NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 सपनों के-से दिन

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NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 सपनों के-से दिन

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सपनों के-से दिन

Chapter – 2

संचयन भाग –२
काव्य खंड

बोध-प्रश्न

1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?

उत्तर: कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती, यह पाठ के इस अंश से सिद्ध होता है हमारे आधे से अधिक साथी राजस्थान तथा हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करते थे। जब वे छोटे थे तो उनकी बोली हमें बहुत कम समझ आती थी, इसलिए उनके कुछ शब्द सुन कर हमें हँसी आती थी, लेकिन खेलते समय सभी एक-दूसरे की बात समझ लेते थे। इससे सिद्ध हो जाता है कि कोई भाषा आपसी व्यवहार में बाधक नहीं होती।

2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: पीटी साहब प्रीतमचंद बहुत कड़क इनसान थे। उन्हें किसी ने न हँसते देखा न किसी की प्रशंसा करते। सभी छात्र उनसे भयभीत रहते थे। वे मार-मारकर बच्चों की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। छोटे-छोटे बच्चे यदि थोड़ा-सा भी अनुशासन भंग करते तो वे उन्हें कठोर सजा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पीटी साहब बच्चों के द्वारा गलती न करने पर अपनी चमकीली आँखें हल्के से झपकाते हुए उन्हें शाबाश कहते थे। उनकी यह शाबाश बच्चों को फौज़ के सारे तमगों को जीतने के समान लगती थी।

3. नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?

उत्तर: नयी श्रेणी में जाकर लेखक का बालमन इसलिए उदास हो जाता था, क्योंकि उसे किताबें अन्य लड़कों द्वारा पढ़ीहुई ही पढ़नी पड़ती थीं। उसके लिए पुरानी किताबों का प्रबंध हेडमास्टर साहब कर देते थे, क्योंकि लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जबकि अन्य बच्चे नई कक्षा में नई किताबें खरीदते थे। लेखक का बालमन नई कापियों तथा पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से उदास हो उठता था।

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4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर: लेखक गुरदयाल सिंह फ़ौजी बनना चाहता था। मास्टर प्रीतमचंद जब स्काउट की परेड करवाते तो लेफ्ट-राइट कहते या मुँह में ह्रिसल से सिटी बजाकर मार्च करवाते थे। तथा उनके राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न कहने पर लेखक अपने छोटे – छोटे बुटो की एडीयो पर दाए बाएँ या एक कदम पीछे मुड़कर बुटो की ठक-ठक की आवाज करते हुए स्वयं को विद्यार्थी न समझकर एक महत्वपूर्ण फ़ौजी समझने लगता था।

5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर: पी.टी. साहब चौथी कक्षा को फारसी भी पदाते थे। एक दिन बच्चे उनके द्वारा दिया गया शब्द-रूप रट कर नही आये। इस पर उन्होंने बच्चो को पीठ ऊँची करके कुर्तापूर्ण ढंग से मुर्गा बनने का आदेश दिया, तो उस समय वहा हेडमास्टर साहब आ गए। यह दृश्य देखकर हेडमास्टर उत्तेजित हो उठे इसी कारण उन्होंने पी.टी. साहब को मुअत्तल कर दिया।

6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?

उत्तर: सपनो के-से दिन’ पाठ के लेखक गुरदयाल सिह के अनुसार उनेह तथा उनके साथियों को बचपन में स्कूल जाना अच्छा नही लगता था। स्कूल जाना उसके लिए एक सज़ा के समान था। परंतु एक-दो अवसर ऐसे होते थे, जब उसे स्कूल जाना अच्छा लगता था। पीटी मास्टर जब स्कूल में स्काउटिंग की परेड का अभ्यास करवाते थे, उस समय वे बच्चों के हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा देते थे। मास्टर जी के १,२,३ कहने पर बच्चे झंडियों को ऊपर-नीचे, दाएँ बाएँ करते थे। उस समय हवा में लहराती हुई झंडियाँ बच्चों को अच्छी लगती थीं। उन्हें पहनने के लिए खाकी वर्दी और पॉलिश किए जूते मिलते थे। गले में दोरंगा रूमाल पहनने को मिलता था। उस समय लेखक खुशी-खुशी स्कूल जाते थे।

7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?

उत्तर: लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाया करता था। जैसे- हिसाब के मास्टर जी द्वारा दिए गए 200 सवालों को पूरा करने के लिए रोज दस सवाल निकाले जाने पर 20 दिन में पूरे हो जाएँगे, लेकिन खेल-कूद में छुट्टियाँ भागने लगती, तो मास्टर जी की पिटाई का डर सताने लगता। फिर लेखक रोज़ के 15 सवाल पूरे करने की योजना बनाता, तब उसे छुट्टियों भी बहुत कम लगने लगतीं और दिन बहुत छोटे लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पिटाई से डरने के बावजूद भी उन लोगों की भाँति बहादुर बनने की कल्पना करने लगता, जो छुट्टियों को काम पूरा करने की बजाय मास्टर जी से पिटना ही अधिक बेहतर समझते थे।

8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर: पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताए निम्नलिखित हैं-

(i) पीटी सर शरीर से दुबले-पतले, ठिगने कद के थे, उनकी आँखे भूरी और तेज़ थीं। वे खाकी वर्दी और लम्बे जूते पहनते थे।

(ii) वे बहुत अनुशासन प्रिय थे। बच्चे उनका कहना नहीं मानते तो वे दंड देते थे।

(iii) वे कठोर स्वभाव के थे, उनके मन में दया भाव न था। बाल खींचना, ठुडढे मारना, खाल खींचना उनकी आदत थी।

(iv) इनके साथ वे स्वाभिमानी भी थे। नौकरी से निकाले जाने पर वे हेडमास्टर जी के सामने गिड़ गिड़ाए नहीं बल्कि चुपचाप चले गए।

9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर: पाठ के अनुसार विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें डराया जाता है। छात्र पी.टी. के अध्यापक से बहुत डरते हैं। वे उन्हें मारते तथा पीटते थे। उनकी डाँट सुनकर छात्र थर-थर काँपते थे। उनके व्यवहार के लिए खाल खींचने जैसे मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उस समय की शिक्षा पद्धति में डॉट-फटकार की बहुत अहमियत थी। आजकल बच्चों के मनोविज्ञान को समझने के लिए शिक्षकों को परिक्षण दिया जाता है कि वे बच्चे की भावनाओं को समझें, उनके दुर्व्यवहार के कारण को समझे, उन्हें उनकी गलती का एहसास कराए तथा उनके साथ मित्रता व ममता का व्यवहार किया जाए जिससे वे बच्चों को ठीक से समझ कर उनके साथ उचित व्यवहार कर सके।

10. बचपन की याद मन को गुदगुदाने बाली होती है विशेषकर स्कूलों दिनों की। अपने अब तक के स्कूलो जीवन की खट्टी मीठी यादों को लिखिए।

उत्तर: बचपन का समय हर किसी के जीवन का सबसे खास और बेफिक्र दौर होता है। इसमें सबसे खूबसूरत यादें स्कूल के दिनों से जुड़ी होती हैं। मेरा स्कूल का जीवन भी ढेर सारी खट्टी-मीठी यादों से भरा हुआ है, जिन्हें याद करके आज भी दिल खुशी से भर जाता है। शरारतों की वजह से कई बार टीचर की डांट भी खानी पड़ी। सबसे मजेदार बात तो यह थी कि जब होमवर्क करना भूल जाते थे, तो किताब में कागज लगाकर कुछ लिखने की कोशिश करते थे। कभी-कभी क्लास में सो जाना और पकड़े जाने पर पूरी क्लास के सामने खड़े होना, वह समय तो बहुत डरावना लगता था, लेकिन अब सोचकर हंसी आ जाती है।

11. प्रायः अभिभावक बच्चों का खेल कूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते है और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए—

(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी है?

उत्तर: खेल हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास के लिए भी बेहद जरूरी है। खेल खेलने से शरीर मजबूत और चुस्त-दुरुस्त रहता है। यह हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है खेल न केवल शरीर को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारते हैं। यह तनाव को कम करता है और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

(ख) आप कौन से एम नियम कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?

उत्तर: सबसे पहले, यह सुनिश्चित करूंगा कि मेरी पढ़ाई और खेल दोनों में संतुलन बना रहे। खेल के लिए निर्धारित समय पर ही अभ्यास करूंगा और अनावश्यक समय बर्बाद नहीं करूंगा। खेल के दौरान और उसके बाहर अनुशासित और सम्मानजनक व्यवहार करूँगा। अपनी सफलता और असफलता दोनों में अभिभावकों के प्रति आभार व्यक्त करूंगा। खेल के साथ पढाई भी उतनी ही तन्मयता से करूँगा ताकि उन्हें मुझसे कोई शिकायत न रहें।

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