Assam Jatiya Bidyalay Class 8 Hindi Chapter 3 चरित्र – संगठन

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चरित्र – संगठन

Chapter – 3

অসম জাতীয় বিদ্যালয়

EXERCISE QUESTION ANSWER

शब्दार्थ :

आत्मबलआंतरिक शक्ति
प्रौढ़ावस्यायुवावस्था की परवर्ती अवस्था
सिद्धांतनिश्चित मत, उसूल
उत्थानउठना, जागता
मौजूदउपस्थित
कण्टकाकीर्णकाँटों से परिपूर्ण
शैथिल्यशिथिलता

अभ्यास माला

प्रश्न – १ : सही कथन के ओग (✓) का चिह्न और गलत कथन के आगे (x) का चिह्न लगाओ :

उत्तर : (क) मनुष्य की विशेषता उसके शरीर में है। (x)

(ख) विद्या का मान सज्जन निर्णय करते हैं। (✓)

(ग) मनुष्य का मूल्य उसके चरित्र में है। (✓)

(घ) विनय मन का भूषण है। (x)

(ङ) अभ्यास के लिए बाल्य काल उपयुक्त है। (✓) 

(च) विनयशील मनुष्य अभिमान के दोष से बचा नहीं रहना। (x)

(छ) उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों का आदर करता है। (✓)

(ज) मेहनत करने वालों में कोई दैवी प्रभा नहीं रहनी। (x) 

(झ) राजा हरिश्चन्द्र धैर्य का ज्वलंत उदारहरण है। (✓)

(ञ) सहकारिता से दूसरों को वंचित रखना कृतज्ञता है। (x)

प्रश्न – २ : पूर्ण वाक्य में उत्तर दो : 

(क) मनुष्य की विशेषता किस में है ?

उत्तर : मनुष्य की विशेषता उसके चरित्र में है।

(ख) विद्या का भूषण क्या है ? 

उत्तर : विद्या का भूषण विनय है।

(ग) श्रीमद्भगवद्गीता में विनय के संबंध में क्या कहा गया है ?

उत्तर : श्रीमद्भगवद्गीता में विद्या विनय सम्पन्न’ कहा गया है। अर्थात विद्या विनय से सम्पन्न होने से ही विद्या का मान होता है।

(घ) विनय के अभाव में क्या प्रकट होता है ?

उत्तर : विनय के अभाव में एक खोखलापन प्रकट करता है।

(ङ) उदारता का अभिप्राय क्या है ?

उत्तर : उदारता का अभिप्राय केवल निःसंकोच भाव से किसी को धन देना ही नहीं है, वरन् दूसरों के प्रति उदार भाव रखना भी है। कहा गया है – “उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्” ।

(च) परम उदार लोगों की विशेषता क्या है ?

उत्तर : परम उदार लोगों की विशेषता यह है कि वे निः संकोच किसी दूसरे को ‘तन, मन और धन’ से सहायता करने को तत्पर रहते हैं। उनके नजर में “वसुद्यैव कुटुम्बकम्” याने सम्पूर्ण विश्व ही उनका कुटुम्ब (संबन्धी) है।

(छ) विज्ञ लोगों को किससे दूर रहना चाहिए ? 

उत्तर : विज्ञ लोगों को ‘अभिमान’ एवं ‘लालच’ से दूर रहना चाहिए। क्यों कि अभिमान एवं लालच सब कर्मों को नष्ट कर देता है।

(ज) शक्ति-सम्पन्न और प्रभावशाली बनने का सामर्थ्य किसमें होता है ?

उत्तर : शक्ति सम्पन्न और प्रभावशाली बनने का सामर्थ्य उसमें होता है, जिसमें चरित्र हो और साथ में अभिमान रहित विनयशील हों। 

(ञ) श्रीरामचन्द्रजी के जगद वन्दनीय होने का कारण प्रस्तुत पाठ के आधार पर लिखो।

उत्तर : राज्याभिषेक के कारण उन्हें हर्ष नहीं हुआ और वनवास जाने से दुखी नहीं हुए। यही कारण है कि श्रीरामचन्द्रजी जगद् वन्दनीय हैं।

(ट) मनुष्य की एकता एवं समाज की स्थिति का मूल क्या है ? 

उत्तर : मनुष्य की एकता एवं समाज की स्थिति का मूल है विनय, उदारता, लालच का त्याग, धैर्य, सत्य भाषण, वचन का प्रतिपालन करना और कर्त्तव्यपरायणता । ऐ सब मनुष्य में यदि आ जाय तो समाज की स्थिति सुधर जायेगी। एक वेद का मंत्र है जो संपूर्ण मानव जाति को जोड़ता है

“सर्वे भवन्तु सुरिवनः

सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पष्यन्तु

मा कश्चित दुख भाग भवेत् ।।” 

(ठ) सत्य बोलने के संबंध में चरित्रवान व्यक्ति को क्या करना चाहिए ?

उत्तर : सत्या बोलने के संबंध में चरित्रवान व्यक्ति को अपनी आत्मा में इतना बल रखना चाहिए कि वह सत्य को निर्भयता के साथ कह सके। सत्य ‘मनसा वाचा सर्मणा’ होना चाहिए। जो कहे वही करे और जो कर सके वही कहे प्राण जाय पर वचन न जाई।’

(ड) प्रस्तुत पाठ के अनुसार हमारा कर्त्तव्य क्या है ?

उत्तर : पाठ के अनुसार हमारा कर्त्तव्य यह है कि जो बातें बचने की ही, उनसे बचना चाहिए और जो करने की हो, उनको सौ हानि उठाकर भी करना चाहिए। यही कर्त्तव्यपरायणता है। अपने कर्तव्य में आलस नहीं करना चाहिए। समाज, गाँव और देश के प्रति समभाव रखना हमारा मूल कर्त्तव्य है।

(ढ) कर्त्तव्य-पालन के लिए क्या आवश्यक है ?

उत्तर : कर्त्तव्य-पालन में सदा अडिग रहना चाहिए। जो तुम्हारा कर्त्तव्य है, उससे कदापि न हटो-उसमें चाहे लोग निन्दा करे चाहे स्तुति कर्त्तव्य पालन के लिए प्रतिक्षण अभ्यास आवश्यक है। आत्मस्यवश या लोभवश कर्त्तव्य से च्युत होना ही हामरा पतन है।

प्रश्न- ३ : संक्षिप्त उत्तर दो :

(क) सच्चरित्र के लिए कौन-से गुण आवश्यक हैं? पाठ के आधार पर लिखो। 

उत्तर : सच्चरित्र के लिए विनय, उदारता, लालच में न पड़ना, धैर्य, सत्य भाषण, वचन का प्रतिपाल और कर्त्तव्यपरायणता का गुण होना आवश्यक है। 

(ख) ‘विद्या-विनय सम्पन्न’ का आशय स्पष्ट करते हुए यह बताओ कि चरित्र-निर्माण में विनय की क्या भूमिका है ?

उत्तर : विनय विद्या का भूषण है। बिना विनय के विद्या शोभा नहीं देती। ‘विद्या ददाति विनयम्’ विनय विद्या को ही नहीं, वरन् धन और बल दोनों को ही शोभा देती है। विनयशील मनुष्य अभिमान के दोष से बचा रहता है। चरित्र निर्माण में भी विनय का बहुत बड़ा हाथ है। विद्या अर्जन करने पर भी यदि चरित्र ठीक नहीं हो तो वह विद्या कोई काम की नहीं। चरित्र निर्माण तभी सम्भव हो सकता है, जब विद्या के साथ-साथ विनय हो। विनय से ही विद्या की पहचान होती है।

(ग) उदारता किस प्रकार चरित्र निर्माण में सहायक बनती है ?

उत्तर : चरित्र के कारण ही एक मनुष्य दूसरे से अधिक आदरणीय समझा जाता है। “उदार-चरितानां तु बसुद्यैव कुटुम्बकम्” में जो उपदेश दिया गया है, वह केवल धन की उदारता नहीं वरम् उसमें प्रेम और सेवा की भी उदारता सम्मिलित है।

(घ) लालच के सन्दर्भ में ईसा’ और ‘ श्रीरामचंद्रजी’ के बारे में क्या कहा गया है ?

उत्तर : यद्यपि लालच के सुलभ प्रसंग प्राप्त होने पर लालच के ऊपर विजय पाने में बहादुरी है। तथापि विज्ञ पुरुष लालच से दूर रहे। ईसाई लोग प्रार्थना करते है “या यीशु ! मुझे इम्तहान में मत डाल।” हमारे यहाँ भगवान श्रीरामचन्त्रजी का ज्वलन्त उदाहरण मौजूद है। उन्होंने साम्राज्य का लालच छोड़ा, पर कर्त्तव्य से विमुख न हुए।

(ङ) हमें अपनी आध्यात्मिकता का गौरव बनाये रखने में धैर्य किस प्रकार सहायता करता है ? 

उत्तर : हमें अपनी आध्यात्मिकता का गौरव होना जाहिए, कठिन से कठिन स्थिति में प्रशन्न रहना आत्मा को उच्चता का सूचक है। राजा हरिश्चन्द्र धैर्य का एक जवलन्त उदाहरण हैं। कठिनाइयों से दुखित न होना ही उन पर विजय पाना है।

(च) आत्मा का उद्धार आत्मा से ही होता है – इस सन्दर्भ में कर्तव्यपरायणता की क्या भूमिका है ?

उत्तर : जो तुम्हारा कर्त्तव्य है, उससे कदापि न हटो उसमें चाहे लोग निन्दा करे चाहे स्तुति कर्त्तव्य के पालन से हमारा आत्म-गौरव रह सकता है। हमें अपने कार्यालय समय पर पहुँचना हमारा कर्त्तव्य है, किन्तु उसी समय कोई व्यक्ति रास्ते में सहायता के लिए तरप रहा हो तो उसकी समय पर अस्पताल पहुचाना हमारा परम कर्त्तव्य होता है। यह कर्त्तव्यपरायणता है।

प्रश्न-४ : रेखांकित शब्द का लिंग बदलकर खाली स्थान में लिखो : 

(क) विवाह में देवर के साथ __ने भी नृत्य किया।

उत्तर : विवाह में देवर के साथ देवरानी ने भी नृत्य किया।

(ख) मोरनी को देखकर __नाचने लगा।

उत्तर : मोरनी को देखकर मोर नाचने लगा। 

(ग) बिल्ली को देखकर पहले __भागा, फिर चुहिया भागी। 

उत्तर : बिल्ली को देखकर पहले चूहा भागा, फिर चुहिया भागी।

(घ) सर्वेश ने नाई से बाल कटवाए और प्रमिला ने __से।

उत्तर : सर्वेश ने नाई से बाल कटवाए और प्रमिला ने नाईन से।

(ङ) पंडितनाइन ने सामान रखा और __ने पूजा कराई।

उत्तर : पंडितनाइन ने सामान रखा और पंडित जी ने पूजा कराई।

प्रश्न -५ : अर्थ-भेद स्पट करते हुए वाक्य बनाओ :

अंबर : (आकाश) अंबर में चिड़ियाँ उड़ती है।

अंबर : (वस्त्र) भगवान विष्णु पीत + अंबर (पीतांबर) से शोभित है।

सोम : (स्वर्ग) स्वर्ग के देवता को सोम-देव भी कहते हैं।

सोम : (चंद्रमा) शिव चन्द्रमा को अपने मस्तक पर रखने से सोमनाथ कहलाते हैं।

दक्षिण : (दाहिना) दक्षिण अंग फड़क रहा है।

दक्षिण : (एक दिसा) मद्रास शहर भारत के दक्षिण में है।

योग : (ध्यान) योगाम्यास शरीर के लिए अच्छा है।

योग : (जोड़) दो से लेकर आठ तक का योग- फल बताओ।

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