Class 10 Ambar Bhag 2 Chapter 8 आत्म – निर्भरता

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Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 8 आत्म – निर्भरता

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आत्म – निर्भरता

पाठ – 8

बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन कीजिए: 

(क) किस राजा ने विपत्तियों में भी सत्य का सहारा नहीं छोड़ा?

(i) राजा हरिश्चंद्र।

(ii) महाराणा प्रताप।

(iii) पृथ्वीराज चौहान।

(iv) जयचंद।

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उत्तरः (i) राजा हरिश्चंद्र।

(ख) कौन-से कवि जीवन भर विलासी राजाओं के हाथ की कठपुतली बने रहे?

(i) तुलसीदास।

(ii) कुंभनदास।

(iii) केशवदास।

(iv) कबीरदास।

उत्तरः (iii) केशवदास।

(ग) किस कवि ने अकबर के बुलाने पर फतेहपुर सीकरी जाने से इनकार कर दिया था?

(i) कबीरदास।

(ii) तुलसीदास।

(iii) केशवदास।

(iv) कुंभनदास।

उत्तरः (iv) कुंभनदास।

(घ) अमेरिका की खोज किसने की थी?

(i) वास्को डिगामा।

(ii) कोलंबस।

(iii) हॉकिन्स।

(iv) जॉर्ज वाशिंगटन।

उत्तरः (ii) कोलंबस।

2. पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए:

(क) आत्म-संस्कार के लिए क्या आवश्यक माना गया है? 

उत्तरः मानसिक स्वतंत्रता को आवश्यक माना गया है।

(ख) युवाओं को सदा क्या स्मरण रखना चाहिए?

उत्तरः युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। उसे इस बात का ध्यान रखना वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटों और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे। ये बातें आत्म-मर्यादा के लिए आवश्यक हैं।

(ग) लेखक ने सच्ची आत्मा किसे माना है? 

उत्तरः जो विषम परिस्थितियों में भी हमारा सही मार्गदर्शन करती है।

(घ) ‘मोको कहाँ सीकरी सों काम।’- यह किसका कथन है? 

उत्तरः यह कुंभनदास का कथन है।

(ङ) एकलव्य कौन था?

उत्तरः एकलव्य भील जाति का एक नवयुवक था। 

(च) शिवाजी ने मराठी सिपाहियों के सहारे किसकी सेना को तितर-बितर कर दिया था? 

उत्तर: औरंगजेब की सेना को। 

(छ) आत्म-मर्यादा के लिए कौन-सी बातें आवश्यक हैं? 

उत्तरः कोमलता, विनम्रता, मानसिक स्वतंत्रता एवं आत्म-निर्भरता आवश्यक है।

3. संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) ‘नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन नहीं है।’ – यहाँ लेखक ने दब्बूपन के क्या लक्षण बताए हैं? 

उत्तरः दब्बूपन मनुष्य की कमजोरी होती है, जिससे मनुष्य का संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है, जिसके कारण मनुष्य आगे बढ़ने के समय भी पीछे रहता है और अवसर पड़ने पर घट पट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता।

(ख) मर्यादापूर्वक जीवन बिताने के लिए कौन-से गुण अवश्यक हैं?

उत्तरः मर्यादापूर्वक जीवन बिताने के लिए मनुष्य का आदर्शवान बनना आवश्यक है। इन आदर्शों में मानसिक स्वतंत्रता के साथ-साथ स्वाभिमान एवं विनम्रता जैसे गुणों की आवश्यकता है।

(ग) राजा हरिश्चंद्र की प्रतिज्ञा क्या थी?

उत्तरः राजा हरिश्चंद्र की यही प्रतिज्ञा रही कि- 

“चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार,

पै दृढ़ श्री हरिश्चंद्र कौ, टरै न सत्य विचार।’

(घ) महाराणा प्रताप ने दूसरे की अधीनता स्वीकार करने के बजाए कष्ट झेलना मुनासिव क्यों समझा?

उत्तर: महाराणा प्रताप एक बहादुर योद्धा एवं आत्मनिर्भर पुरुष थे। उनमें स्वाभिमान, देशप्रेम एवं समर्पण की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वे मरते दम तक अपनी मातृभूमि को बचाना चाहते थे। उन्हें स्वतंत्रता प्यारी थी। इसलिए उन्होंने मुगलों की अधीनता के बजाए कष्ट झेलना स्वीकार किया।

(ङ) ‘अब तेरा किला कहाँ है?” – यह प्रश्न किसने किससे किया था तथा इसका उत्तर क्या मिला?

उत्तर: यह प्रश्न बलवाइयों ने एक रोमन राजनीतिक से पूछा था। 

उत्तर में उसने कहा – ‘यहाँ’ अर्थात् संकट के समय मनुष्य का हृदय ही भारी गढ़ या आश्रय स्थल होता है, जो उचित – अनुचित का ज्ञान कराता है। यह संकट के समय हमारा सही मार्गदर्शन भी कराता है जिससे बगैर घबराए मनुष्य मुसीबत का सामना करता है।

(च) किस प्रकार का व्यक्ति आत्म संस्कार के कार्य में उन्नति नहीं कर सकता?

 उत्तर: जो युवा पुरूष सब बातों में दूसरों का सहारा चाहते हैं, जो सदा एक नया अगुआ ढूँढ़ा करते हैं और उसके अनुयायी बना करते हैं, वे आत्म – संस्कार के कार्य में उन्नति नहीं कर सकते।

(छ) लेखक तुलसीदास एवं केशवदास की तुलना द्वारा क्या साबित करना चाहते हैं?

उत्तर: तुलसीदास मानसिक स्वतंत्रता निता और आत्म- निर्भरता के कारण विश्वप्रसिद्ध कवि बने। दूसरी ओर केशवदास स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सके और जीवन भर विलासी राजाओं के दरबारी कवि बने रहे। उन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। यहाँ लेखक के कहने का विशेष अर्थ यह है कि बगैर आत्म- निर्भरता के कोई भी उन्नति नहीं कर सकता। 

(ज) मनुष्य और दास में क्या अंतर है? पठित पाठ के आधार पर बताइए। 

उत्तरः 

मनुष्यदास
मनुष्य आत्मनिर्भर होता हैदास आत्मनिर्भर नहीं होता है
मनुष्य स्वतंत्र होता हैदास स्वतंत्र नहीं होता है
मनुष्य किसी के आदेश से नहीं चलता हैदास को मालिक के आदेशों पर चलना होता है

(झ) चित्त वृत्ति की महत्ता को दर्शाने के लिए लेखक ने क्या-क्या उदाहरण दिए हैं? 

उत्तरः (i) हनुमान ने अकेले सीता की खोज की। 

(ii) शिवाजी ने थोड़े से सिपाहियों की सहायता से औरंगजेब की सेना को तितर- बितर कर दिया।

(iii) राजा हरिश्चंद्र सत्य के सहारे संकटों से छुटकारा प्राप्त किए। 

(iv) महाराणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। 

(v) राम-लक्ष्मण ने बड़े-बड़े पराक्रमी वीरों पर विजय प्राप्त की।

(ञ) उपन्यासकार स्कॉट किस मुसीबत में फँसे और इससे उन्हें कैसे छुटकारा मिला?

उत्तरः उपन्यासकार स्कॉट एक बार ऋण के बोझ से बिलकुल दब गए। मित्रों ने उनकी सहायता करनी चाही। पर उन्होंने अपने मित्रों की सहायता नहीं ली और स्वयं अपनी प्रतिभा का सहारा लेकर अनेक उपन्यास थोड़े समय के बीच लिखकर लाखों का ऋण अपने सिर से उतार दिया।

4. सम्यक् उत्तर दीजिए:

(क) लेखक ने महाराणा प्रताप और राजा हरिश्चंद्र के उदाहरणों के माध्यम से क्या समझाना चाहा है?

उत्तरः महाराणा प्रताप और राजा हरिश्चंद्र दोनों आत्म-संस्कारी पुरुष थे। राजा हरिश्चंद्र सत्य का सहारा छोड़कर स्वार्थपूर्ति की बात करते तो इतिहास में हमें इतना उत्तम और सार्थक उदाहरण नहीं मिलता। महाराणा प्रताप यदि मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लेते तो उन्हें गद्दार की श्रेणी में रखा जाता। उन्होंने हमारे सामने उच्च कोटि के देशप्रेम एवं समर्पण भाव को प्रस्तुत किया। हम उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं और गर्व करते हैं। महाराणा प्रताप और राजा हरिश्चंद्र आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी पुरुष थे। ये दोनों दृढ़ संकल्प वाले चरित्रवान व्यक्ति थे। लोक कल्याण की भावना इनमें कूट-कूटकर भरी थी। इन्होंने आत्मा के विरुद्ध कभी कोई काम नहीं किया।

(ख) पाठ में आए कुछ आत्म – निर्भरशील व्यक्तियों के बारे में बताइए। 

उत्तर: (i) राजा हरिश्चंद्र – अयोध्या के राजा हरिशचंद्र बहुत ही सत्यवादी और धर्मपरायण राजा थे। वे भगवान राम के पूर्वज थे। वे अपने सत्य धर्म का पालन करने और वचनों को निभाने के लिए राजपाट छोड़कर पत्नी और बच्चे के साथ जंगल चले गए और वहां भी उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया। 

ऋषि विश्वामित्र द्वारा राजा हरिशचंद्र के धर्म की परीक्षा लेने के लिए उनसे दान में उनका संपूर्ण राज्य मांग लिया गया था। राजा हरीशचंद्र भी अपने वचनों के पालन के लिए विश्वामित्र को संपूर्ण राज्य सौंपकर जंगल में चले गए। दान में राज्य मांगने के बाद भी विश्वामित्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनसे दक्षिणा भी मांगने लगे।

हरीशचंद्र अपने धर्म पालन करते हुए कर की मांग करते हैं। इस विषम परिस्थिति में भी राजा का धर्म-पथ नहीं डगमगाया। विश्वामित्र अपनी अंतिम चाल चलते हुए हरिशचंद्र की पत्नी को डायन का आरोप लगाकर उसे मरवाने के लिए हरीशचंद्र को काम सौंपते हैं।

(ii) महाराणा प्रताप – महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को भी मनाई जाती है।

प्रताप के काल में दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद महाराणा प्रताप ने अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की,‍ जिसकी आस लिए ही वह इस दुनिया से चला गया।

(iii) गोस्वामी तुलसीदास – गोस्वामी तुलसीदास का जन्मस्थान विवादित है। अधिकांश विद्वानों व राजकीय साक्ष्यों के अनुसार इनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र, जनपद कासगंज, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म राजापुर जिला चित्रकूट में हुआ मानते हैं। सोरों उत्तर प्रदेश के कासगंज जनपद के अंतर्गत एक सतयुगीन तीर्थस्थल शूकरक्षेत्र है। वहां पं० सच्चिदानंद शुक्ल नामक एक प्रतिष्ठित सनाढ्य ब्राह्मण रहते थे। उनके दो पुत्र थे, पं० आत्माराम शुक्ल और पं० जीवाराम शुक्ल। पं० आत्माराम शुक्ल एवं हुलसी के पुत्र का नाम महाकवि गोस्वामी तुलसीदास था, जिन्होंने श्रीरामचरितमानस महाग्रंथ की रचना की थी। नंददास जी के छोटे भाई का नाम चँदहास था। नंददास जी, तुलसीदास जी के सगे चचेरे भाई थे। नंददास जी के पुत्र का नाम कृष्णदास था। नंददास ने कई रचनाएँ- रसमंजरी, अनेकार्थमंजरी, भागवत्-दशम स्कंध, श्याम सगाई, गोवर्द्धन लीला, सुदामा चरित, विरहमंजरी, रूप मंजरी, रुक्मिणी मंगल, रासपंचाध्यायी, भँवर गीत, सिद्धांत पंचाध्यायी, नंददास पदावली हैं। 

भगवान की प्रेरणा से शूकरक्षेत्र में रहकर पाठशाला चलाने वाले गुरु नृसिंह चौधरी ने इस रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूँढ निकाला और विधिवत उसका नाम तुलसीदास रखा। गुरु नृसिंह चौधरी ने ही इन्हें रामायण, पिंगलशास्त्र व गुरु हरिहरानंद ने इन्हें संगीत की शिक्षा दी। तदोपरान्त बदरिया निवासी दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से इनका विवाह हुआ। एक पुत्र भी इन्हें प्राप्त हुआ, जिसका नाम तारापति/तारक था, जोकि कुछ समय बाद ही काल कवलित हो गया। रत्नावली के पीहर (बदरिया) चले जाने पर ये रात में ही गंगा को तैरकर पार करके बदरिया जा पहुंचे। तब रत्नावली ने लज्जित होकर इन्हें धिक्कारा। उन्हीं वचनों को सुनकर इनके मन में वैराग्य के अंकुर फूट गए और 36 वर्ष की अवस्था में शूकरक्षेत्र सोरों को सदा के लिए त्यागकर चले गए। 

(iv) उपन्यासकार स्कॉट – इनका पूरा नाम सर वाल्टर स्कॉट था। इनका जन्म स्कॉटलैण्ड में हुआ था। ये एक ही साथ उच्च कोटि के कवि, इतिहासकार, उपन्यासकार तथा नाटककार भी थे। इवानहो, रॉब रॉय, ओल्ड मोर्टलिटी, द लेडी ऑफ द लेक, द हर्ट ऑफ मिडलोथियन आदि इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। 

(ग) आत्म-निर्भरता के लिए कौन-कौन से गुण अनिवार्य हैं ? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तरः आत्म-निर्भरता मनुष्य का सर्वोपरि गुण है। जो लोग अपना कार्य स्वयं करते हैं, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करते हैं, जरूरत पड़ने पर अपना निर्णय स्वयं लेते हैं- उन्हें आत्मनिर्भर व्यक्ति कहा जाता है। आत्म-निर्भरता को स्वावलंबन भी कहते हैं। यह वह गुण है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पैरों के बल खड़ा होता है।

आत्म-निर्भरता के लिए अनेक गुण अनिवार्य हैं। हालांकि जो लोग आत्मनिर्भर होते हैं, उन्हें अन्य गुणों की आवश्यकता नहीं होती। सभी गुण आत्म-निर्भरता में ही समाहित होते हैं। इसके लिए आत्म-संस्कार, मानसिक स्वतंत्रता, स्वाभिमान, हृदय की उदारता, परोपकारिता, विनम्रता, कृतज्ञता आदि की आवश्यकता पड़ती है। वस्तुतः आत्म-निर्भरता अपने-आप में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी गुण है। जो आत्मनिर्भर होते हैं- उनमें ये सभी गुण अनायास आ जाते हैं। आत्मनिर्भर व्यक्ति अकेले दम पर आगे बढ़ता रहता है। वह कभी दूसरे के पीछे नहीं चलता। ऐसे व्यक्ति दृढ़ चित्तवृति के होते हैं तथा अपने विचार एवं निर्णय की स्वतंत्रता को दृढ़तापूर्वक बनाए रखते हैं।

5. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) मनुष्य का बेड़ा अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर लगाए। 

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। 

स्वावलंबन के महत्व को दर्शाते हुए शुक्ल जी ने लोगों को यह समझाने का प्रयास किया है कि अपने कर्मों से ही व्यक्ति का विकास या पतन हो सकता है। वस्तुतः मनुष्य अपने जीवन में जो भी कर्म करता है, उसका उत्तरदायी स्वयं होता है। हमारे कामों से ही हमारी रक्षा और हमारा पतन होगा। एक आत्मनिर्भर व्यक्ति सही निर्णय लेता है, सही मार्ग अपनाता है और सही कार्य करता है। सभी जीवन रूपी नौका (बेड़ा) पर सवार हैं। अब उनके ऊपर है कि वे किस प्रकार अपनी नौका को किनारे लाते हैं अथवा मझधार में ही अटक जाते हैं। व्यक्ति कर्म से ही महान बनता है और कर्म से ही बदनाम भी होता है। अतः निर्णय अपने हाथ में है और जीवन रूपी नौका का पतवार भी अपने ही हाथ में है। यह आपके ऊपर है कि आप विकास का रास्ता अपनाते है अथवा पतन का।

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

(ख) सच्ची आत्मा वही है, जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

आत्म-निर्भरता के महत्व को दर्शाते हुए विद्वान लेखक ने हमें यह समझाने का प्रयास किया है कि सही निर्णय लेने वाला व्यक्ति हमेशा सही मार्ग पर चलता है। आत्मा हमारी बुद्धि और विवेक की पराकाष्ठा का नाम है। मनुष्य का मन चंचल होता है और संकट के समय यह विचलित भी हो सकता है। परन्तु आत्मा सदैव हमारा उचित और सही मार्गदर्शन करती है। जब हम संकट में होते हैं, कठिन परिस्थिति में भी हमारी आत्मा सच्ची सलाह देती है। और हम सही निर्णय लेकर साहस के साथ आगे बढ़ते हैं। हमें सफलता मिलती है। अर्थात् आत्मनिर्भरशील व्यक्ति विपत्ति में भी एक समान रहते हैं। वे अपना धैर्य नहीं खोते और अपने कार्य में सफल होते हैं।

(ग) जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना ही ऊपर रखता है, उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध’ आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

आत्म-निर्भरता की महत्ता बताते हुए विद्वान लेखक यह बताना चाहते हैं कि ऊँची सोच और विचार रखने वाला व्यक्ति ही समाज का ऊँचा या महान व्यक्ति होता है। लेखक का मानना है कि दृढ़ निश्चय वाला उच्चाशय और विनम्र व्यक्ति ही अपने लक्ष्य में सफल होता है। प्रत्येक मनुष्य का अपना जीवन लक्ष्य होता है। वह उसी अनुरूप कार्य करता है। जिसका लक्ष्य जितना महान होता है वह जीवन में उतना ही सफल व्यक्ति माना जाता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा कुछ बड़ा और महान सोचना चाहिए। तीरंदाज अपने लक्ष्य को जितना साधता है उतना ही वह अपने लक्ष्य को बेध सकता है।

यहाँ लेखक ने हमें अपना लक्ष्य बड़ा रखने का संदेश दिया है।

(घ) मैं राह ढूँढूँगा या राह निकालूँगा।

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

साहसी और आत्मनिर्भर व्यक्ति की प्रशंसा करते हुए विद्वान लेखक ने यह दर्शाना चाहा है कि ऐसे व्यक्ति संकट के समय अथवा विषम परिस्थिति में भी अपना मार्ग स्वयं तलाश लेता है। जो आत्मनिर्भर व्यक्ति होते हैं, वे बगैर संगी- साथी के अकेले दम पर अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं। वे अपने ऊपर आने वाली विपत्तियों की परवाह नहीं करते। अथवा वे संकटों से नहीं घबराते या न अपने मार्ग से ही विचलित होते हैं। लेखक का कहने का विशेष मतलब यह है कि जिस व्यक्ति में आत्म-निर्भरता का गुण होता है, वह हमेशा सही मार्ग पर एवं सही दिशा में अपना कदम बढ़ाता है और दुर्गम जगहों में भी मार्ग की खोज कर लेता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को यही संकल्प लेना चाहिए कि संकट के समय या कठिन स्थितियों में भी मैं अपना राह स्वयं निकालूँगा।

यहाँ लेखक ने हमें आत्मनिर्भरशील व्यक्ति की दृढ़ता को दिखाया है।

भाषा एवं व्याकरण

1. निम्नलिखित उपसर्गों से दो-दो शब्द बनाइए: 

अभि, अव, वि, सु, अप, उप, कु, प्रति, परा, परि

उत्तरः अभि – अभिनव, अभिरंजन

अव  – अवतार, अवगुण

वि  – विशेष, विज्ञानसु

सु  – सुयश, सुमार्ग 

अप  – अपकार, अपमान

उप  – उपकार, उपहार

कु  – कुमार्ग, कुपुत्र 

प्रति  – प्रतिदिन, प्रतिनिधि

परा  – पराजय, पराभव 

परि – परिवर्तन, परिजन

2. निम्नलिखित संज्ञा शब्दों के विशेषण रूप लिखिए।

मर्यादा, स्वतंत्रता, विश्वास, उत्साह, आत्मा, संस्कार, व्यवहार, पतन प्रतिभा

उत्तर: मर्यादा – मर्यादित

स्वतंत्रता  –  स्वतंत्र

विश्वास –  विश्वासी

उत्साह  –  उत्साही, उत्साहित

आत्मा – आत्मिक, आत्मीय

संस्कार –  संस्कारी, सांस्कारिक

व्यवहार –  व्यावहारिक

पतन –  पतित

प्रतिभा – प्रतिभावान, प्रतिभाशाली

3. निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित पदों का परिचय दीजिए:

(क) आह! उपवन में सुंदर फूल खिले हैं। 

(ख) हम बाग में गए परंतु कोई आम न मिला।

(ग) रमेश दसवीं कक्षा में पढ़ता है।

(घ) एवरेस्ट संसार का ऊँचा शिखर है।

(ङ) भूषण वीर रस के कवि थे।

उत्तरः (क) आह! उपवन में सुंदर फूल खिले हैं।

उपवन – जातिवाचक संज्ञा, एक वचन, पुलिंग, कर्ता कारक 

सुंदर –  गुणवाचक विशेषण, पुलिंग

(ख) हम बाग में गए परंतु कोई आम न मिला।

बाग में – जातिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन, अधिकरण कारक 

परंतु – समानाधिकरण योजक, दो उपवाक्यों को मिला रहा है। 

आम – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन, कर्म

(ग) रमेश दसवी कक्षा में पढ़ता है।

रमेश – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, कर्ता कारक, अन्य पुरुष

दसवीं – संख्यावाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एक वचन

कक्षा – में जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एक वचन, अधिकरण कारक

(घ) एवरेस्ट संसार का ऊँचा शिखर है।

एवरेस्ट – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, कर्ता कारक

ऊँचा- गुणवाचक विशेषण, पुलिंग

शिखर- जातिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन

(ङ) भूषण वीर रस के कवि थे।

भूषण – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, कर्ता कारक

कवि – जातिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन

योग्यता- विस्तार

1. लेखक ने आत्म-निर्भरता के प्रसंग में कुछ महापुरुषों के उदाहरण दिए हैं। उन महापुरुषों के अतिरिक्त कुछ अन्य महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग पढ़िए, जो आत्म-निर्भरता के महत्व को उजागर करते हैं।

उत्तरः विद्यार्थी श्रवण कुमार, भक्त प्रहलाद, वीर अभिमन्यु, रानी लक्ष्मी बाई, वीर कुँवर सिंह, महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों के बारे में पढ़ें। 

2. क्या आपके जीवन में कभी आत्म-निर्भरता का पाठ चरितार्थ हुआ है? यदि हाँ, तो कुछ संस्मरणों या घटनाओं का उल्लेख कीजिए। 

उत्तरः प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कोई-न-कोई ऐसी घटना घटती है, जो उसके जीवन की दिशा बदल देती है। यदि आपके जीवन में भी ऐसी कोई घटना घटी हो अथवा ऐसा काम जो आप उसे करने से डर रहे थे लेकिन उसी काम की सफलता ने आपकी जीवन रेखा बदल दी। आप सफल व्यक्ति साबित हुए। ऐसी घटना याद करके स्वयं लिखिए।

अतिरिक्त प्रश्न उत्तर

(1) आत्म निर्भर पाठ के लेखक का नाम क्या है?

उत्तर: आचार्य रामचंद्र शुक्ल।

(2) लेखक का जन्म कहा हुआ था?

उत्तर: आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म बस्ती जिले के अगौना गांव में हुआ था।

(3) उन्होंने प्राथमिक शिक्षा कहा से प्राप्त की थी?

उत्तर: उनकी प्रांभिक शिक्षा गांव के पास के अंग्रेजी स्कूल में हुई थी, कहा उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया।

(4) हिंदी साहित्य में उनका प्रवेश किस रूप में हुआ था?

उत्तर: हिंदी साहित्य में उनका प्रवेश कवि और निबंधकार के रूप में हुआ था।

(5) उनके प्रांभलेख क्या थे?

उत्तर: ‘सरस्वती’ और नगरी ‘प्रचारिणी पत्रिका’।

(6) इनकी भाषा क्या थी?

उत्तर: ‘प्रांजल’ और ‘सूत्रपरक’।

(7) उन्होंने किन भावनाओं पर निबंधों की रचना की है?

उत्तर: उत्साह, श्रद्धा, ईर्ष्या, करुणा आदि भावनाओं पर श्रेष्ठ निबंधो की रचना की है।

(8) आचार्य शुक्ल की प्रसिद्ध ग्रंथो के नाम लिखिए?

उत्तर: आचार्य शुक्ल की प्रसिद्ध ग्रंथो के नाम हैं:-

तुलसीदास,

जयसी -ग्रंथावली की भूमिका,

सूरदास,

चिंतामणि,

हिंदी साहित्य का इतिहास,

रस मीमांसा , आदि।

पाठ सम्बन्धित प्रश्न उत्तर

(1) लेखक ने आत्म –  मर्यादा के लिए क्या महत्वपूर्ण बताया है?

उत्तर: जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन यापन करना चाहता है, उसके लिए वह गुण अनिवार्य है , जिससे आत्म निर्भरता आती है और जिससे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता हो, युवा को सदा यह स्मरण रखना चाहिए की वह बहुत कम बाते जनता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएं उसकी योग्यता से कही बड़ी हुई हैं।उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए की वह अपने बड़े का सम्मान करे, छोटो और बराबर वालो से कोमलता का व्यवहार करे, यह बाते आत्म-मर्यादा के लिए महत्वपूर्ण है।

(2) महाराणा प्रताप सिंह जंगलों में मारे मारे क्यों फिर रहे थे?

उत्तर: महाराणा प्रताप सिंह जंगलों में मारे मारे फिरते थे, अपनी स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते देखते थे, परंतु उन्होंने उन लोगो की बात न मानी, जिन्होंने उन्हे अधिंतापूर्णक जीते रहने की सम्मति दी, क्योंकि वे जानते थे कि अपना मर्यादा की चिंतन जितनी अपने को हो सकती है उतनी दूसरो की नहीं।

(3) तुलसीदास और केसवदास के बीच लेखक ने क्या अंतर बताया है?

उत्तर: लेखक कहते है की, तुलसीदास जी को लोक में इतनी सर्वप्रियता और कीर्ति प्राप्त हुई, उनका दीर्घ जीवन इतना महत्वमय और शांतिमय रहा, सब इसी मानसिक स्वतंत्रता, और आत्म – निर्भरता के कारण, वही दूसरी और उनके समकालीन केशवदास को देखिए, जो जीवन भर विलासी राजाओं के हाथ की कठपुतली बने रहे, जिन्होंने आत्म – स्वतंत्रता की ओर काम ध्यान दिया और अंत में उन्हे कष्ट हुआ।

सही विकल्प का चयन कीजिए

(1) लेखक का जन्म कब हुआ था?

(i) सन्  1884

(ii) सन् 1885

(iii) सन् 1886

(iv) सन् 1887

उत्तर: सन् 1884

(2) कौन से सन् में हिंदी और नगरी लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए वाराणसी में नगरी प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई?

(i) सन् 1888

(ii) सन् 1891

(iii) सन् 1892

(iv) सन् 1893

उत्तर: सन् 1893

(3) लेखक  किस विश्वविद्यालय में अध्यापक बने?

(i) हिंदू विश्वविद्यालय।

(ii) पंजाबी विश्वविद्यालय।

(iii) अंग्रेजी विश्वविद्यालय।

(iv) असमिया विश्वविद्यालय।

उत्तर: हिंदू विश्वविद्यालय।

(4) सुल्क जी उच्च कोटि के निबंधकार और ________ थे ?

(i) रचनाएं।

(ii) अलोचक।

(iii) भावनाए।

(iv) ग्रंथकार।

उत्तर: अलोचक।

(5) वह ड्राइंग कहा पढ़ाने लगे?

(i) दिल्ली।

(ii) मिर्जापुर।

(iii) बस्ती जिले।

(iv) मुंबई।

उत्तर: मिर्जापुर।

(6) उनका निधन कब हुआ था?

(i) सन् 1952

(ii) सन् 1965

(iii) सन् 1941

(iv) सन् 1942

उत्तर: सन् 1941 

(7) मनुष्य का बेड़ा उसके _________ हाथ में है चाहे वो जिधर लगाए ?

(i) अपने।

(ii) भाग्य।

(iii) कर्म।

(iv) नसीब।

उत्तर: अपने।

(8) अपनी आत्म को ______ रखना चाहिए?

(i) कठोर।

(ii) सरल।

(iii) सीधा ।

(iv) नम्र।

उत्तर: नम्र।

(9) अपने मन को कभी ________ हुआ न रखो ?

(i) हारा हुआ।

(ii) दुखी।

(iii) उदास।

(iv) मरा हुआ।

उत्तर: मरा हुआ।

(10)  किसके  ऊपर इतनी -इतनी विपत्तिय आई पर उन्होंने अपना सत्य नहीं छोड़ा?

(i) महाराणा प्रताप सिंह।

(ii) तुलसीदास।

(iii) राजा हरीशचंद्र।

(iv) कबीरदास।

उत्तर: राजा हरीशचंद्र।

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