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NCERT Class 12 Fine Art Chapter 1 पांडुलिपि चित्रकला की परंपरा
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पांडुलिपि चित्रकला की परंपरा
Chapter: 1
भारतीय कला का परिचय: भाग – 2
अभ्यास
1. पांडुलिपि चित्रकला क्या है? दो स्थानों का नाम बताएँ जहाँ पांडुलिपि चित्रकला की परंपरा प्रचलित थी?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला एक प्रकार की लघुचित्रकला है जो प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों और काव्य-रचनाओं को सजाने के लिए की जाती थी। इन चित्रों को हाथ से अत्यंत बारीकी से बनाया जाता था और यह धार्मिक, साहित्यिक या ऐतिहासिक कथाओं पर आधारित होते थे। इस कला का उद्देश्य न केवल ग्रंथ को सजाना था, बल्कि उसके भावों को चित्रों के माध्यम से दर्शाना भी होता है।
दो स्थानों का नाम है जहाँ पांडुलिपि चित्रकला की परंपरा प्रचलित थी—
(i) राजस्थान।
(ii) मध्य प्रदेश।
2. हमारी भाषाओं की पाठ्यपुस्तकों में से किसी एक से एक अध्याय लें तथा चयनित पाठ का सचित्र लेखन करें (न्यूनतम पाँच पृष्ठ)।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करे।
3. पांडुलिपि चित्रकला का उद्गम कहाँ और कैसे हुआ?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला का उद्गम भारत के पश्चिमी भाग में हुआ, विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान में। यह कला परंपरा प्राचीन भारत की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर मानी जाती है। पांडुलिपि चित्रकला का विकास मुख्य रूप से धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथों को सजाने और चित्रात्मक रूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से हुआ।
गुजरात में व्यापारिक केंद्रों और धार्मिक स्थलों की अधिकता के कारण यहाँ पांडुलिपि चित्रकला का संरक्षण और विकास हुआ। इसके साथ ही राजस्थान के महलों और राजघरानों में भी यह कला पनपी।
4. पांडुलिपि चित्रकला में किस प्रकार के ग्रंथों का चित्रण किया गया है?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला में धार्मिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक ग्रंथों का प्रमुखता से चित्रण किया गया। इन ग्रंथों में प्रमुख रूप से महाकाव्य, पुराण, धार्मिक आख्यान और सामाजिक विषयों पर आधारित काव्य शामिल थे।
उदाहरण के लिए, “कल्पसूत्र”, “राघवयादव”, “रासमंजरी”, “गीतगोविंद” आदि प्रमुख ग्रंथ हैं, जिनके चित्रण में विशेष रूप से धार्मिक घटनाओं, पौराणिक कथाओं और सामाजिक परिवेश को चित्रित किया गया। इन चित्रों में देवताओं, संतों, पौराणिक नायकों और ऐतिहासिक घटनाओं का सजीव चित्रण मिलता है।
5. पांडुलिपि चित्रकला में ताड़पत्र का क्या महत्व था?
उत्तर: ताड़पत्र पांडुलिपि चित्रकला के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सामग्री थी। पांडुलिपियों को तैयार करने के लिए ताड़ के पत्तों का उपयोग किया जाता था, जिन्हें पहले अच्छी तरह से तैयार किया जाता था ताकि वे चित्रांकन के लिए उपयुक्त बन सकें। चित्रांकन के लिए तेज नुकीले लेखन उपकरण का उपयोग किया जाता था, जिससे ताड़पत्र पर बारीक रेखाएँ बनाई जा सकें। ताड़पत्र पर बनाए गए चित्र अत्यधिक सटीक और विस्तारयुक्त होते थे। इन पांडुलिपियों को सहेज कर रखने के लिए लकड़ी के पट्ट और डोरी का उपयोग किया जाता था ताकि वे समय के साथ सुरक्षित रहें।
6. पांडुलिपि चित्रकला में किस प्रकार के रंगों का प्रयोग किया गया था?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला में चमकीले और आकर्षक रंगों का प्रयोग किया गया था। विशेष रूप से स्वर्ण और लाल रंग का प्रमुखता से उपयोग किया जाता था। इसके अलावा हरे, नीले, काले और सफेद रंगों का भी संतुलित उपयोग देखने को मिलता है। इन रंगों को प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता था, जैसे कि फूलों, खनिजों और पौधों से। स्वर्ण रंग को धातु से प्राप्त किया जाता था और उसे पेस्ट के रूप में उपयोग में लाया जाता था। रंगों की चमक और उनकी दीर्घकालिकता के कारण ये चित्र अत्यधिक आकर्षक और लंबे समय तक संरक्षित रहते थे।
7. पांडुलिपि चित्रकला के संरक्षण के लिए क्या उपाय किए जाते थे?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला के संरक्षण के लिए कई उपाय अपनाए जाते थे। चित्रित पांडुलिपियों को लकड़ी के पट्टों के बीच रखा जाता था। इन पट्टों को कपड़े से लपेटकर बाँधा जाता था ताकि नमी और धूल से सुरक्षित रहें। पांडुलिपियों के पृष्ठों को एक धागे या डोरी से बाँधा जाता था ताकि वे अलग न हों। इसके अलावा, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए विशेष कक्षों में रखा जाता था, जहाँ तापमान और नमी का ध्यान रखा जाता था।
8. पांडुलिपि चित्रकला में लेख और चित्र का क्या संबंध था?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला में लेख और चित्र का घनिष्ठ संबंध था। इन चित्रों में ग्रंथ के प्रमुख श्लोक या कथावस्तु को चित्र रूप में प्रस्तुत किया जाता था। चित्र के ऊपर या नीचे संबंधित पाठ को अंकित किया जाता था ताकि दर्शक चित्र का सन्दर्भ समझ सके। इस तकनीक का उद्देश्य पाठ और चित्र को एक साथ जोड़कर एक सजीव अनुभव प्रदान करना था। चित्रों में जो दृश्य प्रस्तुत किए जाते थे, वे अक्सर ग्रंथ के प्रमुख कथानक या चरित्र से जुड़े होते थे।
9. पांडुलिपि चित्रकला में शैलीगत विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला में शैलीगत विशेषताओं में स्पष्ट रेखांकन, चमकीले रंगों का उपयोग, और चित्रों की सजीवता प्रमुख थी। मानव आकृतियों में भावनाओं को व्यक्त करने के लिए स्पष्ट रेखाओं और रंगों का कुशल संयोजन किया जाता था।
इस कला में कोणीय रेखाएँ, परंपरागत अलंकरण, और वस्त्रों की बारीकी से चित्रण की विशेषता थी। कपड़ों की रंग-बिरंगी सजावट, आभूषणों का चित्रण और भाव-भंगिमाओं का सूक्ष्म चित्रण इस कला की विशेष पहचान थी।
10. पांडुलिपि चित्रकला का उद्देश्य क्या था और इसका सामाजिक महत्व क्या था?
उत्तर: पांडुलिपि चित्रकला का मुख्य उद्देश्य धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक ज्ञान का प्रचार करना था। इसके माध्यम से धार्मिक कथाएँ, पौराणिक आख्यान और सामाजिक मूल्यों को चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता था।
सामाजिक दृष्टिकोण से, पांडुलिपि चित्रकला ने लोककथाओं और धार्मिक शिक्षाओं को संरक्षित किया। यह कला उस समय की सामाजिक संरचना, धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक परंपराओं का सजीव प्रमाण है। राजघरानों और धार्मिक संस्थानों में इन चित्रों को विशेष रूप से संजोकर रखा जाता था।

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