NCERT Class 11 Sociology Samaj Shastra Parichay Chapter 4 संस्कृत तथा समाजीकरण

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Chapter: 4

समाजशास्त्र परिचय
अभ्यास

1. समाजिक विज्ञान में संस्कृति की समझ, दैनिक प्रयोग के शब्द ‘संस्कृति’ से कैसे भिन्न है?

उत्तर: सामान्यतया ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग शास्त्रीय संगीत, नृत्य तथा चित्रकला में परिष्कृत रुचि का ज्ञान प्राप्त करने के संदर्भ में किया जाता है। यह परिष्कृत रुचि लोगों को ‘असांस्कृतिक’ आम व्यक्तियों से अलग करने के लिए रखी गई थी। जैसाकि आजकल हम देखते हैं कि हम स्वयं चाय के स्थान पर कॉफी को प्राथमिकता देते हैं। ‘संस्कृति’ समाजशास्त्र की शब्दावली में प्रयुक्त की जाने वाली एक विशिष्ट संकल्पना है। इस नाते इसका एक सुस्पुष्ट अर्थ है, जो इस संकल्पना के दैनिक प्रयोग में लगाए गए अर्थ से भिन्न होता है। इसके विपरीत समाजशास्त्री संस्कृति को व्यक्तियों में विभेद करने वाला साधन नहीं मानते, परंतु जीवन जीने का एक तरीका मानते हैं जिसमें समाज के सभी सदस्य भाग लेते हैं। प्रत्येक सामाजिक संस्था अपनी स्वयं की संस्कृति का विकास करती है। अंग्रेज़ विद्वान एडवर्ड टायलर संस्कृति की एक पूर्व मानवविज्ञानीय परिभाषा देते हैं: ‘संस्कृति या सभ्यता अपने व्यापक नृजातीय अर्थ में एक जटिल समग्र है जिसमें ज्ञान, आस्था, कला, नैतिकता, कानून, प्रथा तथा मनुष्य के समाज के सदस्य के रूप में होने के फलस्वरूप प्राप्त अन्य क्षमताएँ तथा आदतें शामिल हैं’। मानवविज्ञान के ‘प्रकार्यात्मक स्कूल’ के संस्थापक पोलैंड के ब्रोनिसला मैलिनोवस्की (1884-1942) ने दो पीढ़ियों के बाद लिखा-‘संस्कृति में उत्तराधिकार में प्राप्त कलाकृतियाँ, वस्तुएँ, तकनीकी प्रक्रिया, विचार, आदतें तथा मूल्य शामिल हैं’।

क्लिफोर्ड ग्रीट्ज़ ने सुझाव दिया था कि हम मानवीय क्रियाओं को पुस्तक में दिए गए शब्दों की तरह देखते हैं तथा उन्हें संदेश का संप्रेषण करते हुए देखते है। मानव एक प्राणी है जो अपने स्वयं के बुने हुए महत्त्वाकांक्षाओं के जाल में फँसा हुआ है।

2. हम कैसे दर्शा सकते हैं कि संस्कृति के विभिन्न आयाम मिलकर समग्र बनाते हैं?

उत्तर: संस्कृति के तीन आयाम प्रचलित है—

(i) संज्ञानात्मक: इसका संदर्भ हमारे द्वारा देखे या सुने गए को, व्यवहार में लाकर उसे अर्थ प्रदान करने की प्रक्रिया के सीखने से है। (अपने मोबाइल फोन की घंटी को पहचानना, किसी नेता के कार्टून की पहचान करना)।

(ii) मानकीय: इसका संबंध आचरण के नियमों से है (अन्य व्यक्तियों के पत्रों को न खोलना, निधन पर अनुष्ठानों का निष्पादन)।

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(iii) भौतिक: इसमें भौतिक साधनों के प्रयोग से संभव कोई भी क्रियाकलाप शामिल है। भौतिक पदार्थों में उपकरण या यंत्र भी शामिल हैं। उदाहरणार्थ; इसमें इंटरनेट ‘चैटिंग’, ज़मीन पर ‘कोलम’ बनाने के लिए चावल के आटे का उपयोग शामिल है। इन तीनों आयामों के समग्र से ही संस्कृति का निर्माण होता है। व्यक्ति अपनी पहचान अपनी संस्कृति से ही करता है तथा संस्कृति के आधार पर ही अपने को अन्य संस्कृतियों के लोगों से अलग समझता है।

3. उन दो संस्कृतियों की तुलना करें जिनसे आप परिचित हों। क्या नृजातीय नहीं बनना कठिन नहीं हैं?

उत्तर: व्यक्ति अपनी पहचान अपनी संस्कृति से करता है। समानं भाषा, क्षेत्र, धर्म, प्रजाति, अंतर्विवाह, रीति-रिवाज और धार्मिक विश्वासों के आधार पर बने सांस्कृतिक समूहों को नृजातीय समूह भी कहा जाता है। हम पूर्वी विशेषतः भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों से पूर्ण रूप से परिचित हैं। दोनों संस्कृतियाँ एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न हैं। भारतीय संस्कृति कृषि आधारित है और लोग एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यह एक जन सामूहिक समाज है और समाजीकरण पर बल दिया जाता है। सामूहिक समाजों में स्वयं और समूह के मध्य विद्यमान सीमा लचीली होती है और लोग एक-दूसरे के जीवन में प्रवेश/हस्तक्षेप कर सकते हैं। प्रत्येक नृजातीय समूह की अपनी नृजातीय अस्मिता होती है जिसका अर्थ समानता और अनन्यता से है। एक ओर, नृजातीय अस्मिता इस बात की ओर संकेत करती है कि नृजातीय समूहों के सदस्यों में कौन-सी विशेषताएँ समान हैं तथा दूसरी ओर, इससे उन विशेषताओं का भी पता चलता है जो उन्हें दूसरे नृजातीय समूह से अलग करती है।

थॉमस बाबींगटोन मैकॉले के भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी को भेजे गए शिक्षा (1835) के प्रसिद्ध विवरण में नृजातीयता का उदाहरण दिया गया है जब वे कहते हैं, ‘हमें इस समय एक ऐसे वर्ग का निर्माण करने का भरसक प्रयास करना चाहिए जो हमारे तथा हमारे द्वारा शासित लाखों लोगों के बीच द्विभाषियों का कार्य करे, व्यक्तियों का ऐसा वर्ग जो खून तथा रंग में भारतीय हो परंतु रुचि में, विचार में, नैतिकता तथा प्रतिभा में अंग्रेज़ हो’।

जब हम दो संस्कृतियों की तुलना करते हैं तो हम दो नृजातीय समूहों में भेद करने का प्रयास करते हैं। उदाहरणार्थ-जब हम हिंदु संस्कृति की तुलना मुस्लिम संस्कृति से करने का प्रयास करते हैं तो दोनों में नृजातीय समानता एवं असमानता का पता लगाने का प्रयास करते हैं। चूँकि नृजातीय अस्मिता ही संस्कृति की पहचान होती है। इसलिए अनुजातीयता अर्थात् नृजातीय नहीं बनना बहुत कठिन होता है। वस्तुतः राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म, क्षेत्र, प्रजाति, जाति, अहम् आदि की भावनाएँ नृजातीयता से जुड़ी होती हैं। इन्हें छोड़कर दो नृजातीय समूह या दो संस्कृतियों के लोग एक हों जाएँ, ऐसा असंभव तो नहीं है परंतु अत्यधिक कठिन है।

4. सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए दो विभिन्न उपागमों की चर्चा करें।

उत्तर: संस्कृति के विभिन्न पक्षों में होने वाले परिवर्तन को सांस्कृतिक परिवतर्न कहते हैं। सांस्कृतिक परिवर्तन समाज के आदर्शों और मूल्यों की व्यवस्था में होने वाला परिवर्तन है। सांस्कृतिक परिवर्तन वह तरीका है जिसके द्वारा समाज अपनी संस्कृति के प्रतिमानों को बदलता है। परिवर्तन के लिए प्रेरणा आंतरिक या बाहरी हो सकती है। उदाहरण के लिए, आंतरिक कारणों में, कृषि या खेती करने की नयी पद्धतियाँ, कृषि उत्पादन को बढ़ा सकती हैं जिससे खाद्य उपभोग की प्रकृति तथा कृषक समुदाय की जीवन शैली में परिवर्तन आ सकता है। दूसरी तरफ़ बाहरी हस्तक्षेप जीत या उपनिवेशीकरण के रूप में हो सकते हैं जिससे एक समाज के सांस्कृतिक आचरण तथा व्यवहार में गहरे परिवर्तन हो सकते हैं।

प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन, अन्य संस्कृतियों से संपर्क या अनुकूलन की प्रक्रियाओं द्वारा सांस्कृतिक परिवर्तन हो सकते हैं। प्राकृतिक वातावरण या पारिस्थितिकी में परिवर्तन से लोगों की जीवन शैली में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो सकते हैं। जब जंगलों में रहने वाले समुदायों को जंगलों तक जाने तथा इसकी उपज से कानूनी प्रतिबंधों के कारण या जंगलों के समाप्त होने के कारण रोका जाएगा तो इसके निवासियों तथा उनकी जीवन शैली पर अनेक विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।

विकासात्मक परिवर्तनों के साथ-साथ क्रांतिकारी परिवर्तन भी हो सकते हैं। जब किसी संस्कृति में तीव्रता से बदलाव आता है और इसके मूल्यों तथा अर्थकारी व्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं, तभी क्रांतिकारी परिवर्तन होते हैं। क्रांतिकारी परिवर्तनों की शुरुआत राजनीतिक हस्तक्षेप, तकनीकी खोज या पारिस्थितिकीय रूपांतरण के कारण हो सकती है।

5. क्या विश्वव्यापीकरण को आप आधुनिकता से जोड़ते हैं? नृजातीयता का प्रेक्षण करें तथा उदाहरण दें।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

6. आपके अनुसार आपकी पीढ़ी के लिए समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण क्या है? यह पहले अलग कैसे था, आप इस बारे में क्या सोचते है?

उत्तर: समाजीकरण को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा असहाय शिशु धीरे-धीरे स्वयं जानकारी प्राप्त करता है व आत्म जागरूक बनता है, जो उस संस्कृति के तरीकों के बारे में भली-भाँति जानता है, जिसमें वह जन्म लेता है। वास्तव में समाजीकरण के बिना एक व्यक्ति मानव की तरह व्यवहार नहीं कर सकता। समाजीकरण जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया आरंभिक वर्षों में घटित होती है जिसे प्रारंभिक समाजीकरण कहा जाता है। द्वितीयक समाजीकरण एक व्यक्ति के जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। हालाँकि समाजीकरण का प्रत्येक व्यक्ति पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है परंतु यह ‘सांस्कृतिक कार्यक्रम’ की तरह से नहीं है जिसमें शिशु अपने संपर्क में आने वाले लोगों के प्रभाव को बिना किसी विरोध के ग्रहण करता है। नवजात शिशु भी अपनी इच्छा व्यक्त कर सकता है। जब भूख लगेगी तो वह चिल्लाएगा तथा तब तक चिल्लाता रहेगा जब तक उसकी देखभाल करने वाले कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते।

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