NCERT Class 12 Fine Art Chapter 2 राजस्थानी चित्रकला शैली

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NCERT Class 12 Fine Art Chapter 2 राजस्थानी चित्रकला शैली

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Chapter: 2

भारतीय कला का परिचय: भाग – 2

अभ्यास

1. आपके विचार में किस प्रकार से पश्चिमी भारतीय पांडुलिपि चित्रकला परंपरा ने राजस्थान लघु चित्रकला परंपराओं के विकास को दिशा निर्देश दिए?

उत्तर: चित्रों का निर्माण सामान्यतया वसली पर किया जाता था। वसली बनाने की अपनी अलग विशिष्ट तकनीक होती है, जिसमें कागज़ के पतले पन्नों को गोंद से चिपकाकर आवश्यक मोटाई की वसली तैयार की जाती थी। इस प्रकार तैयार वसली पर काले या भूरे रंग से रेखांकन किया जाता था। तत्पश्चात् उसमें आवश्यक रंग भरी जाती थी। रंग मुख्य रूप से प्रकृति से प्राप्त खनिज पदार्थों व बहुमूल्य धातुओं, जैसे सोना और चाँदी से बनाए जाते थे, जिन्हें चिपकाने के लिए गोंद में मिलाया जाता है। ऊँट या गिलहरी के बालों का प्रयोग ब्रुश बनाने के लिए किया जाता है। चित्रण कार्य पूर्ण होने पर अगेट पत्थर से उसे रगड़ते थे जिससे चित्र की ऊपरी सतह समतल, चमकदार और ओजपूर्ण हो जाती थी।

चित्रकला एक सामूहिक कार्य होता है जिसका एक कुशल दक्ष कलाकार द्वारा नेतृत्व किया जाता है, जो आरंभिक रेखांकन का कार्य करता है तत्पश्चात् रंग, छवि चित्रण, वास्तु, भू-दृश्य (प्रकृति) और पशु-पक्षी बनाने में निपुण उसके शिष्य एवं दक्ष कलाकार अपना-अपना कार्य पूरा करते थे। 

यद्यपि इन शैलियों में भौगोलिक दूरी बहुत कम है, लेकिन इनकी उत्पत्ति, विकास व शैली में, सशक्त रेखांकन, रंगों की वरीयता (चमकदार और सौम्य) तथा संयोजन के तत्वों, जैसे- वास्तु, मानवाकृतियाँ, प्रकृति, अंकन की तकनीक, प्रकृतिवाद के लिए आकर्षण और वर्णन विधि आदि में पर्याप्त अंतर परिलक्षित होता है और इन्हीं विशेषताओं से वे एक-दूसरे से अलग अपनी पहचान भी बनाती हैं।

2. राजस्थानी चित्रकला की विभिन्न शैलियों का वर्णन करें और उनकी विशेषताओं को उदाहरण सहित लिखें।

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उत्तर: राजस्थानी चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ और उनकी विशेषताएँ है—

(i) मेवाड़ शैलीः यह राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभिक और महत्वपूर्ण केंद्र है। इसकी विशेषताएँ हैं सरल संयोजन, चटक रंग (विशेष रूप से लाल और पीले) और धार्मिक ग्रंथों (जैसे रामायण, भागवत पुराण) का चित्रण।

(ii) बूँदी शैलीः यह शैली अपनी उत्तम रंग योजना और उत्कृष्ट अभिकल्प के लिए जानी जाती है। इसमें रागमाला चित्रों और बारहमासा का चित्रण प्रमुख है। इस शैली में प्रकृति का मनोहारी चित्रण महत्वपूर्ण होता है। जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, पहाड़ और झरने आदि।

(iii) कोटा शैली: यह शैली शिकार के दृश्यों के चित्रण में अद्वितीय है। कोटा शैली में वन दृश्यों और वन्य जीवन को विशेष रूप से चित्रित किया गया है।

(iv) मालवा शैली: मालवा शैली मध्य भारत में विकसित हुई है। इसकी विशेषताएँ हैं द्वि-आयामी सपाट चित्रण और सरल शैली। मालवा शैली में रामायण, भागवत पुराण, रागमाला और बारहमासा जैसे विषयों का चित्रण किया गया है।

3. रागमाला क्या है? राजस्थान की विभिन्न शैलियों से रागमाला चित्रों के उदाहरण दीजिए।

उत्तर: रागमाला का शाब्दिक अर्थ है- ‘रागों की माला’। रागमाला चित्रकला में भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों और रागिनियों का चित्रात्मक रूप में निरूपण किया जाता है। प्रत्येक राग को एक भावनात्मक रूप में एक व्यक्ति, देवी-देवता, या कथा में प्रस्तुत किया जाता है।

राजस्थान की शैलियों में रागमाला चित्रों के उदाहरण है—

बूँदी शैली: इसमें चित्रकारों ने 1591 ई. में चित्तरंजन किया। प्रमुख चित्रकार: शेख हसन, शेख अली, शेख हातिम। उदाहरणः दीपक राग, चतुरार रागमाला।

किशनगढ़ शैली: राधा-कृष्ण की प्रेमाभिव्यक्ति को रागमालाओं में सुंदर रूप में दर्शाया गया है। चित्रों में सौंदर्य, भावना और श्रृंगार रस की प्रधानता है।

4. एक मानचित्र बनाएँ और उसमें राजस्थानी लघु चित्रकारी की सभी शैलियों को दर्शाएँ।

उत्तर: 

5. कौन-से ग्रंथ लघु चित्रकारी के लिए सामग्री और विषय प्रदान करते हैं? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।

उत्तर: लघु चित्रकारी के लिए सामग्री और विषय प्रदान करने वाले ग्रंथ है—

(i) रामायण और महाभारत: इन दो ग्रंथों की कथाओं पर आधारित चित्रों में युद्ध, प्रेम, त्याग और वीरता को दर्शाती है।

(ii) भागवत पुराण: विशेषकर भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों को चित्रों में दिखाया गया है। उदाहरण: ‘वन में कृष्ण और गोपियाँ’, ‘गीत गोविंद’ आदि।

(iii) गीत गोविंद (जयदेव): राधा-कृष्ण के प्रेम को आध्यात्मिक भाव में चित्रित करने वाला यह ग्रंथ चित्रकला का एक अत्यंत प्रिय विषय है।

(iv) रागमाला ग्रंथ: इस ग्रंथ में संगीत के रागों को मानवीय रूपों और भावनाओं में चित्रित किया गया है। जैसे: रागिनी भैरवी, दीपक राग, आदि।

(v) बिहारी सतसई: बिहारीलाल द्वारा रचित यह श्रृंगारिक दोहों का संग्रह है, जिसमें नायक-नायिका भेद और श्रृंगार भाव की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मिलती है।

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