NCERT Class 12 Hindi Chapter 14 शिरीष के फूल Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 12 Hindi Chapter 14 शिरीष के फूल and select need one. NCERT Class 12 Hindi Chapter 14 शिरीष के फूल Question Answers Download PDF. NCERT Hindi Class 12 Solutions.

NCERT Class 12 Hindi Chapter 14 शिरीष के फूल

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. CBSE Class 12 Hindi Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 12 Hindi Chapter 14 शिरीष के फूल Notes, NCERT Class 12 Hindi Textbook Solutions for All Chapters, You can practice these here.

Chapter: 14

HINDI

अभ्यास

पाठ के साथ

1. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?

उत्तर: लेखक को शिरीष के फूल में कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह समानता दिखाई देती है। एक कालजयी संन्यासी काल, विषय-वासनाओं, क्रोध, मोह इत्यादि से स्वयं को अलग कर देते हैं। ऐसे ही शिरीष को लेखक ने माना है। उस पर काल का प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता है। प्रचंड गर्मी में भी वह फलता-फूलता है। प्रचंड गर्मी में फलने वाला पेड़ बहुत कम देखने को मिलता है। शिरीष का फूल सुख-दुख की परवाह नहीं करता, जैसे कि एक संन्यासी। शिरीष जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता है, जैसे कि एक शास्त्रीय अवधूत। शिरीष तेज धूप और लू में भी अडिग खड़ा रहता है, जैसे कि एक संन्यासी जो अपने तप में लीन रहता है और उसे कोई भी बाधा विचलित नहीं कर सकती।

2. हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है– प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर: लेखक ‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ह्रदय की कोमलता को बचाने के लिए कभी कभी कठोर व्यव्हार करना आवश्यक हो जाता है। और कठोर व्यवहार करने से हम कभी कभी ठगे जाने से भी बच जाते हैं।

शिरीष के विषय में लेखक मनुष्य को एक सीख देता है। लेखक के अनुसार जिस प्रकार शिरीष को कोमल मानकर कवि उसे पूरा ही कोमल मान लेते हैं, तो यह उसके साथ अन्याय है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

3. द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।

उत्तर: हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने शिरीष के ज़रिए कोलाहल और संघर्ष से भरी ज़िंदगी में अविचल रहकर जिंदा रहने की सीख दी है। शिरीष का पेड़ हमें प्रेरित करता है कि मुश्किल परिस्थितियों में भी हिम्मत और कोशिश करने से जिंदा रहा जा सकता है। शिरीष उस समय खिलता है, जब गर्मी अपने चरम पर होती है। लेखक ने जीवन के संघर्ष को गर्मी की तीव्रता से जोड़ा है। जब ज़मीन आग की तरह तप रही होती है, तब भी शिरीष का पेड़ कोमल फूलों से लदा रहता है और हिलता-डुलता है। अगर मनुष्य लड़ना ही छोड़ दे और विकट परिस्थितियों से घबरा जाए, तो वह जी नहीं सकता है। वह तो टूट कर रह जाएगा। ठीक ऐसे समय में शिरीष का पेड़ हमें प्रेरणा देता है कि कोलाहल व संघर्ष से भरे जीवन-स्थितियों में भी अविचल कर जिजीविषु बना रहा जा सकता है। बस ज़रूरी है, हिम्मत की और एक प्रयास की।

4. हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?

उत्तर: प्राचीन भारत में सदैव से ही आत्मबल पर ध्यान रखने के लिए कहा गया है। हमारा मानना है कि जिस मनुष्य की आत्मा प्रबल है, वह इस संसार के हर कष्ट से परे है। वे संतोषी है और जीवन में हर प्रकार की सुख-सविधाएँ तथा कष्ट उसके लिए निराधार है। आत्मबल के माध्यम से वह इंद्रियों से लेकर मन तक को अपने वश में कर लेता है। अवधूत शरीर-सुख के लालच को त्यागकर आत्मबल से अपनी साधना में निरत रहते हैं। इसलिए वे शारीरिक बल की अपेक्षा आत्मबल को महत्त्व देते हैं और जीवन के सारे संकटों का सामना कर लेते हैं। परन्तु आज सभी लोग धन बल और माया बल जुटाने में लगे हुए हैं। इसी कारण आज मानव सभ्यता पर संकट आ रहा है।

5. कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय– एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाएँ।

उत्तर: लेखक का कथन सत्य है। वस्तुतः कवि एवं साहित्यकार से हम बहुत ऊँचे आदर्शों एवं जीवन-मूल्यों की अपेक्षा करते हैं। जब वह अनासक्त योगी रहेगा, तभी वह यथार्थ का चित्रण कर सकेगा, निष्पक्षता से अपने मनोभाव व्यक्त कर सकेगा तथा नीति-सम्मत बातें कह सकेगा। कवि का हृदय कोमल भावनाओं से भरा होना भी जरूरी है। लेखक ने कवि के लिए जो मानदंड निर्धारित किया है, वह सही मायने में बहुत ऊँचा है। सही मायने में यही विशेषताएँ एक व्यक्ति को कवि या साहित्यकार बनाती है। उसकी रचना उसके हृदय में उमड़ने वाली भावनाओं तथा मन में उठने वाले विचारों का आईना है। ये भावनाएँ तथा विचार समाज के विकास तथा प्रगति के लिए अति आवश्यक होते हैं। यदि एक कवि समाज में व्याप्त समस्याओं तथा विसंगति को समझने में सक्षम नहीं होगा, तो वह एक अच्छा कवि या साहित्यकार नहीं कहला सकता है। एक कवि एक योगी के समान वस्तुओं तथा भोग-विलास के प्रति आसक्त होगा, तो वह योगी नहीं कहलाएगा।

6. सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर: महाकाल लगातार जीवों को मार रहा है। जो प्रबल जीवन-इच्छा वाले हैं, उनका काल से संघर्ष निरन्तर चल रहा है। जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं। अपने व्यवहार की जड़ता को त्यागकर नित्य बदल रही परिस्थिति के अनुरूप अपने स्वयं को ढालकर निरन्तर गतिशील रहने वाला ही काल की मार से बच सकता है। परिवर्तन ही जीवन है। यह सत्य सब जानते हैं कि काल से कोई नहीं बच पाया है। देवता से लेकर दानव तक इसकी मार से बच नहीं पाएँ हैं। ऐसे में सबको अपना ग्रास बनाने वाले काल की मार से बचने के लिए हमें चाहिए कि अपने स्वभाव की जड़ता को समाप्त कर दें। जड़ता मनुष्य को प्रगति नहीं करने देती है। जड़ता मनुष्य को चूर-चूर कर देती है।

7. आशय स्पष्ट कीजिए–

(क) दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे।

उत्तर: इस पंक्ति में लेखक दुरंत प्राणधारा और समस्त समाज की समस्याओं के विषय में बात कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि जो लोग अपनी स्थिति से संतुष्ट हैं और चाहते हैं कि स्थिति अपने आप ही सुधर जाए, वे मूर्ख होते हैं। उन्हें समझाया जा रहा है कि समस्याओं से भागने के बजाय समस्याओं का सामना करना और समाधान ढूंढना बेहतर होता है। जीवन और काल का आपस में संघर्ष सदियों से चलता रहा है। अर्थात जीवन स्वयं को काल से बचाने के लिए हमेशा से संघर्ष करता रहा है। इस संघर्ष में कुछ लोग मूर्ख कहलाते हैं। इनकी मूर्खता का प्रमाण है, उनकी सोच। वे सोचते हैं कि काल की मार से बचने के लिए उनकी जैसी सोच है, वही सही है। इस प्रकार की सोच उन्हें लंबे समय तक काल या समय की मार से बचाकर रखेगी।

(ख) जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?….. मैं कहता हूँ कवि बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।

उत्तर: यह पंक्ति किसी कवि के समर्पण और समाधान के अनुप्राणन के विषय में है। यहां लेखक उस कवि की भूमिका के बारे में सोच रहे हैं जो स्वयं को निष्काम और उन्मुख रखता है, जो अपनी कला में सच्चाई और संवेदनशीलता लाता है। उन्हें यह सुझाव दिया जा रहा है कि कवि बनने के लिए उन्हें साहसी और स्थिर होने की आवश्यकता है।

(ग) फूल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।

उत्तर: इस पंक्ति में लेखक फूल और पेड़ के उपयोग के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका कहना है कि हर वस्तु अपने आप में पूर्ण नहीं होती, बल्कि वह किसी अन्य चीज़ को संकेत करती है। लेखक फूल तथा पेड़ का संकेत करता हुआ कहता है कि इन्हें हमें समाप्त नहीं मान लेना चाहिए। मात्र इनसे सबकुछ नहीं है। जिस प्रकार से पेड़ एक फूल को जन्म देता है, फूल एक बीज को जन्म देता है, वैसे ही जीवन में सब क्रमपूर्वक चलता रहता है। इसका कारण है कि फिर एक बीज से एक पेड़ का जन्म होता है और पेड़ से एक फूल का जन्म होता है।

पाठ के आसपास

1. शिरीष के पुष्प को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह को प्रचंड गरमी में फूलने वाले फूल को शीतपुष्प संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?

उत्तर: शिरीष के फूल को शीतपुष्प इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मौसम के प्रति सहनशील होता है और हर बदलते मौसम के साथ खिलता रहता है। यह वसंत के आने पर खिल जाता है और गर्मियों की धूप में भी बना रहता है। गर्मी की मार झेलने के बाद भी यह फूल ठंडा बना रहता है। इसे देखकर लोगों को भयंकर परिस्थितियों में जीने की राह मिलती है क्योंकि यह ठंडक प्रदान करता है। इसे देखकर भयंकर परिस्थितियों में जीने की राह मिलती है। जो कि शीतलता की तरह काम करती है। इसी विशेषता को देखते हुए इसे शीतपुष्प की संज्ञा दी गई है। 

2. कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधीजी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।

उत्तर: लेखक ने गांधीजी में कोमल और कठोर दोनों भावों का समावेश बताया है। गांधीजी ने अपने जीवन में सत्य, प्रेम, अहिंसा जैसे भावों को अपने जीवन का आधार बनाया। उन्होंने इनके पालन में कठोरता से काम लिया है। ये तीनों भाव जितने कोमल है, उनके पालन के लिए उतना ही कठोर अनुशासन अपना होता है। गांधीजी की कोमलता उनकी सहानुभूति और दया के प्रति ज्ञात की जाती है। वे अपने दृढ़ धर्म-संबंधित मुलायमता के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी सहानुभूति और दया ने उन्हें लोगों के बीच अत्यंत प्रिय बनाया, विशेषकर उन लोगों के लिए जो कमजोर और असहाय थे।

गांधीजी की कठोरता उनकी नैतिक दृढ़ता, स्वाधीनता के प्रति अटल निष्ठा और सत्याग्रह की प्रवृत्ति को दर्शाती है। वे अपने लक्ष्यों के प्रति स्थिर और अपने निर्णयों में दृढ़ रहते थे, चाहे वो कितनी भी कठिनाई या प्रतिकूलताओं के साथ हो। गांधीजी की कठोरता उन्हें सत्याग्रह में उनकी अद्वितीयता और निष्ठा के लिए माना जाता है। उन्होंने अपने दृढ़ स्वाधीनता और अन्याय के खिलाफ उनकी संघर्ष और निष्ठा जारी रखी, जिसने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता बना दिया।

3. आजकल अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत से किसान साग-सब्ती व अन्न उत्पादन छोड़ फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी मुद्दे को विषय बनाते हुए वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।

उत्तर: आधुनिक भारतीय किसान आजकल अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय फूलों की माँग में एक मार्केटिंग और व्यापारिक अवसर देख रहे हैं। यह समय कुछ किसानों के लिए विवादित है, क्योंकि वे साग-सब्ती और अन्न उत्पादन से फूलों की खेती की और मोड़ रहे हैं। यह प्रतियोगिता उन दोनों क्षेत्रों के बीच के अनुशासन, वित्तीय और सामाजिक पहलुओं को समझने के लिए आयोजित की जा रही है। समय बदल रहा है। अतः किसानों को भी उसके साथ बदलना पड़ रहा है। पहले किसान साग-सब्ज़ी व अन्न के उत्पादन को ही अपना सबकुछ मानता था। वे इसके जीवन के आधार थे। जीवन का आधार जीवन को सुचारू रूप से न चलाए पाएँ, तो वह किसी काम का नहीं है। आज का किसान साग-सब्ज़ी व अन्न का उत्पादन करके भी कुछ नहीं पाता है। उसका स्वयं का जीवन भी कठिनाई से चलता है। जो दूसरों का पेट पालता हो, वह स्वयं भूखा रह जाए तो यह विडंबना ही है। एक किसान स्वयं तो भूखा रह सकता है लेकिन अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता। साग-सब्ज़ी व अन्न उसे वह नहीं दे रहे हैं, जो उसे फूलों की खेती दे रही है। इसके लिए मेहनत कम और फल अधिक मिलता है। इसी कारण उसके बच्चे अच्छी शिक्षा, भरपूर पेट भोजन और एक अच्छी जीवन शैली जी पा रहे हैं।

4. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने इस पाठ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्त्व व्यंजक ललित निबंध और भी लिखे हैं– कुटज, आम फिर बौरा गए, अशोक के फूल, देवदारु आदि। शिक्षक की सहायता से इन्हें ढूंढ़िए और पढ़िए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

5. द्विवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता है? आज साहित्यिक रचना-फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही है। तब ऐसी रचनाओं का महत्त्व बढ़ गया है। प्रकृति के प्रति आपका दृष्टिकोण रुचिपूर्ण है या उपेक्षामय? इसका मूल्यांकन करें।

उत्तर: हज़ारी प्रसाद द्विवेदी को वनस्पतियों से बहुत लगाव था। द्विवेदी जी अपने दादा-दादी के साथ गढ़वाल जाते थे और वहां की प्रकृति के बीच रहना उन्हें अच्छा लगता था। वे पर्वतीय इलाके की वनस्पतियों के बारे में भी बहुत सी जानकारी इकट्ठा करते थे और वहां के पशु-पक्षियों के चित्र भी खींचते थे। द्विवेदी जी ने इस जानकारी को एक किताब में भी संकलित किया था। द्विवेदी जी को वनस्पतियों से लगाव होने की कुछ और वजहें भी हो सकती हैं। मेरा प्रकृति के प्रति दृष्टिकोण रुचिपूर्ण है। यही कारण है कि मैंने इस रचना को न केवल पढ़ा बल्कि इस वृक्ष को ढूँढ भी निकाला। अब मैं इसी तर्ज पर फूलों, वृक्षों उनके गुणों इत्यादि पर जानकारी एकत्र कर रहा हूँ।

भाषा की बात

1. दस दिन फूले और फिर खंखड़-खखड़ इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं। उन्हें छाँट कर लिखें।

उत्तर: दस दिन फूले और फिर खंखड़-खंखड़’ इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कुछ वाक्यांश ये हैं–

(क) ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले।

(ख) पंद्रह-बीस दिन के लिए फूलता है।

(ग) जो फरा, सो झरा।

(घ) जमे कि मरे।

(ङ) न ऊधो का लेना, न माधो का देना।

इन्हें भी जानें

अशोक वृक्ष– भारतीय साहित्य में बहुवित एक सदावहार वृक्ष। इसके पत्ते आम के पत्तों से मिलतें हैं। वसंत ऋतु में इसके फूल लाल-लाल गुच्छों के रूप में आते हैं। इसे कामदेव के पाँच पुष्पवाणों में से एक माना गया हैं इसके फल सम की तरह होते हैं। इसके सांस्कृतिक महत्त्व का अच्छा चित्रण हजारी प्रसाद द्विवेदी ने निबंध अशोक के फूल में किया है। भ्रमवश आज एक दूसरे वृक्ष को अशोक कहा जाता रहा है और मूल पेड़ (जिसका वानस्पतिक नाम सराका इंडिका है।) को लोग भूल गए हैं। इसकी एक जाति श्वेत फूलों वाली भी होती है।

अरिष्ठ वृक्ष– रीठा नामक वृक्ष। इसके पत्ते यमकोले हरे होते हैं। फल को सुखाकर उसके छिलके का चूर्ण बनाया जाता है, बाल धोने एवं कपड़े साफ करने के काम में आता है। पेड़ की डालियों व तने पर जगह-जगह काँट उभरे होते हैं, जो बाल और कपड़े धोने के काम भी आता है। 

आरग्वध वृक्ष– लोक में उसे अमलतास कहा जाता है। भीषण गरमी को दशा में जब इसका पेड पत्रहीन ढूँठ सा हो जाता है, पर इस पर पीले-पीले पुष्प गुच्छे लटके हुए मनोहर दृश्य उपस्थित करते हैं। इसके फल लगभग एक डेढ़ फुट के बेलनाकार होते हैं जिसमें कठोर बीज होते हैं।

शिरीष वृक्ष– लोक में सिरिस नाम से मशहूर पर एक मैदानी इलाके का वृक्ष है। आकार में विशाल होता है पर पत्ते बहुत छोट-छोटे होते है। इसके फूलों में पंखुड़ियों की जगह रेशे-रेशे होते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top