NCERT Class 9 Hindi Chapter 19 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

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NCERT Class 9 Hindi Chapter 19 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

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मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

Chapter: 19

संचयन भाग – 1 (पूरक पाठ्यपुस्तक)

बोध-प्रश्न

(पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर)

प्रश्न 1. लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे?

उत्तर: लेखक को तीन-तीन जबरदस्त हार्ट अटैक हुए उसकी नब्ज, साँस, धड़कन सब बंद हो गई थीं। कई डॉक्टरों ने तो उसे मृत घोषित कर दिया था, पर डॉक्टर बोर्जेस द्वारा 900 वॉल्टस के शॉक देने पर उसका हार्ट रिवाइव तो हो गया, पर साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया। शेष चालीस प्रतिशत में भी तीन अवरोध थे। यही कारण था कि डॉक्टर ओपन हार्ट ऑपरेशन करने में हिचक रहे थे।

प्रश्न 2. किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी?

उत्तर: किताबों वाले कमरे में रहने के पीछे लेखक के मन की यह भावना पता चलती है कि वह अपनी किताबों को देखता रहे और उनके साथ अपना जुड़ाव अनुभव कर सके। उसके प्राण इन हजारों किताबों में बसे थे, जो पिछले 40-50 वर्षों में उसके पास जमा हो गई थीं।

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प्रश्न 3. लेखक के घर कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थीं?

उत्तर: लेखक के घर निम्नलिखित पत्रिकाएँ आती थीं-

1. आर्यमित्र (साप्ताहिक)      

2. वेदोदम

3. सरस्वती

4. गृहिणी

5. बालसखा तथा

6. चमचम (बाल पत्रिकाएँ)।

प्रश्न 4. लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा थों?

उत्तर: लेखक के घर में कई पुस्तकें थीं। वह घर में रखे ‘सत्यार्थ प्रकाश’ और ‘स्वामी दयानंद की जीवनी’ को बड़ी रुचि के साथ पढ़ता था। इसकी रोमांचक घटनाएँ उसे प्रभावित करती थीं। वह ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ भी रुचिपूर्वक पढ़ता था। इन्हीं से उसे किताबें पढ़ने का शौक लगा।

उसे पाँचवीं कक्षा में फर्स्ट आने पर अंग्रेजी की दो किताबें इनाम में मिली थीं। इन दो किताबों ने उसके लिए नई दुनिया का दरवाजा खोल दिया। पिताजी की प्रेरणा से उसने अपनी किताबों को सहेजना शुरू कर दिया। इससे उसके निजी पुस्तकालय की शुरुआत हो गई।

प्रश्न 5. माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी?

उत्तर: लेखक स्कूली पढ़ाई के अतिरिक्त वाली पुस्तकें ज्यादा पढ़ता था। वह कक्षा की किताबें नहीं पढ़ता था। इससे माँ चिंतित रहती थी। वह डरती थी कि वह साधु बनकर कहीं भाग न जाए। माँ कहती थी कि बेटा स्कूली किताबें पढ़कर पास हो।

प्रश्न 6. स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेजी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए?

उत्तर: स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेजी की दोनों पुस्तकें बड़ी रोचक एवं ज्ञानवर्धक थीं। एक पुस्तक में पक्षियों के बारे में काफी जानकारी दी गई थी। दूसरी किताब थी-‘ट्रस्टी द रग’। इसमें पानी के जहाजों की कथाएँ थीं। नाविकों की जिंदगी, द्वीपों की जानकारी तथा ह्वेल और शार्क मछलियों के बारे में भी बताया गया था। पक्षियों और समुद्रों के रहस्य पता चले थे। इनसे लेखक का परिचय एक नयी दुनिया से हुआ था।

प्रश्न 7. ‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है’- पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?

उत्तर: लेखक के पिता घर की अलमारी के एक खाने की चीजें हटाकर किताबों के लिए जगह बनाई और उसमें लेखक को मिली इनाम की दोनों किताबें रख दीं। किताबें वहाँ रखते हुए उन्होंने बालक के पुस्तकालय की शुरुआत कर दी। इससे लेखक को बहुत प्रेरणा मिली। वह पुस्तकें जमा करता गया और आगे चलकर एक अच्छी-खासी लाइब्रेरी बनाने में सफल हो गया।

प्रश्न 8. लेखक की पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर: जब लेखक ने इंटरमीडिएट पास किया तो वह अपनी पुरानी पाठ्यपुस्तकों को बेचने के लिए एक दुकान पर गया। उन रुपयों से उसने बी.ए. की पुरानी पाठ्यपुस्तकें खरीदी। इस बेच-खरीद में उसके पास दो रुपए बच गए। पहले तो वह इन दो रुपयों से ‘देवदास’ पिक्चर देखना चाहता था, पर वह एक दुकान से दस आने में शरतचंद्र की लिखी पुस्तक ‘देवदास’ खरीद लाया और शेष पैसे माँ के हाथ पर रख दिए। इस प्रकार लेखक ने अपनी पहली पुस्तक खरीदी।

प्रश्न 9. ‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: लेखक अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसके चारों और किताबें ही किताबें थीं। विभिन्न विषयों पर विभिन्न लेखकों की हजारों किताबें वहाँ थीं। प्रसिद्ध हिन्दी लेखकों की रचनाएँ भी थीं। इन किताबों के बीच लेखक स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता। उन किताबों को देखकर उसे अपना मन भरा-भरा सा लगता है। उसे किताबें देखकर संतुष्टि का अनुभव होता है।

परीक्षा उपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक किस स्थिति में घर लाया गया और उसे कहाँ रखा गया?

उत्तर: लेखक लगभग अर्धमृत्यु की स्थिति में घर लाया गया। लेखक की जिद पर उसे किताबों वाले कमरे में रखा गया। उसे वहीं लिटाया गया। उसका चलना, फिरना, बोलना सब बंद था। वह वहाँ पड़े-पड़े केवल दो ही चीजों को देखता रहता था- बाईं ओर की खिड़की से हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के पत्तों को तथा कमरे के अंदर ठसाठस भरी किताबों की अलमारियों को। 

प्रश्न 2. ‘ट्रस्टी द रग’ में क्या-क्या बातें थीं?

उत्तर: ‘ट्रस्टी द रग’ में पानी के जहाजों की कथाएँ थीं। जहाजों के प्रकार तथा उनमें लादे जाने वाले माल की जानकारी थी । नाविकों की जिंदगी के बारे में भी बताया गया था। उसमें विभिन्न द्वीपों के बारे में भी बताया गया था। ह्वेल और शार्क मछलियों के बारे में भी जानकारी दी गई थी।

प्रश्न 3. इलाहाबाद में किन-किन लाइब्रेरियों का जिक्र पाठ में किया गया है?

उत्तर: इलाहाबाद प्रारंभ से ही भारत का प्रख्यात शिक्षा केन्द्र रहा है। यहाँ ईस्ट इंडिया द्वारा स्थापित ‘पब्लिक लाइब्रेरी’ है। मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित ‘भारती भवन’ है। विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी तथा अनेक कॉलेजों की लाइब्रेरियाँ हैं। लगभग हर मुहल्ले में लाइब्रेरी है। लेखक के मुहल्ले में भी ‘हरि भवन’ लाइब्रेरी थी।

प्रश्न 4. लेखक की लाइब्रेरी में कौन-कौन सी प्रमुख पुस्तकें हैं?

उत्तर: लेखक की लाइब्रेरी में रेनर मारिया रिल्के, स्टीफेन ज्वांग, मोपांसा, चेखव, टालस्टाय, दास्तोवस्की, मायकोवस्की, सोल्जेनिस्टिन, स्टीफेन स्पेंडर, आडेन एजरापाउंड, यूजीन ओ नील, ज्याँ पात्र सात्र, आल्बेयर कामू, आयोनेस्को के साथ पिकासो, ब्रूगेले, रेस्त्राँ, हेब्बर, हुसेन तथा हिंदी के कबीर, तुलसी, सूर, रसखान, जायसी, प्रेमचंद, पंत, महादेवी आदि लेखकों की रचनाएँ हैं।

प्रश्न 5. लेखक किस कारण से बच पाया?

उत्तर: लेखक सैकड़ों महापुरुषों की पुस्तकों के आशीर्वाद स्वरूप बच पाया। इन महापुरुषों ने ही उसे जीवनदान दिया है। कवि विंदा करंदीकर ने भी यही कहा था- “भारती, ये सैकड़ों महापुरुष जो पुस्तक रूप में तुम्हारे चारों ओर विराजमान हैं, इन्हीं के आशीर्वाद से तुम बचे हो। इन्होंने तुम्हें पुनर्जीवन दिया है।” 

प्रश्न 6. मराठी लेखक विंदा ने लेखक से क्या कहा था?

उत्तर: लेखक के सफल ऑपरेशन के बाद विंदा करंदीकर उन्हें देखने आए थे। तब उन्होंने कहा था-“भारती, ये सैकड़ों महापुरुष जो पुस्तक के रूप में तुम्हारे चारों ओर विराजमान हैं, इन्हीं के आशीर्वाद से तुम बचे हो। इन्होंने तुम्हें पुनर्जीवन दिया है।” उनका कथन सही था। 

प्रश्न 7. लेखक के मुहल्ले में कौन-सी लाइब्रेरी थी? वे वहीं बैठकर क्यों पढ़ते थे?

उत्तर: लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी- ‘हरिभवन’। स्कूल से छुट्टी मिलते ही लेखक वहीं जाकर बैठ जाता था और किताबें पढ़ता था। उसके पास लाइब्रेरी का चंदा चुकाने के पैसे नहीं थे, अत: किताबें घर के लिए नहीं मिलती थीं। वहीं बैठकर पढ़नी पड़ती थीं। लेखक को वहाँ अनूदित उपन्यास पढ़कर बड़ा सुख मिलता था।

प्रश्न 8. लेखक की लाइब्रेरी का आरंभ कैसे हुआ?

उत्तर: उस समय लेखक ने इंटरमीडिएट पास किया था। पुरानी पाठ्यपुस्तकों को बेचकर उन्होंने जब बी.ए. की पाठ्यपुस्तकें एक सेकंड हैंड बुकशॉप से खरीदीं, तब लेखक की इच्छा फिल्म देखने की हुई। तब लेखक माँ की अनुमति से फिल्म देखने पहुँचे, तब पहला शो छूटने में देर थी। समय बिताने के लिए लेखक पास ही किताबों की एक परिचित दुकान पर जाकर किताबें देखने लगे। अचानक उनकी दृष्टि शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की पुस्तक ‘देवदास’ पर पड़ी। उसे उठाकर वे उलटने-पुलटने लगे। दुकानदार ने लेखक को दस आने में वह किताब देने की बात कही। लेखक ने वह पुस्तक खरीद ली। इस प्रकार अपने पैसों से खरीदी। लेखक की निजी लाइब्रेरी की पहली पुस्तक थी-‘देवदास’।

प्रश्न 9. लेखक धर्मवीर भारती सेकंड हैंड पुस्तकें खरीदने के लिए क्यों विवश था?

उत्तर: लेखक सेकंडहैंड पुस्तकें खरीदने के लिए इसलिए विवश था क्योंकि पिता की मृत्यु के बाद परिवार आर्थिक संकट में आ गया। लेखक के पास नई पुस्तकें खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे। एक ट्रस्ट से मिले पैसों से वह केवल प्रमुख पाठ्यपुस्तकें सेकंडहैंड ही खरीद पाता था।

प्रश्न 10. ‘देवदास’ नामक पुस्तक के रचनाकार कौन हैं? दुकानदार ने वह किताब लेखक को कितने रुपए में बेची?

उत्तर: लेखक ने पुस्तकों की दुकान के काउंटर पर ‘देवदास’ नामक पुस्तक देखी। उसके लेखक शरतचंद्र चट्टोपध्याय थे। दाम केवल एक रुपया था। लेखक की दशा देखकर दुकानदार ने अपना कमीशन लिए बिना वह पुस्तक लेखक को दस आने में बेच दी। लेखक पुस्तक लेखक घर लौट आया।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1. ‘पुस्तकें आजीवन लेखक की संगिनी रही’ इस कथन की पुष्टि कीजिए। उनकी इस प्रवृत्ति से आपको क्या सीख प्राप्त हुई है? ‘मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर: ‘पुस्तकें आजीवन लेखक की संगिनी रही’ अर्थात् शुरू से लेखक को पुस्तकें पढ़ने का शौक उसके घर-परिवार के माहौल से बढ़ता गया। पिता आर्यसमाजी ये व माता ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की लेखक को शुरू से घर में पढ़ाया जाना, घर में पत्रिकाओं का नियमित आना ये सारी बातें लेखक के लिए बहुत लाभप्रद रहीं जिसने उसके मनोबल को बढ़ाया है। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति पढ़-लिखकर कभी गलत भाव से या गलत कार्य के लिए जल्द नहीं बढ़ता। उसमें बुद्धि का विकास तो होता ही है साथ ही अपने से बड़ों के लिए आदर की भावना भी पैदा ही जाती है।

प्रश्न 2. लेखक का पुस्तकालय कब और कैसे शुरू हुआ? इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है? 

उत्तर: लेखक के पिता आर्यसमाजी विचारधारा के थे। लेखक की माँ ने स्त्री शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी। इस प्रकार घर में पढ़ने-लिखने का वातावरण था। घर में अनेक पत्रिकाएँ भी आती थीं। इन पत्रिकाओं से लेखक को पढ़ने की चाह लग गई। घर में पुस्तकें भी काफी थीं। लेखक को चौथी कक्षा की परीक्षा में अंग्रेजी में सबसे ज्यादा अंक लाने के लिए स्कूल से अंग्रेजी की दो किताबें इनाम में मिलीं। इनमें एक किताब पक्षियों से संबंधित थी और दूसरी थी ‘ट्रस्टी द रग’।

पिताजी ने अलमारी का एक खाना खाली करके उसकी किताबों के लिए जगह बनाई और कहा- ” आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है।”

इस प्रकार लेखक का अपना निजी पुस्तकालय प्रारंभ हुआ।

इससे हमें भी यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपना निजी पुस्तकालय विकसित करना चाहिए। यह एक अच्छी आदत है।

प्रश्न 3. लेखक के घर में पढ़ने-लिखने का कैसा ‘वातावरण था? आपके घर में कैसा वातावरण है?

उत्तर: लेखक के घर में पढ़ने-लिखने का अच्छा वातावरण था। उसके पिता सरकारी नौकरी में थे। उन्होंने काफी धन कमाया था, पर गाँधी जी के आह्वान पर नौकरी छोड़ दी थी। पिताजी आर्य समाजी थे, अतः घर में आर्य समाज संबंधी पत्रिकाएँ आती थीं। आर्थिक संकट से गुजरते हुए भी अनेक पत्र-पत्रिकाएँ आती रहीं। माँ स्त्री-शिक्षा की पक्षपाती थीं। उन्होंने एक कन्या पाठशाला की स्थापना की। घर में धार्मिक पुस्तकें भी काफी थीं। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ और उपनिषद् घर में थे। ‘स्वामी दयानंद की जीवनी’ भी थी। लेखक इन्हें रुचिपूर्वक पढ़ता था। इस प्रकार घर का वातावरण पढ़ने-लिखने के अनुकूल था।

मेरे घर में भी पढ़ाई-लिखाई का अनुकूल वातावरण है। मेरे पिताजी एक समाचारपत्र के कार्यालय में काम करते हैं। वे काफी पुस्तकें पढ़ते हैं। माँ एक स्कूल में अध्यापिका हैं, वे भी पढ़ती रहती हैं। उनसे मुझे भी पढ़ने-लिखने की प्रेरणा मिलती रहती है।

प्रश्न 4. स्वामी दयानंद के जीवन की कौन-कौन सी घटना लेखक को प्रभावित करती थीं? आपको उनकी क्या बात प्रभावित करती है?

उत्तर: लेखक को स्वामी दयानंद के जीवन की रोमांचक घटनाएँ काफी प्रभावित करती थीं। उनमें प्रमुख थीं- चूहे द्वारा भगवान को भोग खाते देखकर मान लेना कि मूर्तियाँ भगवान नहीं होतीं, घर छोड़कर भाग जाना, जगह-जगह घूमना, भगवान की तलाश में हर जगह घूमना आदि। उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों का खंडन किया। सत्य की खोज की। ये सब बातें लेखक को प्रभावित करती थीं।

हमें स्वामी दयानंद की यह बात प्रभावित करती है कि सभी ढोंग आडंबरों को त्यागकर निर्गुण-निराकार ब्रह्म की उपासना में अपना मन लगाओ। उनका जीवन सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की भी प्रेरणा देता है।

प्रश्न 5. पढ़ाई-लिखाई के बारे में लेखक के पिताजी के क्या विचार थे? आपकी दृष्टि से क्या वे विचार सही थे?

उत्तर: पिताजी पढ़ाई के अतिरिक्त वाली पुस्तकें पढ़ने के पक्षपाती थे। वे कहते थे कि जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी। उन्होंने लेखक को दो दर्जे तक घर में ही पढ़ाया। उसकी पढ़ाई के लिए घर पर मास्टर रखे गए। वे नहीं चाहते थे कि बालक नासमझ उम्र में गलत संगति में पड़कर गाली-गलौज सीखे और बुरे संस्कार ग्रहण करे। उन्होंने बालक का नाम दो साल की घरेलू पढ़ाई के बाद तीसरे दर्जे में स्कूल में लिखवाया। उस दिन बालक का उत्साह बढ़ाने के लिए उसे शाम को अनार का शर्बत पिलाया और ताकीद की-” वायदा करो कि पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ोगे; माँ की चिंता मिटाओगे।” इस कथन का बालक (लेखक) पर अच्छा प्रभाव पड़ा। वह जी-तोड़कर पढ़ाई करने लगा।

हमारी दृष्टि से लेखक के पिताजी के विचार सही थे। वे पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों के पढ़ने पर बल देते थे। इससे ज्ञान में वृद्धि होती है।

प्रश्न 6. पिता के देहावसान के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए लेखक ने पाठ्यपुस्तकों का प्रबंध कैसे किया? इसमें आपको क्या विशेषता दिखाई देती है?

उत्तर: लेखक के पिता का देहावसान होने के बाद लेखक का आर्थिक संकट इतना बढ़ गया कि उसे फीस जुटाना तक मुश्किल हो गया। एक ट्रस्ट योग्य होने पर असहाय छात्रों को पाठ्यपुस्तकें खरीदने के लिए कुछ रुपए देता था। उन्हीं के दिए पैसों से लेखक सेकंड हैंड पुस्तकें खरीदता था। बाकी पुस्तकें सहपाठियों से लेकर पढ़ता था।

इसमें लेखक की पढ़ाई के प्रति गहरी रुचि तथा परिस्थिति के अनुकूल स्वयं को ढाल लेने की विशेषता दिखाई देती है। यह एक अच्छा गुण है।

प्रश्न 7. माँ से पैसे लेकर भी लेखक फिल्म न देखकर किताब ले आया। आप इसे कैसे देखते हैं?

उत्तर: लेखक के. एल. का एक गाना गुनगुनाता रहता था-‘दुख के दिन अब बीतत नाहीं।’ माँ ने उसे दिलासा दिया। यद्यपि माँ सिनेमा की घोर विरोधी थी फिर भी उसने बेटे को ‘देवदास’ फिल्म देखने की अनुमति दे दी। लेखक के पास दो रुपए थे।

लेखक ने एक पुस्तक विक्रेता के पास ‘देवदास’ नामक पुस्तक देखी। पुस्तक विक्रेता ने बालक की रुचि और दशा देखकर केवल दस आने में किताब दे दी। लेखक ने पिक्चर देखने का इरादा बदल दिया और किताब खरीद लाया। शेष पैसे माँ के हाथ पर रख दिए। उसने माँ के पूछने पर कहा- “नहीं माँ, फिल्म नहीं देखी, यह किताब ले आया देखो।” यह सुनकर माँ की आँखों में आँसू आ गए।

हम लेखक की इस प्रवृत्ति को बहुत अच्छे रूप में लेते हैं। फिल्म देखने के स्थान पर पुस्तक खरीदकर पढ़ना बिल्कुल सही निर्णय था।

प्रश्न 8. लेखक अपनी बीमारी से किस प्रकार उबर पाया? क्या यह ठीक था?

उत्तर: लेखक सैकड़ों महापुरुषों की पुस्तकों के आशीर्वाद स्वरूप बच पाया। इन महापुरुषों ने ही उसे जीवनदान दिया है। कवि विंदा करंदीकर ने भी यही कहा था-” भारती, ये सैकड़ों महापुरुष जो पुस्तक रूप में तुम्हारे चारों ओर विराजमान हैं, इन्हीं के आशीर्वाद से तुम बचे हो। इन्होंने तुम्हें पुनर्जीवन दिया है।”

हाँ, यह बिल्कुल ठीक था। 

प्रश्न 9. लेखक ‘हरि भवन’ के साथ कैसे जुड़ा? क्या आप भी किसी पुस्तकालय के साथ जुड़े हैं?

उत्तर: ‘हरि भवन’ में उपन्यास काफी मात्रा में थे। लेखक को इनको पढ़ने में आनंद आता था। वह लाइब्रेरी खुलते ही वहाँ पहुँच जाता था और जब लाब्रेरियन कहते – ‘बच्चा, अब उठो, पुस्तकालय बंद करना है।’ तब वह बड़ी अनिच्छा से वहाँ से उठता। कई बार कोई उपन्यास अधूरा ही छूट जाता था। उस दिन मन दुखी होता था, पर उसके पैसे देकर सदस्य बनने की हैसियत नहीं थी।

हाँ, मैं भी दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के साथ जुड़ा हूँ। वहाँ मैं प्रति सप्ताह जाता हूँ और पुस्तकें लाता हूँ। वहाँ बैठकर पत्रिकाएँ भी पढ़ता हूँ।

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