NCERT Class 12 Geography Chapter 4 जल-संसाधन

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NCERT Class 12 Geography Chapter 4 जल-संसाधन

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Chapter: 4

भारत लोग और अर्थव्यवस्था
अभ्यास

1 . नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।

(i) निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है?

(क) अजैव संसाधन।

(ख) अनवीकरणीय संसाधन।

(ग) जैव संसाधन।

(घ) अचक्रीय संसाधन।

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उत्तर: (घ) अचक्रीय संसाधन।

(ii) निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौम जल उपयोग (% में) इसके कुल भौम जल संभाव्य से ज़्यादा है?

(क) तमिलनाडु।

(ख) कर्नाटक।

(ग) आंध्र प्रदेश।

(घ) केरल।

उत्तर: (क) तमिलनाडु।

(iii) देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है?

(क) सिंचाई।

(ख) उद्योग।

(ग) घरेलू उपयोग।

(घ) इनमें से कोई नहीं।

उत्तर: (क) सिंचाई।

2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।

(i) यह कहा जाता है कि भारत में जल संसाधनों में तेजी से कमी आ रही है। जल संसाधनों की कमी के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।

उत्तर: भारत में जल संसाधनों की कमी का कारण बढ़ती जनसंख्या, अत्यधिक भूजल दोहन, जल प्रदूषण, वर्षा पर निर्भरता, शहरीकरण और जल संरक्षण की कमी है। साथ ही उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक, कृषि और घरेलू प्रदूषकों से प्रदूषित होता जा रहा है। इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता कम होती जा रही है।

(ii) पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में सबसे अधिक भौम जल विकास के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं?

उत्तर: पंजाब, हरियाणा तथा तमिलनाडु राज्यों में भौम जल विकास सबसे अधिक इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इन प्रदेशों में कृषि के अंतर्गत उगाई जाने वाली फसलों को सिंचाई की आवश्यकता होती है। हरित क्रांति का शुभारंभ भी इन्हीं राज्यों से हुआ था साथ ही भौम जल की मात्रा भी इन राज्यों में अत्यधिक है।

(iii) देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की संभावना क्यों है?

उत्तर: भारत में औद्योगीकरण और शहरीकरण बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है, जिससे कृषि भूमि में कमी आ रही है। नगरों के समीप की भूमि पर कृषि के अलावा अनेकों आर्थिक गतिविधियों में भूमि उपयोग बढ़ने से कृषि भूमि सिकुड़ती जा रही है। अतः भविष्य में जल का उपयोग भी कृषि की अपेक्षा अन्य आर्थिक गतिविधियों में बढ़ने की ही संभावना है।

(iv) लोगो पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपभोग के क्या संभव प्रभाव हो सकते हैं?

उत्तर: विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में लगभग एक-चौथाई संक्रामक बीमार जल जनित हैं। गंदे पानी के उपयोग से ही अतिसार, पीलिया, हैजा, डायरिया, आंतों के कृमि जैसी कई बीमारियाँ होती हैं। यह विशेष रूप से बच्चों और कमजोर व्यक्ति के लिए घातक हो सकता है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।

(i) देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।

उत्तर: भारत में जल संसाधनों की उपलब्धता के चार मुख्य स्रोत हैं-

1. नदियाँ।

2. झीलें।

3. तलैया।

4. तालाब।

यह जल वर्षण के विभिन्न रूपों से प्राप्त होता है। देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जलराशि की मात्रा लगभग 4,000 घन कि०मी० है। धरातलीय जल और पुनः पूर्तियोग्य भौमजल से 1,869 घन कि०मी० जल की उपलब्धता है। जिसका केवल 60% अर्थात् 1,122 घन कि०मी० का ही लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। भारत में होने वाली वर्षा में अत्यधिक सामयिक व स्थानिक विभिन्नता पाया जाता है। कुल वर्षा का अधिकांश भाग मानसूनी मौसम तक संकेद्रित है। गंगा, ब्रह्मपुत्र व बराक नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक वर्षा होती है जोकि भारत का एक-तिहाई क्षेत्रफल है। किंतु यहाँ कुल धरातलीय जल-संसाधनों का 60% जल पाया जाता है। दक्षिण भारतीय नदियाँ जैसे- गोदावरी, कृष्णा व कावेरी में जल प्रवाह का अधिकतर भाग उपयोग के लिए लाया जा रहा है जबकि गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में यह अभी तक संभव नहीं हो पाया है। नदियों में जल प्रवाह उनके जल ग्रहण क्षेत्र के आकार अथवा उनके जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता है। भारत में नदियों व उनकी सहायक नदियों की कुल संख्या 10,360 है। इनमें 1,869 घन कि०मी० वार्षिक जल प्रवाह होने का अनुमान है जिसका केवल 32% अर्थात् 690 घन कि०मी० जल का उपयोग किया जा सकता है।

(ii) जल संसाधनों का हास सामाजिक द्वंद्वों और विवादों को जन्म देते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।

उत्तर: जल एक नवीकरणीय अथवा चक्रीय प्राकृतिक संसाधन है, जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। फिर भी, पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल लगभग 3% भाग ही अलवणीय (मीठा) जल है, जो पीने, सिंचाई अथवा अन्य मानवीय आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त होता है। शेष 97% जल लवणीय (खारा) होता है, जो मुख्यतः समुद्रों में पाया जाता है और सीधे रूप से मानव उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं होता, सिवाय नौवहन और मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों के अलवणीय जल की उपलब्धता भी भौगोलिक स्थान और समय के अनुसार असमान होती है। यह कारण है कि जल जैसे महत्वपूर्ण संसाधन को लेकर समुदायों, राज्यों और देशों के बीच अक्सर टकराव, तनाव, विवाद और संघर्ष उत्पन्न होते रहते हैं।

जैसे-

1. पंजाब, हरियाण व हिमाचल प्रदेश में बहने वाली नदियों के जल बँटवारे को लेकर विवाद।

2. नर्मदा नदी के जल को लेकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश व गुजरात राज्यों में विवाद।

3. कावेरी नदी के जल बँटवारे को लेकर केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में विवाद। जनसंख्या के ज्यादा के साथ-साथ जल की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। उपलब्ध जल औद्योगिक, कृषि व घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है अतः उपयोगी, शुद्ध जल संसाधनों की उपलब्धता और सीमित होती जा रही है।

(iii) जल-संभर प्रबंधन क्या है? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है?

उत्तर: जल संभर प्रबंधन से तात्पर्य, मुख्य रूप से धरातलीय और भौम जल संसाधनों के दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों, जैसे- अंतः स्रवण तालाव, पुनर्भरण, कुओं आदि के द्वारा भौम जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल हैं। जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य प्राकृतिक जल संसाधनों और समाज की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करना है।कुछ क्षेत्रों में जल-संभर विकास परियोजनाएँ पर्यावरण और अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करने में सफल हुई हैं। 

जैसे-

1. हरियाली- केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने, सिंचाई, मत्स्यपालन और वन रोपण के लिए जल-संभर विधि से जल का संरक्षण करना है। यह परियोजना लोगों के सहायता से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है।

2. नीरू-मीरू (जल और आप)- यह कार्यक्रम आंध्रप्रदेश में अथवा अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में) लोगों के सहयोग – सहायता से चलाई जा रहे हैं जिनमें जल संग्रहण के लिए संरचनाएँ जैसे- अंत: स्रवण, तालाब, ताल (जोहड़) की खुदाई की गई हैं तथा रोक बाँध बनाए गए हैं।

3. तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना का निर्माण आवश्यक बना दिया गया है।

4. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित रालेगॅन सिद्धि एक छोटा-सा गाँव है। यह पूरे देश में जल-संभर विकास का एक जीवित उदाहरण है। देश में लोगों को जल-संभर विकास प्रबंधन के लाभों को बताकर उनमें जागरूकता पैदा करके जल की उपलब्धता को सतत पोषणीय विकास से जोड़ा जा सकता है।

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