NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 कबीर Solutions, CBSE Class 10 Hindi Sparsh Question Answer in English Medium to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapter NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 कबीर Notes and select needs one.
NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 कबीर
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कबीर
Chapter – 1
स्पर्श |
पद्य खंड |
बोध-प्रश्न
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर: जब भी हम मीठी वाणी बोलते हैं, तो उसका प्रभाव चमत्कारिक होता है। इससे सुनने वाले की आत्मा तृप्त होती है और मन प्रसन्न होता है। उसके मन से क्रोध और घृणा के भाव नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही हमारा अंतःकरण भी प्रसन्न हो जाता है। इस प्रकार, मीठी वाणी से दूसरों को सुख और शीतलता प्राप्त होती है।
2. दीपक दिखाई देने पर अंधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गहरे अंधकार में जब दीपक जलाया जाता है तो अँधेरा मिट जाता है और उज्जाला फैल जाता है। कबीरदास जी कहते हैं उसी प्रकार ज्ञान रुपी दीपक जब हृदय में जलता है तो अज्ञान रुपी अंधकार मिट जाता है। मन के विकार अर्थात संशय, भ्रम आदि नष्ट हो जाते हैं। तभी उसे सर्वव्यापी ईश्वर की प्राप्ति भी होती है।
3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर: ईश्वर कण-कण में व्याप्त है और कण-कण ही ईश्वर है। ईश्वर की चेतना से ही यह संसार दिखाई देता है। चारों ओर ईश्वरीय चेतना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, लेकिन यह सब कुछ हम इन भौतिक आँखों से नहीं देख सकते। जब तक ईश्वर की कृपा से हमें दिव्य चक्षु (आँखें) नहीं मिलते, तब तक हम कण-कण में ईश्वर के वास को नहीं देख सकते हैं और न ही अनुभव कर सकते हैं।
4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक है? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि के अनुसार संसार में वो लोग सुखी हैं, जो संसार में व्याप्त सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं और दुखी वे हैं, जिन्हे ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है और ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते है, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं वे सोए हुए हैं और जो सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं, अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित रहते हैं वे ही जागते हैं। वे संसार की दुर्दशा को दूर करने के लिए चिंतित रहते हैं, सोते नहीं है अर्थात जाग्रत अवस्था में रहते हैं।
5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने बताया है कि हमें अपने आसपास निंदक रखने चाहिए ताकि वे हमें हमारी बुराइयों से अवगत करा सके और हम उन बुराइयों को अपने अंदर से दूर कर सकें। इससे हम अपने स्वभाव को विना पानी और साबुन के स्वच्छ और निर्मल बना पाएँगे।
6. ‘ऐके अषिर पर पीव का, पढै़ सु पंडित होइ’ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इन पंक्तियों द्वारा कवि ने प्रेम की महत्ता को बताया है। ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात ईश्वर को पढ़ लेना ही पर्याप्त है। बड़े-बड़े पोथि या ग्रन्थ पढ़ कर भी हर कोई पंडित नहीं बन सकता है। केवल परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी बना जा सकता है। अर्थात ईश्वर को पाने के लिए सांसारिक लोभ माया को छोड़ना पड़ता है।
7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कबीर की साखियाँ सधुक्कड़ी भाषा में लिखी हुई हैं। इनकी साखियाँ जनमानस को जीने का कला सिखाती हैं। इन्होने अवधी, पंजाबी, ब्रज, राजस्थानी आदि भाषाओं का मिश्रण प्रयोग किया है। तद्रय तथा देशी शब्द का अनूठा मेल भी है। जनसामान्य की बोलचाल और सहज भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
1. बिरह भुवंराम तन बसै, मंत्र न लासै कोइ।
उत्तर: इस पंक्ति का भाव है कि विरह एक सर्प के समान है, जो शरीर में बसता है और शरीर का क्षय करता है। इस विरह रूपी सर्प पर किसी भी मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि यह विरह ईश्वर को न पाने के कारण सतता है। जब अपने प्रिय ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है, तो वह विरह रूपी सर्प शांत हो जाता है, समाप्त हो जाता है अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति ही इसका स्थायी समाधान है।
2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे वन माँहि।
उत्तर: इस पंक्ति का भाव है कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि से आत्ती सुगंध पर मोहित रहता है परन्तु वह यह नहीं जानता कि यह सुगंध उसकी नाभि में से आ रही है। वह उसे इधर उधर ढूँढता रहता है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानतावश वास्तविकता को नहीं जानता कि ईश्वर उसी में निवास करता है और उसे प्राप्त करने के लिए धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों में ढूँढता रहता है।
3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं जाँहि।
उत्तर: इस पंक्ति का भाव है कि जब तक मनुष्य के भीतर अहंकार की भावना अथवा अंधकार विद्यमान रहता है, तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। ‘अहम् के मिटते ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है, क्योंकि ‘अहम् और ईश्वर दोनों एक स्थान पर नहीं रह सकते। ईश्वर को पाने के लिए उसके प्रति पूर्ण समर्पण आवश्यक है।
4. पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
उत्तर: इस पंक्ति का भाव है कि कवि के अनुसार बड़े ग्रंथ पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं होता। अर्थात ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाता। प्रेम से ईश्वर का स्मरण करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है।
भाषा अध्ययन |
1. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
उदाहरण- जिवै जीना
(i) औरन।
उत्तर: औरों को, और।
(ii) माँहि।
उत्तर: में।
(iii) देख्या।
उत्तर: देखा।
(iv) भुवंगम।
उत्तर: भुजंग।
(v) नेड़ा।
उत्तर: निकट।
(vi) आँगणि।
उत्तर: आँगन में।
(vii) साबण।
उत्तर: साबुन।
(viii) मुवा।
उत्तर: मरा।
(ix) पीव।
उत्तर: प्रिय।
(x) जालौं।
उत्तर: जलाऊँ।
(xi) तास।
उत्तर: उस।