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NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 एक कहानी यह भी
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एक कहानी यह भी
Chapter – 10
क्षितिज-२ |
काव्य खंड |
प्रश्न-अभ्यास
1. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर: लेखिका के जीवन पर दो लोगो का विशेष प्रभाव पड़ा था पिता का प्रभाव लेखिका के जीवन पर पिताजी का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे हीन भावना से ग्रसित होती थी इसी के परिमाण स्वरूप उनमे आत्मविश्वास की भी कमी हो गई है पिता के द्वारा ही उनमे देश प्रेम की भावना का भी निर्माण हुआ है।
2. इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?
उत्तर: लेखिका के पिता का मानना कि रसोई का काम में लग जाने के कारण लड़कियों की क्षमता और प्रतिभा नष्ट हो जाती है। वे पकाने – खाने तक ही सीमित रह जाती हैं और अपनी सही प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पातीं। इसप्रकार प्रतिभा को भट्टी में झोंकने वाली जगह होने के कारण ही वे रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर संबोधित करते थे।
3. वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर: लेखिका राजनैतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग ले रही थी। इस कारण लेखिका के कॉलेज की प्रिंसिपल ने उसके पिता के पास पत्र भेजा जिसमें अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की बात लिखी थी। यह पढ़कर पिता जी गुस्से में आ गए। कॉलेज की प्रिंसिपल ने जब बताया कि मन्नू के एक इशारे पर लड़कियाँ बाहर आ जाती हैं और नारे लगाती हुई प्रदर्शन करने लगती हैं तो पिता जी ने कहा कि यह तो देश की माँग है। वे हर्ष से गदगद होकर जब यही बात लेखिका की माँ को बता रहे थे तो इस बात पर लेखिका को विश्वास नहीं हो पाया।
4. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: लेखिका के अपने पिता के साथ अक्सर वैचारिक टकराहट हुआ करती थी-
(i) लेखिका के पिता यद्यपि स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी नहीं थे परन्तु वे स्त्रियों का दायरा चार दीवारी के अंदर ही सीमित रखना चाहते थे। परन्तु लेखिका खुले विचारों की महिला थी।
(ii) लेखिका के पिता लड़की की शादी जल्दी करने के पक्ष में थे। लेकिन लेखिका जीवन की आकाँक्षाओं को पूर्ण करना चाहती थी।
(iii) लेखिका का स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भाषण देना उनके पिता को पसंद नहीं था।
(iv) पिताजी का लेखिका की माँ के साथ अच्छा व्यवहार नहीं था। स्त्री के प्रति ऐसे व्यवहार को लेखिका अनुचित समझती थी।
(v) बचपन के दिनों में लेखिका के काले रंग रुप को लेकर उनके पिता का मन उनकी तरफ़ से उदासीन रहा करता था।
5. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर: सन् 1946-47 ई. में समूचे देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे उफान पर था। हर तरफ़ हड़तालें, प्रभात फेरियाँ, जुलूस और नारेबाजी हो रही थी। घर में पिता और उनके साथियों के साथ होनेवाली गोष्ठियों और गतिविधियों ने लेखिका को भी जागरूक कर दिया था। प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से जोड़ दिया। जब देश में नियम-कानून और मर्यादाएँ टूटने लगीं, तब पिता की नाराज़गी के बाद भी वे पूरे उत्साह के साथ आंदोलन में कूद पड़ीं। उनका उत्साह, संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीक़ा देखते ही बनता था। वे चौराहों पर बेझिझक भाषण, नारेबाज़ी और हड़तालें करने लगीं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भी सक्रिय भूमिका थी।
रचना और अभिव्यक्ति |
6. लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
उत्तर: लेखिका के बचपन में लड़के-लड़कियाँ साथ खेलते थे परंतु दोनों की सीमाएँ अलग-अलग थीं। लड़कियों की आज़ादी घर की चारदीवारी तक ही सीमित थी पर लड़कों की घर के बाहर तक। लेखिका के बचपन अर्थात् वर्ष 1930 के आसपास का समय और आज के समय में परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल गई हैं। आज शहरी क्षेत्रों में लड़के-लड़कियों में भेद नहीं किया जाता है। वे पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने में लड़कों से पीछे नहीं हैं। उनका प्रदर्शन दिनों दिन निखर रहा है। कभी लड़कियों के लिए जो खेल प्रतिबंधित थे आज उनमें वे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं।
7. मनुष्य के जीवन में आस पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर: आज मनुष्य के सम्बन्धों का क्षेत्र सीमित होता जा रहा है, मनुष्य आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है। उसे अपने सगे सम्बन्धियों तक के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती है। यही कारण है कि आज के समाज में पड़ोस कल्चर लगभग लुप्त होता जा रहा है। लोगों के पास समय का अभाव होता जा रहा है। मनुष्य के पास इतना समय नहीं है कि वो अपने पड़ोसियों से मिलकर उनसे बात-चीत करें।
8. लेखिका द्वारा पढ़े गाए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर: एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका मन्नू भंडारी ने अपनी किशोरावस्था में निम्नलिखित उपन्यास पढ़े थे:
शेखर एक जीवनी:
(i) सुनीता।
(ii) नदी के द्वीप।
(iii) चित्रलेखा।
(iv) त्याग-पत्र।
9. आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर: आज का दिन कॉलेज में काफी यादगार रहा। सुबह की शुरुआत थोड़ी सुस्त थी क्योंकि रात को पढ़ाई करते-करते देर हो गई थी। पहला लेक्चर थोड़ा बोरिंग था, लेकिन प्रोफेसर ने एक मजेदार उदाहरण देकर पढ़ाई को रोचक बना दिया। बीच-बीच में दोस्तों के साथ मजाक चलता रहा, और यह एहसास हुआ कि पढ़ाई के साथ-साथ ये छोटे-छोटे पल ही कॉलेज के सबसे खूबसूरत हिस्से हैं। दोपहर में एक प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए लाइब्रेरी जाना हुआ। वहां सीनियर्स से चर्चा करते हुए नई बातें सीखने को मिलीं।
आज शाम का सबसे खास पल था, जब हम सबने स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में बैडमिंटन खेला। हार-जीत से ज्यादा, साथ में बिताया समय महत्वपूर्ण था। खेलते-खेलते एक-दूसरे की खिंचाई भी खूब की। दिन के अंत में हॉस्टल वापस आकर थकावट महसूस हुई, लेकिन मन में संतोष भी था। कॉलेज के ये दिन वाकई में अनमोल हैं। यहाँ हर दिन कुछ न कुछ सिखाता है और जीवन के इस खूबसूरत सफर में नई यादें जोड़ता है।
शुभ रात्रि.
भाषा-अध्ययन |
10. इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ-
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।
उत्तर: लू उतारी (किसी की गर्मी या गुस्से को शांत करना) – होमवर्क न करने से शिक्षक ने अच्छी तरह से छात्र की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
उत्तर: आगलगाना (विवाद उत्पन्न करना) – कुछ मित्र ऐसे भी होते हैं जो घर में आग लगाने का काम करते हैं।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर धू-धू करके चले जाएँ।
उत्तर: थू-थू करना (किसी की निंदा करना) – तुम्हारे इस तरह से ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने से पड़ोसी थू-थू करेंगे।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला।
उत्तर: आग-बबूला (बहुत गुस्से में होना) – मेरे स्कूल नहीं जाने से पिताजी आग-बबूला हो गए।