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Class 10 Hindi Elective Chapter 1 नींव की ईंट
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नींव की ईंट
पाठ – 1
अभ्यासमाला |
बोध एवं विचार:
1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक गांँव में हुआ था।
(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएँ क्यों करनी पड़ी थी।
उत्तर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रुप में हिंस्सा लेने के अपराध में बेनीपूरी जी जेल को यात्रा करनी पड़ी थी।
(ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था?
उत्तर: बेनीपुरी जी का स्वर्गवास 1968 ई. में हुआ था।
(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः किस पर टिकी होती है?
उत्तर: चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः नींव की ईट पर टिकी होती है।
(ङ) दुनिया का ध्यान सामान्यतः किस पर जाता है?
उत्तर: दुनिया का ध्यान, सामान्यतः, इमारत के कंगुरों पर जाता है।
(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा?
उत्तर: नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम कंगूरा बेतहाशा जमीन पर आ रहेगा।
(छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है?
उत्तर: सुंदर सृष्टि हमेशा बलिदान खोजती है।
(ज) लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश वस्तुतः किनकी शहादत से चमकते हैं?
उत्तर: लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं।
(झ) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है?
उत्तर: आज कंगूरे बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है।
(ञ) पठित निबंध में ‘सुंदर इमारत’ का आशय क्या है?
उत्तर: पठित निबंध में सुंदर इमारत का आशय है – नया सुंदर समाज।
2. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में):
(क) मनुष्य सत्य से क्यों भागता है?
उत्तर: सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं भद्देपन से मुख मोड़ते हैं इसीलिए सत्य सेभी भागते हैं।
(ख) लेखक के अनुसार कौन सी ईंट अधिक धन्य है?
उत्तर: लेखक के अनुसार वह ईट अधिक धन्य है, जो जमीन के साथ हाथ नीचे जाकर गढ़ गई और इमारत को पहली ईट बनाई।
(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है?
उत्तर: नींव की ईंट’ एक त्याग और बलिदान भरे जीवन का प्रतीक है।
(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो?
उत्तर: कंगूरे की ईंट इमारत की ऊपरी खूबसूरती को दर्शाती है, तथा वह अपनी बनावट एवं खूबसूरती से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होती है।
(ङ) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?
उत्तर: शहादत का लाल सेहरा वे लोग पहनते हैं, जो देश के लिए अपना अस्तित्व निछावर कर देते हैं। ताकि बाकी लोग इस संसार का लुफ्त अच्छी तरह उठा सके।
(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे?
उत्तर: लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन लोगों ने अमर बनाया है। जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में स्वयं को बलिदान कर दिया। बिना स्वार्थ के वे हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गए।
(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?
उत्तरः आज हमारे देश के नौजवानों के सामने चुनौती यह है कि वे समाज का नव- निर्माण करें और निर्माण करते वक्त इमारत का कंगूरा बनने की बजाएं नीव की ईट बनने का इरादा एवं साहस रखें। ताकि उनके हाथों एक सुंदर भविष्य का निर्माण हो।
3. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में):
(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता?
उत्तर: मानव अपना स्वभाव से चुपचाप मरने के बजाय यश चाहते है। किन्तु ऐसी यश प्रासी के लिए हमेशा जो बलिदान देना पड़ता इससे दूर रहते है। लेकिन नींव की ईंट जो सुंदर कंगूरे के नीचे गड़ा होता हैं उसे कोई नहीं देखता अतः वह खुद भी नहीं चाहता की उसे कोई देखें, उसकी प्रशंसा करें। यही कारण है कि मनुष्य का ध्यान नींव की ईंट की ओर नहीं बल्कि कंगूरे की ओर जाता है।
(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्यों आह्वान किया है?
उत्तर: लेखक ने आज देश के नव–युवक को आह्वान करते हुए देश के नव-निर्माण के लिए नींव की इंट के समान चुपचाप अपने को निछावर करने के लिए क्योंकि आजादी के बाद हजारों नगर, कारखाने और लाखों गावों का नव- निर्माण हो रहा है। इसलिए चुपचाप काम करने वाले लाखों नव–युवक की आवश्यकता है। इसलिए बह सबको आह्वान कर रहे है की जिससे वह एक दिन नींव के गीत गा सकें। क्योंकी नींव बनाने वालों को इससे प्रेरणा मिलती है।
(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं, परंतु नींव की इंट बनना क्यों नहीं चाहते?
उत्तर: इमारत पर लगे कंगूरे को देखकर लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी प्रशंसा करने लगते हैं। अर्थात यहां कहने का तात्पर्य यह है कि लोग प्रसिद्ध होने या प्रशंसा पाने या अन्य किसी स्वार्थ के लिए समाज में लालच में आकर अपना योगदान बनाए रखना चाहता है। लेकिन समाज के लिए वह त्याग या बलिदान देने के लिए तैयार नहीं होते है क्योंकि उसे पता है की नींव की ईंट बनने पर उसका कोई लाभ या वजूद नहीं रहेगा। इसीलिए लोग नींव की ईंट की बजाय कंगूरे की ईंट बनना पसंद करते हैं।
(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहता है और क्यों?
उत्तर: लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन धर्म प्रचार को देना चाहते है। जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बिना किसी स्वार्थ के खुद को बलिदान कर दिया और मौन सहन करके धर्म प्रचार में लगे रहें। धर्म प्रचार करने में कितने ही लोगो का मौत हो गया उनका हिसाब नहीं। लेकिन यह सत्य है कि उन्हीं के पुण्य-प्रयास से ही आज ईसाई धर्म एक श्रेष्ठ धर्म बन गये।
(ङ) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ?
उत्तर: हमारा देश उन बलिदानों के कारण आजाद हुआ है।जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ एवं लोभ के अपने देश के नाम खुद को सौंप दिया। उनमें से कईयों के नाम आज इतिहास में दर्ज है, परंतु हमारे भारत के कोने कोने में हजारों ऐसे भी लोग थे, जिनका ना ही समाज में नाम आया ना ही उन्होंने समाज में खुद को प्रसिद्ध करने की चाह रखी। वें हजारों तो बेनाम रहकर भी देश के लिए मर मिटे। उन्हीं अनाम लोगों के बलिदानों के कारण आज हमारा देश आजाद है।
(च) दधीचि मुनि ने किसलिए और किस प्रकार अपना बलिदान किया था?
उत्तर: अत्याचारी दानव वृत्रासुर से देवताओं की रक्षा के लिए इंद्र को विशेष प्रकार के अस्त्रों की आवश्यकता थी, जो दधीचि मुनि की रीढ़ की हड्डी से ही बन सकती थी। अतः इसीलिए दधीचि मुनि ने अपना बलिदान दे दिया। उन्हीं की रीढ़ की हड्डी से वज्र बनाया गया, जिससे वत्रासुर का वध किया गया था।
(छ) भारत के नव निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर: भारत के नवनिर्माण के बारे में लेखक ने कहा है कि सात लाख गाँवों, हजारों शहरों, कल-कारखानों के नवनिर्माण के लिए आज ऐसे नौजवानों की जरूरत है, जिनमें कंगूरा बनने की कामना न हो। कलश बनने की जिनमें वासना न हो, जो नई प्रेरणा से अनुप्राणित हो। एक नई चेतना से अभीभूत हो। जो शाबाशियों से दूर हो ओर दलबंदियों से अलग हो।
(ज) नींव की ईंट’ शीर्षक निबंध का संदेश क्या है?
उत्तरः नींव की ईंट शीर्षक निबंध का संदेश यह है कि आज भारत के नवनिर्माण के लिए नींव की ईंट बनने के लिए तैयार लोगों की जरूरत है। लेकिन विडंबना यह है कि आज कंगूरे की ईंट बनने की होड़ा-होड़ी मची है। नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो गई है। आज ऐसे नवयुवकों की जरूरत है, जो भारत के नवनिर्माण में नींव की ईंट बनकर खुद को खपा दें।
4. सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में):
(क) ‘नींव को ईंट’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट करो।
उत्तर: नींव की ईंट’ का प्रतीकार्य है समाज का अनाम शहीद, जो बिना किसी लोभ यश-लोभ के समाज के नव-निर्माण हेतु आत्म-बलिदान के लिए तैयार है। जिसने देश की आजादी के लिए आधारशिला बनकर अज्ञात रहते हुए निस्वार्थ भाव से देश की सेवा में स्वयं को खपा दिया। नींव की इंट परहित और त्याग का अनुपम प्रतीक है। नींव की ईंट उन लोगों का प्रतीक है जिन्होंने देशवासियों को सुंदर समाज प्रदान करने हेतु स्वयं को विलीन कर दिया। जिनके नाम इतिहास में दार्ज नहीं है। जो त्याग एवं समर्पण की प्रतिमूर्ति है।
(ख) ‘कंगूरे को ईट’ के प्रतीकार्य पर सम्यक प्रकाश डाली।
उत्तर: कंगूरे की ईंट का प्रतीकार्य है- समाज का यश-लोभी सेवक, जो प्रसिद्धि, प्रशंसा तथा अपने स्वार्थ के हिलार समाज का कार्य करता है। जो देश के लिए कार्य करने के पश्चात बदले में ऊंच पद पर सुशोभित होने की कामना (इच्छा) रखता है। कंगूरे की ईट उन लोगों का प्रतीक है जो ऊंच पद, प्रतिष्ठा, नेतृत्व और सुख-सुविधाएँ पाने के लिए स्वार्थपरता से कार्य करते हैं। ऐसे लोग देश के नव-निर्माण एवं उन्नति के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य नहीं करते बल्कि भ्रष्टाचार, अपराध, देष आदि को बढाते हैं। साथ ही यश लोभ में आकर देश की उन्नति में बाधा बनते हैं।
(ग) ‘हाँ, शहादत और मौन-मूक। समाज की आधारशिला यही होती है’- का आशय बताओ।
उत्तर: ‘हाँ, शहादत और मौन मूक। समाज की आधारशिला यही होती है- इसका आशय मह नवनिर्माण समाज की नींव मौन बलिदान हो की इत एक सुंदर एवं होती है। है। किसी भी सुंदर रचना को साकार करने के लिए मॉन बलिदान करना ही पड़ता है। जैसे एक सुंदर भवन बनाने के लिए सबसे अच्छी ईटों को नीव में जाना ही पड़ता है ठीक प्रकार देश के नव-निर्माण और सुंदर समाज के लिका कुछ देशप्रेमियों को मौन बलिदान करना ही पड़ता है। जिस प्रकार प्रकार ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में कई लोग अनाम उत्सर्ग हो गए, जिनको चर्चा शायद हो कहीं होती हो, परंतु, आज उन्ही के पुष्य-प्रताप व मौन बलिदान से उसाई धर्म फल-फूल रहा है। उसी प्रकार हमारे देश के आजाद होने और एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करने के पीछे कई निस्वार्थी सैनिकगणों का मौन-आत्म बलिदान शामिल है। अत: यह स्पष्ट है कि समाज की आधारशिला शहादत और मौन-मूक होती है।
5. संदर्भ में व्याख्या करें:
(क) “हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी भागते हैं।”
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग 2 में रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईंट नामक पाठ से उपस्थापन किया गया है।
व्याख्या: लेखक कहते है कि सत्य हमेशा कठोर होता है और यह कठोरता और भद्दापन के साथ जन्मा करते हैं। कठोरता के लिए मौन बलिदान चाहिए। लोग ऐसे बलिदान से भागकर बेकार प्रशंसा आशा करते है। सत्य से भागकर असत्य को आश्रय देते है। पाठ के अनुसार सब लोग भद्देपन से गुमनामी से भागते है। इसलिए नींव की ईंट बनाने से भी बचता है। वे चुपचाप बलिदान से ही वचते है ऐसा नहीं बलिदानों को गुणगान करने से भी बचते है। यह जानबूझकर ही करते है। इसलिए हमेशा लोग सत्य से भी धीरे धीरे भागते हैं।
(ख) “सुंदर सृष्टि। सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।”
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग 2 में रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईंट नामक पाठ से उपस्थापन किया गया है।
व्याख्या: लेखक बेनीपुरी जी कहते हे कि सुन्दर सृष्टि अपने आप नहीं होती है। इसके लिए त्याग और बलिदान जरुर लगते है। जिस प्रकार नीव की ईंट की बलिदान से दुनिया में इमारत खड़े रहते हैं, कंगुरे बनते है, लोग इमारतों को प्रशंसा करते है। लेकिन इन प्रशंसा के पीछे नीव की ईंट का बलिदान है-वह मिट्टी के सात हाथ नीचे जाकर गड़ जाते है, अपने को मौनता सा अंधकार में सौंप देता है। वह कभी प्रशंसा नहीं चाहते है। ठिक उसी प्रकार नये समाज के लिए कुछ लोगों का बलिदान देना चाहिए। जिस प्रकार कई लोगों के बलिदान से देश को स्वतंत्रता मिली, देश को नई सृष्टि के मौका मिली।
(ग) “अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा होड़ी मची है, नौव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है।”
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग 2 में रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित नींव की ईंट नामक पाठ से उपस्थापन किया गया है।
व्याख्या: लेखक बेनीपुरी जीने कहते हैं कि आज लोग इमारत के कगुरे बनने के लिए चारों ओर होड़ा होड़ी लगाते है। क्यों कि लोग आज सत्य से भागते है। कंगूरा बनने में बलिदान का, त्याग का, कठोरता का कोई जरूरत नहीं होता। इसलिए कंगूरा बनने में लोग उत्तावल होने लगते हैं। लेकिन कंगुरा से दुनिया में नया सृष्टि नहीं मिलता है. सृष्टि तो नींव से हो सकती है। लोग नींव होने के बजाय कंगुरा बनने जा रहे है। जिससे समाज नहीं बन सकते। यह बड़े अफसोस की बात है। यह भविष्य के लिए बड़ी भयानक चिंता है।
भाषा एवं व्याकरण-ज्ञान |
1. निम्नलिखित शब्दों में से अरबी फारसी के शब्दों का चयन करो:
इमारत, नींव, दुनिया, शिवम्, जमीन, कंगूरा, मुनहसिर, अस्तित्व, शहादत कलश, आवरण, रोशनी, बलिदान, शासक, आजाद, अफसोस, शोहरत।
उत्तर: अरबी: दुनिया, मुनहसिर, आवरण, रोशनी, शासक।
फारसी: इमारत, जमीन, शहादत, आजाद, अफसोस, शोहरत।
2. निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाओ:
चमकीली, कठोरता, बेतहाशा, भयानक, गिरजाघर, इतिहास।
उत्तर: (i) चमकीली: आकाश के चमकीली तारों को देखकर बच्चा स्थिर हो गये।
(ii) कठोरता: कठोरता उन्नति का प्रतिशब्द है।
(iii) बेतहाशा: कोई काम करने से सोच समझकर करना चाहिए नहीं तो बेतहाशा हो जायेगा।
(iv) भयानक: जंगल में भयानक जनबर होती है
(v) गिरजाघर: गिरजाघर में प्रार्थना चल रहे हैं।
3. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करो:
(क) नहीं तो, हम इमारत की गीत नींव की गीत से प्रारंभ करते।
उत्तर: नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते।
(ख) ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फुल रहे हैं।
उत्तर: ईसाई धर्म उनके पुण्य प्रताप से फल-फुल रहा हैं।
(ग) सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हम पहला कदम बढ़ाए हैं।
उत्तर: सादियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाए हैं।
(घ) हमारे शरीर पर कई अंग होते हैं।
उत्तर: हमारे शरीर में कई अंग होते हैं।
(ङ) हम निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।
उत्तर: हमें निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।
(च) सव ताजमहल की सौन्दर्यता पर मोहित होते हैं।
उत्तर: सव ताजमहल की सौन्दर्य पर मोहित होते हैं।
(छ) गत रविवार को वह मुंबई जाएगा।
उत्तर: गत रविवार को वह मुंबई गये।
(ज) आप कृपया हमारे घर आने की कृपा करें।
उत्तर: आप कृपया हमारे घर आए।
(झ) हमें अभी बहुत बातें सीखना है।
उत्तर: हमें अभी बहुत बातों को सीखना हैं।
(ञ) मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद का आभास हुआ।
उत्तर: मैंने यह निबंध पढ़कर आनन्द का आभास पाया।
4. निम्नलिखित लोकोक्तियों का भाव पल्लवन करो:
(क) आधे जल वाले घड़े को छलकने देना।
उत्तर: जब किसी व्यक्ति को किसी विषय में ज्ञान अधिक कम हो और वह दिखावा बखान अधिक करें की उसे उसके बारे में बहुत ज्ञान है। तो इसके लिए अधजल गगरी छलकत जाए मुहावरे का प्रयोग करते हैं।
(ख) होनहार बिरबान के होत चिकने पात।
उत्तर: जो बड़ा होकर प्रसिद्ध बनता है बचपन से भी उनका परिचय मिलता है। जैसे शिवाजी के बचपन से ही वीरता का प्रमाण हमको मिले थे। सतंत्र राज्य स्थापना को कल्पना वह बचपन से ही करते थे और आखिर एक दिन सफल भी हुए।
(ग) अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।
उत्तर: जब किसी काम के बाद से उसके नुकसान या असफलता होते है उसके बाद जागरूक होने के लिए कही जाती है। यह लोकोक्ति उस समय का वर्णन करती है जब किसी व्यक्ति ने कोई काम नहीं किया और उसे पछताने की जगह उसे कुछ नहीं होता।
(घ) जाको राखे साइयौँ मार सके न कोय।
उत्तर: भगवान जिसके सहायता करते है उसको कोई भी मार नहीं सकता है। क्योंकि प्रत्येक जीवों को भगवान सहायता करते है और सहारा देती है। जीवित रहने के शक्ति देते है। लेकिन इसके लिए हमे भगवान के नाम लेना चाहिए। हमे भगवान के प्रति विश्वासी होना चाहिए। हमको भी भगवान जीने के शक्ति देते है।
5. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो अर्थ बताओ:
अंबर, उत्तर, काल, नव, पत्र, मित्र, वर्ण, हार, कल, कनक।
उत्तर: (i) अंबर = आकाश , व्योम।
(ii) उत्तर = दिशा, जवाब।
(iii) काल = समय, नियति।
(iv) नव = नया , नूतन।
(v) पत्र = चिठ्ठी , खत।
(vi) मित्र = दोस्त , बंधु।
(vii) वर्ण = अक्षर , श्रेणी।
(viii) हार = पराजय , पराभब।
(ix) कल = ध्वनि , वीर्य।
(x) कनक = स्वर्ण , सोना।
6. निम्नांकित शब्द जोड़ों के अर्थ का अंतर बताओ:
अगम-दुर्गम, अपराध-पाप, अस्त्र-शस्त्र, आधि-व्याधि, दुख-खेद, स्त्री- पत्नी, आज्ञा-अनुमति, अहंकार-गर्व।
उत्तर: (i) अगम = जहाँ गमन नहीं किया जाता है (अगम्य)।
दुर्गम = जहाँ गमन करना मुश्किल है।
(ii) अपराध = दोष।
पाप = अधर्म।
(iii) अस्त्र = हथियार।
शस्त्र = निक्षेप करनेवाली हथियार।
(iv) आधि = मानसिक व्याथा।
व्याधि = बीमार।
(v) दूख = क्लेश।
खेद = थकावट।
(vi) स्त्री = औरत।
पत्नी = अर्धांगिनी।
(vii) आज्ञा = आदेश।
अनुमति = स्वीकृति।
(viii) अहंकार = अभिमान।
गर्व = समर्थवान अंहभाव।
योग्यता-विस्तार |
1. रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘मशाल’ तथा ‘ गेहूँ और गुलाब’ शीर्षक निबंधों का संग्रह करके पढ़ो और उनमें निहित संदेश सहपाठियों को बताओ।
उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।
2. ललित निबंध की विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करो।
उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।
शब्दार्थ एवं टिप्पणी |
शब्द | अर्थ |
सुघड़ | |
इमारत | |
चकमक | |
बरबस | |
पुख्तापन | |
बेतहाशा | |
मुनहसिर | |
विलीन | |
शोहरत | |
ईसा | |
दधीचि। | |
अनुप्राणित | |
वासना | |
कांगुरा | |
नींव | |
लोक–लोचन | |
अस्ति–नास्ति | |
पायदारी | |
अंधकूप | |
शहादत | |
कलश | |
उत्सर्ग | |
वृत्रासुर | |
मूढ़ | |
अफसोस | |
होड़ा–होड़ी | |
अभिभूत | |
चुनौती |
उत्तर:
शब्द | अर्थ |
सुघड़ | सुडौल, सुंदर आकार वाला |
इमारत | बड़ा पक्का मकान |
चकमक | चमकीलापन |
बरबस | बलपूर्वक |
पुख्तापन | मजबूती, दृढ़ता |
बेतहाशा | शीघ्रता से, जल्दी ही |
मुनहसिर | आश्रित, निर्भर |
विलीन | मिटा देना |
शोहरत | प्रसिद्ध, यश |
ईसा | ईसा मसीह, जिन्होंने ईसाई धर्म का प्रवर्तन प्रचार किया था। |
दधीचि। | एक प्रसिद्ध ऋषि, जिन्होंने अपनी हड्डियों का दान देवराज इंद्र का वज्र बनाने के लिए कर दिया था |
अनुप्राणित | प्रेरित, प्रोत्साहित |
वासना | तीव्र इच्छा, कामना |
कांगुरा | महल या भवन का सबसे ऊपरी भाग, शिखर का अंश |
नींव | महल, भवन आदि का सबसे नीचे का भाग, बुनियाद |
लोक–लोचन | लोगों की आँखें |
अस्ति–नास्ति | होना न होना, अस्तित्व |
पायदारी | टिकाऊपन |
अंधकूप | अंधकार भरा नीचा स्थान |
शहादत | बलिदान |
कलश | मंदिर आदि का सबसे ऊपरी भाग |
उत्सर्ग | न्योछावर बलिदान |
वृत्रासुर | एक अत्याचारी राक्षस |
मूढ़ | मूर्ख, बेवकूफी पूर्ण |
अफसोस | दुख |
होड़ा–होड़ी | प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता |
अभिभूत | आनंद–मग्न |
चुनौती | ललकार |
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