Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 3 किरणों का खेल The answer to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapter Assam Board Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 3 किरणों का खेल and select needs one.
Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 3 किरणों का खेल
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किरणों का खेल
पाठ – 3
पद्य खंड
कवि – परिचय:
1. मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर: मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त, 1886 को उत्तर प्रदेश के चिरगाँव, जिला झाँसी में हुआ।
2. मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रारंभिक रचनाएँ किस पत्रिका में प्रकाशित होती थीं?
उत्तर: मैथिलीशरण गुप्तजी की प्रारंभिक रचनाएँ ‘सरस्वती’ नामक पत्रिका में प्रकाशित होती थीं।
3. गुप्त जी को पैतृक विरासत में क्या मिला?
उत्तरः गुप्तजी को पैतृक विरासत में रामभक्ति एवं कविता के प्रति लगाव प्राप्त हुआ।
4. गुप्तजी राज्यसभा के सदस्य कब तक रहे?
उत्तर: सन् 1952 से 1964 तक गुप्त जी राज्यसभा के सदस्य रहे।
5. राष्ट्रकवि के रूप में गुप्त जी को ख्याति कब और क्यों मिली?
उत्तर: सन् 1912 में प्रकाशित काव्यग्रंथ ‘भारत-भारती’ के द्वारा गुप्त जी को राष्ट्रकवि के रूप में ख्याति प्राप्त हुई।
6. गुप्त जी के काव्य में किसके प्रति गहरी सहानुभूति का भाव मिलता है?
उत्तरः गुप्त जी के काव्य में समाज के उपेक्षित, पीड़ित, शोषित और दलितों के प्रति गहरी सहानुभूति का भाव मिलता है।
7. गुप्त जी का निधन कब हुआ?
उत्तर: मैथिलीशरण गुप्त जी का निधन सन् 1964 में हुआ।
8. गुप्त जी की कविता की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तरः गुप्त जी की कविता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(क) राष्ट्र एवं संस्कृति के प्रति प्रेम।
(ख) समाज के उपेक्षित-दलितों के प्रति सहानुभूति।
(ग) गाँधीवादी विचारधारा के प्रति आकर्षण। और
(घ) मानवतावादी दृष्टिकोण।
9. गुप्त जी के प्रमुख काव्य ग्रंथ क्या-क्या हैं?
उत्तरः गुप्त जी के प्रमुख काव्य ग्रंथ हैं- ‘भारत-भारती’, ‘पंचवटी’, ‘किसान’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘जयभारत’, ‘विष्णुप्रिया’ आदि।
10. ‘साकेत’ क्या है और इसके रचयिता कौन है?
उत्तर: ‘साकेत’ एक महाकाव्य है और इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी हैं।
सारांश:
‘किरणों का खेल’ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित प्रकृति विषयक एक प्रेरक कविता है। यह कविता ‘पंचवटी’ नामक खंडकाव्य का एक अंश है। इसमें प्रकृति के कार्यकलापों एवं सौंदर्य का बड़ी बारीकी से चित्रण किया गया है। चाँद, सूरज, धरती, आकाश, वायु, पेड़, नदी, पहाड़ आदि प्रकृति के सभी अवयव निरंतर कर्मरत रहते हैं। प्रकृति न कभी हार मानती है, न थकती है। यह अपना सब काम शांत भाव से तथा नियत समय पर करती है। रात में चाँद अपनी स्वच्छ चाँदनी से संपूर्ण पृथ्वी को सराबोर कर देता है, वहीं सूरज अपनी किरणों का जादू बिखेरकर संसार में उजाला फैला देता है। धरती हरी-हरी घासों के माध्यम से, पेड़ झूम-झूमकर तथा पवन चारों ओर सुगंध फैलाकर अपनी खुशियाँ बाँटते हैं। धरती का कोना-कोना आनंद से भर जाता है। इस तरह प्रकृति रोज नए-नए एवं विविध रूपों में हमारे समक्ष आती है। और हमें सुखद अनुभूति का अहसास दिलाती है।
शब्दार्थ:
चारु : सुंदर
चंद्र : चंद्रमा
चंचल : अस्थिर, फुर्तीला
स्वच्छ : साफ, निर्मल
अवनि : पृथ्वी, धरती
अंबर : आकाश
घास : घास, तिनका
तरु : पेड़
हरित : हरे रंग का
मंद : धीमा
निशा : रात्रि
निस्तब्ध : शांत
स्वच्छ : स्वतंत्र, उन्मुक्त
सुमंद : सुंदर व धीमी गति से
गंधवह : हवा, वायु
निरानंद : बिना आनंद के, आनंद रहित
नियति-नटी : प्रकृति रूपी नर्तकी
कार्यकलाप : गतिविधि, क्रियाकलाप, काम
वसुंधरा : पृथ्वी, धरती
मोती : मुक्ता, ओसकण
रवि : सूर्य
संध्या : सायं, शाम
झलकना : झलक दिखाना
विराम-दायिनी : विश्राम देने वाली
नया रूप : नया जीवन
पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर
बोध एवं विचार:
1. सही विकल्प का चयन कीजिए:
(क) ‘हरित तृण’ का तात्पर्य क्या है ?
(i) हरी-भरी धरती।
(ii) हरी-हरी घास।
(iii) हरे-भरे खेत।
(iv) चाँदनी रात।
उत्तरः (ii) हरी-हरी घास।
(ख) कविता में ‘मोती’ किन्हें कहा गया है?
(i) प्रकृति।
(ii) धरती।
(iii) ओस की बूँदें।
(iv) चंद्रमा की रोशनी।
उत्तर: (iii) ओस की बूँदें।
(ग) कविता में ‘विराम-दायिनी’ किसे कहा गया है?
(i) कवि।
(ii) संध्या।
(iii) सूरज।
(iv) धरती।
उत्तर: (ii) संध्या।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में दीजिए:
(क) ‘किरणों का खेल’ किस प्रकार की कविता है?
उत्तर: ‘किरणों का खेल’ प्रकृति विषयक एक प्रेरक कविता है।
(ख) धरती किसके माध्यम से अपनी खुशी जाहिर कर रही है?
उत्तरः धरती हरी-हरी घासों के माध्यम से अपनी खुशी जाहिर कर रही है।
(ग) वृक्ष क्यों झूम रहे हैं?
उत्तर: वृक्ष इसलिए झूम रहे हैं कि धीरे-धीरे हवाएँ बह रही हैं।
(घ) सूरज मोती का उपहार कब बटोर लेता है?
उत्तर: सवेरा होने पर सूरज मोती का उपहार बटोर लेता है।
(ङ) जल और थल में चाँदनी बिछी होने का क्या अर्थ है ?
उत्तर: जल और थल में चाँदनी बिछी होने का अर्थ यह है कि चाँदनी का प्रकाश धरती पर पड़ता है और उसकी परछाई जलाशय में भी प्रतिबिंबित होती है।
(च) संध्या को ‘विराम-दायिनी’ क्यों कहा गया है ?
उत्तरः संसार के सभी प्राणी संध्या होने पर विराम या आराम लेना चाहते हैं, इसलिए उसे ‘विराम-दायिनी’ कहा गया है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:
(क) कवि ने किरणों के सौंदर्य का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तरः कवि ने किरणों के सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है। चंद्रमा की किरणें चारों तरफ अपनी अद्भुत एवं अपूर्व सुंदरता बिखेर रही हैं। धरती और आकाश आलोकित हो गए हैं। धीमी गति से हवाएँ चल रही हैं। हरे घास व तृण उमंग के साथ मानो झूम रहे हैं। प्रकृति के हर उपादान अपने कर्म में लीन हैं।
(ख) धरती अपना ‘पुलक’ कैसे प्रकट करती है?
उत्तर: धरती अपना ‘पुलक’ हरे हरे घासों की नोकों के माध्यम से प्रकट करती है। किरणों से प्रभावित होकर धरती पर उगे सभी पेड़-पौधे पुलकित हो उठते हैं।
(ग) रवि धरती पर फैले मोतियों को कैसे बटोर लेता है ?
उत्तर: धरती पर उगे पेड़-पौधे, तृण-लताओं पर रात्रि के समय ओसकण रूपी मोती बिखर जाता है और सूरज के उगते ही वे ओसकण खत्म हो जाते हैं। इस प्रकार रवि मोतियों को बटोर लेता है।
(घ) नियति को ‘नटी’ क्यों कहा गया है? उसके कार्यकलापों का वर्णन कीजिए।
उत्तरः कवि ने नियति को ‘नटी’ कहा है, क्योंकि नियति यानी प्रकृति अपना नाटक निरंतर करती रहती है। वह अपने कर्तव्य पर अटल है। दिन-रात का कोई व्यवधान नहीं है।
(ङ) “निरानंद है कौन दिशा ?” – कविता की इस प्रश्नवाचक पंक्ति से कवि का क्या आशय है?
उत्तर: कविता की इस प्रश्नवाचक पंक्ति से कवि का यह आशय है कि पंचवटी में सभी दिशाओं में आनंद ही आनंद व्याप्त है। कोई भी दिशा आनंद-शून्य नहीं है।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के सम्यक् उत्तर दीजिए:
( क ) ‘किरणों का खेल ‘कविता में वर्णित प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण कीजिए।
उत्तर: ‘किरणों का खेल’ कविता में प्रकृति का सजीव चित्रण देखने को मिलता है। पंचवटी के प्राकृतिक सौंदर्य की छटा संकलित कविता में मूर्त हो उठी है। कवि गुप्त जी चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सुंदर चंद्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई हैं। पृथ्वी और आकाश में स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है। हरी-हरी दूब की नोकें ऐसी लगती हैं मानो रोमांचित हो रही हों। मंद-मंद वायु के झोंकों से वृक्ष झूमते प्रतीत हो रहे हैं। रात्रि के समय चारों ओर वातावरण शांत है। प्रातःकाल सूर्य के निकलने पर ओस की बूँदें गायब हो जाती हैं। संध्या के समय तारे निकल आते हैं, जिससे उसका सौंदर्य और अधिक बढ़ जाता है।
(ख) प्रकृति को नया रूप प्रदान करने में चाँद और सूरज को क्या-क्या भूमिकाएँ हैं?
उत्तर: चाँद और सूरज धरती पर अपनी किरणों से प्रकृति को नया रूप प्रदान करते हैं। प्रकृति यानी पेड़-पौधे, नदी-तालाब आदि के सौंदर्य में चाँद और सूरज चार चाँद लगाते हैं। इनकी स्वच्छ किरणों के कारण ही प्रकृति की हर छटा अति सुंदर और प्रिय लगने लगती है। चाँद रात में और सूरज दिन में अपनी किरणें बिखेरते हैं और इनसे प्रकृति को नया रूप मिलता है।
बीज धरती में अंकुरित होकर किरणों के कारण ही वृक्ष का रूप धारण करता है। इसलिए चाँद और सूरज की भूमिकाएँ महत्वपूर्ण हैं।
(ग) “परिवर्तन प्रकृति का नियम है।” प्रस्तुत कविता के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि कीजिए।
उत्तर: ‘किरणों का खेल’ शीर्षक कविता में कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि इस संसार में हर चीज का परिवर्तन होता रहता है। प्रकृति के क्रियाकलाप अनवरत चलते रहते हैं। प्रकृति का हर उपादान एकांत भाव से चुपचाप अपना काम अविराम गति से करता रहता है। प्रातःकाल सूरज उगता है, रात में चंद्रमा प्रकाश बिखेरता है। पेड़-पौधे, फल-फूल और छाया प्रदान करते हैं। दिन के बाद रात और फिर रात केबाद दिन होना प्रकृति का नियम है। पेड़-पौधे, नदी-तालाब, अपना रूप नियमानुसार परिवर्तित करते रहते हैं। इसलिए कहा जाता है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
(घ) पठित कविता के आधार पर बताइए कि प्रकृति से हमें कौन-सी सीख मिलती है?
उत्तरः पठित कविता में प्रकृति का सुंदर एवं सजीव वर्णन किया गया है। प्रकृति हमें सुंदर से सुंदरतम जीवन जीने की सीख देती है। चंद्रमा की किरणें हमें अंधकार को दूर करने की सीख देती हैं, तो धरती हमें परोपकार करने की सीख देती है। प्रकृति की हर छटा हमें कोई-न-कोई सीख अवश्य देती है। मुख्यतः प्रकृति हमें सदैव कर्मशीलता का संदेश देती है।
5. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
(क) बंद नहीं अब भी चलते हैं
नियति-नटी के कार्यकलाप,
पर कितने एकांत भाव से
कितने शांत और चुपचाप।
उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘किरणों का खेल’ शीर्षक कविता से ली गई हैं।
यहाँ कवि ने स्वच्छ चाँदनी और चतुर्दिक आनंद के वातावरण का सुंदर वर्णन करते हुए कहा है कि पंचवटी का सौंदर्य अति मनमोहक है। रात में भी प्रकृति अपना काम एकांत और शांत भाव से चुपचाप कर रही है। प्रकृति के कार्यकलाप रात में भी उसी तन्मयता से गतिशील है।
कवि ने प्रकृति के वर्णन में मानवीकरण करते हुए कर्तव्यपरायणता का संदेश दिया है।
(ख) है बिखेर देती वसुंधरा
मोती सबके सोने पर,
रवि बटोर लेता है उनको
सदा सवेरा होने पर।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘किरणों का खेल’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। यहाँ रात की प्राकृतिक शोभा का वर्णन किया गया है।
कवि कहते हैं कि यह पृथ्वी सबके सो जाने पर नित्यप्रति आकाश में नक्षत्र रूपी मोतियों को फैला देती है और सूर्य सदा ही प्रातः काल हो जाने पर उनको बटोर कर रख लेता है। वह सूर्य भी नक्षत्र रूपी मोतियों को संध्या रूपी सुंदरी को देकर अपने लोक चला जाता है। अतः नक्षत्र रूपी मोतियों को धारण करके उस संध्या रूपी सुंदरी का शून्य-सा श्यामल रूप झिलमिल करता हुआ अति दीप्त हो जाता है
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कर सुंदर एवं सजीव वर्णन किया है। अतिशयोक्ति अलंकार के प्रयोग से पद्यांश की भावप्रवणता बढ़ गई है।
भाषा एवं व्याकरण
1. पाठ में आए अनुप्रास अलंकार के तीन उदाहरण चुनकर लिखिए।
उत्तरः पाठ में आए अनुप्रास अलंकार के तीन उदाहरण हैं-
(क) “चारु चंद्र की चंचल किरणें “
यहाँ ‘च’ वर्ण भी पुनरावृत्ति हुई है।
(ख) “खेल रही है जल-थल में “
‘यहाँ ‘ल’ वर्ण की पुनरावृत्ति हुई है।
(ग) “पुलक प्रगट करती धरती”
यहाँ ‘प’ वर्ण की पुनरावृत्ति हुई है।
2. निम्नलिखित शब्दों को संधि के रूप में जोड़कर लिखिए:
सम् + यम = ………
सम् + रचना = ………
सम् + बिधान = ………
सम् + शोधन = ………
सम् + स्मरण = ………
सम् + हार = ………
उत्तर: सम् + यम = संयम
सम् + रचना = संरचना
सम् + बिधान = संविधान
सम् + शोधन = संशोधन
सम् + स्मरण = संस्मरण
सम् + हार = संहार
3. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए:
अवनि, अंबर, तरु, पवन, चंद्र, रवि, चारु, निशा, तन, किरण
उत्तरः अवनि = धरती, पृथ्वी, वसुंधरा
अंबर = आकाश, नभ, आसमान
तरु = वृक्ष, पेड़, पादप
पवन = हवा, वायु, समीर
चंद्र = चाँद, चंद्रमा, शशि
रवि = सूर्य, दिनकर, प्रभाकर
चारु = सुंदर, आकर्षक, सुहावना
निशा = रात, रात्रि, यामिनी
तन = शरीर, देह, काया
किरण = ज्योति, प्रभा, रश्मि
4. निम्नलिखित निपातों के प्रयोग से एक-एक वाक्य बनाइए :
भी, ही, तो, भर, केवल
उत्तर: (i) पिता जी स्कूल से आते समय बाजार से कुछ सामान भी खरीद लाए।
(ii) गरीब जनता सरकार के भरोसे ही अपना गुजारा करती है।
(iii) मैंने अपने दोस्तों को यह बात तो बताई थी।
(iv) मंत्री जी ने मेरी मदद भर नहीं की।
(v) देश की रक्षा केवल सेना ही नहीं कर सकती ।
योग्यता- विस्तार
1. सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ पढ़िए और ‘किरणों का खेल’ कविता से उसकी तुलना कीजिए।
उत्तरः सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ और मैथिलीशरण गुप्त की कविता ‘किरणों का खेल’ में सौंदर्य-वर्णन के क्षेत्र में भाव -साम्य दिखाई देता है। गुप्त जी ने अपनी इस कविता में पंचवटी के प्राकृतिक सौंदर्य और पंत जी ने वर्षा ऋतु के प्राकृतिक परिवेश का चित्रण बड़े सुंदर ढंग से किए हैं। गुप्त जी पंचवटी के रात्रिकालीन सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सुंदर चंद्रमा की किरणें जल और थल में बिखरी हुई हैं और इनसे पुलकित होकर धरती मानो खुशी से फुला नहीं समा रही। धरती पर उगे हरे-हरे तृणों की नोकें झूम रही हैं, मंद-मंद पवन बह रहा है। प्रकृति के कार्यकलाप रात्रि के समय भी अविराम गति और शांत भाव से चल रहे हैं। अर्थात् इस कविता में मूलतः चाँद की किरणों के अपूर्व सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
जबकि सुमित्रानंदन पंत की कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ में वर्षा ऋतु में क्षण-क्षण प्रकृति के परिवर्तित हो रहे परिवेश का चित्रण किया गया है। मेखलाकार पर्वत अपने ऊपर खिले हुए फूलों के रंगों के माध्यम से तालाब के जल में अपना प्रतिबिंब देखकर अपने सौंदर्य को निहार रहा है। तालाब का जल दर्पण जैसा प्रतीत हो रहा है। झरने झरते हुए ऐसा प्रतीत हो रहे हैं मानो वे पर्वत का गौरवगान कर रहे हैं। झरनों का झाग मोती की लड़ियों की भाँति प्रतीत हो रहा है। पर्वत पर उगे हुए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष शांत आकाश में स्थिर, अपलक और चिंताग्रस्त होकर झाँक रहे हैं। अचानक पर्वत बादलों के पीछे छिप गया। उस समय झरने का केवल शोर बाकी रह गया। तब आकाश ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह पृथ्वी पर टूट कर गिर रहा है। इस प्रकार इस कविता में बादल रूपी वाहन में विचरण करता हुआ इंद्र अपना खेल खेल रहा था।
इन कविताओं में दोनों कवियों ने प्राकृतिक सौंदर्य का सजीव वर्णन करते हुए प्रकृति का मानवीकरण किया है। दोनों कविताओं का भाव-साम्य देखते ही बनता है।
2. शहरों में विद्युत प्रकाश के चलते रात्रि के सौंदर्य का सही आभास नहीं हो पाता। अवकाश के दिनों में किसी ग्रामीण क्षेत्र में रात्रि बिताइए तथा इस अनुभव को अपनी डायरी में लिखिए।
उत्तरः विद्यार्थी स्वयं करें।
3. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित प्रकृति विषयक कविता” अट नहीं रही है” तथा ” जलाशय के किनारे कुहरी थी” पढ़िए और समझिए।
उत्तरः सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित प्रकृति विषयक कविता
“अट नहीं रही है’
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है ।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध- पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
“जलाशय के किनारे कुहरी थी “
जलाशय के किनारे कुहरी थी,
हरे-नीले पत्तों का घेरा था,
पानी पर आम की डाल आई हुई,
गहरे अंधकार का डेरा था,
किनारे सुनसान थे, जुगनूँ के
दल दमके यहाँ-वहाँ चमके,
वन का परिमल लिए मलय बहा,
नारियल के पेड़ हिले क्रम से,
ताड़ खड़े ताक रहे थे सबको,
पपीहा पुकार रहा था छिपा,
स्यार विचरते थे आराम से,
उजाला हो गया और तारा छिपा
लहरें उठती थीं सरोवर में
तारा चमकता था अंतर में।
अतिरिक्त प्रश्न एवं उत्तर
वैकल्पिक प्रश्न:
(क) चाँदनी की किरणें थीं-
(i) चंचल।
(ii) चारु।
(iii) स्वच्छ।
(iv) मंद।
उत्तर: (i) चंचल।
(ख) पुलक प्रगट करती है-
(i) किरणें।
(ii) चाँदनी।
(iii) धरती।
(iv) संध्या।
उत्तर: (iii) धरती।
(ग) कविता में विराम-दायिनी कहा गया है-
(i) धरती।
(ii) संध्या।
(iii) नियति।
(iv) नोकें।
उत्तर: (ii) संध्या।
लघु उत्तरीय प्रश्न:
1. किरणें कहाँ खेल रही हैं ?
उत्तर: किरणें जल और थल में खेल रही हैं।
2. चाँदनी में धरती क्या करती है ?
उत्तर: चाँदनी में धरती पुलक प्रकट करती है।
3. प्रकृति के कार्यकलाप कैसे चलते हैं?
उत्तरः प्रकृति के कार्यकलाप एकांत भाव से चुपचाप चलते रहते हैं।
4. वसुंधरा सबके सोने पर क्या बिखेर देती है?
उत्तरः वसुंधरा सबके सोने पर मोती रूपी ओसकण बिखेर देती है।
5. ओसकणों को कौन बटोर लेता है?
उत्तरः ओसकणों को सूरज बटोर लेता है।
6. स्वच्छ चाँदनी कहाँ बिछी हुई है ?
उत्तरः स्वच्छ चाँदनी आकाश और धरती पर बिछी हुई है।
7. मोती कौन और कहाँ बिखेरता है?
उत्तरः हरी घासों पर ओसकण रूपी मोतियों को वसुंधरा बिखेरती है।
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क) चारु चंद्र की _____ किरणें
खेल रही हैं जल-थल में
उत्तर: चंचल।
(ख) मानो झूम रहे हैं _______ भी
मंद पवन के झोंकों से
उत्तर: तरु।
(ग) बंद नहीं अब भी चलते हैं
नियति-नटी के ________,
उत्तर: कार्यकलाप।
(घ) है बिखेर देती _________
मोती सबके सोने पर
उत्तर: वसुंधरा।
(ङ) और ________ अपनी
संध्या को दे जाता है
उत्तर: विराम- दायिनी।
सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) चारु चंद्र की चंचल किरणें
खेल रही हैं जल-थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अंबर तल में।
उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंबर भाग-2’ से ली गई हैं। इसके रचयिता हैं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी। यहाँ कवि ने पंचवटी के रात्रिकालीन प्राकृतिक सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है।
कवि कहते हैं कि सुंदर चंद्रमा की चंचल किरणें जल और थल पर क्रिड़ाएँ कर रही हैं। चंद्रमा की स्वच्छ, सफेद चाँदनी पृथ्वी और आकाश में फैली हुई है। अर्थात् पंचवटी का सौंदर्य अनुपम और अवर्णनीय है। चंद्रमा की किरणें आकाश और धरती पर ऐसी बिखरी हैं जिससे पंटवटी के सौंदर्य में चार चाँद लग गए हों। कवि ने यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य के मनोहारी व हृदयग्राही रूपों की सुंदर व्याख्या की है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न:
1. ‘किरणों का खेल’ कविता का संदर्भ क्या है?
उत्तर: ‘किरणों का खेल’ कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित खंडकाव्य ‘पंचवटी’ का अंश है। पंचवटी एक प्रसिद्ध और प्राचीन स्थान है। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने चौदह वर्ष की वनवास अवधि में तेरह वर्ष पंचवटी में बिताए थे। पंचवटी महाराष्ट्र में नासिक के निकट गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। प्रस्तुत कविता में पंचवटी के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
2. पठित कविता का भावार्थ लिखिए।
उत्तरः प्रस्तुत कविता में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने पंचवटी के प्राकृतिक सौंदर्य का सजीव वर्णन किया है। पंचवटी प्रदेश में चाँदनी की अनुपम शोभा छाई हुई है। हरी घासें, वृक्ष आनंद के साथ झूम रहे हैं। रात्रि में चारों ओर पूर्ण शांति है। प्रकृति के क्रियाकलाप शांत भाव से चल रहे हैं।
चंद्रमा की चंचल किरणें पृथ्वी और जल राशि पर थिरक रही हैं। वृक्ष आनंद विभोर होकर झूमने लगे हैं। सुगंध फैल रही है। सर्वत्र आनंद है। प्रभात में जो सूर्य की किरणें पृथ्वी तल पर पड़ती हैं, वे ओस के मोतियों को बटोर लेती हैं। पृथ्वी, जल, वायु, आकाश सभी चाँदनी रात में रसमग्न हैं। कुल मिलाकर यहाँ की प्राकृतिक शोभा अतुलनीय और अद्भुत है।
3. संध्या को सूर्य की विराम-दायिनी क्यों कहा गया है?
उत्तर: सूर्य दिनभर आकाश मार्ग में चलता है। जब संध्या होती है, तब सूर्य की यात्रा रुकती है। कवि की कल्पना के अनुसार सूर्य विश्राम करता है। इसी कारण संध्या को सूर्य की विराम-दायिनी कहा गया है।
4. ‘शून्य – श्याम तनु जिससे उसका नया रूप झलकाता है’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः “शून्य – श्याम तनु जिससे उसका नया रूप झलकाता है”- का आशय यह है कि नक्षत्र रूपी मोतियों को संध्या रूपी सुंदरी का शून्य-सा श्यामल रूप झिलमिल करता हुआ अति दीप्त हो जाता है।