NCERT Class 11 Sociology Samaj Shastra Parichay Chapter 3 सामाजिक संस्थाओं को समझना

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NCERT Class 11 Sociology Samaj Shastra Parichay Chapter 3 सामाजिक संस्थाओं को समझना

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Chapter: 3

समाजशास्त्र परिचय
अभ्यास

1. ज्ञात करें कि आपके समाज में विवाह के कौन से नियमों का पालन किया जाता है। कक्षा में अन्य विद्यार्थियों द्वारा किए गए प्रेक्षणों से अपने प्रेक्षण की तुलना करें तथा चर्चा करें।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

2. ज्ञात करें कि व्यापक संदर्भ में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होने से परिवार में सदस्यता, आवासीय प्रतिमान और पारस्परिक संपर्क का तरीका कैसे परिवर्तित होता है, उदाहरण के लिए प्रवास।

उत्तर: आर्थिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक परिवर्तन ने परिवार में सदस्यता, आवासीय स्थिति, और महत्वपूर्ण संबंधों में बदलाव किया है। भारत में परिवार के स्वरूपों में होने वाले परिवर्तन के संदर्भ में अधिकतर यह मान लिया जाता है कि संयुक्त परिवारों के विघटन के परिणामस्वरूप एकाकी परिवारों में वृद्धि हो रही है। एकांकी परिवार भारतीय समाज के लिए नए नहीं हैं। भारत में अभावग्रस्त जातियों एवं वर्गों में इस प्रकार के परिवारों का अतीत में भी प्रचलन रहा है। परिवार में होने वाले परिवर्तन व्यापक संदर्भ में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से जुड़े हुए होते हैं। हमारे दैनिक जीवन में प्रायः हम परिवार को अन्य क्षेत्रों जैसे आर्थिक या राजनीतिक से भिन्न और अलग देखते हैं। फिर भी आप स्वयं देखेंगे कि परिवार, गृह, उसकी संरचना और मानक, बाकी समाज से गहरे जुड़े हुए हैं। 1990 के दशक में एकीकरण के बाद जर्मनी में विवाह प्रणाली में तेज़ी से गिरावट आई क्योंकि नए जर्मन राज्य ने एकीकरण से पूर्व परिवारों को प्राप्त संरक्षण और कल्याण की सभी योजनाएँ रद्द कर दी थीं। आर्थिक असुरक्षा की बढ़ती भावना के कारण लोग विवाह से इंकार करने लगे। इस प्रकार बड़ी आर्थिक प्रक्रियाओं के कारण परिवार और नातेदारी परिवर्तित और रूपांतरित होते रहते हैं लेकिन परिवर्तन की दिशा सभी देशों और क्षेत्रों में हमेशा एक समान नहीं हो सकती। हालाँकि इस परिवर्तन का यह भी अर्थ नहीं है कि पिछले मानक और सरंचना पूरी तरह नष्ट हो गई हैं। परिवर्तन और निरंतरता सहवर्ती होते हैं।

3. ‘कार्य’ पर एक निबंध लिखिए। कार्यों की विद्यमान श्रेणी और ये किस तरह बदलती हैं, दोनों पर ध्यान केंद्रित करें।

उत्तर: बच्चे और छोटे विद्यार्थी के रूप में हम कल्पना करते हैं कि जब हम बड़ें होंगे तो किस प्रकार का ‘कार्य’ करेंगे। यहाँ पर ‘कार्य’ स्पष्ट रूप से सवेतन रोज़गार का द्योतक है। आधुनिक समय में यह ‘कार्य’ का सर्वाधिक समझ में आने वाला अर्थ है।

वास्तव में यह एक अत्यधिक सरलीकृत विचार है। अनेक प्रकार के कार्य सवेतन रोज़गार के विचार की पुष्टि नहीं करते। उदाहरण के लिए, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में किए जाने वाले अधिकांश कार्य प्रत्यक्षतः किसी औपचारिक रोज़गार आँकड़ों में नहीं गिने जाते। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का अर्थ है नियमित रोजगार के क्षेत्र से पूरे किया जाने वाला कार्य-व्यवहार। इसमें कभी-कभी किए गए कार्य या सेवा के बदले नगद भुगतान किया जाता है लेकिन इसमें वस्तुओं या सेवाओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान भी अकसर किया जाता है। हम कार्य को शारीरिक और मानसिक परिश्रमों के द्वारा किए जाने वाले ऐसे सवैतनिक या अवैतनिक कार्यों के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जिनका उद्देश्य मानव की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करना है।

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कार्य के आधुनिक रूप और श्रम विभाजन: पूर्व-आधुनिक समाज में अधिकतर लोग खेतों में कार्य करते थे या पशुओं की देखभाल करते थे। औद्योगिक रूप से विकसित समाज में जनसंख्या का बहुत छोटा भाग कृषि कार्यों में लगा हुआ है और स्वयं कृषि का भी औद्योगीकरण हो गया है। इसका कार्य मानव द्वारा करने की अपेक्षा अधिकांशतः मशीनों द्वारा किया जाने लगा है। भारत जैसे देश में आज भी अधिकतर जनसंख्या ग्रामीण और कृषि कार्यों में या अन्य ग्राम आधारित व्यवसायों में लगी हुई है।

आधुनिक समाजों की अर्थव्यवस्था की एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता है, अत्यधिक जटिल श्रम विभाजन। कार्य असंख्य विभिन्न व्यवसायों में विभाजित हो गया है जिनमें लोग विशेषज्ञ हैं। पारंपरिक समाजों में गैर कृषि कार्य को हस्तकौशल की दक्षता के साथ जोड़ा जाता था। हस्तकौशल लंबे प्रशिक्षण के माध्यम से सीखा जाता था और सामान्यतः श्रमिक उत्पादन प्रक्रिया के आरंभ से अंत तक सभी कार्य करता था। आधुनिक समाज ने भी कार्य की स्थिति में परिवर्तन देखा है। औद्योगीकरण से पूर्व, अधिकतर कार्य घर पर किए जाते थे और कार्य पूरा करने में परिवार के सभी सदस्य सामूहिक रूप से हाथ बंटाते थे।

4. अपने समाज में विद्यमान विभिन्न प्रकार के अधिकारों पर चर्चा करें। वे आपके जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं?

उत्तर: अधिकार के प्रकारः

(i) नागरिक अधिकार (Civil Rights): नागरिकता के अधिकारों में नागरिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकार शामिल हैं। नागरिक अधिकारों में व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार रहने की जगह चुनने की, भाषण और धर्म की स्वतंत्रता, अपनी संपत्ति रखने का अधिकार तथा कानून के समक्ष समान न्याय का अधिकार शामिल हैं।

(ii) राजनीतिक अधिकार (Political Rights): राजनीतिक अधिकारों में चुनावों में भाग लेने और सार्वजनिक पद के लिए खड़े होने का अधिकार शामिल है। अधिकतर देशों में सरकारें सर्वव्यापक मतदान के सिद्धांत को स्वीकार करने से इंकार करती थीं। आरंभिक वर्षों में न केवल महिलाओं को अपितु पुरुषों की बड़ी जनसंख्या को भी मतदान से बाहर रखा जाता था क्योंकि एक निश्चित मात्रा में संपत्ति होना इसका मापदंड था। महिलाओं को बहुत समय तक इस अधिकार के लिए इंतज़ार करना पड़ा।

(iii) सामाजिक अधिकार (Social Rights): इनका सरोकार प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न्यूनतम स्तर तक आर्थिक कल्याण और सुरक्षा प्राप्त होने के विशेष अधिकार से है। इन अधिकारों में शमिल हैं स्वास्थ्य लाभ, बेरोजगारी भत्ता और न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित करने के अधिकार।

(iv) कल्याणकारी अधिकार (Welfare Rights): कल्याणकारी अधिकारों की व्यापकता ने कल्याणकारी राज्यों को जन्म दिया जो कि पश्चिमी समाजों में दूसरे विश्व युद्ध के समय से स्थापित किए गए थे। पूर्व समाजवादी देशों के राज्यों की इस क्षेत्र में काफ़ी अच्छी व्यवस्था थी। अधिकतर विकासशील देशों में वास्तव में यह विद्यमान नहीं था।

5. समाजशास्त्र धर्म का अध्ययन कैसे करता है?

उत्तर: धर्म का समाजशास्त्रीय अध्ययन धर्म के धार्मिक या ईश्वरमीमांसीय अध्ययन से कई तरीके से अलग है। पहला, यह धर्म समाज में वास्तव में कैसे कार्य करता है और अन्य संस्थाओं के साथ इसका क्या संबंध है, के बारे में आनुभविक अध्ययन करता है। दूसरा, यह तुलनात्मक पद्धति का उपयोग करता है। तीसरा, यह समाज और संस्कृति के अन्य पक्षों के संबंध में धार्मिक विश्वासों, व्यवहारों और संस्थाओं की जाँच करता है।

आनुभविक पद्धति का अर्थ है कि समाजशास्त्री धार्मिक प्रघटनाओं के लिए निर्णायक उपागम को नहीं अपनाता। तुलनात्मक पद्धति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह एक अर्थ में सभी समाजों को एक दूसरे के समान स्तर पर रखती है। यह बिना किसी पूर्वाग्रह और भेदभाव के अध्ययन में सहायता करती है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का अर्थ है कि धार्मिक जीवन को केवल घरेलू जीवन, आर्थिक जीवन और राजनीतिक जीवन के साथ संबद्ध करके ही बोधगम्य बनाया जा सकता है।

धर्म सभी ज्ञात समाजों में विद्यमान है हालाँकि धार्मिक विश्वास और व्यवहार एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में बदलते रहते हैं। सभी धर्मों की समान विशेषताएँ हैं—

(i) प्रतीकों का समुच्चय, श्रद्धा या सम्मान की भावनाएँ।

(ii) अनुष्ठान या समारोह।

(iii) विश्वासकर्ताओं का एक समुदाय।

धर्म के साथ संबद्ध अनुष्ठान विविध प्रकार के होते हैं। आनुष्ठानिक कार्यों में प्रार्थना करना, गुणगान करना, भजन गाना, विशेष प्रकार का भोजन करना (या ऐसा भोजन नहीं करना), कुछ दिनों का उपवास रखना और इसी प्रकार के अन्य कार्य शामिल होते हैं। चूँकि आनुष्ठानिक कार्य धार्मिक प्रतीकों से संबद्ध होते हैं अतः इन्हें प्रायः सामान्य जीवन की आदतों और क्रियाविधियों से एकदम भिन्न रूप में देखा जाता है। धर्म एक पवित्र क्षेत्र है। इस बात पर विचार करें कि विभिन्न धर्मों के सदस्य पवित्र क्षेत्र में प्रवेश करने के पूर्व क्या करते हैं। उदाहरण के लिए, सिर को ढकते हैं, या नहीं ढकते, जूते उतारते हैं, या विशेष प्रकार के वस्त्र धारण करते हैं, आदि। इन सबमें जो बात समान है वह है श्रद्धा की भावना, पवित्र स्थानों या स्थितियों की पहचान और उनके प्रति सम्मान की भावना।

6. सामाजिक संस्था के रूप में विद्यालय पर एक निबंध लिखिए। अपनी पढ़ाई और वैयक्तिक प्रेक्षणों, दोनों का इसमें प्रयोग कीजिए।

उत्तर: शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें सीखने की औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की संस्थाएँ शामिल हैं। हम सभी जानते हैं कि विद्यालय में प्रवेश लेना कितना महत्त्वपूर्ण है। हम यह भी जानते हैं कि हम में से बहुतों के लिए विद्यालय उच्च शिक्षा और अंत में रोज़गार प्राप्त करने की तरफ़ एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हममें से कुछ के लिए यह कुछ आवश्यक सामाजिक दक्षताएँ प्राप्त करने का साधन हो सकती है। इन सभी मामलों में सामान्य बात है, शिक्षा की आवश्यकता का महसूस होना।

समाजशास्त्र इस आवश्यकता को समूह की विरासत के प्रेषण/संप्रेषण की प्रक्रिया के रूप में समझता है जो सभी समाजों में पाई जाती है। साधारण समाजों और जटिल आधुनिक समाजों में एक गुणात्मक अंतर है। साधारण समाजों में औपचारिक विद्यालय जाने की आवश्यकता नहीं थी। बच्चे बड़ों के साथ क्रियाकलापों में शामिल होकर प्रथाओं और जीवन के व्यापक तरीके सीख लेते थे। जटिल समाजों में हमने देखा कि श्रम का आर्थिक विभाजन बढ़ रहा है, घर से कार्यों का विभाजन हो रहा है, विशिष्ट शिक्षा और दक्षता प्राप्त करने की आवश्यकता है, राज्य व्यवस्थाओं, राष्ट्रों और प्रतीकों एवं विचारों के जटिल समुच्चय की भी उत्पत्ति हो रही है।

आधुनिक समाजों में विद्यालयों की रचना एकरूपता, मानकीकृत प्रेरणाओं और सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए की जाती है। इसे करने के अनेक तरीके हैं। 

7. चर्चा कीजिए कि सामाजिक संस्थाएँ परस्पर कैसे संपर्क करती हैं। आप विद्यालय के वरिष्ठ छात्र के रूप में स्वयं के बारे में चर्चा आरंभ कर सकते हैं। साथ ही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा आपके व्यक्तित्व को किस प्रकार एक आकार दिया गया, इसके बारे में भी चर्चा करें। क्या आप इन सामाजिक संस्थाओं से पूरी तरह नियंत्रित हैं या आप इनका विरोध या इन्हें पुनः परिभाषित कर सकते हैं?

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

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