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NIOS Class 12 Geography Chapter 16 जल संसाधन

NIOS Class 12 Geography Chapter 16 जल संसाधन Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapters NIOS Class 12 Geography Chapter 16 जल संसाधन Notes and select need one. NIOS Class 12 Geography Chapter 16 जल संसाधन Question Answers Download PDF. NIOS Study Material of Class 12 Geography Paper Code 316.

NIOS Class 12 Geography Chapter 16 जल संसाधन

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Chapter: 16

TEXTUAL QUESTION ANSWER

पाठगत प्रश्न 16.1

1. सिंचाई युक्त क्षेत्र के संदर्भ में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?

उत्तर: भारत का सिंचाई युक्त क्षेत्र के संदर्भ में विश्व में प्रथम स्थान है।

2. भारत में किसी नदी घाटी में धरातलीय जल भंडार की क्षमता अधिकतम है।

उत्तर: गंगा नदी घाटी में धरातलीय जल भंडार की क्षमता सर्वाधिक है।

3. भारत के ऐसे पांच राज्यों के नाम लिखिए जहां भू-जल का बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है।

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उत्तर: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, गुजरात।

पाठगत प्रश्न 16.2

1. भारत में सिंचाई के विभिन्न साधन कौन से हैं?

उत्तर: कुंए और नलकूप, नहरें, तालाब।

2. उन राज्यों के नाम लिखिए जहां मुख्य रूप से तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है।

उत्तर: तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि।

3. सिंचाई की मांग बढ़ने के कारण लिखिए।

उत्तर: वर्षा में क्षेत्रीय और मौसमी बदलाव, वाणिज्यिक फसलों की बढ़ती मांग आदि।

पाठगत प्रश्न 16.3

1. हमें वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता क्यों है?

उत्तर: हमें वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि सतही जल के स्रोत सीमित हैं, भूमिगत जल पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, और शहरीकरण के कारण पानी की मांग बढ़ रही है। वर्षा जल संग्रहण से जल संकट को कम किया जा सकता है और जल स्तर बनाए रखने में मदद मिलती है।

2. वर्षा जल संग्रहण के किन्हीं दो तरीकों के नाम लिखिए।

उत्तर: (i) छत पर वर्षा जल संचयन (Rooftop Rainwater Harvesting)।

(ii) सतह पर जल संचयन (Surface Runoff Harvesting), जैसे खाइयों का निर्माण या तालाबों में जल एकत्र करना।

3. उत्तराखंड में किस प्रकार जल का सरेक्षण एवं चैनलों का पुनर्भरण किया जाता है?

उत्तर: उत्तराखंड में पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरीकों से जल का संरक्षण (सरेक्षण) और चैनलों का पुनर्भरण किया जाता है। यहाँ पहाड़ी ढलानों और घाटियों में चाल-खाल नामक छोटे गड्ढे व तालाब बनाए जाते हैं, जो वर्षा जल को रोककर जमीन में धीरे-धीरे समा देते हैं। इससे भू-जल स्तर बढ़ता है और सूखे के समय पेयजल एवं सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध रहता है। इसके अलावा, झीलों, नालों और नदियों की सफाई, सोख्ता गड्ढों का निर्माण, वृक्षारोपण तथा चेक डैम जैसे संरचनाओं का निर्माण करके प्राकृतिक जलधाराओं को पुनर्भरित किया जाता है। इन पारंपरिक पहाड़ी तकनीकों और आधुनिक उपायों के संयोजन से उत्तराखंड में जल का प्रभावी संरक्षण और चैनलों का पुनर्भरण सुनिश्चित किया जाता है।

पाठगत प्रश्न 16.4

1. जल संसाधनों से सम्बन्धित किन्हीं चार समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: (i) शहरीकरण के लिए पानी की बढ़ती मांग।

(ii) प्रदूषण।

(iii) आर्थिक गतिविधि की मांग।

(iv) वैश्विक परिवर्तन के कारण कमी।

2. राष्ट्रीय जल नीति पर मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: राष्ट्रीय जल नीति का मुख्य उद्देश्य देश के जल संसाधनों का संरक्षण, समुचित उपयोग और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना है। इसका लक्ष्य जल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जल का सतत् विकास, समन्वित प्रबंधन और कुशल उपयोग करना है। इस नीति के तहत पेयजल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है, साथ ही सिंचाई, उद्योग, ऊर्जा उत्पादन और पर्यावरणीय जरूरतों के लिए जल का संतुलित आवंटन किया जाता है। इसके अतिरिक्त वर्षा जल संग्रहण, भूजल पुनर्भरण, प्रदूषण नियंत्रण और जल के पुनर्चक्रण पर विशेष बल देकर भविष्य में जल संकट को रोकना भी इसका प्रमुख उद्देश्य है।

3. नदियों को परस्पर जोड़ने में कौन-सी चुनौतियां हैं?

उत्तर: (i) परियोजना व्यवहार्यता: इतनी बड़ी परियोजनाओं के लिए भारी वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है। तकनीकी दृष्टि से भी यह कठिन है, क्योंकि लंबी नहरों, पंपों और बांधों का निर्माण करना और उनका रख-रखाव जटिल होता है।

(ii) पर्यावरणीय प्रभाव: बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई, प्राकृतिक आवासों का विनाश और जैव विविधता पर असर पड़ सकता है।

पाठांत प्रश्न

1. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर लिखिएः

(i) जल संसाधनों का क्या अर्थ है?

उत्तर: जल संसाधनों का अर्थ है प्राकृतिक या मानव निर्मित स्रोत जिनसे जल प्राप्त किया जा सकता है, जैसे नदियाँ, झीलें, तालाब, भूजल आदि।

(ii) धरातलीय जल के मुख्य स्रोतों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: धरातलीय जल के मुख्य स्रोत हैं: नदियाँ, झीलें, तालाब, वर्षा जल।

(iii) देश के उत्तरी मैदानों में भू-जल की अधिक मात्रा में उपलब्धि का क्या कारण है?

उत्तर :देश के उत्तरी मैदानों में भूजल की अधिक मात्रा में उपलब्धि का कारण है: विस्तृत जलोढ़ मैदान, नदियों की अधिकता, वर्षा की अच्छी मात्रा।

(iv) वर्षा जल संग्रहण का अर्थ लिखिए

उत्तर: वर्षा जल संग्रहण का अर्थ है वर्षा के जल को इकट्ठा करना और उसे भविष्य में उपयोग के लिए संरक्षित करना।

(v) जल ग्रहण (वाट्रशेडस) का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: जल ग्रहण (वाटरशेड) का अर्थ है एक ऐसा क्षेत्र जिसमें वर्षा का जल एकत्र होकर एक नदी या जल स्रोत में मिलता है।

(vi) राष्ट्रीय नदी जोड़ो कार्यक्रम के क्या लाभ है?

उत्तर: राष्ट्रीय नदी जोड़ो कार्यक्रम के लाभ है:

(i)  जल संसाधनों का बेहतर उपयोग।

(ii) सूखे और बाढ़ की समस्या में कमी।

(iii) जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल की आपूर्ति में सुधार।

(iv)  कृषि और उद्योगों के लिए जल की उपलब्धता में वृद्धि।

2. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए:

(a) धरातलीय जल एवं भू-जल

उत्तर: 

आधारधरातलीय जलभू-जल
                      अर्थ धरातलीय जल  यह जल धरातल पर नदियों, तालाबों, झीलों और अन्य जलाशयों में पाया जाता है। यह जल आसानी से दिखाई देता है और इसका उपयोग सिंचाई, पीने के पानी और अन्य कार्यों के लिए किया जाता है।भू-जल यह जल भूमि के नीचे जलधाराओं और जलभृतों में संचित होता है। भू-जल का उपयोग कुओं और ट्यूबवेलों के माध्यम से किया जाता है।
मुख्य स्रोतनदियाँ, झीलें, तालाब, हिमनद, वर्षा का एकत्र जलकुएँ, ट्यूबवेल, झरने, भूमिगत जलधाराएँ
संग्रहण का स्थानसतही भाग – नदियों व झीलों की खुली सतह परमिट्टी, बालू, चट्टानों की दरारों या जलभृत (aquifer) में
उपयोग का तरीकासीधे उपयोग किया जा सकता है – पेयजल, सिंचाई, नौपरिवहन आदिपंपिंग, कुआँ, बोरवेल आदि से निकालकर उपयोग किया जाता है
प्रभावप्रदूषण, वाष्पीकरण और मौसमी परिवर्तन से अधिक प्रभावितअपेक्षाकृत शुद्ध व स्थिर; मौसमी परिवर्तन से कम प्रभावित

(b) वर्षा जल संग्रहण एवं जल ग्रहण विकास

उत्तर:

आधारवर्षा जल संग्रहणजल ग्रहण विकास
अर्थवर्षा के समय गिरने वाले पानी को एकत्र कर सुरक्षित रखना और बाद में उपयोग करना।किसी नदी, झील या तालाब के पूरे जलग्रहण क्षेत्र (catchment area) का वैज्ञानिक प्रबंधन और संरक्षण।
                  उद्देश्य वर्षा जल संग्रहण वर्षा जल को संचित करना, जल संकट कम करना।जल ग्रहण विकास  जल ग्रहण क्षेत्रों का प्रबंधन, जल संसाधन संरक्षण।
कार्यान्वयन का तरीकाछत से पानी को टैंकों में एकत्र करना, कुएँ या गड्ढे बनाना, तालाबों में पानी रोकना।वृक्षारोपण, चेक डैम, कंटूर बंडिंग, नालों का उपचार, जल निकासी तंत्र का सुधार।
क्षेत्रीय दायराआम तौर पर घर, मोहल्ला या छोटे भू-भाग तक सीमित।संपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र, जैसे किसी नदी घाटी या जलाशय का व्यापक क्षेत्र।
मुख्य लाभपीने का पानी, घरेलू जरूरत और सिंचाई के लिए सीधे उपलब्धता।भू-जल स्तर में वृद्धि, मृदा अपरदन रोकना, लंबे समय तक सतत जल आपूर्ति सुनिश्चित करना।

3. भारत में जल का वितरण असमान क्यों है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: भारत में जल का वितरण असमान होने का मुख्य कारण वर्षा का असमान वितरण है। कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में बहुत कम वर्षा होती है,भारत में जल वितरण की असमानता के कारण:

(i) वर्षा का असमान वितरण: भारत में अधिकांश वर्षा मानसून पर निर्भर करती है, लेकिन यह पूरे देश में समान रूप से नहीं होती है। कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे बाढ़ आती है, जबकि कुछ क्षेत्रों में बहुत कम वर्षा होती है, जिससे सूखा पड़ता है। 

(ii) भूजल का अत्यधिक उपयोग: सिंचाई, उद्योगों और घरों में पानी की बढ़ती मांग के कारण भूजल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जिससे जलभृतों का स्तर घट रहा है।

(iii) जल प्रबंधन में कमी: सिंचाई प्रणाली में पानी की बर्बादी, पानी के भंडारण की सुविधाओं की कमी, और जल स्रोतों की उचित देखभाल न होने से भी पानी की कमी हो रही है। 

(iv) प्रदूषण: औद्योगिक और घरेलू कचरे के कारण नदियों, झीलों और भूजल का प्रदूषण भी जल की उपलब्धता को प्रभावित करता है।

उदाहरण:

मेघालय के चेरापूंजी व मौसिनराम में प्रतिवर्ष 11,000 मि.मी. से अधिक वर्षा होती है।

राजस्थान के थार मरुस्थल जैसे क्षेत्रों में केवल 250 मि.मी. से भी कम वर्षा होती है।

4. “भू-जल जल आपूर्ति का विश्वसनीय और निरंतर स्रोत है।” इस कथन के तर्क को सिद्ध कीजिए।

उत्तर: भू-जल जल आपूर्ति का विश्वसनीय और निरंतर स्रोत है क्योंकि यह पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टानों, मिट्टी और रेत की परतों में प्राकृतिक रूप से संग्रहित रहता है। सतही जल की तुलना में यह मौसमी बदलावों से कम प्रभावित होता है, इसलिए गर्मी या सूखे के समय भी इसकी उपलब्धता बनी रहती है। भूमिगत जल सूर्य के सीधे संपर्क में नहीं रहता, जिससे वाष्पीकरण नगण्य होता है और पानी लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। इसके अलावा, यह मिट्टी और चट्टानों की परतों से छानकर आता है, जिससे यह अपेक्षाकृत शुद्ध और पीने योग्य होता है। खेती, पेयजल, उद्योग और अन्य घरेलू जरूरतों के लिए कुओं, हैंडपंप और ट्यूबवेल द्वारा आसानी से निकाला जा सकता है। इन सभी कारणों से भू-जल को जल आपूर्ति का सबसे भरोसेमंद और निरंतर स्रोत माना जाता है।

5. वर्षा जल संग्रहण के मुख्य तरीकों का वर्णन कीजिए?

उत्तर: वर्षा जल संग्रहण के मुख्य तरीकों में छत पर वर्षा जल का संग्रहण, सतह पर वर्षा जल का संग्रहण, और भूजल पुनर्भरण शामिल हैं:

(i) छत पर वर्षा जल का संग्रहण: इस विधि में, छत से बहने वाले पानी को पाइपों के माध्यम से इकट्ठा करके एक टैंक या जलाशय में जमा किया जाता है। 

(ii) सतह पर वर्षा जल का संग्रहण: इस विधि में, वर्षा जल को सतह से बहने से रोककर गड्ढों, तालाबों, या जलाशयों में जमा किया जाता है। 

(iii) भूजल पुनर्भरण: इस विधि में, वर्षा जल को कुओं, बोरवेलों, या अन्य माध्यमों से जमीन के नीचे पहुंचाया जाता है ताकि भूजल स्तर को बढ़ाया जा सके। 

6. जल ग्रहण के विकास में क्या लाभ हो सकते हैं? उल्लेख कीजिए।

उत्तर: जल ग्रहण विकास से जल संसाधनों का संरक्षण और सतत् उपयोग सुनिश्चित होता है। इसके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

(i) जल संसाधनों का संरक्षण: जल का उचित प्रबंधन और संचयन होता है, जिससे वर्षा का पानी बेकार बहने के बजाय उपयोग में आता है।

(ii) बाढ़ नियंत्रण: वर्षा जल को रोककर और धीरे-धीरे प्रवाहित करके बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

(iii) जल की गुणवत्ता में सुधार: मिट्टी और प्रदूषक तत्वों को नियंत्रित करने से जल प्रदूषण घटता है और जल की गुणवत्ता बढ़ती है।

(iv) कृषि उत्पादकता में वृद्धि: सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होने से फसलों की पैदावार और किसानों की आय में वृद्धि होती है।

(v) स्थानीय आजीविका के अवसर: जल संरक्षण कार्यों, वृक्षारोपण और मत्स्य पालन जैसे कार्यों से ग्रामीणों को नए रोजगार और आय के स्रोत मिलते हैं।

(vi) पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता: पौधों, पशुओं और पक्षियों के प्राकृतिक आवास सुरक्षित रहते हैं, 

जिससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है।

7. जल ग्रहण विकास कार्यक्रम परियोजनाओं के वांछितपरिणाम क्यों प्राप्त नहीं हुए? कारण लिखिए।

उत्तर:जल ग्रहण विकास कार्यक्रम की परियोजनाओं से अपेक्षित परिणाम इसलिए प्राप्त नहीं हो पाए क्योंकि इनके क्रियान्वयन में कई गंभीर कमियाँ रहीं। सबसे पहले, कई क्षेत्रों में योजना और क्रियान्वयन के बीच तालमेल का अभाव रहा, जिसके कारण परियोजनाएँ समय पर पूरी नहीं हो सकीं। स्थानीय समुदायों की भागीदारी कम होने से जल संरक्षण संरचनाओं का रखरखाव और निगरानी सही ढंग से नहीं हो पाया। कई बार पर्याप्त वित्तीय संसाधन और तकनीकी सहयोग उपलब्ध नहीं होने के कारण कार्य अधूरे रह गए। इसके अतिरिक्त, मानसून पर अत्यधिक निर्भरता और बदलते वर्षा पैटर्न से भी जल संचयन की योजनाएँ प्रभावित हुईं। कुछ जगहों पर भ्रष्टाचार, निगरानी की कमी और प्रशिक्षण का अभाव जैसी प्रशासनिक कमियाँ भी सामने आईं। इन सभी कारणों से जल ग्रहण विकास कार्यक्रम का उद्देश्य भूजल स्तर बढ़ाना, कृषि उत्पादकता सुधारना और पर्यावरण संरक्षण पूरी तरह से सफल नहीं हो सका।

8. जल संरक्षण क्यों अनिवार्य है? जल संरक्षण के विभिन्न तरीके स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: जल संरक्षण इसलिए अनिवार्य है क्योंकि पृथ्वी पर पानी सीमित मात्रा में उपलब्ध है और इसका अंधाधुंध उपयोग भविष्य में जल संकट का कारण बन सकता है। जल संरक्षण के कई तरीके हैं, जिनमें वर्षा जल संचयन, पानी के रिसाव को रोकना, पानी का बुद्धिमानी से उपयोग करना, और जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना शामिल है। 

जल संरक्षण की आवश्यकता:

(i) सीमित जल संसाधन: पृथ्वी का अधिकांश जल खारा है; पीने योग्य मीठा जल बहुत कम है और तेजी से घट रहा है।

(ii) पर्यावरण संरक्षण: जल संरक्षण से नदियों, झीलों और भूजल का स्तर बना रहता है, जिससे प्राकृतिक जल चक्र और जैव विविधता सुरक्षित रहती है।

(iii) आर्थिक लाभ: पानी की खपत घटने से घरेलू खर्च और कृषि व उद्योग में जल लागत कम होती है।

(iv) भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षा: जल संरक्षण आने वाले समय में सतत् जीवन और विकास के लिए जल उपलब्ध कराता है।

जल संरक्षण के प्रमुख तरीके:

(i) वर्षा जल संचयन: वर्षा के पानी को छतों, तालाबों, गड्ढों या जलाशयों में संग्रहित कर सिंचाई, घरेलू जरूरतों और भूजल पुनर्भरण में उपयोग करना।

(ii) पानी के रिसाव को रोकना: टपकते नल, लीक होते पाइप और अनावश्यक बहाव को समय पर ठीक कर पानी की बर्बादी रोकना।

(iii) पानी का बुद्धिमानी से उपयोग: नहाने, कपड़े और बर्तन धोने, सिंचाई आदि में जरूरत के अनुसार पानी का सीमित और पुन: उपयोग करना।

(iv) जागरूकता और शिक्षा: समाज में जल संरक्षण के महत्व को प्रचारित करना, जल बचत के लिए अभियान चलाना और समुदाय को जिम्मेदार बनाना।

9. भारत में जल ग्रहण विकास कार्यक्रमों की उपयोगिता और क्रियान्वयन का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर: भारत में जल ग्रहण विकास कार्यक्रमों की उपयोगिता और क्रियान्वयन का मूल्यांकन करने से पता चलता है कि ये कार्यक्रम जल संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उपयोगिता:

(i) जल संचयन और प्रबंधन के माध्यम से सूखा संभावी क्षेत्रों में जल उपलब्धता बढ़ाना।

(ii) मिट्टी, पौधों, मानव और पशु जनसंख्या के बीच पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखना।

(iii) जल संचयन और प्रबंधन के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाना।

(iv) बाढ़ नियंत्रण और जल प्रदूषण रोकने में मदद करना।

क्रियान्वयन:

(i) जल ग्रहण विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है।

(ii) जल संचयन और प्रबंधन के लिए पारंपरिक तरीकों और आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि वर्षा जल संचयन, जल पुनर्चक्रण, और ड्रिप सिंचाई।

(iii) जल ग्रहण विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

(iv) जल जीवन मिशन और अटल भूजल योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से जल ग्रहण विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है।

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