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NIOS Class 12 Geography Chapter 14 भूमि और मृदा संसाधन
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भूमि और मृदा संसाधन
Chapter: 14
TEXTUAL QUESTION ANSWER |
पाठगत प्रश्न 14.1
1. भूमि उपयोग के किन्हीं चार प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर: भूमि उपयोग के चार प्रकार निम्नलिखित हैं:
(i) वन भूमि।
(ii) शुद्ध बोया गया क्षेत्र।
(iii) खेती के लिए अनुपलब्ध भूमि।
(iv) परती भूमि।
2. एक वर्ष या उससे कम अवधि में बिना खेती के छोड़े हुई भूमि का नाम लिखिए ।
उत्तर: वर्तमान परती।
3. भूमि संसाधन क्षरण के मानव जनित कारण क्या है?
उत्तर: भूमि संसाधन क्षरण के मानव जनित कारण निम्नलिखित हैं:
(i) तीव्र शहरीकरण I
(ii) वनों की कटाई I
(iii) अत्यधिक चराई I
(iv) दोषपूर्ण सिंचाई पद्धतियां I
(v) शहरी फैलाव I
(vi) उद्योगों से प्रदूषण I
(vii) उत्खनन और खनन गतिविधियाँ I
पाठगत प्रश्न 14.2
1. मृदा स्वास्थ्य कार्ड क्या है?
उत्तर: मृदा स्वास्थ्य कार्ड एक दस्तावेज़ है जिसमें खेत की मृदा की जांच के आधार पर उसकी उर्वरता, पोषक तत्वों की उपलब्धता, और सुधार के लिए आवश्यक सुझाव दिए जाते हैं। इसका उद्देश्य किसानों को उनकी भूमि के अनुसार सही खाद और उर्वरक उपयोग की जानकारी देना है।
2. मृदा संरक्षण के क्या उपाय हैं?
उत्तर: मृदा संरक्षण के मुख्य उपाय हैं:
(i) वनों की रक्षा करना
(ii) ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती करना।
(iii) कंटूर हल चलाना।
(iv) वर्षा जल का संरक्षण।
(v) फसल चक्र अपनाना।
(vi) चराई पर नियंत्रण रखना
3. मृदा स्वास्थ्य कार्ड किस वर्ष प्रारंभ हुआ?
उत्तर: मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भारत में वर्ष 2015 में प्रारंभ की गई थी।
पाठगत प्रश्न 14.4
1. मृदा परिच्छेदिका क्या है?
उत्तर: मृदा परिच्छेदिका मृदा का एक लम्बवत अनुप्रस्थ काट है, जिसमें मृदा की सतह के समानांतर विभिन्न परतें (हॉराइजन) स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। यह विभिन्न मृदा परतों की बनावट, रंग, संरचना और गुणों को समझने में सहायक होती है।
2. भारत की मृदा कितने प्रकारों में विभाजित की गई है? नाम लिखिए।
उत्तर: भारत की मृदा को मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया गया है:
(i) जलोढ़ मृदा।
(ii) काली मृदा।
(iii) लाल मृदा।
(iv) लेटराइट मृदा।
(v) पर्वतीय मृदा।
(vi) रेगिस्तानी मृदा।
3. भौगोलिक आधार पर जलोढ़ मृदा को कितने प्रकार में विभाजित किया जा सकता है? नाम लिखिए।
उत्तर: भौगोलिक आधार पर जलोढ़ मृदा को दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है:
(i) बांगर (पुरानी जलोढ़ मृदा)।
(ii) खादर (नई जलोढ़ मृदा)।
4. रेगर मृदा का रंग सामान्यतः काला क्यों होता है?
उत्तर: रेगर मृदा का रंग काला या गहरा भूरा होता है, इसके मुख्य कारण हैं:
(i) ह्यूमस की उच्च मात्रा।
(ii) जैविक पदार्थों की अधिकता।
पाठांत प्रश्न |
1. भारत में भूमि उपयोग की महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर: भारत में भूमि उपयोग की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) कृषि प्रधानता: भारत की भूमि का एक बहुत बड़ा हिस्सा कृषि के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान बन गई है।
(ii) वन क्षेत्र: देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण भाग वनों से आच्छादित है, जिससे जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
(iii) शहरीकरण: शहरी क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिससे भूमि उपयोग में विविधता और बदलाव आ रहे हैं।
(iv) बंजर भूमि: भारत में बंजर या अनुपजाऊ भूमि का क्षेत्र भी पर्याप्त है, जिसे उपयोगी बनाने की आवश्यकता है।
(v) विविधता: भूमि उपयोग में भौगोलिक, जलवायु तथा जनसंख्या संबंधी विविधता के कारण जटिलता और विभिन्नता पाई जाती है।
(vi) अन्य उपयोग: कृषि और वानिकी के अलावा भूमि का उपयोग खनन, औद्योगिक, आवासीय, परिवहन और मनोरंजन गतिविधियों के लिए भी किया जाता है।
2. भारत में भूमि उपयोग के विभिन्न प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर: भारत में भूमि उपयोग के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:
(i) कृषि भूमि: यह वह भूमि है जिसका उपयोग मुख्य रूप से फसलों की खेती, बागवानी, बाग-बगीचे, आदि के लिए किया जाता है।
(ii) वन भूमि: ऐसी भूमि जो वनों और वनस्पतियों से आच्छादित है, तथा जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
(iii) चारागाह भूमि: इस भूमि का उपयोग मुख्य रूप से पशुओं के चरने के लिए किया जाता है, जिससे दुग्ध, मांस, ऊन आदि उत्पादों की प्राप्ति होती है।
(iv) बंजर भूमि: ऐसी भूमि जो कृषि के लिए अनुपयुक्त है, जैसे कि रेगिस्तानी क्षेत्र, दलदली क्षेत्र या अत्यधिक ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्र।
(v) शहरी भूमि: यह भूमि शहरी क्षेत्रों में आवास, उद्योग, परिवहन, व्यवसाय, पार्क आदि के लिए प्रयुक्त होती है।
(vi) ग्रामीण भूमि: ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित भूमि, जिसका उपयोग आवास, कृषि, बागवानी, और अन्य ग्रामीण गतिविधियों के लिए किया जाता है।
3. भारत में प्रत्येक प्रकार की मृदा की दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मृदाओं की दो मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
(i) जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil):
उपजाऊ: जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है और इसमें विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जा सकती हैं।
जल धारण क्षमता: इसमें जल को धारण करने की क्षमता अधिक होती है, जिससे यह सिंचाई के लिए उपयुक्त है।
(ii) काली मृदा (Black Soil):
- कपास की खेती के लिए उपयुक्त: काली मृदा कपास की खेती के लिए विशेष रूप से अनुकूल है।
- जल धारण क्षमता: इसमें जल धारण करने की क्षमता अत्यधिक होती है, जिससे यह शुष्क क्षेत्रों के लिए भी उपयोगी है।
(iii) लाल मृदा (Red Soil):
- लोहे की मात्रा अधिक: इस मृदा में लौह तत्व (आयरन) अधिक पाया जाता है, जिसके कारण इसका रंग लाल होता है।
- जल निकासी अच्छी: इसकी जल निकासी क्षमता अच्छी होती है, लेकिन इसमें जैविक पदार्थ कम होते हैं।
(iv) लैटराइट मृदा (Laterite Soil):
- खनिज पदार्थों से समृद्ध: लैटराइट मृदा में लौह व एल्युमिनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है।
- अम्लीय प्रकृति: यह मृदा अम्लीय प्रकृति की होती है और इसमें जैविक पदार्थ कम होते हैं।
(v) मरुस्थलीय मृदा (Desert Soil):
- रेतीली और सूखी: यह मृदा बहुत ही रेतीली और सूखी होती है।
- जल धारण क्षमता कम: इसमें जल धारण करने की क्षमता बहुत कम होती है।
(vi) पर्वतीय मृदा (Mountain Soil):
- जैविक पदार्थों से समृद्ध: यह मृदा जैविक पदार्थों से समृद्ध होती है।
- ढलान पर पाई जाती है: यह मुख्यतः पर्वतीय ढलानों पर पाई जाती है, जिससे इसमें क्षरण की संभावना रहती है।
4. मृदा संरक्षण के लिए किए जाने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मृदा संरक्षण के लिए किए जाने वाले विभिन्न उपाय हैं:
(i) वनस्पति आवरण बढ़ाना: वृक्षारोपण और वनस्पति आवरण बढ़ाने से मृदा का क्षरण रोका जा सकता है।
(ii) सीढ़ीनुमा खेती (Terrace Farming): पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेती करने से मृदा क्षरण कम किया जा सकता है।
(iii) फसल चक्र (Crop Rotation): फसल चक्र अपनाकर मृदा की उर्वरता बनाए रखी जा सकती है।
(iv) जैविक खाद का उपयोग: जैविक खाद का उपयोग करके मृदा की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है।
(v) मृदा परीक्षण (Soil Testing): मृदा परीक्षण करके मृदा की उर्वरता और पोषक तत्वों की आवश्यकता का पता लगाया जा सकता है।
(vi) भूमि उपयोग योजना (Land Use Planning): भूमि उपयोग योजना बनाकर मृदा का संरक्षण और उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।
(vii) मृदा क्षरण नियंत्रण संरचनाएँ: मृदा क्षरण नियंत्रण के लिए बांध, तटबंध आदि संरचनाएँ बनाई जा सकती हैं।
5. इनमें अंतर कीजिए:
(क) लैटेराइट मुदा और लाल मृदा।
उत्तर:
अंतर | लैटेराइट मुदा | लाल मृदा |
अर्थ | लैटेराइट मृदा यह मृदा उच्च तापमान और भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इसमें लोहे और एल्युमिनियम की उच्च मात्रा होती है और यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आम है। | लाल मृदा यह मृदा लोहे के ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण लाल रंग की होती है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है और इसमें पोषक तत्वों की मात्रा कम हो सकती है। |
उद्देश्य | लैटेराइट मृदा उच्च तापमान, भारी वर्षा, लोहे और एल्युमिनियम से भरपूर। | लाल मृदा लोहे के ऑक्साइड से लाल रंग, कम वर्षा वाले क्षेत्र। |
(ख) मृदा अपरदन और मृदा संरक्षण।
उत्तर:
अंतर | मृदा अपरदन | मृदा संरक्षण |
अर्थ | मृदा अपरदन यह एक प्रक्रिया है जिसमें मृदा की ऊपरी परत हवा या पानी द्वारा हटाई जाती है। यह मृदा की उर्वरता को कम कर सकता है और भूमि की उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है। | मृदा संरक्षण यह मृदा को अपरदन से बचाने और उसकी उर्वरता को बनाए रखने के लिए अपनाई जाने वाली विधियों को संदर्भित करता है। इसमें वृक्षारोपण, समोच्च खेती, और अन्य तकनीकें शामिल हैं। |
उद्देश्य | मृदा अपरदन मृदा का हटना, उर्वरता में कमी। | मृदा संरक्षण मृदा को बचाना, उर्वरता बनाए रखना। |
(ग) नई जलोद मृदा और पुरानी जलोढ़ मृदा।
उत्तर:
अंतर | नई जलोद मृदा | पुरानी जलोढ़ मृदा |
अर्थ | नई जलोढ़ मृदा यह मृदा नदियों द्वारा हाल ही में जमा की गई होती है और इसमें पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। यह मृदा कृषि के लिए बहुत उपजाऊ होती है। | पुरानी जलोढ़ मृदा यह मृदा लंबे समय से जमा हुई होती है और इसमें पोषक तत्वों की मात्रा कम हो सकती है। यह मृदा अपेक्षाकृत कम उपजाऊ हो सकती है। |
उद्देश्य | नई जलोढ़ मृदा अधिक पोषक तत्व, उपजाऊ। | पुरानी जलोढ़ मृदा कम पोषक तत्व, कम उपजाऊ। |
6. भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित के क्षेत्र को पहचान कर नामांकित कीजियेः
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित मृदा प्रकारों के क्षेत्र को पहचान कर नामांकित किया जा सकता है:
(क) जलोढ़ मृदा
(ख) लैटेराइट मृदा।
(ग) मरुस्थलीय मृदा।
उत्तर: भारत की प्रमुख मृदा और क्षेत्र:
जलोढ़ मृदा: गंगा–ब्रह्मपुत्र घाटी, सतलज–गंगा मैदान, असम, पंजाब, हरियाणा।
लैटराइट मृदा: पश्चिमी घाट (केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र), पूर्वोत्तर (असम, मेघालय), ओडिशा, आंध्र।
मरुस्थलीय मृदा: राजस्थान (थार मरुस्थल), हरियाणा–पंजाब के शुष्क भाग।


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