NCERT Class 12 Hindi Antra Chapter 17 कुटज

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NCERT Class 12 Hindi Antra Chapter 17 कुटज

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Chapter: 17

अंतरा गद्य खंड
प्रश्न-अभ्यास

1. कुटज को ‘गाढ़े के साथी’ क्यों कहा गया है?

उत्तर: कुटज वह साथी है, जो कठिन समय में साथ देता है। कालिदास ने अपनी रचनाओं में जब रामगिरी पर्वत पर यक्ष को बादल से अनुरोध करने के लिए भेजा था, तो वहाँ कुटज का पेड़ ही उपस्थित था। उसी समय, कुटज के फूल ही यक्ष के काम आए थे, क्योंकि उस स्थान पर जहाँ दूब तक नहीं उग पाती, कुटज के फूल ही उपयुक्त थे। यक्ष ने कुटज के फूल चढ़ाकर ही मेघ को प्रसन्न किया था। इसलिए कुटज को गाढ़े का साथी माना गया है।

2. ‘नाम’ क्यों बड़ा है? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: लेखक इस सवाल पर विचार करते हैं कि रूप महत्वपूर्ण है या नाम। क्या नाम बड़ा है या रूप? अक्सर कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है। यदि नाम की आवश्यकता हो, तो कुटज को भी अनगिनत नाम दिए जा सकते हैं, लेकिन लेखक का मानना है कि नाम केवल इसलिए बड़ा नहीं होता क्योंकि वह नाम होता है, बल्कि इसलिए बड़ा होता है क्योंकि उसे समाज से स्वीकृति मिलती है। रूप व्यक्ति का सत्य होता है, जबकि नाम समाज का सत्य होता है। नाम वह पद होता है, जिस पर समाज की मुहर लगी होती है, जिसे आधुनिक समय में ‘सोशल सेंक्शन’ (Social Sanction) कहा जाता है। लेखक का मन भी ऐसे नाम के लिए व्याकुल होता है, जो समाज द्वारा स्वीकृत हो, इतिहास से प्रमाणित हो और सभी लोगों के हृदय में समाया हो।

3. ‘कुट’, ‘कुटज’ और ‘कुटनी’ शब्दों का विश्लेषण कर उनमें आपसी संबंध स्थापित कीजिए।

उत्तर: हजारी प्रसाद जी ने कुटज पाठ में इस विषय पर विचार प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, ‘कुट’ शब्द के दो अर्थ होते हैं: ‘घर’ और ‘घड़ा’। इस आधार पर उन्होंने ‘कुटज’ शब्द का अर्थ बताया है—घड़े से उत्पन्न होने वाला। यह नाम अगस्त्य मुनि का दूसरा नाम माना जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि उनकी उत्पत्ति घड़े से हुई थी। अब यदि हम ‘कुट’ शब्द की ओर लौटें, तो यदि इसका अर्थ घर है, तो घर में काम करने वाली बुरी दासी को ‘कुटनी’ कहा गया है। इस प्रकार, ‘कुट’ और ‘कुटज’ शब्दों के बीच एक संबंध है, जो परस्पर जुड़े हुए प्रतीत होते हैं।

4. कुटज किस प्रकार अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है?

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उत्तर: कुटज में अपराजेय जीवनशक्ति समाहित है। यह नाम और रूप दोनों से अपनी अपराजेय शक्ति का प्रदर्शन करता है। कुटज की सुंदरता आकर्षक है, और इसकी जीवनशक्ति का प्रमाण यह है कि यह कुपित यमराज के भयानक निश्वासों और धधकती ( प्रचंड) अग्नि में भी हरा-भरा बना रहता है। यह कठोर पाषाणों के बीच से, जहाँ पानी का कोई स्पष्ट स्रोत नहीं होता, अपनी शक्ति से रस खींचकर जीवित रहता है और ताजगी बनाए रखता है।

सूने पर्वतों में भी इसकी शक्ति और जीवंतता (उत्साह) को देखकर अन्य जीवों को ईर्ष्या होती है। कुटज की यही जीवनशक्ति हमें प्रेरित करती है। यह हमें सिखाता है कि यदि जीवन में कुछ पाना चाहते हो, तो कुटज की तरह कठोर पाषाणों को भेदकर, पाताल की गहराइयों को चीरकर, आकाश में उड़ते हुए, तूफानों से जूझते हुए अपनी मंजिल तक पहुँचने की हिम्मत रखो। कुटज हमें यह संदेश देता है कि जीवन में सफलता पाने के लिए, हमें आकाश को छूने, तूफानों से लड़ने और हर चुनौती का सामना करने की ताकत रखनी चाहिए।

5. ‘कुटज’ हम सभी को क्या उपदेश देता है? टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: ‘कुटज’ हम सभी को यह उपदेश देता है कि कठिन परिस्थितियों में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमें धैर्य बनाए रखना चाहिए और इन हालात में अपने परिश्रम और शक्ति का सही उपयोग करना चाहिए। यदि हम निरंतर प्रयास करते रहें, तो हम इन कठिन परिस्थितियों को अपने सामने झुकने के लिए मजबूर कर सकते हैं। जो व्यक्ति कठिनाइयों का सामना करता है, वह सोने की तरह शुद्ध और चमकदार बनकर बाहर आता है। जो इन विकट परिस्थितियों को सहन कर लेता है, उसे फिर कोई भी नहीं हरा सकता।

6. कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?

उत्तर: कुटज के जीवन से हमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:

(क) हमें कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

(ख) कठिन परिस्थितियों का सामना धैर्य और संयम के साथ करना चाहिए।

(ग) अपने लक्ष्य की ओर निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

(घ) स्वयं पर विश्वास रखो, किसी से सहायता की उम्मीद मत करो।

(ङ) सिर उठाकर और आत्मसम्मान के साथ जीओ।

(च) मुसीबतों से डरना नहीं चाहिए, उनका सामना करना चाहिए।

(छ) जो भी परिस्थितियाँ मिलें, उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार करो।

7. कुटज क्या केवल जी रहा है– लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय कमजोरियों पर टिप्पणी की है?

उत्तर: ‘क्या कुटज केवल जी रहा है?’ लेखक ने यह प्रश्न उठाकर मानवीय कमजोरियों पर गहरी टिप्पणी की है। कुटज केवल जीता नहीं, बल्कि उसने शान और स्वाभिमान के साथ जीवन जीया है। ‘केवल जीने’ से यह भाव व्यक्त होता है कि वह विवशतापूर्वक (विवश होकर) जीवन यापन कर रहा है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। कुटज अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्ष की ताकत से जीता है। यह प्रश्न मानवीय स्वभाव की उस कमजोरी को उजागर करता है, जहाँ कई लोग किसी न किसी विवशता के कारण केवल जी रहे होते हैं। उनमें जिजीविषा (जीवन की इच्छा) और संघर्ष की कमी होती है। वे बस किसी तरह जी रहे होते हैं, और उनका जीवन संघर्ष रहित होता है। वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत नहीं होते। ऐसे लोग कठिन परिस्थितियों का सामना करके अपनी इच्छाओं को साकार नहीं कर पाते। उनके जीवन में उल्लास की कमी होती है, और वे हारे हुए मन से जी रहे होते हैं। उन्हें इस प्रवृत्ति को छोड़कर जीवन में उत्साह और संघर्ष की भावना को अपनाना चाहिए।

8. लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड कोई न कोई शक्ति अवश्य है? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर: स्वार्थ हमें अक्सर गलत मार्गों पर ले जाता है। इस स्वार्थ के कारण ही मनुष्य ने विशाल इमारतें बनाई हैं, सागर में बड़े-बड़े पुल और जहाज बनाए हैं, और हवा में उड़ने वाले विमान तैयार किए हैं। हमारे स्वार्थ की कोई सीमा नहीं होती। जिजीविषा हमें जीवन के प्रति प्रेरित करती है, लेकिन स्वार्थ और जिजीविषा ही हैं, जो हमें गलत दिशा में भटकाते हैं। इन दोनों के कारण ही हम स्वयं को महत्व देने लगते हैं और यह भूल जाते हैं कि हम क्या कर रहे हैं।

लेखक इन दोनों से अलग एक उच्च शक्ति को स्वीकार करता है, जो उसके अनुसार सबसे बड़ी है। जब मनुष्य इस सर्वशक्तिमान शक्ति को स्वीकार करता है, तो वह न केवल मानवता का, बल्कि पृथ्वी पर सभी प्राणियों का कल्याण करता है। कल्याण की भावना उसे महान बनाती है, और यह शक्ति इतनी प्रचंड होती है कि मनुष्य को न केवल निस्वार्थ बनाती है, बल्कि उसमें अहंकार, लोभ, स्वार्थ, और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं का नाश कर देती है। ऐसा व्यक्ति महान कहलाता है। इतिहास में इसके कई उदाहरण मिलते हैं, जैसे बुद्ध, गुरूनानक, अशोक, महात्मा गांधी आदि।

9. ‘कुटज’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि ‘दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।’

उत्तर: ‘कुटज’ पाठ में यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि दुःख और सुख केवल मन के विकल्प हैं। वही व्यक्ति सुखी है जिसने अपने मन को पूरी तरह से नियंत्रित कर रखा है। दुःख उसी को होता है, जिसका मन परवश होता है, अर्थात वह दूसरे के प्रभाव में होता है। यहाँ परवश होने का मतलब यह भी है कि वह खुशामद करता है, चाटुकारिता करता है, दाँत निपोरता है, और जी हजूरी करता है। जो व्यक्ति अपने मन पर काबू नहीं रखता, वह दूसरों के मन का अनुसरण करता है। ऐसा व्यक्ति अपनी असलियत को छिपाने के लिए आडंबर रचता है और दूसरों को फँसाने के लिए जाल बिछाता है। जबकि सुखी व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित करता है और उसे अपने ऊपर सवार नहीं होने देता। इस प्रकार, दुःख और सुख मन की स्थिति के विकल्प हैं।

10. निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए—

(क) ‘कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतल गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते हैं।’

उत्तर: प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से ली गई हैं। इसमें लेखक कुटज की विशेषताओं का वर्णन करते हुए, उन लोगों की ओर भी संकेत करते हैं, जो स्वभाव से बेशर्म दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी बेशर्मी उनके कठिन संघर्ष और विकट परिस्थितियों से लड़ने का  परिणाम होती है।

व्याख्या- लेखक इन पंक्तियों के माध्यम से कुटज और ऐसे लोगों के बारे में चर्चा करता है, जो बाहरी तौर पर बेहया दिखते हैं। लेखक का कहना है कि कुटज ऐसे कठिन और प्रतिकूल वातावरण में भी सिर उठाकर खड़ा रहता है, जहाँ अन्य प्राणी धराशायी हो जाते हैं। वह पहाड़ों की चट्टानों पर उगकर, उनमें छिपे जल स्रोतों से अपनी आवश्यकता के लिए पानी की व्यवस्था भी कर लेता है। लोग इस दृढ़ता और अडिग खड़े रहने को बेहयाई मान सकते हैं, लेकिन यह स्वभाव उसकी विकट परिस्थितियों से संघर्ष करने का परिणाम है। इसीलिए यह स्वभाव उसकी जीवन शक्ति का प्रतीक बनता है। इसी प्रकार, जीवन में कुछ लोग भी विकट परिस्थितियों का सामना करते हुए डटे रहते हैं। उनका यह व्यवहार कभी-कभी दूसरों को बेहयाई लगता है, लेकिन यह उनकी रक्षा करता है और उन्हें मजबूती से खड़ा रहने में मदद करता है। ऐसे लोग अपनी राह स्वयं तलाशते हैं और अपनी ताकत से परिस्थितियों का सामना करते हैं।

(ख) ‘रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सैक्शन’ कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित्त-गंगा में स्नात!’

उत्तर: प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक नाम की विशेषता को उजागर करता है।

व्याख्या- इन पंक्तियों में लेखक नाम की महत्ता और उसकी पहचान पर चर्चा करता है। लेखक का कहना है कि यह सत्य है कि मनुष्य कि पहचान उसके ‘रूप’ से होती है। जैसे उसका रूप होता है, वैसा ही उसे पहचाना जाता है। यह पहचान एक व्यक्ति द्वारा बनाई जाती है और यह एक अवश्यम्भावी (जिसका होना निश्चित हो) सत्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। उसी तरह, ‘नाम’ भी हमारी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ‘नाम’ समाज में हमारी पहचान को दर्शाता है और इसके माध्यम से ही हमें जाना जाता है। समाज द्वारा इसे स्वीकृति प्राप्त होती है, जिसे आधुनिक भाषा में ‘सोशल सैक्शन’ कहा जाता है। इसका अर्थ है कि हमारा नाम समाज द्वारा स्वीकार किया गया है। लेखक इस विचार के माध्यम से यह व्यक्त करता है कि उसका मन यह जानने के लिए व्याकुल है कि उसका नाम कब और कैसे समाज द्वारा स्वीकृत हुआ, और यह इतिहास में कैसे प्रमाणित हुआ कि वह नाम लोगों के हृदय में स्थायी रूप से बैठ गया।

(ग) ‘रूप की तो बात ही क्या है! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित यमराज के दारुण निःश्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के चित्त से भी अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस बना हुआ है।’

उत्तर: प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक कुटज की विशेषता का वर्णन करते हैं।

व्याख्या- लेखक इन पंक्तियों में कुटज की सुंदरता और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि कुटज अपनी शोभा में अत्यंत आकर्षक होता है। इसकी सुंदरता इतनी प्रभावशाली होती है कि इसे देखकर बलाएँ लेने का मन करता है। हालांकि, वातावरण में चारों ओर भयंकर गर्मी और लू चल रही होती है, मानो यमराज साँस ले रहे हों, फिर भी कुटज इस प्रचंड गर्मी से प्रभावित नहीं होता। इसके बावजूद इसकी हरियाली बनी रहती है और यह फल भी देता है। कुटज अपनी जड़ों के लिए ऐसे कठिन पत्थरों के बीच रास्ता बनाता है और वहाँ छिपे जलस्रोतों तक पहुँचता है, जिनके बारे में किसी को जानकारी नहीं होती। लेखक पत्थरों की तुलना दुर्जन व्यक्तियों से करते हैं और कहते हैं कि कुटज अपनी जीवनी शक्ति से विकट परिस्थितियों का सामना करता है और सिर ऊँचा करके खड़ा रहता है।

(घ) ‘हृदयेनापराजितः! कितना विशाल वह हृदय होगा जो सुख से, दुख से, प्रिय से, अप्रिय से विचलित न होता होगा! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहाँ से मिली है यह अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि!’

उत्तर: दिए गए उद्धरण में लेखक ने एक ऐसे अद्भुत और अपराजित हृदय की कल्पना की है, जो किसी भी प्रकार के सुख-दुख, प्रिय-अप्रिय परिस्थितियों से विचलित नहीं होता। यह हृदय मानसिक दृढ़ता, आत्मसंयम और एक गहरी जीवन-दृष्टि का प्रतीक है। लेखक इस गुण को “अकुतोभया वृत्ति” कहते हैं, जिसका अर्थ है भय से रहित और साहसिक स्वभाव। कुटज पौधे का उदाहरण देते हुए, लेखक प्रकृति से प्रेरणा लेने की बात करते हैं। कुटज, जो कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ता और स्थिरता से खड़ा रहता है, जीवन में स्थायित्व और संतुलन का संदेश देता है।

यह विचार हमें सिखाता है कि मानसिक और भावनात्मक स्थिरता ही सच्ची विजय है। बाहरी परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं, लेकिन उनके प्रति हमारी प्रतिक्रिया अवश्य हमारे नियंत्रण में हो सकती है। ऐसा हृदय, जो इन सबमें भी अडिग रहे, जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम होता है।

योग्यता-विस्तार

1. ‘कुटज’ की तर्ज पर किसी जंगली फूल पर लेख अथवा कविता लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

2. लेखक ने ‘कुटज’ को ही क्यों चुना? उसको अपनी रचना के लिए जंगल में पेड़-पौधे तथा फूलों-वनस्पतियों की कोई कमी नहीं थी।

उत्तर: यह कहना सही होगा कि लेखक के पास उदाहरणों की कोई कमी नहीं थी। कुटज की विशेषताएँ ही ऐसी थीं कि लेखक को उसके विषय में लिखने के लिए प्रेरित होना पड़ा। एक लेखक का कर्तव्य होता है ऐसी रचनाएँ प्रस्तुत करना, जो समाज को न केवल ज्ञान प्रदान करें, बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों को भी उजागर करें। इस प्रकार वह न केवल प्रकृति को लोगों से जोड़ता है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं से भी उनका संबंध स्थापित करता है। कुटज इस प्रकार का उदाहरण है, जिससे लेखक ने न केवल उसके बारे में विस्तार से बताया, बल्कि जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों से उसका संबंध स्थापित कर, लोगों को एक मार्ग भी दिखाया।

3. कुटज के बारे में उसकी विशेषताओं को बताने वाले दस वाक्य पाठ से छाँटिए और उनकी मानवीय संदर्भ में विवेचना कीजिए।

उत्तर: कुटज के बारे में उसके विशेषताओं को बताने वाले वाक्य पाठ से छाँटकर मानवीय संदर्भ में विवेचनाएँ निम्नलिखित हैं:

(i) शिवालिक की सूखी नीरस पहाड़ियों पर मुसकुराते हुए ये वृक्ष द्वंद्वातीत हैं, अलमस्त हैं।

(ii) अजीब सी अदा है मुसकुराता जान पड़ता है।

(iii) उजाड़ के साथी, तुम्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ।

(iv) धन्य हो कुटज, तुम ‘गाढ़े के साथी हो।’

(v) कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता।

(vi) कुटज इन सब मिथ्याचारों से मुक्त है। वह वशी है। वह वैरागी है।

(vii) सामने कुटज का पौधा खड़ा है वह नाम और रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषण करता है।

(viii) मनोहर कुसुम-स्तबकों से झबराया, उल्लास-लोल चारुस्मित कुटज।

(ix) कुटज तो जंगल का सैलानी है।

4. ‘जीना भी एक कला है’- कुटज के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर: यह बिलकुल सत्य है कि जीना भी एक कला है, और कुटज ने इसे सिद्ध कर दिया है। जो व्यक्ति विकट और असामान्य परिस्थितियों में भी अपनी जीवन-शक्ति को बनाए रखता है, उसकी प्रशंसा जितनी की जाए, उतनी कम है। ऐसे ही व्यक्ति को वास्तव में जीना चाहिए। सुख और दुख तो जीवन का हिस्सा होते हैं, लेकिन जो व्यक्ति इन दोनों में संतुलित रहते हुए खुद को समान बनाए रखता है, वही सच्चे अर्थों में जीवन जीता है। सुख में तो सभी खुश रहते हैं, लेकिन जो व्यक्ति दुख के समय भी मुस्कराता है, उसने सही मायने में जीना सीख लिया है। यह कला सभी को नहीं आती है, और इसे प्राप्त करने के लिए हमें गंभीरता से सोचना होगा। यदि हम इसे सीख लें, तो हमारा जीवन सचमुच स्वर्ग जैसा बन सकता है।

5. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा पं हजारी प्रसाद द्विवेदी पर बनाई फिल्म देखिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

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