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NCERT Class 12 Fine Art Chapter 3 मुगलकालीन लघु चित्रकला
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मुगलकालीन लघु चित्रकला
Chapter: 3
भारतीय कला का परिचय: भाग – 2
अभ्यास
1. हुमायूँ द्वारा भारत में बुलाए गए दो उत्कृष्ट कलाकारों के नाम बताएँ एवं उनकी उत्कृष्ट रचनाओं की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर: हुमायूँ द्वारा भारत में बुलाए गए दो उत्कृष्ट कलाकारों के नाम है— मीर सैयद अली और अब्द उस समद
मीर सैयद अली फारसी चित्रकला की पारंपरिक शैली में पारंगत थे। वे अत्यंत सूक्ष्म और बारीक चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध थे। जब हुमायूँ फारस में निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रहे थे, तब उन्होंने वहाँ के दरबार से इन कलाकारों को भारत लाने का निर्णय लिया ताकि वे भारत में एक नई चित्रकला परंपरा की नींव डाल सकें। मीर सैयद अली की प्रमुख कृति में दरबारी जीवन के दृश्य, रंगों की सूक्ष्मता और भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। उन्होंने भारतीय विषयों में फारसी शैली के संयोजन से एक नई दिशा दी।
वहीं अब्दुस समद भी एक अत्यंत प्रतिभाशाली चित्रकार थे। उन्होंने विशेष रूप से मुग़ल दरबार में रहकर “दास्तान-ए-अमीर हमज़ा” जैसे भव्य चित्रों का निर्माण किया। यह एक अत्यंत प्रसिद्ध चित्रमाला थी जिसमें युद्ध, प्रेम, चमत्कार और वीरता के दृश्य चित्रित किए गए थे। इन चित्रों में रंगों की विविधता, पात्रों की भंगिमा और पृष्ठभूमि की जटिलता ने दर्शकों को अत्यंत प्रभावित किया।
इन दोनों कलाकारों ने मिलकर भारत में मुग़ल चित्रकला की नींव रखी। उनकी कला में फारसी चित्रकला की परंपरा और भारतीय संवेदना का सुंदर मेल देखने को मिलता है। आगे चलकर इनकी शिक्षाओं और शैली ने अकबर के काल में चित्रकला को चरम उत्कर्ष पर पहुँचाया।
2. अकबर द्वारा शुरू की गई कई कला परियोजनाओं में से अपनी खास पसंद की कला परियोजना पर यह समझाते हुए चर्चा करें कि उसके बारे में आपको क्या पसंद है।
उत्तर: उसकी योजनाओं में सबसे पहला कार्य अपने पिता की कलात्मक विरासत हम्जानामा के चित्रण कार्य को जारी रखना था। हम्जानामा पैगंबर मोहम्मद के चाचा हम्ज़ा के वीरतापूर्ण कामों का चित्रित ग्रंथ है। अकबर को हम्जा की कहानियाँ सुनने में आनंद आता था। हम्ज़ा मध्य पूर्व के देशों के जन सामान्य व बुद्धिजीवियों के बीच लोकप्रिय चरित्र थे जिनकी कहानियाँ व्यावसायिक कथावाचक ज़ोर से सुनाते थे। हम्ज़ा के विवरण की स्पष्ट झलक के लिए लिखित पन्नों के साथ-साथ चित्र भी चित्रित किए जाते थे।
हम्जानामा के चित्रित पन्ने पूरी दुनिया के विभिन्न कला संग्रहों में हैं। यह लिखित हम्जानामा 14 खंड में है। इसके 1400 पन्नों को चित्रित करने में करीब 15 वर्ष लगे थे। इस विशाल योजना की तिथि 1567-82 मानी गई है। यह दो फ़ारसी कुशल चित्रकार मीर सैयद अली और अब्द उस समद के निरीक्षण में चित्रित की गई।
हम्जानामा के चित्र हम्जा के जासूसों का कैमूर शहर पर हमला में जगह का सावधानीपूर्वक उपयोग किया गया है तथा दृश्यों का स्पष्ट विभाजन किया गया है कि जिससे उसे आसानी से देखा व समझा जा सकता है। इस प्रकार चित्र में बहुत-सी गतिविधियाँ घटित हो रही हैं और तीखे चटख रंगों का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार चित्र की जीवंतता को दर्शाया गया है जिसमें हम्जा के जासूस कैमूर शहर पर हमला कर रहे हैं।
3. मुगल दरबार के कलाकारों की एक विस्तृत सूची तैयार करें तथा उनमें प्रत्येक के एक-एक चित्र की लगभग 100 शब्दों में चर्चा करें।
उत्तर: (i) मीर सैय्यद अली: ‘हमज़ानामा का दरबारी दृश्य’ मीर सैय्यद अली द्वारा निर्मित ‘हमज़ानामा’ के एक दरबारी दृश्य में फारसी चित्रकला की बारीकी और शाही वैभव का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। चित्र में पात्रों के वस्त्रों की सजावट, चेहरे के भाव, और पृष्ठभूमि की सजीवता दर्शाती है कि कलाकार ने किस सूक्ष्मता से कथा को चित्र में उकेरा है। उनके चित्रों में समरूपता, स्पष्ट रेखांकन और रंगों का संतुलन स्पष्ट होता है। मीर सैय्यद अली ने फारसी और भारतीय शैली का संयोजन करते हुए मुग़ल चित्रकला को नई दिशा दी।
(ii) अब्दुस्समद: ‘हमज़ा की लड़ाई का दृश्य’ ‘हमज़ानामा’ की एक प्रसिद्ध चित्र में अब्दुस्समद ने युद्ध की भयंकरता और वीरता का सजीव चित्रण किया है। युद्धरत सैनिकों की मुद्रा, घोड़ों की गतिशीलता और अस्त्र-शस्त्रों की चमक चित्र को जीवंत बनाते हैं। रंगों की गहराई और विवरण की सूक्ष्मता चित्र को एक कहानी में बदल देती है। अब्दुस्समद की शैली में फारसी सौंदर्य और भारतीय यथार्थ का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है, जो चित्रकला को दृश्य कथा का रूप देता है।
(iii) उस्ताद मंसूर: ‘ज़ेब्रा का चित्र’ उस्ताद मंसूर का बनाया हुआ ‘ज़ेब्रा का चित्र’ न केवल कलात्मक है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। चित्र में ज़ेब्रा की धारियाँ, उसकी शारीरिक बनावट और मुद्रा अत्यंत यथार्थवादी रूप में दर्शाई गई हैं। मंसूर ने चित्रण में सटीकता और जीवन्तता का अद्भुत मेल प्रस्तुत किया। यह चित्र बताता है कि मुग़ल चित्रकला केवल धार्मिक और दरबारी विषयों तक सीमित नहीं थी, बल्कि प्रकृति और जीव-जंतुओं का अध्ययन भी इसका हिस्सा था।
(iv) दासवंत: ‘राम-रावण युद्ध’ दासवंत का ‘रामायण’ विषयक चित्र, विशेषकर ‘राम-रावण युद्ध’, अत्यंत नाटकीय और भावनात्मक दृश्य प्रस्तुत करता है। राम का वीर रूप, रावण की दस भुजाओं की गति, और आकाश में तीरों की भरमार चित्र को जीवंत बना देती है। उन्होंने रंगों और रेखाओं का प्रयोग इस प्रकार किया है कि दर्शक चित्र में कथा को महसूस कर सकता है। उनकी चित्रशैली में शक्ति, गतिशीलता और भारतीय परंपरा की गहराई विद्यमान है।
(v) बसावन: ‘अकबर की लड़ाई’ बसावन का ‘अकबर की लड़ाई’ चित्र यथार्थ और कल्पना का मिश्रण है। युद्धभूमि के कोलाहल, सैनिकों की टुकड़ियाँ, धूल और धुएँ की आभा, तथा राजा की वीर मुद्रा चित्र को अत्यंत प्रभावशाली बनाते हैं। उन्होंने यूरोपीय छाया-प्रकाश तकनीक का प्रयोग किया जिससे चित्र में गहराई आई। बसावन की विशेषता थी कि वे भारतीय विषयों में विदेशी तकनीक का सुंदर समावेश करते थे।
(vi) गोवर्धन: ‘शाहजहाँ का दरबार’ गोवर्धन का ‘शाहजहाँ का दरबार’ चित्र मुग़ल दरबारी जीवन की भव्यता को दर्शाता है। चित्र में सम्राट की अलंकृत पोशाक, मंत्रियों की कतार, झूमर, कालीन, और स्तंभों की भव्यता सब कुछ अत्यंत विस्तृत रूप में दर्शाया गया है। गोवर्धन ने भाव-भंगिमा, चेहरे की अभिव्यक्ति और शाही गरिमा को संतुलन के साथ चित्रित किया। यह चित्र दर्शाता है कि कैसे कला राजनीतिक शक्ति और वैभव का माध्यम बनती थी।
(vii) बिचित्र: ‘जहाँगीर का सिंहासन चित्र’ बिचित्र का चित्र जिसमें जहाँगीर सिंहासन पर बैठे हैं, एक गूढ़ प्रतीकात्मकता से भरपूर है। जहाँगीर के पीछे सूर्य की आभा, और नीचे खड़े फ़ारसी, तुर्क, यूरोपीय और भारतीय प्रतिनिधियों की उपस्थिति दर्शाती है कि सम्राट को विश्व-शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। चित्र में बिचित्र ने स्वयं को भी एक चित्रकार के रूप में दिखाया है। यह चित्र शैली, प्रतीक और आत्म-चेतना का उत्कृष्ट उदाहरण है।
(viii) नादिरुज्जमाँ: ‘जहाँगीर पक्षियों को दाना देते हुए’ नादिरुज्जमाँ द्वारा निर्मित यह चित्र बहुत कोमल और शांत वातावरण दर्शाता है। सम्राट जहाँगीर को पक्षियों को दाना खिलाते हुए दर्शाया गया है। पेड़ों की शाखाएँ, आकाश का रंग, और पक्षियों की हलचल चित्र में संतुलन और प्रेम का वातावरण निर्मित करती हैं। नादिरुज्जमाँ ने प्रकृति और मनुष्य के संबंध को चित्र के माध्यम से बहुत सुंदर ढंग से प्रकट किया है।
(ix) चित्तरमणि: ‘शाहजहाँ और औरंगज़ेब’चित्तरमणि का यह चित्र पिता और पुत्र के बीच के संबंधों की जटिलता को भावात्मक ढंग से दर्शाता है। चित्र में शाहजहाँ सिंहासन पर हैं और औरंगज़ेब विनम्र मुद्रा में खड़ा है। दोनों के चेहरों पर भावों की अभिव्यक्ति अत्यंत सूक्ष्म है। रंगों की गरिमा, वस्त्रों की बनावट और पृष्ठभूमि की सजावट चित्र को एक ऐतिहासिक पल में बदल देती है। चित्तरमणि की कलाकारी चित्र में संवेदना और सौंदर्य का सुंदर संयोग प्रस्तुत करती है।
4. मध्य काल में प्रचलित अपनी पसंद के तीन चित्रों देशज भारतीय, फ़ारसी और यूरोपीय दृश्य तत्वों पर चर्चा करें।
उत्तर: मध्यकालीन भारतीय चित्रकला में विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। देशज भारतीय, फ़ारसी और यूरोपीय तत्वों का मिश्रण चित्रों की विविधता और गहराई को बढ़ाता है।
(i) देशज भारतीय प्रभाव: रागमाला चित्रों में स्पष्ट देखा जा सकता है। इन चित्रों में धार्मिक और लोकपरंपरा से जुड़े विषय, जैसे- राधा-कृष्ण, नायिका-भेद, ऋतु वर्णन आदि दर्शाए जाते हैं। चटकीले रंग, दो आयामी चित्रण और प्रतीकात्मक दृश्य इनकी विशेषताएँ हैं।
(ii) फ़ारसी प्रभाव: ‘हमज़ानामा’ और दरबारी चित्रों में दिखाई देता है। फ़ारसी शैली में बारीक कारीगरी, पुष्प और ज्यामितीय डिज़ाइन, गोल चेहरे और सजावटी वस्त्र प्रमुख होते हैं। फ़ारसी चित्रों में पृष्ठभूमि को सजाने का तरीका अत्यंत कलात्मक होता है।
(iii) यूरोपीय प्रभाव: अकबर और जहाँगीर के काल में चित्रों में परछाई, गहराई, आयतन और परिप्रेक्ष्य का प्रयोग बढ़ा। जहाँगीर के चित्रकारों ने यूरोपीय मिशनरियों द्वारा लाए गए प्रिंटों से प्रेरणा लेकर यथार्थवादी चित्र बनाए। बिचित्र और बसावन जैसे चित्रकारों ने यूरोपीय तकनीकों का प्रभावी प्रयोग किया।

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