Class 10 Ambar Bhag 2 Chapter 6 आत्म-निर्भरता

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Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 6 आत्म-निर्भरता

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आत्म-निर्भरता

पाठ – 6

गद्य खंड

कवि-संबंधी प्रश्न एवं उत्तर:

1. ‘आत्म-निर्भरता’ पाठ के लेखक कौन है?

उत्तरः ‘आत्म-निर्भरता’ पाठ के लेखक आचार्य रामचंद्र शुक्ल हैं।

2. शुक्ल जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था? 

उत्तरः शुक्ल जी का जन्म सन् 1884 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगौना गाँव में हुआ था।

3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने किन-किन भाषा-साहित्यों का गंभीर अध्ययन किया था?

उत्तर: आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और बाँग्ला साहित्य का गंभीर अध्ययन किया था। 

4. शुक्ल जी की प्रारंभिक रचनाएँ किन-किन पत्रिकाओं में छपती थीं?

उत्तरः शुक्ल जी की प्रारंभिक रचनाएँ ‘सरस्वती’ और ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ में छपती थीं।

5. ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना कब हुई थी? 

उत्तर: ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना सन् 1893 में हुई थी।

6. ‘हिंदी शब्द सागर’ नामक कोश के निर्माण हेतु शुक्ल जी को किस पद पर नियुक्त किया गया था?

उत्तर: ‘हिंदी शब्द सागर’ नामक कोश के निर्माण हेतु शुक्ल जी को सहायक संपादक के पद पर नियुक्त किया गया था।

7. मिर्जापुर के मिशन स्कूल में शुक्ल जी क्या पढ़ाते थे? 

उत्तरः मिर्जापुर के मिशन स्कूल में शुक्ल जी ड्राइंग पढ़ाते थे।

8. हिंदी साहित्य में शुक्ल जी का प्रवेश किस रूप में हुआ? 

उत्तरः हिंदी साहित्य में शुक्ल जी का प्रवेश कवि और निबंधकार के रूप में हुआ।

9. आचार्य रामचंद्र शुक्ल की मृत्यु कब हुई? 

उत्तर: आचार्य रामचंद्र शुक्ल की मृत्यु सन् 1941 में हुई।

10. आचार्य शुक्ल के दो ग्रंथों के नाम लिखिए।

उत्तरः आचार्य शुक्ल जी के दो ग्रंथ हैं- ‘तुलसीदास’ और ‘सूरदास’।

सारांश:

‘आत्म-निर्भरता’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित एक प्रेरणादायक निबंध है। इसमें शुक्ल जी ने स्वावलंबन के महत्व को दर्शाया है। एक आत्मनिर्भर व्यक्ति ही संसार में मर्यादापूर्वक जीवन बिता सकता है। इसके लिए आत्म-संस्कार, मानसिक स्वतंत्रता, विनम्रता, अध्यवसाय, दृढ़ संकल्प आदि गुण आवश्यक हैं। इन्हीं गुणों से मनुष्य के भीतर आत्म-निर्भरता का भाव जागृत होता है। देश की युवा पीढ़ी अपनी योग्यता से अधिक अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने पर ध्यान देती है। परंतु उसे हमेशा इन गुणों को अपने अंदर विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। जैसे बड़ों का सम्मान करना, छोटे या बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करना आदि।

आत्म-निर्भरता का दूसरा नाम स्वावलंबन है। इससे हमें अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है। इसमें विनम्रता का बहुत बड़ा योगदान होता है। परंतु व्यक्ति इतना विनम्र नहीं बने जिससे बात-बात में उसे दूसरों के आगे दबना पड़े। दब्बूपन के कारण मनुष्य झटपट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। अतः अपना निर्णय दृढ़ होना चाहिए। हम दूसरों की बात ध्यान से सुनें, उनकी सलाह भी मानें परंतु वह काम करें ताकि हमारा नुकसान न हो। हमारे कार्यों से ही हमारी रक्षा और हमारा पतन होगा। अतः अपने व्यवहार में कोमल रहें और अपने उद्देश्यों को ऊँचा रखें अर्थात् सादा जीवन – उच्च विचार कहा भी गया है कि जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना ऊपर रखता  है, उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।

लेखक ने अनेक लोगों का उदाहरण दिया है, जो विकट परिस्थितियों में भी आत्मनिर्भर बने रहे। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र पर अनेक विपत्तियाँ आईं लेकिन उन्होंने सत्य का सहारा नहीं छोड़ा। तुलसीदास आत्म-मर्यादा के कारण लोकनायक कवि बन गए। स्वावलंबन के बल पर राम-लक्ष्मण घर से निकलकर अत्याचारी राक्षसों पर विजय पाई। हनुमान ने अकेले सीता की खोज की। आत्म संस्कारी कवि कुंभनदास ने अकबर के बुलाने पर फतेहपुर सीकरी जाने से इनकार कर दिया। इसी चित्तवृत्ति के कारण शिवाजी ने थोड़े से मराठी सिपाहियों के सहारे औरंगजेब की भारी सेना पर छापा मारकर उसे तितर-बितर कर दिया। एकलव्य बिना किसी गुरु या संगी-साथी के जंगल में तीरंदाजी का अभ्यास करता रहा और अंत में एक बड़ा धनुर्धर हुआ।

यही आत्म-निर्भरता, स्वावलंबन अथवा स्वतंत्रता का भाव है, जिससे मनुष्य और दास (गुलाम) में अंतर किया जा सकता है। इसी भाव से प्रेरित होकर कोलंबस ने समुद्री लहरों से लड़ते हुए अमेरिका जैसे बड़े महाद्वीप की खोज की। आत्म-निर्भरता का यही भाव हमें उन्नति का मार्ग दिखाता है। हमें चरित्रवान बनाता है तथा दुःख और संकट के समय हमें हिम्मत प्रदान करता है। इसी चित्तवृत्ति के कारण दरिद्र लोग दरिद्रता से और अनपढ़ लोग अज्ञानता से निकलकर उन्नत हुए हैं। उदाहरण हमारे सामने है। महाराणा प्रताप जंगल-जंगल मारे-मारे फिरते रहे लेकिन उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। प्रसिद्ध उपन्यासकार स्कॉट आत्म-निर्भरता के बल पर थोड़े से समय में अनेक उपन्यास लिखकर लाखों रुपये का कर्ज अपने सिर से उतार दिया। आत्म-निर्भरता का यही भाव मनुष्य को सामान्य जनों से श्रेष्ठ बनाता है, जीवन को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनाता है। अतः जिसमें आत्म-निर्भरता का गुण है, उसमें अन्य गुणों का समावेश अपने-आप हो जाता है।

शब्दार्थ:

• आत्म-संस्कार : अपने-आप को सुधारना, आत्मशुद्धि 

• मानसिक स्वतंत्रता : मन का स्वतंत्र होना

• अभिमान : गर्व

• नम्रता : विनम्रता

• मर्यादापूर्वक : सम्मानपूर्वक

• अनिवार्य : जरूरी, आवश्यक

• गुण : विशेषता, खूबी

• स्मरण रखना : याद रखना

• आदर्श : उत्तम गुण व्यवहार

• आकांक्षाएँ : अभिलाषाएँ

• योग्यता : पात्रता, काबिलियत

• सम्मान : प्रतिष्ठा, आदर

• कर्म : काम

• अभिप्राय : आशय, मतलब, अर्थ

• दब्बूपन : दबने का गुण

• मुँह ताकना : दूसरों से सहायता की उम्मीद करना

• संकल्प : प्रतिज्ञा

• क्षीण : कमजोर, दुर्बल

• प्रज्ञा : बुद्धि, विवेक, मति

• मंद : कमजोर

• चटपट : झटपट, फटाफट, जल्दी-जल्दी

• निर्णय : फैसला, निश्चय

• बेड़ा : नाव

• राह : मार्ग, पथ

• कृतज्ञतापूर्वक : आभार व्यक्त करते हुए

• पतन : विनाश

• दृढ़तापूर्वक : मजबूती के साथ

• दृष्टि : नजर, लक्ष्य

• प्रकृति : स्वभाव

• उग्रता : हिंसक

• उच्चाशय : उच्च विचारों वाला

• उद्देश्य : लक्ष्य

• दृढ़ चित्त : दृढ़हृदय, मजबूत इरादा

• सत्य की टेक : सत्य का सहारा

• राजा हरिश्चंद्र : त्रेतायुग के महान सत्यवादी राजा

• विपत्तियाँ : संकट

• टरै न सत्य विचार : सत्य विचार टल नहीं सकते

• मारे-मारे फिरना : व्यर्थ में भटकना

• सम्मति : सलाह

• बलवाइयों : विद्रोहियों

• जिज्ञासु : जानने की इच्छा वाले व्यक्ति

• गढ़ : किला

• अंधभक्त : आँख मूँदकर विश्वास कर लेना, बिना सोचे-समझे     किसी की बात माननेवाला

• कीर्ति : यश, सोहरत, लोकप्रियता

• दीर्घ जीवन : लम्बा जीवन

• निर्द्वन्द्वता : बिना किसी दुविधा के

• केशव दास : एक भक्त कवि

• दास : गुलाम, नौकर

• कोलंबस : क्रिस्टोफर कोलंबस जिसने अमरीका की खोज की

• कुंभनदास : मुगलकालीन एक कवि

• फतेहपुर सीकरी : एक जगह का नाम जहाँ बादशाह अकबर रहते थे

• दरिद्रता : गरीबी

• प्रलोभन : लोभ, लालच

• निवारण : दूर करना

• पद-दलित करना : दबाना, पैरों तले दबाना

• कुमंत्रणा : गलत सलाह

• तिरस्कार : अपमान

• अड़चन : बाधा

• अध्यवसायी : परिश्रमी, उद्यमी, उद्यमशील

• समृद्धि : सम्पन्नता

• अज्ञता : अज्ञानता

• आलंबन : सहारा

• शिवाजी : मराठों के वीर योद्धा शिवाजी

• मराठा : महाराष्ट्र के निवासी

• औरंगजेब : एक मुगल बादशाह

• एकलव्य : महाभारत का एक पात्र, जो एकाग्रचित्त से साधना करते हुए अल्पकाल में धनुर्विद्या में अत्यंत निपुण हो गया।

• स्कॉट : उपन्यासकार स्कॉट 

• प्रतिभा : ज्ञान, क्षमता, योग्यता

• समकालीन : एक ही काल के

• रीति : नियम, रिवाज, परंपरा

• पराक्रमी : वीर, बहादुर

• निपुण : कुशल

• अग्रसर : आगे बढ़ना

• ऋण : कर्ज

• चित वृत्ति : मन का भाव, मन की अवस्था

बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन कीजिए: 

(क) किस राजा ने विपत्तियों में भी सत्य का सहारा नहीं छोड़ा?

(i) राजा हरिश्चंद्र।

(ii) महाराणा प्रताप।

(iii) पृथ्वीराज चौहान।

(iv) जयचंद।

उत्तरः (i) राजा हरिश्चंद्र।

(ख) कौन-से कवि जीवन भर विलासी राजाओं के हाथ की कठपुतली बने रहे?

(i) तुलसीदास।

(ii) कुंभनदास।

(iii) केशवदास।

(iv) कबीरदास।

उत्तरः (iii) केशवदास।

(ग) किस कवि ने अकबर के बुलाने पर फतेहपुर सीकरी जाने से इनकार कर दिया था?

(i) कबीरदास।

(ii) तुलसीदास।

(iii) केशवदास।

(iv) कुंभनदास।

उत्तरः (iv) कुंभनदास।

(घ) अमेरिका की खोज किसने की थी?

(i) वास्को डिगामा।

 (ii) कोलंबस।

(iii) हॉकिन्स।

(iv) जॉर्ज वाशिंगटन।

उत्तरः (ii) कोलंबस।

2. पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए:

(क) आत्म-संस्कार के लिए क्या आवश्यक माना गया है? 

उत्तरः आत्म-संस्कार के लिए मानसिक स्वतंत्रता को आवश्यक माना गया है।

(ख) युवाओं को सदा क्या स्मरण रखना चाहिए?

उत्तरः युवाओं को सदा यह स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है तथा उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं।

(ग) लेखक ने सच्ची आत्मा किसे माना है? 

उत्तरः लेखक ने सच्ची आत्मा उसे माना है, जो विषम परिस्थितियों में भी हमारा सही मार्गदर्शन करती है।

(घ) ‘मोको कहाँ सीकरी सों काम।’- यह किसका कथन है? 

उत्तरः ‘मोको कहाँ सीकरी सों काम’ यह कुंभनदास का कथन है।

(ङ) एकलव्य कौन था?

उत्तरः एकलव्य भील जाति का एक नवयुवक था, जो अपने बल पर एक बड़ा धनुर्धर हुआ था। वह द्रोणाचार्य को अपना गुरु मान लिया था। 

(च) शिवाजी ने मराठी सिपाहियों के सहारे किसकी सेना को तितर-बितर कर दिया था? 

उत्तर: शिवाजी ने मराठा सिपाहियों के सहारे औरंगजेब की सेना को तितर-बितर कर दिया था। 

(छ) आत्म-मर्यादा के लिए कौन-सी बातें आवश्यक हैं? 

उत्तरः आत्म-मर्यादा के लिए कोमलता, विनम्रता, मानसिक स्वतंत्रता एवं आत्म-निर्भरता आवश्यक है।

3. संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) ‘नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन नहीं है।’ – यहाँ लेखक ने दब्बूपन के क्या लक्षण बताए हैं? 

उत्तरः दब्बूपन मनुष्य की कमजोरी होती है, जिससे वह बात-बात पर दूसरे से दबता रहता है। उसका संकल्प क्षीण हो जाता है और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है। जिसके कारण वह आगे बढ़ने के समय पीछे हटता रहता है। वह झटपट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता।

(ख) मर्यादापूर्वक जीवन बिताने के लिए कौन-से गुण अवश्यक हैं?

उत्तरः मर्यादापूर्वक जीवन बिताने के लिए मनुष्य का आदर्शवान बनना आवश्यक है। इन आदर्शों (गुणों) में मानसिक स्वतंत्रता के साथ-साथ स्वाभिमान एवं विनम्रता जैसे गुणों की आवश्यकता है। ये सभी गुण एक साथ आत्म-निर्भरता के अंतर्गत समाहित होते हैं।

(ग) राजा हरिश्चंद्र की प्रतिज्ञा क्या थी?

उत्तरः राजा हरिश्चंद्र प्राचीन भारत के महान और सत्यवादी राजा थे। उनके जीवन में अनेक संकट आए परन्तु वे सत्य के मार्ग से विचलित नहीं हुए। उनकी यही प्रतिज्ञा रही कि- 

“चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार,

पै दृढ़ श्री हरिश्चंद्र कौ, टरै न सत्य विचार।’

(घ) महाराणा प्रताप ने दूसरे की अधीनता स्वीकार करने के बजाए कष्ट झेलना मुनासिव क्यों समझा?

उत्तर: महाराणा प्रताप एक बहादुर योद्धा एवं आत्मनिर्भर पुरुष थे। उनमें स्वाभिमान, देशप्रेम एवं समर्पण की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वे मरते दम तक अपनी मातृभूमि को बचाना चाहते थे। उन्हें स्वतंत्रता प्यारी थी। इसलिए उन्होंने मुगलों की अधीनता के बजाए कष्ट झेलना स्वीकार किया।

(ङ) ‘अब तेरा किला कहाँ है?”- यह प्रश्न किसने किससे किया था तथा इसका उत्तर क्या मिला?

उत्तर: ‘अब तेरा किला कहाँ है?’- यह प्रश्न बलवाइयों ने एक रोमन राजनीतिक से.पूछा था। 

रोमन राजनीतिक ने अपने हृदय पर हाथ रखकर इस प्रश्न का उत्तर दिया था। उसने कहा- ‘यहाँ’ अर्थात् संकट के समय मनुष्य का हृदय ही भारी गढ़ या आश्रय स्थल होता है, जो उचित-अनुचित का ज्ञान कराता है। यह संकट के समय हमारा सही मार्गदर्शन भी कराता है जिससे बगैर घबराए मनुष्य मुसीबत का सामना करता है।

(च) किस प्रकार का व्यक्ति आत्म संस्कार के कार्य में उन्नति नहीं कर सकता?

 उत्तर: जो व्यक्ति अपने-आप पर विश्वास न करके हर काम में दूसरों का सहारा चाहता है, जो अपना अधिकार दूसरे के हाथों में सौंप देता है और हमेशा एक नया अगुवा ढूँढ़ा करता है, वह आत्म-संस्कार के कार्य में उन्नति नहीं कर सकता।

(छ) लेखक तुलसीदास एवं केशवदास की तुलना द्वारा क्या साबित करना चाहते हैं?

उत्तर: गोस्वामी तुलसीदास और केशवदास भारतीय हिंदी साहित्य के समकालीन (भक्तिकाल) कवि थे। तुलसीदास मानसिक स्वतंत्रता निता और आत्म- निर्भरता के कारण विश्वप्रसिद्ध कवि बने। उन्हें हिंदी साहित्य जगत का ‘शशि’ माना जाता है। दूसरी ओर केशवदास स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सके और जीवन भर विलासी राजाओं के दरबारी कवि बने रहे। उन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। यहाँ लेखक के कहने का विशेष अर्थ यह है कि बगैर आत्म- निर्भरता के कोई भी उन्नति नहीं कर सकता। 

(ज) मनुष्य और दास में क्या अंतर है ? पठित पाठ के आधार पर बताइए। 

उत्तरः मनुष्य आत्मनिर्भर होता है। वह अपना निर्णय स्वयं लेता है। वह किसी के आदेश से नहीं चलता। वह कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र होता है। परंतु दास अपनी मर्जी का मालिक नहीं होता। वह दूसरे के अधीन होता है। वह स्वतंत्र नहीं होता। उसे अपने मालिक के आदेशों पर चलना होता है। मनुष्य और दास में यही अंतर है।

(झ) चित्त वृत्ति की महत्ता को दर्शाने के लिए लेखक ने क्या-क्या उदाहरण दिए हैं? 

उत्तरः चित्त वृत्ति की महत्ता को दर्शाने के लिए लेखक ने कई उदाहरण दिए हैं। जैसे- राजा हरिश्चंद्र सत्य के सहारे संकटों से छुटकारा प्राप्त किए। महाराणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। राम-लक्ष्मण ने बड़े-बड़े पराक्रमी वीरों पर विजय प्राप्त की। हनुमान ने अकेले सीता की खोज की। शिवाजी ने थोड़े से सिपाहियों की सहायता से औरंगजेब की सेना को तितर- बितर कर दिया।

(ञ) उपन्यासकार स्कॉट किस मुसीबत में फँसे और इससे उन्हें कैसे छुटकारा मिला?

उत्तरः सर वाल्टर स्कॉट स्कॉटलैण्ड के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार, कवि, नाटककार और इतिहासकार थे। इवानहो, रोब रॉय, ओल्ड मोटॅलिटी, द लेडी ऑफ द लेक, द हर्ट ऑफ मिडलोथियन आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। वे एक बार ऋण के बोझ से बिलकुल दब गए। मित्रों ने उनकी सहायता करनी चाही। पर उन्होंने अपने मित्रों की सहायता नहीं ली और प्रतिभा का सहारा लेकर कम समय में अनेक बेहतरीन उपन्यास लिखकर लाखों रुपये का ऋण अपने सिर से उतार दिया।

4. सम्यक् उत्तर दीजिए:

(क) लेखक ने महाराणा प्रताप और राजा हरिश्चंद्र के उदाहरणों के माध्यम से क्या समझाना चाहा है?

उत्तरः महाराणा प्रताप और राजा हरिश्चंद्र आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी पुरुष थे। ये दोनों दृढ़ संकल्प वाले चरित्रवान व्यक्ति थे। लोक कल्याण की भावना इनमें कूट-कूटकर भरी थी। इन्होंने आत्मा के विरुद्ध कभी कोई काम नहीं किया। 

राजा हरिश्चंद्र के ऊपर कई विपत्तियाँ आईं। उनका राजपाट चला गया, कंगाल हो गए। परिस्थितिवश उन्हें श्मशान का चांडाल बनना पड़ा तथा मृतकों के परिजनों से शवदाहय-क्रिया के निमित्त कर वसूलने का काम करना पड़ा। स्त्री- बच्चे को अन्य के हाथों बिकना पड़ा। परंतु कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सत्य का सहारा नहीं छोड़ा। महाराणा प्रताप जंगल-जंगल मारे-मारे फिरे। स्त्री और बच्चों को भूख तड़पते हुए देखते थे। परंतु मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। वे जानते थे कि अपने मर्यादा की चिंता जितनी अपने को हो सकती है, उतनी दूसरे को नहीं।

वस्तुतः ये दोनों आत्म-संस्कारी पुरुष थे। राजा हरिश्चंद्र सत्य का सहारा छोड़कर स्वार्थपूर्ति की बात करते तो इतिहास में हमें इतना उत्तम और सार्थक उदाहरण नहीं मिलता। महाराणा प्रताप यदि मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लेते तो उन्हें गद्दार की श्रेणी में रखा जाता। उन्होंने हमारे सामने उच्च कोटि के देशप्रेम एवं समर्पण भाव को प्रस्तुत किया। हम उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं और गर्व करते हैं।

(ख) पाठ में आए कुछ आत्म-निर्भरशील व्यक्तियों के बारे में बताइए। 

उत्तर: ‘आत्म-निर्भरता’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित बेहद प्रेरणादायक निबंध है। प्रस्तुत पाठ में विद्वान लेखक ने अनेक आत्मनिर्भरशील व्यक्तियों का उदाहरण दिया है। महाराणा प्रताप, राजा हरिश्चंद्र, तुलसीदास, कुंभनदास, राम-लक्ष्मण, हनुमान, क्रिस्टोफर कोलंबस, वीर शिवाजी, सर वाल्टर स्कॉट आदि ऐसे ही आत्मनिर्भरशील व्यक्ति थे।

राजा हरिश्चंद्र- हरिश्चंद्र त्रेता युग के सत्यवादी राजा थे। एक ब्राह्मण ऋषि को इन्होंने अपना संपूर्ण राज-पाट दान कर दिया। तत्पश्चात् आजीविका के लिए इन्हें काशी में गंगा के किनारे एक चांडाल के हाथों बिकना पड़ा तथा श्मशान की देखरेख और वहाँ शव जलाने वालों से शुल्क वसूलने का काम करना पड़ा। स्त्री और बच्चे भी किसी ब्राह्मण के यहाँ नौकरी करने लगे। दुर्भाग्य से फूलवाड़ी से फूल तोड़ते समय इनके बेटे को साँप ने डस लिया और वह मर गया। उनकी पत्नी उसी श्मशान में अपने बेटे का शव जलाने ले आई। उससे भी हरिश्चंद्र को शुल्क लेकर लाश जलाने की अनुमति देनी पड़ी। इतनी विपत्तियों का सामना करते हुए उन्होंने सत्य के मार्ग से अपना कदम नहीं हटाया।

महाराणा प्रताप – महाराणा प्रताप का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप ने कई बार मुगलों को युद्ध में हराया था। उनका जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवंता बाई के घर में हुआ था। उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व किया था।

गोस्वामी तुलसीदास – राम भक्ति की शीतल चाँदनी बिखेरने वाले लोकनायक महाकवि तुलसीदास हिंदी साहित्य जगत के ‘शशि’ कहलाते हैं। इन्होंने लगभग एक दर्जन काव्यग्रंथों की रचना की है। इनकी सभी रचनाएँ विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। ‘रामचरितमानस’ इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है। 

केशवदास – आचार्य केशवदास हिंदी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी – के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था। केशवदास ओरछा नरेश महाराज रामसिंह के भाई इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि, मंत्री और गुरु थे।

हनुमान – पवनपुत्र हनुमान श्रीरामचन्द्र के सखा थे। इन्होंने श्रीराम की बड़ी सेवा की थी। हनुमान बहुत बलशाली थे। जब लंकापति रावण सीता मइया का अपहरण करके लंका ले गया था तो श्रीराम ने अतुलित बलशाली हनुमान को सीता का पता लगाने के लिए लंका भेजा था।

राम-लक्ष्मण राम और लक्ष्मण अयोध्यापति दशरथ के पुत्र थे। अपने – पिताश्री की आज्ञा से जब राम को चौदह वर्ष का वनवास मिला तो वे अपनी भार्या सीता और लक्ष्मण को भी वन ले गए। उन्होंने पंचवटी में अपना आश्रय बनाया। उसके आस-पास अनेक पराक्रमी राक्षसों का आतंक था। वे सभी तपश्चर्या में लीन ऋषि-मुनियों को बहुत तंग करते थे। राम-लक्ष्मण ने मिलकर उन पराक्रमी राक्षसों का नाश किया। फिर लंका में जाकर रावण और उसके परिजनों का संहार किया।

कुंभनदास- कुंभनदास (1468-1583) अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि थे। ये परमानंददास जी के समकालीन थे। कुंभनदास ब्रज में गोवर्धन पर्वत से कुछ दूर ‘जमुनावतौ’ नामक गाँव में रहा करते थे। अपने गाँव से वे पारसौली चंद्रसरोवर होकर श्रीनाथ जी के मंदिर में कीर्तन करने जाते थे। उन्होंने महाप्रभु बल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी।

वीर शिवाजी छत्रपति शिवाजी भारत के राजा और रणनीतिकार थे, जिन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। स्वतंत्रता सेनानियों ने इन जीवनचरित से अनुप्रेरित हुए थे। शिवाजी एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाने जाते हैं।

उपन्यासकार स्कॉट – इनका पूरा नाम सर वाल्टर स्कॉट था। इनका जन्म स्कॉटलैण्ड में हुआ था। ये एक ही साथ उच्च कोटि के कवि, इतिहासकार, उपन्यासकार तथा नाटककार भी थे। इवानहो, रॉब रॉय, ओल्ड मोर्टलिटी, द लेडी ऑफ द लेक, द हर्ट ऑफ मिडलोथियन आदि इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। 

(ग) आत्म-निर्भरता के लिए कौन-कौन से गुण अनिवार्य हैं ? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तरः आत्म-निर्भरता मनुष्य का सर्वोपरि गुण है। जो लोग अपना कार्य स्वयं करते हैं, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करते हैं, जरूरत पड़ने पर अपना निर्णय स्वयं लेते हैं- उन्हें आत्मनिर्भर व्यक्ति कहा जाता है। आत्म-निर्भरता को स्वावलंबन भी कहते हैं। यह वह गुण है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पैरों के बल खड़ा होता है।

आत्म-निर्भरता के लिए अनेक गुण अनिवार्य हैं। हालांकि जो लोग आत्मनिर्भर होते हैं, उन्हें अन्य गुणों की आवश्यकता नहीं होती। सभी गुण आत्म-निर्भरता में ही समाहित होते हैं। इसके लिए आत्म-संस्कार, मानसिक स्वतंत्रता, स्वाभिमान, हृदय की उदारता, परोपकारिता, विनम्रता, कृतज्ञता आदि की आवश्यकता पड़ती है। वस्तुतः आत्म-निर्भरता अपने-आप में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी गुण है। जो आत्मनिर्भर होते हैं- उनमें ये सभी गुण अनायास आ जाते हैं। आत्मनिर्भर व्यक्ति अकेले दम पर आगे बढ़ता रहता है। वह कभी दूसरे के पीछे नहीं चलता। ऐसे व्यक्ति दृढ़ चित्तवृति के होते हैं तथा अपने विचार एवं निर्णय की स्वतंत्रता को दृढ़तापूर्वक बनाए रखते हैं।

5. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) मनुष्य का बेड़ा अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर लगाए। 

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। 

स्वावलंबन के महत्व को दर्शाते हुए शुक्ल जी ने लोगों को यह समझाने का प्रयास किया है कि अपने कर्मों से ही व्यक्ति का विकास या पतन हो सकता है। वस्तुतः मनुष्य अपने जीवन में जो भी कर्म करता है, उसका उत्तरदायी स्वयं होता है। हमारे कामों से ही हमारी रक्षा और हमारा पतन होगा। एक आत्मनिर्भर व्यक्ति सही निर्णय लेता है, सही मार्ग अपनाता है और सही कार्य करता है। सभी जीवन रूपी नौका (बेड़ा) पर सवार हैं। अब उनके ऊपर है कि वे किस प्रकार अपनी नौका को किनारे लाते हैं अथवा मझधार में ही अटक जाते हैं। व्यक्ति कर्म से ही महान बनता है और कर्म से ही बदनाम भी होता है। अतः निर्णय अपने हाथ में है और जीवन रूपी नौका का पतवार भी अपने ही हाथ में है। यह आपके ऊपर है कि आप विकास का रास्ता अपनाते है अथवा पतन का ।

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

(ख) सच्ची आत्मा वही है, जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

आत्म-निर्भरता के महत्व को दर्शाते हुए विद्वान लेखक ने हमें यह समझाने का प्रयास किया है कि सही निर्णय लेने वाला व्यक्ति हमेशा सही मार्ग पर चलता है। आत्मा हमारी बुद्धि और विवेक की पराकाष्ठा का नाम है। मनुष्य का मन चंचल होता है और संकट के समय यह विचलित भी हो सकता है। परन्तु आत्मा सदैव हमारा उचित और सही मार्गदर्शन करती है। जब हम संकट में होते हैं, कठिन परिस्थिति में भी हमारी आत्मा सच्ची सलाह देती है। और हम सही निर्णय लेकर साहस के साथ आगे बढ़ते हैं। हमें सफलता मिलती है। अर्थात् आत्मनिर्भरशील व्यक्ति विपत्ति में भी एक समान रहते हैं। वे अपना धैर्य नहीं खोते और अपने कार्य में सफल होते हैं।

(ग) जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना ही ऊपर रखता है, उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध’ आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

आत्म-निर्भरता की महत्ता बताते हुए विद्वान लेखक यह बताना चाहते हैं कि ऊँची सोच और विचार रखने वाला व्यक्ति ही समाज का ऊँचा या महान व्यक्ति होता है। लेखक का मानना है कि दृढ़ निश्चय वाला उच्चाशय और विनम्र व्यक्ति ही अपने लक्ष्य में सफल होता है। प्रत्येक मनुष्य का अपना जीवन लक्ष्य होता है। वह उसी अनुरूप कार्य करता है। जिसका लक्ष्य जितना महान होता है वह जीवन में उतना ही सफल व्यक्ति माना जाता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा कुछ बड़ा और महान सोचना चाहिए। तीरंदाज अपने लक्ष्य को जितना साधता है उतना ही वह अपने लक्ष्य को बेध सकता है।

यहाँ लेखक ने हमें अपना लक्ष्य बड़ा रखने का संदेश दिया है।

(घ) मैं राह ढूँढूँगा या राह निकालूँगा।

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान की। ‘तुलसीदास’, ‘चिंतामणि’, ‘सूरदास’ आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। उक्त पंक्ति के माध्यम से विद्वान लेखक ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

साहसी और आत्मनिर्भर व्यक्ति की प्रशंसा करते हुए विद्वान लेखक ने यह दर्शाना चाहा है कि ऐसे व्यक्ति संकट के समय अथवा विषम परिस्थिति में भी अपना मार्ग स्वयं तलाश लेता है। जो आत्मनिर्भर व्यक्ति होते हैं, वे बगैर संगी- साथी के अकेले दम पर अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं। वे अपने ऊपर आने वाली विपत्तियों की परवाह नहीं करते। अथवा वे संकटों से नहीं घबराते या न अपने मार्ग से ही विचलित होते हैं। लेखक का कहने का विशेष मतलब यह है कि जिस व्यक्ति में आत्म-निर्भरता का गुण होता है, वह हमेशा सही मार्ग पर एवं सही दिशा में अपना कदम बढ़ाता है और दुर्गम जगहों में भी मार्ग की खोज कर लेता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को यही संकल्प लेना चाहिए कि संकट के समय या कठिन स्थितियों में भी मैं अपना राह स्वयं निकालूँगा।

यहाँ लेखक ने हमें आत्मनिर्भरशील व्यक्ति की दृढ़ता को दिखाया है।

भाषा एवं व्याकरण

1. निम्नलिखित उपसर्गों से दो-दो शब्द बनाइए: 

अभि, अव, वि, सु, अप, उप, कु, प्रति, परा, परि

उत्तरः अभि – अभिनव, अभिरंजन

अव  – अवतार, अवगुण

वि  – विशेष, विज्ञानसु

सु  – सुयश, सुमार्ग 

अप  – अपकार, अपमान

उप  – उपकार, उपहार

कु  – कुमार्ग, कुपुत्र 

प्रति  – प्रतिदिन, प्रतिनिधि

परा  – पराजय, पराभव 

परि – परिवर्तन, परिजन

2. निम्नलिखित संज्ञा शब्दों के विशेषण रूप लिखिए।

मर्यादा, स्वतंत्रता, विश्वास, उत्साह, आत्मा, संस्कार, व्यवहार, पतन प्रतिभा

उत्तर: मर्यादा – मर्यादित

स्वतंत्रता  –  स्वतंत्र

विश्वास –  विश्वासी

उत्साह  –  उत्साही, उत्साहित

आत्मा – आत्मिक, आत्मीय

संस्कार –  संस्कारी, सांस्कारिक

व्यवहार –  व्यावहारिक

पतन –  पतित

प्रतिभा – प्रतिभावान, प्रतिभाशाली

3. निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित पदों का परिचय दीजिए:

(क) आह! उपवन में सुंदर फूल खिले हैं। 

(ख) हम बाग में गए परंतु कोई आम न मिला।

(ग) रमेश दसवीं कक्षा में पढ़ता है।

(घ) एवरेस्ट संसार का ऊँचा शिखर है।

(ङ) भूषण वीर रस के कवि थे।

उत्तरः (क) आह! उपवन में सुंदर फूल खिले हैं।

उपवन – जातिवाचक संज्ञा, एक वचन, पुलिंग, कर्ता कारक 

सुंदर –  गुणवाचक विशेषण, पुलिंग

(ख) हम बाग में गए परंतु कोई आम न मिला।

बाग में – जातिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन, अधिकरण कारक 

परंतु – समानाधिकरण योजक, दो उपवाक्यों को मिला रहा है। 

आम – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन, कर्म

(ग) रमेश दसवी कक्षा में पढ़ता है।

रमेश – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, कर्ता कारक, अन्य पुरुष

दसवीं – संख्यावाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एक वचन

कक्षा – में जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एक वचन, अधिकरण कारक

(घ) एवरेस्ट संसार का ऊँचा शिखर है।

एवरेस्ट – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, कर्ता कारक

ऊँचा- गुणवाचक विशेषण, पुलिंग

शिखर- जातिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन

(ङ) भूषण वीर रस के कवि थे।

भूषण – व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुलिंग, कर्ता कारक

कवि – जातिवाचक संज्ञा, पुलिंग, एक वचन

योग्यता- विस्तार

1. लेखक ने आत्म-निर्भरता के प्रसंग में कुछ महापुरुषों के उदाहरण दिए हैं। उन महापुरुषों के अतिरिक्त कुछ अन्य महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग पढ़िए, जो आत्म-निर्भरता के महत्व को उजागर करते हैं।

उत्तरः विद्यार्थी श्रवण कुमार, भक्त प्रहलाद, वीर अभिमन्यु, रानी लक्ष्मी बाई, वीर कुँवर सिंह, महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों के बारे में पढ़ें। 

2. क्या आपके जीवन में कभी आत्म-निर्भरता का पाठ चरितार्थ हुआ है? यदि हाँ, तो कुछ संस्मरणों या घटनाओं का उल्लेख कीजिए। 

उत्तरः प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कोई-न-कोई ऐसी घटना घटती है, जो उसके जीवन की दिशा बदल देती है। यदि आपके जीवन में भी ऐसी कोई घटना घटी हो अथवा ऐसा काम जो आप उसे करने से डर रहे थे लेकिन उसी काम की सफलता ने आपकी जीवन रेखा बदल दी। आप सफल व्यक्ति साबित हुए। ऐसी घटना याद करके स्वयं लिखिए।

पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए

1. ‘चंद्र टरै, सूरज टरै, …… टरै न सत्य विचार’ की प्रतिज्ञा किसने की थी? 

उत्तर: ‘चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै न सत्य विचार’ की प्रतिज्ञा राजा हरिश्चंद्र ने की थी।

2. किसने औरंगजेब की सेना पर छापा मारा था? 

उत्तर: वीर शिवाजी ने औरंगजेब की सेना पर छापा मारा था।

3. स्कॉट कौन थे और किसकी बोझ से दब गये थे?

उत्तर: स्कॉट एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे और एक बार वे ऋण के बोझ से दब गए थे।

4. एकलव्य जंगल में क्या करता था?

उत्तरः एकलव्य जंगल में धनुर्विद्या का अभ्यास करता था।

सप्रसंग व्याख्या किजिए

(क) ‘अब तेरा किला कहाँ है’?

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित निबंध ‘आत्म-निर्भरता’ से ली गई है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। उक्त पंक्ति के माध्यम से लेखक ने एक आत्मनिर्भर व्यक्ति के गुणों को दर्शाते हुए कहा है कि किसी भी परिस्थिति में स्वावलंबी व्यक्ति अपने निर्णय से समझौता नहीं करता।

आत्म-निर्भरता की महत्ता को बताते हुए लेखक ने कहा है कि आत्मनिर्भरशील व्यक्ति का मस्तक सदा ऊँचा रहता है। वह दूसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं होता। अपना भविष्य स्वयं सँवारता है। एक बार एक रोमन राजनीतिक विद्रोहियों के चंगुल में पड़ गया। विद्रोहियों ने उससे व्यंग्यपूर्वक पूछा कि उनका किला कहाँ है। रोमन राजनीतिक ने अपने हृदय पर हाथ रखकर उत्तर दिया- ‘यहाँ’। सचमुच ज्ञानी व्यक्तियों का किला हृदय ही होता है। हृदय से ही सभी निर्णय लिए जाते हैं। यहाँ लेखक ने अज्ञानता को ज्ञान का मार्ग दिखाया है।

सही विकल्प चुनिए

(क) आचार्य रामचंद्र शुक्ल किस विश्वविद्यालय के अध्यापक थे?

(i) बिहार विश्वविद्यालय।

(ii) गौहाटी विश्वविद्यालय।

(iii) काशी हिंदू विश्वविद्यालय।

(iv) दिल्ली विश्वविद्याल।

उत्तरः (iii) काशी हिंदू विश्वविद्यालय।

(ख) युवा को क्या सदा स्मरण रखना चाहिए?

(i) वह बहुत कम बातें जानता है।

(ii) अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है।

(iii) उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। 

(iv) उपर्युक्त सभी उत्तर सही हैं।

उत्तर: (iv) उपर्युक्त सभी उत्तर सही हैं।

(ग) जिसका संकल्प क्षीण और प्रज्ञा मंद हो जाती है तथा जो आगे बढ़ने के समय भी पीछे रहता है, वह कैसा मनुष्य होता है?

(i) आत्मनिर्भर।

(ii) उत्साही।

(iii) अध्यवसायी। 

(iv) दब्बू।

उत्तरः (iv) दब्बू।

(घ) ‘रस मीमांसा’ किसकी रचना है?

(i) मुंशी प्रेमचंद।

(ii) आचार्य रामचंद्र शुक्ल।

(iii) अध्यवसायी।

(iv) महादेवी वर्मा।

उत्तरः (ii) आचार्य रामचंद्र शुक्ल।

(ङ) अकबर ने कुंभनदास को कहाँ बुलाया था?

(i) आगरा।

(ii) लखनऊ।

(iii) दिल्ली।

(iv) फतेहपुर सीकरी।

उत्तरः (iv) फतेहपुर सीकरी।

संक्षेप में जवाब दीजिए

1. चिंतामणि कितने भागों में प्रकाशित है? इसमें किन-किन चीजों का अद्भुत संयोग है?

उत्तर: ‘चिंतामणि’ तीन भागों में प्रकाशित है। इसमें सूक्ष्म निरीक्षण, गंभीर चिंतन और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का अद्भुत संयोग दिखाई पड़ता है।

2. ‘जिस पुरुष की दृष्टि सदा नीची रहती है, उसका सिर कभी ऊपर न होगा।’ का आशय क्या है?

उत्तर: इसका आशय यह है कि निम्न कोटि की सोच रखने वाला व्यक्ति कभी आगे नहीं बढ़ सकता। 

3. जो आवश्यकता से अधिक विनम्र होता है, उसमें कौन-सा अवगुण आ जाता है? 

उत्तर: जो आवश्यकता से अधिक विनम्र होता है, उसमें दब्बूपन आ जाता है। वह बात-बात में दूसरों का मुँह ताकता है और वह झटपट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता।

4. सच्ची आत्मा हमारी किस तरह सहायता करती है? 

उत्तर: सच्ची आत्मा हमारी हिम्मत को बढ़ाती है। विपत्तियों में हमें वह सही मार्गदर्शन करती है। जीवन में सही फैसले लेने के लिए वह हमें प्रेरित करती है।

5. राम-लक्ष्मण ने किन-किन पराक्रमी वीरों को हराया था? 

उत्तर: राम-लक्ष्मण ने खर-दूषण, मारीच, मेघनाद, अहिरावण, कुंभकरण और रावण को हराया था।

6. आत्म-निर्भरता से क्या लाभ है?

उत्तर: आत्म-निर्भरता से आदमी परिश्रमी बनता है तथा दरिद्रता से छुटकारा पाता है। आत्म-निर्भरता से व्यक्ति किसी के प्रलोभन में नहीं फँसता तथा दूसरे की गलत सलाह को नहीं मानता। अनपढ़ व्यक्ति अज्ञानता से बाहर निकलता है। तथा प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ता जाता है।

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