NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

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NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

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राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Chapter – 2

क्षितिज-२
काव्य खंड

प्रश्न-अभ्यास

1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?

उत्तर: परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने पर निम्नलिखित तर्क दिए-

(i) श्री राम ने इसे नया और मजबूत समझ कर सिर्फ छुआ था परन्तु धनुष बहुत पुराना और कमजोर होने के कारण हाथ लगाते ही टूट गया।

(ii) बचपन में भी उनलोगों ने कई धनुहियाँ तोड़ी हैं, तब परशुराम क्रोधित नहीं हुए?

(iii) हमें ये धनुष साधारण धनुष लगा।

(iv) इस धनुष के टूटने पर उन्हें कोई लाभ-हानि नहीं दिखती।

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2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उतर: राम बहुत शांत और धैर्यवान है। परशुराम के क्रोध करने पर राम विनम्रता के साथ कहते हैं कि धनुष तोड़ने वाला कोई उनका दास ही होगा। वे मृदुभाषी होने का परिचय देते हुए अपनी मधुर वाणी से परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास करते हैं। अंत में आँखों से संकेत कर लक्ष्मण को शांत रहने को कहते हैं।

दूसरी ओर लक्ष्मण का स्वभाव उग्र है। वह व्यंग्य करते हुए परशुराम को इतनी छोटी सी बात पर हंगामा नहीं करने के लिए कहते हैं। वे परशुराम के क्रोध की चिंता किये बिना अपशब्दों को प्रयोग ना करने को कहते हैं। वह उनके क्रोध को अन्याय समझते हैं इसीलिए पुरजोर विरोध करते हैं।

3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर: लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का अंश:

परशुराम – शिवजी का धनुष तोड़ने का दुस्साहस किसने किया है।

राम – हे नाथ! शिवजी के इस धनुष को तोड़ने वाला अवश्य ही आपका कोई दास ही होगा।

परशुराम – सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे। किन्तु जो सेवक शत्रु के सम्मान व्यवहार करे उससे तो लड़ना पड़ेगा। जिसने भी धनुष तोड़ा है वह मेरे लिए दुश्मन है और तुरंत सभा से बाहर चला जाए अन्यथा यहाँ उपस्थित सभी राजा मारे जायेंगे।

4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-

बाल ब्रह्मचारी अति कांही। विस्वविदित क्षत्रियकल द्रोही।। 

भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। विपुल बार महिदेवन्त दीन्ही।। 

सहसवाहुभुज छेदनिहारा। परसू विलोक्कु महीपकुमारा।।

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।

गर्भन्ह के अर्थक दलन परसू मोर अति घोर।।

उत्तर: परशुराम ने अपने विषय में ये कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं और क्रोधी स्वभाव के हैं। समस्त विश्व में क्षत्रिय कुल के विद्रोही के रुप में विख्यात हैं। उन्होंने अनेकों बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर इस पृथ्वी को ब्राह्मणों को दान में दिया है और अपने हाथ में धारण इस फरसे से सहस्त्रबाहु के बाँहों को काट डाला है। इसलिए हे नरेश पुत्र। मेरे इस फरसे को भली भाँति देख ले। राजकुमार। तू क्यों अपने माता-पिता को सोचने पर विवश कर रहा है। मेरे इस फरसे की भयानकता गर्भ में पल रहे शिशुओं को भी नष्ट कर देती है।

5. लक्ष्मण ने बीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?

उत्तर: लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताईं है-

(i) वीर योद्धा स्वयं अपनी वीरता का बखान नहीं करते अपितु दूसरे लोग उसकी वीरता का का बखान करते हैं।

(ii) वे युद्धभूमि में अपनी वीरता का परिचय साहसपूर्वक देते हैं।

(iii) वीर योद्धा शांत, विनम्र, क्षमाशील, धैर्यवान, बुद्धिमान होते हैं।

(iv) वे खुद पर अभिमान नहीं करते हैं।

(v) वह दूसरों को आदर देते हैं।

6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर: साहस और शक्ति के साथ अगर विनम्रता न हो तो व्यक्ति अभिमानी एवं उद्दंड बन जाता है। साहस और शक्ति ये दो गुण एक व्यक्ति (वीर) को श्रेष्ठ बनाते हैं। परन्तु यदि वित्रमता इन गुणों के साथ आकर मिल जाती है तो वह उस व्यक्ति को श्रेष्ठतम वीर की श्रेणी में ला देती है। विनम्रता व्यक्ति में सदाचार व मधुरता भर देती है। विनम्रता व्यक्ति किसी भी स्थिति को सरलता पूर्वक शांत कर सकता है। परशुराम जी साहस व शक्ति का संगम है। राम विनम्रता, साहस व शक्ति का संगम है। राम की विनम्रता के आगे परशुराम जी के अहंकार को भी नतमस्तक होना पड़ा।

7. भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बाली। अहो मुनीसु महाभट मानी।। 

पुनि पुनि नांहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू।।

उत्तर: बिहसि लखनु बोले मृदु बाली। ….चहत उड़ावन फँकि पहारू।। यह प्रस्तुतपंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से ली गई हैं। उक्त पंक्तियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्दों का प्रतिउत्तर दिया गया है।

भाव-लक्ष्मणजी हँसकर कोमल वाणी से परशुराम पर व्यंग्य कसते हुए बोले-मुनीश्वर तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। मुझे बार-बार अपना फरसा दिखाकर डरा रहे हैं। जिस तरह एक फूँक से पहाड़ नहीं उड़ सकता उसी प्रकार मुझे बालक समझने की भूल मत किजिए कि मैं आपके इस फरसे को देखकर डर जाऊँगा।

(ख) इहाँ कुमाड्वतिया कोत नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहों।। 

दाँख कुटारू सरासन बाता। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

उत्तर: इहाँ कुमाड्वतिया कोत नाहीं।…मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

यह प्रस्तुतपंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से ली गई हैं। उक्त पंक्तियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्दों का प्रतिउत्तर दिया गया है।

भाव-भाव यह है कि लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अभिमान का परिचय देते हुए कहते हैं कि हम कोई छुई मुई के फूल नहीं हैं जो तर्जनी देखकर मुरझा जाएँ। हम बालक अवश्य हैं परन्तु फरसे और धनुष-बाण हमने भी बहुत देखे हैं इसलिए हमें नादान बालक समझने का प्रयास न करें। आपके हाथ में धनुष-बाण देखा तो लगा सामने कोई वीर योद्धा आया हैं।

8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा मीद पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर: तुलसीदास की भाषा मीद पर पंक्तियाँ:

(i) यह काव्यांश तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस के बालकांड से ली गयी जो अवधी भाषा में लिखी गई है।

(ii) इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग भरपूर मात्रा में किया गया है।

(iii) इसमें दोहा, छंद, चौपाई का अच्छा प्रयोग किया है।

(iv) भाषा में लयबद्धता है।

(v) प्रचलित मुहावरे और लोकपंक्तियाँ ने काव्य को सजीव बनाया है।

(vi) वीर और रौद्र रस का प्रयोग मुख्य से रूप किया गया।

(vii) कहीं-कहीं शांत रस का भी उपयोग हुआ है।

(viii) अनुप्रास, उपमा, रुपक, उत्प्रेक्षा व पुनरुक्ति अलंकार का सुयोजित ढंग से प्रयोग हुआ है।

(ix) व्यंग्यों का प्रयोग अनूठा है।

(x) प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है।

9. इस पुरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के स्पष्ट कोजिए।

उत्तर: तुलसीदास द्वारा रचित परशुराम – लक्ष्मण संवाद मूल रूप से व्यंग्य काव्य है। उदाहरण के लिए –

(i) बहु धनुही तोरी लरिकाई। 

कबहुँ न असि रिसकीन्हि गोसाई||

लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि हमने बचपन में भी इस जैसी कई धनुहियाँ तोड़ीं हैं परन्तु तब आप हम पर इतने क्रोधित नहीं हुए।

(ii) मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। 

गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर||

परशुराम जी क्रोधित होकर लक्ष्मण से कहते हैं कि अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता के बारे में सोच। यह जो मेरा फरसा बहुत भयानक है, यह गर्भ में पल रहे बच्चों का भी नाश कर देता है।

(iii) अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। 

बार अनेक भाँति बहु बरनी||

परशुराम द्वारा की जा रही खुद की बड़ाई को लक्ष्मण अपने मुँह मियाँ मिट्टू बनाना कहते हैं।

(iv) मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े।

 द्विजदेवता घरहि के बाढ़े||

लक्ष्मण कहते हैं कि आपका सामना कभी योद्धाओं से नहीं हुआ इसीलिए आप घर के शेर हैं।

10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-

(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

उतर: अनुप्रास अलंकार: उक्त पंक्ति में ‘ब’ वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

उतर: अनुप्रास अलंकार: उक्त पंक्ति में ‘क’ वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

उपमा अलंकार: कोटि कुलिस सम बचनु में उपमा अलंकार है। क्योंकि परशुराम जी के एक-एक वचनों को वज्र के समान बताया गया है।

रचना और अभिव्यक्ति

11. “सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।

उतर: क्रोध जीवन का ऐसा अनिवार्य आभूषण है, जिसके बिना रहा नहीं जा सकता, और उसे निरंतर धारण भी नहीं किया जा सकता। इस कारण ही रामचंद्र शुक्ल जी ने क्रोध के सकारात्मक रूप की सराहना की है और अनायास और ईर्ष्या के कारण उत्पन्न क्रोध को नकारने का परामर्श दिया है।

क्रोध के पक्ष में

(i) मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए क्रोध जरूरी है। जब क्रोध नहीं होता, तो उद्दंडता बढ़ती जाती है।

(ii) ‘क्रोध और क्षमा’ तभी सार्थक होते हैं जब इसे करने वाला व्यक्ति शक्तिशाली हो। इसलिए कवि दिनकर ने कहा है, ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो।’ अन्यथा, क्रोध का कोई मतलब नहीं रहता।

क्रोध के विपक्ष में

(i) क्रोध निंदनीय और विनाशकारी होता है। जब क्रोध की स्थिति प्रबल होती है, तो व्यक्ति को यह समझने की स्थिति में नहीं रहता कि क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं। ऐसी अवस्था में अपमान की संभावना बढ़ जाती है, और कोई भी व्यक्ति अपने परिजनों, जैसे पुत्र अपने माता-पिता, या शिष्य अपने गुरु का अपमान करने में संकोच नहीं करता।

(ii) गीता के अनुसार, क्रोध से उत्पन्न इच्छाएँ व्यक्ति को सब कुछ खोने की स्थिति में ले आती हैं, जिसमें स्मृति और बुद्धि का नाश हो जाता है, और अंत में वह पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। इसलिए श्रीकृष्ण ने क्रोध को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

12. अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।

उतर: इस प्रसंग से मुझे अपने तीसरी कक्षा के मास्टर जी की याद आती है। उनका नाम मनोहर शर्मा था। उनका स्वभाव बहुत कठोर था। वे बहुत गंभीर रहते थे। स्कूल में उन्हें कभी हँसते या मुस्कराते नहीं देखा जाता था। वे विद्यार्थियों को कभी-कभी ‘मुर्गा भी बनाते थे। सभी छात्र उनसे भयभीत रहते थे। सभी लड़के उनसे बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा न सुना था।

13. दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।

उतर: हमारी कक्षा में राजीव जैसे ही प्रवेश करता था सभी उसे लंगड़ा-लंगड़ा कहकर संबोधित करने लगते थे। राजीव बचपन से ऐसा नहीं था किसी दुर्घटना के शिकार स्वरुप उसकी यह हालत हो गयी थी। राजीव के सहायता करने की बजाय सभी उसका मज़ाक उड़ाने लगते थे। उसकी आत्मा घायल हो जाती थी। परन्तु राजीव किसी से कुछ न कहता न बोलता चुपचाप अपना काम करते रहता और न ही कभी किसी शिक्षक से बच्चों की शिकायत न करता। ऐसे लगता मानो वह किसी विचार में खोया है। सारे बच्चे दिनभर उधम मचाते उसे तंग करते रहते थे परन्तु वह हर समय पढाई में मग्न रहता। और इसका परिणाम यह निकला कि जब विद्यालय का दसवीं का वार्षिक परिणाम निकला तो सब विद्यार्थियों की आँखें फटी की फटी रही गईं क्योंकि राजीव अपने विद्यालय ही नहीं बल्कि पूरे राज्य में प्रथम क्रमांक लाया था।

वही विद्यार्थी जो कल तक उस पर हँसते थे आज उसकी तारीफों के पुल बाँध रहे थे। उसकी शारीरिक क्षमता का उपहास उड़ानेवालों का राजीव ने अपनी प्रतिभा से मुँह सिल दिया था। चारों ओर राजीव के ही चर्चे थे। आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में पूर्ण अंगों वाले पूर्ण विद्यार्थी भी पूर्ण सफलता पाने में असमर्थ हैं। ऐसे में एक विकलांग युवक की इस सफलता से यही पता चलता है कि कोई भी व्यक्ति अपूर्ण नहीं है। हमें लोगों को उनकी शारीरिक क्षमता से नहीं बल्कि प्रतिभा से आँकना चाहिए।

14. उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।

उतर: एक बार मेरे अध्यापक ने गणित में एक ही सवाल के लिए मुझे तीन अंक तथा किसी अन्य छात्र को पाँच अंक दे दिया। ऐसा उन्होंने तीन प्रश्नों में कर दिया था जिससे मैं कक्षा में तीसरे स्थान पर खिसक रहा था। यह बात मैंने अपने पिता जी को बताई। उन्होंने प्रधानाचार्य से मिलकर कापियों का पुनर्मूल्यांकन कराया और मैं कक्षा में संयुक्त रूप से प्रथम आ गया।

15. अवधी भाषा आज किन किन क्षेत्रों में बोली जाती है?

उतर: आज अवधी भाषा मुख्यतः अवध में बोली जाती है। यह उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों जैसे- गोरखपुर, गोंडा, बलिया, अयोध्या आदि क्षेत्र में बोली जाती है।

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