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NCERT Class 12 Psychology Chapter 4 मनोवैज्ञानिक विकार
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मनोवैज्ञानिक विकार
Chapter: 4
समीक्षात्मक प्रश्न
1. अवसाद और उन्माद से संबंधित लक्षणों की पहचान कीजिए।
उत्तर: अवसाद और उन्माद दोनों ही मूड विकार हैं, लेकिन इनके लक्षण एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।
अवसाद के लक्षण:
(i) निरंतर उदासी या खालीपन का अनुभव।
(ii) रुचियों या गतिविधियों में रुचि की कमी।
(iii) भूख और नींद के पैटर्न में बदलाव।
(iv) आत्मग्लानि, निराशा और निरर्थकता की भावना।
(v) ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई।
(vi) थकावट और ऊर्जा की कमी।
(vii) आत्महत्या के विचार या प्रयास।
उन्माद के लक्षण:
(i) अत्यधिक खुशी या चिड़चिड़ापन।
(ii) आवश्यकता से कम नींद की ज़रूरत।
(iii) आत्म-महत्त्व की भावना।
(iv) अत्यधिक बोलना और विचारों की दौड़।
(v) आवेगी और जोखिमपूर्ण व्यवहार।
(vi) व्यय की अधिकता, अनुचित यौन व्यवहार।
(vii) गुस्सा या हिंसक प्रतिक्रियाएँ।
2. अतिक्रियाशील वाले बच्चों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: अतिक्रियाशीलता बच्चों में पाया जाने वाला एक व्यवहारिक लक्षण है, जिसे सामान्यतः से जोड़ा जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
(i) अत्यधिक बोलना और हिलना-डुलना।
(ii) किसी एक काम पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई।
(iii) कक्षा में बैठकर काम करने में परेशानी।
(iv) बिना सोचे समझे कार्य करना (आवेगशीलता)।
(v) बड़ों के निर्देशों को न मानना।
(vi) बार-बार चीजें भूलना या खो देना।
(vii) दूसरों की बातचीत में हस्तक्षेप करना।
ऐसे बच्चों को विशेष शिक्षण तकनीकों, सकारात्मक व्यवहार समर्थन और कभी-कभी चिकित्सकीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
3. मद्य जैसे मादक द्रव्य के सेवन के क्या परिणाम होते हैं?
उत्तर: मद्य (Alcohol) एक अवसादक (depressant) मादक पदार्थ है, जिसका नियमित या अत्यधिक सेवन कई मानसिक, शारीरिक और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न करता है।
प्रमुख दुष्परिणाम:
(i) निर्णय लेने और सोचने की क्षमता में गिरावट।
(ii) लीवर, किडनी, फेफड़ों पर नकारात्मक प्रभाव।
(iii) सामाजिक और पारिवारिक संबंधों में तनाव।
(iv) हिंसात्मक और जोखिमभरे व्यवहारों की प्रवृत्ति मादकता की लत, जिससे काम या पढ़ाई प्रभावित होती है।
(v) मानसिक विकार जैसे अवसाद, चिंता, भ्रम आदि मृत्यु या आत्महत्या की प्रवृत्ति भी हो सकती है।
4. क्या विकृत शरीर प्रतिमा भोजन विकार को जन्म दे सकती है? इसके विभिन्न रूपों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर: हाँ, विकृत शरीर प्रतिमा (Body Image Distortion) भोजन विकारों (Eating Disorders) को जन्म दे सकती है। जब व्यक्ति अपने शरीर की बनावट, वजन या रूप को वास्तविकता से अधिक विकृत रूप में देखता है, तो वह भोजन से संबंधित असामान्य व्यवहारों की ओर अग्रसर हो सकता है।
प्रमुख भोजन विकार:
(i) एनोरेक्सिया नर्वोसा (Anorexia Nervosa): अत्यधिक वजन कम करने की इच्छा, अत्यल्प भोजन करना, अपने को मोटा महसूस करना।
(ii) बुलिमिया नर्वोसा (Bulimia Nervosa): अत्यधिक खाना और फिर उल्टी करके या व्रत रखकर उसकी पूर्ति करना।
(iii) बिंज ईटिंग डिसऑर्डर (Binge Eating Disorder): बहुत अधिक मात्रा में भोजन करना और फिर अपराधबोध में डूब जाना।
5. “चिकित्सक व्यक्ति के शारीरिक लक्षणों को देखकर बीमारी का निदान करते हैं।” मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर: मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान केवल बाहरी लक्षणों पर नहीं, बल्कि व्यक्ति के व्यवहार, भावनात्मक स्थिति, सोचने के तरीके और जीवन की कार्यशीलता के विश्लेषण पर आधारित होता है।
निदान के लिए साक्षात्कार, व्यवहारिक मूल्यांकन, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, और DSM-5 या CD-10 जैसे मापदंडों का उपयोग किया जाता है। मनोविज्ञानी व्यक्ति की सोच, भावनाएं और सामाजिक संबंधों का अवलोकन करके निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।
6. मनोग्रस्ति और बाध्यता के बीच विभेद स्थापित कीजिए।
उत्तर: मनोग्रस्ति और बाध्यता के बीच विभेद निम्नलिखित हैं-
मनोग्रस्ति | बाध्यता |
यह बार-बार आने वाले अवांछित विचार, चित्र या आवेग होते हैं जिन्हें व्यक्ति अनैच्छिक रूप से अनुभव करता है। जैसे— बार-बार यह सोचना कि हाथ गंदे हैं। | यह ऐसे दोहराव वाले व्यवहार या मानसिक क्रियाएँ होती हैं, जिन्हें व्यक्ति मनोग्रस्त विचारों से राहत पाने के लिए करता है। जैसे— बार-बार हाथ धोना। |
इन विचारों या मानसिक इमेजेस को व्यक्ति खुद भी समझता है कि वे असंगत या अतार्किक हैं, लेकिन फिर भी ये बार-बार आना जारी रहते हैं। | व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसे कुछ खास कार्यों को बार-बार करने की आवश्यकता है, भले ही वह जानता हो कि ये कार्य तर्कसंगत नहीं हैं या उनकी कोई वास्तविक आवश्यकता नहीं है। |
उदाहरण: “क्या मेरी कुंजी खो गई है?” या “क्या मैंने दरवाजा बंद किया था?” जैसे विचार बार-बार व्यक्ति के मन में आते रहते हैं, और वे इनसे बच नहीं पाते। | उदाहरण: बार-बार हाथ धोना, बार-बार दरवाजा चेक करना, इत्यादि, यह सब व्यक्ति की मानसिक संतुष्टि या चिंता से बचने के लिए किया जाता है। |
7. क्या विसामान्य व्यवहार का एक दीर्घकालिक प्रतिरूप अपसामान्य समझा जा सकता है? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर: हाँ, जब कोई व्यवहार दीर्घकालिक रूप से व्यतिक्रमिक हो, यानी सामाजिक मानदंडों से अलग हो और व्यक्ति की दैनिक कार्यप्रणाली, संबंधों और आत्मबोध को प्रभावित करे, तो उसे अपसामान्य (Abnormal) समझा जाता है।
मनोविज्ञान में इसे चार कसौटियों (Deviance, Distress, Dysfunction, Danger) पर परखा जाता है।
यदि व्यवहार इनमें से दो या अधिक मानकों को पूरा करता है, तो वह अपसामान्य माना जाता है।
8. लोगों के बीच बात करते समय रोगी बारंबार विषय परिवर्तन करता है, क्या यह मनोविदलता का सकारात्मक या नकारात्मक लक्षण है? मनोविदलता के अन्य लक्षणों तथा उप-प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मनोविदलता के अन्य लक्षणों तथा उप-प्रकारों का वर्णन नीचे किया गया हैं-
(i) सकारात्मक लक्षण: जिनमें व्यक्ति के व्यवहार में असामान्यता और अतिशयोक्ति दिखाई देती है। इनमें भ्रांतियाँ और विभ्रांतियाँ प्रमुख होती हैं। उत्पीड़न भ्रांति में रोगी यह मानता है कि लोग उसके खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं या उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। संदर्भ भ्रांति में व्यक्ति हर सामान्य घटना को अपने से जोड़कर विशेष अर्थ निकालता है। कुछ रोगी स्वयं को विशेष शक्तियों से युक्त समझते हैं (अतयहंमन्यता भ्रांति) या यह मानते हैं कि उनके विचार और क्रियाएं दूसरों द्वारा नियंत्रित की जा रही हैं। इसके साथ ही, चिंतन और भाषा विकृत हो जाती है — व्यक्ति असंगत बोलता है, नए शब्द गढ़ता है या एक ही बात बार-बार दोहराता है। विभ्रांतियों में रोगी बिना किसी वास्तविक उद्दीपन के आवाजें या ध्वनियाँ सुनता है, और कभी-कभी उसे स्वाद, गंध, स्पर्श या दृश्य अनुभव भी भ्रमित रूप से होते हैं। ऐसे रोगी कई बार भावनाओं की अभिव्यक्ति में भी असंगतता दिखाते हैं।
(ii) नकारात्मक लक्षण: जिनमें मानसिक क्षमताओं की कमी या ह्रास देखा जाता है। व्यक्ति में बोलने की योग्यता घट जाती है, वह भावनाएं बहुत कम व्यक्त करता है या उनमें असंगति होती है। कुछ रोगी बिल्कुल भावनाहीन दिखाई देते हैं, जिसे कुंठित भाव की स्थिति कहा जाता है। वे इच्छा और प्रेरणा की कमी के कारण सामाजिक संपर्क से बचने लगते हैं।
(iii) मन:चलित लक्षण: जिसमें व्यक्ति का शारीरिक व्यवहार असामान्य हो जाता है। वह विचित्र ढंग से चलता है, अजीब मुद्राएँ बनाता है या चेहरे पर असामान्य भाव दिखाता है। यदि यह स्थिति गंभीर रूप ले ले तो व्यक्ति पूरी तरह जड़ हो सकता है, जिसे कैटाटोनिया कहा जाता है, जिसमें रोगी लंबे समय तक शांत और गतिहीन बना रहता है।
9. ‘विच्छेदन’ से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: विच्छेदन (Dissociation) का तात्पर्य मानसिक प्रक्रियाओं (जैसे स्मृति, पहचान, चेतना) के सामान्य समन्वय के टूटने से है। यह प्रायः अत्यधिक तनाव या आघात के अनुभवों के बाद उत्पन्न होता है।
इसके विभिन्न रूपों का वर्णन नीचे किया गया हैं-
(i) विच्छिन्न पहचान विकार: यह मानसिक स्थिति तब होती है जब एक व्यक्ति के पास दो या दो से अधिक विभिन्न व्यक्तित्व होते हैं, जिन्हें “आइडेंटिटी” कहा जाता है। यह व्यक्ति कभी एक पहचान में रहता है और कभी दूसरी। इसके लक्षणों में व्यक्ति का अपनी पहचान के बारे में भ्रम, मानसिक उलझन और व्यवहार में विचलन शामिल होते हैं। इस विकार के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू बदल सकते हैं, जैसे कि विचार, यादें और भावनाएँ।
(ii) स्वव्यक्तित्व विमुक्ति: इस विकार में व्यक्ति को अपने शरीर या मानसिक स्थिति से बाहर होने का अहसास होता है, जैसे वह अपनी ही गतिविधियों को बाहरी दृष्टिकोण से देख रहा हो। यह एक प्रकार का मानसिक अस्वस्थता है, जिसमें व्यक्ति खुद को असामान्य और बेजान महसूस करता है। उसे लगता है कि उसकी सोच, शरीर या भावनाएँ वास्तविक नहीं हैं।
(iii) स्मृति लोप: स्मृति लोप एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति को अपनी यादें खोने या भूलने की समस्या होती है। यह विकार मानसिक आघात, शारीरिक चोट, या मानसिक रोगों के कारण हो सकता है। इसमें व्यक्ति अपनी पुरानी घटनाओं या जानकारी को याद नहीं रख पाता है।
10. दुर्भीति क्या है? यदि किसी को साँप से अत्यधिक भय हो तो क्या यह सामान्य दुर्भीति दोषपूर्ण या गलत अधिगम के कारण हो सकता है? यह दुर्भीति किस प्रकार विकसित हुई होगी? विश्लेषण कोजिए।
उत्तर: दुर्भीति (Phobia) अत्यधिक, तर्कहीन और अनियंत्रित भय की अवस्था होती है, जो किसी विशिष्ट वस्तु, स्थिति या जीव से जुड़ी होती है।
साँप से भय एक विशेष दुर्भीति है, और यह सीखने की प्रक्रिया में त्रुटियों के कारण विकसित हो सकती है, जैसे—
(i) पहले कभी साँप से जुड़े नकारात्मक अनुभव।
(ii) माता-पिता या समाज से भय ग्रहण करना (अनुकरण द्वारा अधिगम)।
(iii) संयोगवश किसी नकारात्मक घटना का सांप से जुड़ जाना।
11. दुश्चित्ता को “पेट में तितलियों का होना” जैसी अनुभूति कहा जाता है। किस अवस्था में दुश्चिता विकार का रूप लेती है? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: जब चिंता अत्यधिक, निरंतर और कार्य में हस्तक्षेप करने लगे, तो यह दुश्चिंता विकार (Anxiety Disorder) बन जाती है।
मुख्य प्रकार:
(i) सामान्यीकृत दुश्चिंता विकार (GAD) – हर समय और हर बात की चिंता।
(ii) विकराल दुश्चिंता (Panic Disorder) – अचानक तीव्र भय और शारीरिक प्रतिक्रियाएँ।
(iii) दुर्भीति (Phobia) – विशिष्ट वस्तु या स्थिति से असामान्य भय।
(iv) पृथक्करण दुश्चिंता (Separation Anxiety Disorder) – प्रियजनों से अलग होने का भय।

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