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NIOS Class 12 Geography Chapter 15 वन और जैव विविधता

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NIOS Class 12 Geography Chapter 15 वन और जैव विविधता

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Chapter: 15

TEXTUAL QUESTION ANSWER

पाठगत प्रश्न 15.1

1. भारत में पाए जाने वाले पाँच प्रमुख प्रकार के वनों के नाम लिखिए

उत्तर: भारत में पाए जाने वाले पाँच प्रमुख प्रकार के वनों के नाम लिखिए:

(i) उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन।

(ii) उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन।

(iii) कांटेदार वन।

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(iv) ज्वारीय वन, समुद्रतटीय और दलदली वन।

(v) हिमालयी वन और दक्षिणी पर्वतीय वन।

2. भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा दिए गए बनावरण के चार वर्गों के नाम लिखिए। 

उत्तर: एफ.एस.आई. (भारतीय वन सर्वेक्षण) द्वारा दिए गए वनावरण के चार वर्ग:

(i) बहुत घना वन।

(ii) मध्यम रूप से घना वन।

(iii) खुला वन।

(iv) झाड़ी।

3. हिमालय में अल्पाइन वन किस ऊंचाई पर पाए जाते हैं?

उत्तर: हिमालय में 3000 से 3800 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं।

4. सुंदरबन डेल्टा में पाए जाने वाले प्रसिद्ध मैंग्रोव वृक्षों की प्रजाति का नाम लिखिए।

उत्तर: सुंदरबन डेल्टा में पाए जाने वाले प्रसिद्ध मैंग्रोव वृक्षों की प्रजाति का नाम:

(i) सुंदरी।

 (ii) गोरान।

 (iii) गेवड़ा।

 (iv) अविसेनिया।

5. शुष्क और आर्द्र (नम) पर्णपाती वन में वार्षिक वर्षा को सीमा कितनी है?

उत्तर: (i) शुष्क पर्णपाती वनों में सालाना 70 से 100 सेमी वर्षा होती है।

(ii) आर्द्र (नम) पर्णपाती वनों में सालाना 100 से 200 सेमी वर्षा होती है।

6. विश्व में समृद्ध वनस्पतियों की रैंकिंग में भारत का स्थान क्या है?

उत्तर: भारत में समृद्ध वनस्पतियों की रैंकिंग दुनिया में 10वीं है

7. दुनिया के जीव-जंतुओं के कितने प्रतिशत भारत में पाए जाते हैं?

उत्तर: भारत में दुनिया की जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पाया जाता है। भारत में 7-8%दुनिया के जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत को जैव विविधता के मामले में एक मेगाडायवर्स देश माना जाता है।

पाठगत प्रश्न 15.2

1. वनों के संरक्षण के विभिन्न तरीकों और चरणों की पहचान करें:

उत्तर: (i) जंगल की आग पर नियंत्रण।

(ii) पेड़ों की नियमित और नियोजित कटाई।

(iii) वन उत्पादों और वनों का उचित उपयोग।

(iv) वनों की सुरक्षा।

2. भारत में वनीकरण के लिए अपनाई गई प्रमुख योजनाओं के नाम लिखिए

उत्तर: (i) राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (N.Α.Ρ.)

(ii) राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (GI.M.)

(iii) वन अग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (F.F.P.M.)

3. वनों के संरक्षण और विकास की तीन रणनीतियाँ हैं:

उत्तर: (i) प्राकृतिक/कृत्रिम पुनरुत्थान के माध्यम से वनीकरण।

(ii) संरक्षण।

(iii) प्रबंधन।

4. निम्नलिखित संक्षिप्त रूपों का पूर्ण रूप लिखिए।

(i) एस.एम.सी.

(ii) जे.एफ.एम.सी.

(iii) एफ.डी. ए.

(iv) एस.एफ. डी.ए.

उत्तर: (i) एस.एम.सी. :  मृदा और आर्द्र संरक्षण।

(ii) जेएफ.एम.सी. : संयुक्त वन प्रबंधन एजेंसी।

(iii) एफ.डी.ए. : वन विकास एजेंसी।

(iv) एस.एफ. डी.ए. : राज्य वन विकास एजेंसी।

पाठगत प्रश्न 15.3

1. प्रजाति विविधता को परिभाषित कीजिए।

उत्तर: प्रजाति विविधता पृथ्वी पर प्रजातियों की पूरी श्रृंखला को कवर करती है। इसमें सभी प्रजातियां, वायरस, बैक्टीरिया, रोगाणुओं से लेकर जीव-जंतु तक शामिल हैं।

2. जैव विविधता के तीन उपयोग लिखिए।

उत्तर: जैव विविधता के तीन उपयोग:

(i) उत्पादन।

(ii) उपभोग।

(iii) अप्रत्यक्ष।

3. जैव विविधता संरक्षण की दो विधियाँ बताइए।

उत्तर: (i) इन-सीटू संरक्षण (In-situ conservation): जैव विविधता को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करना, जैसे राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, बायोस्फीयर रिजर्व आदि।

(ii) एक्स-सीटू संरक्षण (Ex-situ conservation): जैव विविधता को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर संरक्षित करना, जैसे चिड़ियाघर, वनस्पति उद्यान, बीज बैंक, जीन बैंक आदि।

पाठगत प्रश्न 15.4

1. दुनिया में कितने हॉट स्पॉट की पहचान की गई है

उत्तर: दुनिया में 36 जैव विविधता हॉटस्पॉट (biodiversity hotspots) की पहचान की गई है, जो जैव विविधता के लिहाज से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

2. भारत में पाए जाने वाले हॉट स्पॉट के नाम लिखिए

उत्तर: भारत में निम्नलिखित तीन प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट पाए जाते हैं —

(i) हिमालय।

(ii) पश्चिमी घाट।

(iii) इंडो-बर्मा।

3. भारत में कितने बायोस्फीयर रिजर्व हैं।

उत्तर: भारत में 18 बायोस्फीयर रिजर्व हैं।

पाठगत प्रश्न 15.5

1. संयुक्त वन प्रबंधन की दिशा में पहले कदम को ___________मॉडल कहा जाता है जिसे  __________ राज्य में वर्ष  __________ में लागू किया गया था।

उत्तर: संयुक्त वन प्रबंधन की दिशा में पहले कदम को अरबरारी (Arabari) मॉडल कहा जाता है,
जिसे पश्चिम बंगाल राज्य में वर्ष 1971 में लागू किया गया था।

2.  किस वर्ष राष्ट्रीय वन नीति के माध्यम से भारत सरकार द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन की अवधारणा लागू की गई थी?

उत्तर: 1988 वर्ष राष्ट्रीय वन नीति के माध्यम से भारत सरकार द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन की अवधारणा लागू की गई थी।

3. भारत के किस राज्य में संयुक्त वन प्रबंधन की सबसे बड़ी संख्या है और संयुक्त वन प्रबंधन योजना के अंतर्गत प्रबंधित क्षेत्र का आकार सबसे बड़ा है?

उत्तर: प्रबंधित क्षेत्रफल की दृष्टि से भी मध्य प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है, जहाँ JFM के अंतर्गत सर्वाधिक वन क्षेत्र आता है।

4. संयुक्त वन प्रबंधन के नामकरण के दो उदाहरण।

उत्तर: (i) वन संरक्षण समिति (V.S.S.)।

(ii) वन पंचायतें।

5. भारत में संयुक्त वन प्रबंधन को मजबूत करने के विभिन्न तरीके क्या है?

उत्तर: (i) जे.एफ.एम. समितियों के लिए कानूनी मदद।

(ii) समितियों में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

(iii) जे.एफ.एम. को अच्छे वन क्षेत्रों में विस्तारित किया जाना चाहिए।

(iv) जे.एफ.एम. क्षेत्रों में सूक्ष्म योजना।

(v) प्रकृति के संरक्षण और जैव विविधता के मूल्यों का मूल्यांकन।

(vi) स्व आरम्भ समूहों को पहचानना एवं उन्हें मान्यता देना।

पाठांत प्रश्न

1. वनों के महत्व पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: वन, पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वे न केवल विभिन्न प्रकार के पौधों और जीव-जंतुओं को आश्रय और भोजन प्रदान करते हैं, बल्कि जलवायु नियंत्रण, वायु और जल शुद्धिकरण, मिट्टी के संरक्षण और वर्षा चक्र को संतुलित करने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। वनों से हमें लकड़ी, औषधियाँ, रेशा, ईंधन और अनेक प्रकार की वन उपज प्राप्त होती है, जो मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं। वनों का संरक्षण जैव विविधता बनाए रखने, प्राकृतिक आपदाओं को रोकने तथा पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक है।

 इसलिए, वनों का महत्व केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत अधिक है। वनों की सुरक्षा और संरक्षण में सभी को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

2. भारत के प्रमुख पाँच प्रकार के वनों की व्याख्या करें? उनके वितरण और वृक्ष प्रजातियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: भारत में पाँच प्रमुख प्रकार के वन हैं:

क्रमवन का प्रकारवितरण क्षेत्रप्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ
1उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनपश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत, अंडमान-निकोबार द्वीप समूहमहोगनी, एबोनी, रोज़वुड, बांस, रबर, लॉरेल
2उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनमध्य भारत, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेशसाल, सागौन, शीशम, अर्जुन, बांस, तेंदु
3कांटेदार वनराजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश (शुष्क/अर्ध-शुष्क क्षेत्र)बबूल, कीकर, खैर, बेर, तेंदू, यूकेलिप्टस
4ज्वारीय (मैंग्रोव) वनसुंदरबन डेल्टा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी डेल्टा, अंडमान-निकोबार तटसुंदरी, गोरान, केवड़ा, अविसेनिया
5हिमालयी एवं दक्षिणी पर्वतीय वनहिमालय (उत्तर भारत), नीलगिरी, अन्नामलाई (दक्षिण भारत)देवदार, चीड़, फर, स्प्रूस, ओक, शोलावन

3. चित्र की मदद से जैव विविधता के नुकसान के प्रमुख कारणों को दर्शाइये

उत्तर: जैव विविधता के नुकसान के प्रमुख कारणों को दर्शाने के लिए, हम विभिन्न कारकों को चित्रित कर सकते हैं जो पर्यावरण और जीवों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं: 

(i) अवैध शिकार: जानवरों का अवैध रूप से शिकार (Poaching) जैव विविधता को सीधा नुकसान पहुँचाता है, कई प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर हैं। उदाहरण: अधिक मछली पकड़ना, अत्यधिक शिकार, वनों की अत्यधिक कटाई आदि।

(ii) आवास विनाश: वनों की कटाई, प्राकृतिक आवास का नष्ट होना (Habitat Loss) भी जैव विविधता के नुकसान का बड़ा कारण है।

(iii) जलवायु परिवर्तन: जलवायु में हो रहे तेज़ बदलाव (जैसे तापमान बढ़ना, सूखा, बाढ़) से कई प्रजातियाँ अपने आवास में नहीं रह पातीं और उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है।

4. भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए अपनाए गए विभिन्न कदमों का वर्णन कीजिए

उत्तर: भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए अपनाए गए विभिन्न कदम हैं:

(i) वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान: वन्यजीवों के आवास और उनकी सुरक्षा के लिए अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किए गए हैं।

(ii) वन्यजीव संरक्षण अधिनियम: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वन्यजीवों का शिकार और व्यापार प्रतिबंधित है।

(iii) प्रोजेक्ट टाइगर: बाघों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया है, जिसके तहत बाघों के आवास और उनकी संख्या में वृद्धि के प्रयास किए जा रहे हैं।

(iv) वन्यजीव पुनर्वास और पुनर्स्थापन: वन्यजीवों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

(v) जागरूकता और शिक्षा: वन्यजीव संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता और शिक्षा के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं।

(vi) सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास: सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा वन्यजीव संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रम और परियोजनाएं चलाई जा रही हैं।

5. दक्षिणी पर्वतों में पाई जाने वाली वनस्पति को व्याख्या कीजिए।

उत्तर: (i) दक्षिणी पर्वतों का क्षेत्र: दक्षिणी पर्वतों में मुख्य रूप से पश्चिमी घाट, नीलगिरि, अन्नामलाई और पालनी की पर्वत श्रंखलाएँ आती हैं। यहाँ की वनस्पति ऊँचाई और जलवायु के अनुसार बदलती रहती है।

(ii) पर्वतीय वन: पश्चिमी घाट, नीलगिरि, अन्नामलाई पहाड़ियों में शीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं। यहाँ घने जंगल, विविध प्रकार की झाड़ियाँ और घास के मैदान मिलते हैं।

(iii) शोला वन: नीलगिरि, अन्नामलाई, और पालनी पहाड़ियों में शोला वन पाए जाते हैं। इन वनों में मैगनोलिया, लॉरेल, सिनकोना, वैटल जैसे पेड़ होते हैं। अन्य वृक्षों में ओक, देवदार, मेपल, पाइंस, स्प्रूस जैसी शंकुधारी (कॉनिफर) प्रजातियाँ मिलती हैं।

(iv) घास के मैदान: अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में कम तापमान के कारण घास के विस्तृत मैदान (Grasslands) विकसित होते हैं।

(v) जलवायु और ऊँचाई का प्रभाव: जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती है, तापमान कम होता जाता है और वनस्पति का प्रकार बदल जाता है।

(vi) अधिक वर्षा के क्षेत्र: पश्चिमी घाट में अधिक वर्षा के कारण घने और सदाबहार वन पाए जाते हैं।

(vii) शीतोष्ण व उपोष्णकटिबंधीय वन: ऊँचाई वाले क्षेत्रों में शीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं। इनमें ओक, देवदार, मेपल, पाइंस, स्प्रूस, लॉरेल, मैगनोलिया आदि वृक्ष मिलते हैं।

6. जैव विविधता के हॉट स्पॉटों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों का वर्णन करें।

उत्तर: भारत सरकार ने जैव विविधता के हॉट स्पॉटों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित पहल की हैं:

(i) संरक्षित क्षेत्र: राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं, ताकि जैव विविधता से भरपूर क्षेत्रों का संरक्षण किया जा सके।

(ii) वन्यजीव संरक्षण अधिनियम: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवासों का संरक्षण किया जा रहा है।

(iii) प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट: बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए विशेष परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं, जो हॉट स्पॉट क्षेत्रों की जैव विविधता की रक्षा में सहायक हैं।

(iv) जैव विविधता मिशन: जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता मिशन शुरू किया गया है।

(v) जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को शामिल करके जैव विविधता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा रही है तथा उन्हें संरक्षण में सक्रिय भागीदार बनाया जा रहा है।

7. भारत में जैव विविधता के हॉट स्पॉटों के नाम और स्थान लिखिए

उत्तर: भारत में तीन  प्रमुख जैव विविधता हॉट स्पॉट हैं:

(i) पश्चिमी घाट (Western Ghats): महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु राज्यों में फैला हुआ है।

(ii) हिमालय (Himalaya): उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश आदि हिमालयी क्षेत्रों में फैला हुआ है।

(iii) इंडो-बर्मा (Indo-Burma): उत्तर-पूर्वी भारत के राज्य असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश आदि इस हॉटस्पॉट का हिस्सा हैं।

8.भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए अपनाए गए उपायों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा कई उपाय किए जा रहे हैं। इन उपायों में वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों का संरक्षण, वन्यजीवों की अवैध शिकार और तस्करी को रोकना, और वन्यजीवों के बारे में जागरूकता बढ़ाना शामिल है। 

(i) वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान: वन्यजीवों के आवास और उनकी सुरक्षा के लिए अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किए गए हैं।

(ii) वन्यजीव संरक्षण अधिनियम: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वन्यजीवों का शिकार और व्यापार प्रतिबंधित किया गया है।

(iii) प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट: बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए विशेष परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।

(iv) जागरूकता और शिक्षा: वन्यजीव संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता और शिक्षा के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं।

(v) सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास: सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों द्वारा वन्यजीव संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रम और परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।

(vi) हैबिटेट संरक्षण: वन्यजीवों के आवासों का संरक्षण और प्रबंधन किया जा रहा है, ताकि उनकी प्राकृतिक रहने की जगह सुरक्षित रह सके।

9. उपयुक्त प्रवाह चार्ट के साथ जैव विविधता के महत्व और उपयोग का वर्णन कीजिए।

उत्तर: जैव विविधता का अर्थ है पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीवन, जिसमें पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव और उनके द्वारा बनाए गए पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। जैव विविधता का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है, भोजन, पानी, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, और सांस्कृतिक महत्व से लेकर। जैव विविधता का संरक्षण करना आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल हमारे ग्रह के स्वास्थ्य के लिए, बल्कि हमारे अपने अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण है। 

जैव विविधता के महत्व को दर्शाने वाला एक प्रवाह चार्ट: 

मुख्य श्रेणीउप-श्रेणियाँ / उपयोगविवरण/उदाहरण
(i) जीवन के लिए आवश्यकभोजन, पानी, ऊर्जा, आश्रयपौधे, पशु, सूक्ष्मजीव
औषधीय और औद्योगिक संसाधनदवाइयाँ, कच्चा माल
पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँपरागण, पोषक चक्रण, जल शोधन
(ii) सामाजिक-सांस्कृतिकपारंपरिक ज्ञान व प्रथाएँजनजातीय/स्थानीय परंपराएँ
और आध्यात्मिक महत्वसांस्कृतिक विविधता और पहचानत्योहार, रीति-रिवाज
(iii) आर्थिक विकासकृषि, वानिकी, मत्स्य पालनफसल, लकड़ी, मछली
पर्यटन और मनोरंजनइको-टूरिज्म, वन्यजीव पर्यटन
वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचारनई दवाएँ, जैव-तकनीक
क्रमांकउपयोग/महत्वविवरण / उदाहरण
(i)आर्थिकभोजन, औषधि, लकड़ी, मत्स्य, उद्योग
(ii)पारिस्थितिकपरागण, पोषक चक्रण, जल शोधन
(iii)सांस्कृतिकपरंपराएँ, आजीविका, पहचान
(iv)वैज्ञानिकनई दवाएँ, जैविक अनुसंधान
(v)संरक्षणआवास बचाना, प्रदूषण कम करना

10. भारत में वन संरक्षण के लिए अपनाई जाने वाली विभिन्न विधियों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर: भारत में वन संरक्षण के लिए अपनाई जाने वाली विभिन्न विधियाँ हैं:

(i) वनरोपण और वृक्षारोपण: वनों के कटाव को रोकने तथा नए वृक्ष लगाने के लिए वनरोपण (afforestation) और वृक्षारोपण (plantation) कार्यक्रम चलाए जाते हैं। इससे न केवल वन क्षेत्र बढ़ता है, बल्कि पर्यावरण भी संतुलित रहता है।

(ii) सामुदायिक वन प्रबंधन: स्थानीय समुदायों को वन प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल किया जाता है। इससे लोग वनों के संरक्षण के प्रति जिम्मेदार होते हैं और संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।

(iii) वन संरक्षण अधिनियम: वनों के कटाव और अवैध उपयोग को रोकने के लिए भारत सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 लागू किया है। इसके तहत वनों की कटाई के लिए सख्त कानूनी प्रावधान हैं।

(iv) जैव विविधता संरक्षण: वनों में पाई जाने वाली जैव विविधता (biodiversity) के संरक्षण के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें विभिन्न पौधों और पशु प्रजातियों तथा उनके आवासों का संरक्षण शामिल है।

(v) वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान: वन्यजीवों के संरक्षण के लिए देशभर में अनेक वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuaries) और राष्ट्रीय उद्यान (National Parks) स्थापित किए गए हैं। इससे जैव विविधता और वन्य प्रजातियों को सुरक्षित रखा जाता है।

(vi) जागरूकता और शिक्षा: वन संरक्षण के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने और शिक्षा देने के लिए विभिन्न अभियान (Campaigns) और शैक्षिक कार्यक्रम (Educational Programs) चलाए जा रहे हैं।

(vii) सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास: सरकार एवं विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा वन संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ, परियोजनाएँ एवं अभियान चलाए जा रहे हैं, जैसे ‘वन महोत्सव’, ‘ग्रीन इंडिया मिशन’ आदि।

11. रामसर आर्द्रभूमि स्थल क्या हैं और भारत में इनकी संख्या क्या है?

उत्तर: रामसर आर्द्रभूमि स्थल (Ramsar Wetlands Sites) वे आर्द्रभूमियाँ हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है। “रामसर कन्वेंशन” 1971 में ईरान के रामसर शहर में संपन्न हुआ था, जिसमें आर्द्रभूमियों के संरक्षण और समझदारीपूर्ण उपयोग के लिए वैश्विक संधि बनाई गई। ये स्थल जैव विविधता, प्रवासी पक्षियों, मछलियों, और अन्य जलीय जीवन के संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। भारत में, विभिन्न प्रकार की झीलें, दलदल, नदी घाटियाँ, समुद्री तटीय क्षेत्र आदि रामसर स्थल के रूप में सूचीबद्ध हैं। भारत में सितंबर 2025 तक कुल 82 रामसर आर्द्रभूमि स्थल घोषित किए जा चुके हैं, जो देश के विभिन्न राज्यों में फैले हुए हैं। इन स्थलों का संरक्षण न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से, बल्कि स्थानीय आजीविका, पर्यटन तथा पारिस्थितिक संतुलन के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

12. प्रवाह आरेखों की सहायता से संयुक्त वन प्रबंधन के उद्देश्यों को दर्शाइए।

उत्तर: संयुक्त वन प्रबंधन (जेएफएम) का उद्देश्य वनों के संरक्षण, पुनरुद्धार और सतत उपयोग को सुनिश्चित करना है, जिसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी और लाभों का समान बंटवारा शामिल है। इस प्रणाली में सबसे पहले स्थानीय समुदायों की पहचान की जाती है, जिनकी सहभागिता वन प्रबंधन में आवश्यक मानी जाती है। इसके बाद वन विभाग और समुदायों के बीच औपचारिक साझेदारी स्थापित की जाती है, जिसके तहत भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ तय की जाती हैं। इसके पश्चात् एक संयुक्त वन प्रबंधन योजना बनाई जाती है, जिसमें संरक्षण, पुनरुद्धार और संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की रणनीतियाँ शामिल होती हैं। इस प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, जैसे कि वन सुरक्षा समितियों का गठन और उनकी सशक्त भागीदारी। इसके अलावा, जेएफएम आजीविका के वैकल्पिक साधनों को बढ़ावा देता है और वनों से प्राप्त होने वाले लाभों का पारदर्शी बंटवारा करता है। सतत वन उपयोग और पर्यावरण संरक्षण भी इसके प्रमुख उद्देश्य हैं। अंततः, जेएफएम की सभी गतिविधियों की निगरानी और मूल्यांकन किया जाता है, जिससे प्रक्रिया में निरंतर सुधार और पारदर्शिता बनी रहती है। इस प्रकार, संयुक्त वन प्रबंधन एक चक्रीय प्रक्रिया है, जिसमें समुदाय और वन विभाग मिलकर वनों के संरक्षण, विकास और आजीविका सुधार के साझा लक्ष्य की ओर कार्य करते हैं।

13. संयुक्त वन प्रबंधन के सुचारू संचालन के लिए मुख्य घटकों की चर्चा कीजिए

उत्तर: संयुक्त वन प्रबंधन के प्रभावी संचालन के लिए कई महत्वपूर्ण घटक आवश्यक हैं। सबसे महत्वपूर्ण है स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी, जिसके तहत ग्राम वन समितियों या अन्य स्थानीय संगठनों का गठन किया जाता है ताकि वे वन प्रबंधन की योजना, कार्यान्वयन और निगरानी में योगदान दें। वन विभाग का सहयोग और समर्थन भी एक प्रमुख घटक है, जिसमें विभाग द्वारा तकनीकी, वित्तीय और प्रशासनिक सहायता प्रदान की जाती है, साथ ही प्रशिक्षण और संसाधन भी उपलब्ध कराए जाते हैं। लाभ-बंटवारे की स्पष्ट और पारदर्शी व्यवस्था होना आवश्यक है, जिससे समुदाय को वनों से प्राप्त होने वाले लाभों का उचित हिस्सा मिल सके। इसके लिए पारदर्शी नीतियों और सहभागिता पर आधारित प्रबंधन समितियों का गठन किया जाता है, जिनमें समुदाय, वन विभाग और अन्य हितधारक शामिल रहते हैं। सतत वन प्रबंधन भी एक अहम घटक है, जिसमें वनों का सतत उपयोग, संरक्षण, संवर्धन और पुनर्जनन शामिल है, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी वनों का अस्तित्व बना रहे। इन सभी घटकों के सफल कार्यान्वयन के लिए सरकार और अन्य संबंधित हितधारकों का समर्थन, नीति निर्माण, और नियमित निगरानी तथा मूल्यांकन भी जरूरी है।

14. संयुक्त वन प्रबंधन को मजबूत करने के लिए की गई किन्हीं पांच पहल का वर्णन कीजिए।

उत्तर: संयुक्त वन प्रबंधन (जेएफएम) को सशक्त बनाने के लिए कई अहम पहलें की गई हैं। सबसे पहली पहल है स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी, जिसके तहत उनकी राय, जरूरतों और सुझावों को वन प्रबंधन की योजनाओं में शामिल किया जाता है। दूसरी पहल वन विभाग का समर्थन है, जिसमें तकनीकी और वित्तीय सहायता के माध्यम से समुदायों को अधिक सशक्त और सक्षम बनाया जाता है। तीसरी पहल साझा निर्णय प्रक्रिया की है, जिसमें वन विभाग और स्थानीय समुदाय मिलकर वनों के संरक्षण और प्रबंधन से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। चौथी पहल क्षमता निर्माण की है, जिसके तहत वन प्रबंधन समितियों को प्रशिक्षण, जागरूकता और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है, जिससे वे प्रभावी रूप से अपने कार्य कर सकें। पाँचवीं और महत्वपूर्ण पहल है पारदर्शी लाभ साझाकरण, जिसके तहत वनों के उपयोग से प्राप्त लाभों को समुदाय के साथ ईमानदारी और पारदर्शिता से साझा किया जाता है, ताकि उनकी वन संरक्षण में रुचि और जिम्मेदारी बनी रहे। इन पहलों के जरिए जेएफएम की प्रक्रिया को अधिक समावेशी, पारदर्शी और टिकाऊ बनाया जा रहा है।

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