NCERT Class 12 Fine Art Chapter 5 पहाड़ी चित्रकला शैली

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NCERT Class 12 Fine Art Chapter 5 पहाड़ी चित्रकला शैली

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Chapter: 5

भारतीय कला का परिचय: भाग – 2

अभ्यास

1. प्रकृति का चित्रण पहाड़ी लघुचित्रों में हर जगह दिखाई देता है। आपके अनुसार इसके क्या कारण हो सकते थे?

उत्तर: मेरे अनुसार इसके क्या कारण हो सकते थे—

(i) भौगोलिक प्रभावः हिमालय क्षेत्र की सुंदर और शांत प्राकृतिक छटा चित्रकारों के लिए एक निरंतर प्रेरणा का स्रोत थी। वनों, नदियों, झरनों, और पर्वतों का सौंदर्य उनके चित्रों में स्वतः प्रकट हुआ।

(ii) आध्यात्मिक दृष्टिकोणः इस क्षेत्र में भक्ति परंपरा विशेष रूप से प्रभावी थी, जिसमें प्रकृति को भी ईश्वर की अभिव्यक्ति माना जाता था।

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(iii) प्रेम और भक्ति विषयों में प्रकृति की भूमिकाः राधा-कृष्ण की लीलाओं, ऋतुओं के प्रभावों और नायिका-भेद पर आधारित चित्रों में प्रकृति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

(iv) संस्कृतिक प्रवृत्तियाँ: लोक-परंपराओं और पर्वों में भी प्रकृति महत्वपूर्ण स्थान रखती थी, जिसका प्रभाव चित्रकला पर पड़ा।

2. पहाड़ी लघु चित्रकला की प्रमुख शैलियाँ कौन-कौन सी हैं और किन स्थानों पर उनका विस्तार हुआ? वे आपस में एक-दूसरे से कैसे भिन्न थे? मानचित्र पर सभी पहाड़ी (हिमालय) शैलियों को अंकित कीजिए।

उत्तर: पहाड़ी लघु चित्रकला की प्रमुख शैलियाँ बसोहली, गुलेर और काँगड़ा हैं। सत्रहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में, बसोहली, गुलेर, काँगड़ा, कुल्लू, चंबा, मनकोट, नूरपुर, मंडी, बिलासपुर, जम्मू और पश्चिमी हिमालय के अन्य पहाड़ी शहर चित्रकला केंद्र के रूप में उभरे। इन शैलियों में से, बसोहली शैली अपनी अपरिष्कृत और अलंकृत शैली के लिए जानी जाती है, जबकि कांगड़ा शैली को अधिक उत्कृष्ट और परिष्कृत माना जाता है। गुलेर शैली को बसोहली और काँगड़ा शैली के बीच एक संक्रमणकालीन शैली माना जाता है।

3. अपनी पाठ्यपुस्तक से कोई कहानी या कविता चुनकर, पहाड़ी लघुचित्र शैली की किसी भी शैली में चित्रित कीजिए।

उत्तर:

4. निम्नलिखित की समीक्षा कीजिए-

(क) नैनसुख।

उत्तर: नैनसुख ने अपने गृहनगर गुलेर को छोड़ दिया था और जसरोटा चले गए थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने आरंभ में मियाँ जोरावर सिंह के लिए काम किया था जिनके पुत्र व उत्तराधिकारी बलवंत सिंह थे, जो उनके मुख्य संरक्षक बने। प्रकाश चंद, जो गोवर्धन चंद का उत्तराधिकारी था, उसने अपने पिता की कला के प्रति जुनून को आत्मसात किया और मनकू और नैनसुख के पुत्र कौशल, फत्तू और गोधू उनके दरबारी कलाकार थे। भागवत पुराण चित्रों की श्रृंखला काँगड़ा कलाकारों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ये चित्र उनकी सहज व्यावहारिक और असामान्य मुद्रा में आकृतियों के प्रस्तुतीकरण के लिए उल्लेखनीय हैं जो नाटकीय दृश्यों में स्पष्ट रूप से चित्रित हुए। माना जाता है कि मुख्य कलाकार की अपने हुनर अर्थात् कौशल पर पकड़ थी, जो नैनसुख का वशंज था।

(ख) बसोहली चित्र।

उत्तर: सन् 1678 से 1695 तक प्रबुद्ध राजा कृपाल पाल ने इस राज्य पर शासन किया। उनके शासन काल में बसोहली एक विशेष एवं प्रभावशाली शैली के रूप में विकसित हुई। प्रभावी प्राथमिक रंग, उष्ण पौली रंगत लिए पृष्ठभूमि, उच्च क्षितिज रेखा, प्रकृति का शैलीगत दृश्यांकन और उभरे हुए श्वेत रंग का अनुकरण, जो गहनों में मोतियों को प्रदर्शित करता है, ये सब इस शैली की चारित्रिक विशेषताओं को प्रस्तुत करते हैं। बसोहली शैली की सबसे महत्वपूर्ण चारित्रिक विशेषता है- जेवरात को चित्रित करने के लिए छोटे चमकीले हरे कीट-पंखों के अंश का प्रयोग और पन्ना के प्रभाव का अनुकरण। इनके चमकीले रंग और लालित्य ने पश्चिम भारतीय चौरपंचाशिका समूह की चित्रकला के सौंदर्य को साझा किया है।

(ग) अष्ट नायिकाएँ।

उत्तर: अष्ट नायिका या आठ नायिका चित्रण पहाड़ी शैली का मुख्य विषय रहा है जिसमें नारी की अलग-अलग प्रवृत्ति और भावपूर्ण चित्रण को समाहित किया गया है। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-उतका, वह जो अपने प्रिय के आगमन की संभावना में धैर्य से प्रतीक्षारत है; स्वाधीनभर्तका, वह जिसका पति उसकी चाह जैसा है; वासकसज्जा, वह जो समुद्र यात्रा से वापस आए अपने प्रिय का इंतज़ार कर रही है और उसके स्वागत में फूलों की सेज सजा रही है, कलहांतरिता, वह जो अपने प्रिय के चाहने पर विरोध करती है और बाद में उसके देर से आने पर पश्चाताप करती है।

जब भी अष्ट नायिकाओं का उल्लेख होता है, कवियों और कलाकारों की सबसे अधिक पसंदीदा अभिसारिका को एक विशिष्ट स्थान मिलता है। अभिसारिका, वह जो सारी विपत्तियों को पार कर अपने प्रिय से मिलने दौड़ कर चली जाती है। इनमें परिस्थिति की कल्पनाएँ प्रायः बहुत विचित्र हैं और जुनून के साथ नाटकीय संभावनाएँ तथा प्रकृति के विपरीत तत्वों के विरुद्ध नायिका की दृढ़ता है। इस चित्र में सखी ये बताती है कि नायिका किस तरह रात में जंगल पार करके अपने प्रिय से मिलने जाती है।

(घ) काँगड़ा कलम।

उत्तर: अठाहरवीं शताब्दी के आरंभिक दौर में बसोहली शैली में पूर्णतः बदलाव आया। इससे गुलेर-काँगड़ा का दौर प्रारंभ हुआ। काँगड़ा के उच्च शाही परिवार के राजा गोवर्धन चंद (1744-73) के संरक्षण में यह दौर सबसे पहले गुलेर में दिखाई दिया। गुलेर शैली के कलाकार पंडित सिऊ एवं उनके पुत्र मानक और नैनसुख को (1730-40 के दशक में) इस शैली को एक नवीन रूप देने का श्रेय जाता है जो प्रायः ‘पूर्व काँगड़ा’ या ‘गुलेर काँगड़ा कलम’ के नाम से जानी जाती है।

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