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NCERT Class 12 Biology Chapter 8 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव
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मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव
Chapter: 8
अभ्यास
1. जीवाणुओं को नग्न नेत्रों द्वारा नहीं देखा जा सकता, परंतु सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। यदि आपको अपने घर से अपनी जीव विज्ञान प्रयोगशाला तक एक नमूना ले जाना हो और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इस नमूने से सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रदर्शित करना हो, तो किस प्रकार का नमूना आप अपने साथ ले जायेंगे और क्यों?
उत्तर: दही का इस्तेमाल सूक्ष्मजीवों के अध्ययन के लिए नमूने के रूप में किया जा सकता है। दही में कई लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (एलएबी) या लैक्टोबैसिलस होते हैं। ये जीवाणु अम्ल बनाते हैं जो दूध के प्रोटीन को जमाते हैं और पचाते हैं। दही की एक छोटी बूंद में लाखों जीवाणु होते हैं, जिन्हें सूक्ष्मदर्शी से आसानी से देखा जा सकता है।
2. उपापचय के दौरान सूक्ष्मजीव गैसों का निष्कासन करते हैं; उदाहरण द्वारा सिद्ध करें।
उत्तर: ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि सूक्ष्मजीव अपने उपापचय के दौरान गैसों का उत्सर्जन करते हैं। कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:
(i) डोसा और इडली जैसे खाद्य पदार्थों के लिए आवश्यक घोल को बैक्टीरिया द्वारा किण्वित किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान CO₂ गैस का उत्पादन होता है, जिसके कारण घोल फूल जाता है और उसमें नरमता तथा स्पंजी बनावट आती है।
(ii) स्विस चीज़ अपने विशिष्ट स्वाद और बड़े छिद्रों (गैस बुलबुलों) के लिए प्रसिद्ध है। ये छिद्र प्रोपिओनिबैक्टीरियम शारमानी नामक बैक्टीरिया द्वारा किण्वन प्रक्रिया में उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के कारण बनते हैं।
3. किस भोजन (आहार) में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया मिलते हैं? इनके कुछ लाभप्रद उपयोगों का वर्णन करें।
उत्तर: लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (LAB) दूध को दही में परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बैक्टीरिया दूध में उपस्थित शर्करा लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं। लैक्टिक अम्ल दूध की प्रमुख प्रोटीन केसीन को जमा देता है, जिससे दूध दही का रूप ले लेता है। ये जीवाणु दूध से लैक्टोज की मात्रा को कम कर देते हैं, फिर भी कुछ लोगों को बिना लैक्टोज वाला दूध पीने पर भी एलर्जी हो सकती है। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया विटामिन B समूह (विशेषकर B12) का निर्माण करते हैं और यह सड़न उत्पन्न करने वाले तथा हानिकारक सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकने में भी सहायक होते हैं।
4. कुछ पारंपरिक भारतीय आहार जो गेहूँ, चावल तथा चना (अथवा उनके उत्पाद) से बनते हैं और उनमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग शामिल हो, उनके नाम बताएँ।
उत्तर: किण्वन की प्रक्रिया में सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके विभिन्न प्रकार के पारंपरिक और पौष्टिक खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं।
गेहूँ, चावल और बंगाल चना या उड़द जैसी दालों से बने कुछ प्रमुख पारंपरिक आहार निम्नलिखित हैं:
(i) ब्रेडमैन ब्रेड: Saccharomyces cerevisiae नामक यीस्ट गेहूँ के आटे को किण्वित करके ब्रेड में परिवर्तित करता है। इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है, जिससे आटा फूलता है और ब्रेड मुलायम बनती है।
(ii) डोसा, इडली और उपमा: ये व्यंजन मुख्यतः चावल और उड़द दाल से बनाए जाते हैं। इनका घोल Leuconostoc और Streptococcus जैसे लाभकारी जीवाणुओं की सहायता से 3 से 12 घंटे तक किण्वित किया जाता है। किण्वन से स्वाद, बनावट और पौष्टिकता में वृद्धि होती है।
5. हानिप्रद जीवाणु द्वारा उत्पन्न करने वाले रोगों के नियंत्रण में किस प्रकार सूक्ष्मजीव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
उत्तर: प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक्स) सूक्ष्मजीवों के उपापचयी उत्पाद होते हैं, जो अन्य सूक्ष्मजीवों, विशेषकर जीवाणुओं के लिए हानिकारक या उनकी वृद्धि को रोकने वाले होते हैं। ये औषधियाँ रोगजनक सूक्ष्मजीवों के विरुद्ध प्रतिस्पर्धात्मक अवरोध (प्रतियोगिता निरोध) के सिद्धांत पर कार्य करती हैं और विभिन्न रोगों के उपचार में सहायक होती हैं।
अधिकांश प्रतिजैविक बैक्टीरिया या कवक जैसे सूक्ष्मजीवों से प्राप्त होते हैं। उदाहरणस्वरूप, Penicillium नामक कवक द्वारा उत्पादित पेनिसिलिन एक प्रमुख प्रतिजैविक है, जो रोग उत्पन्न करने वाले हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने में प्रभावी है। पेनिसिलिन जैसे प्रतिजैविक डिफ्थीरिया, काली खाँसी और न्यूमोनिया जैसे संक्रामक रोगों की रोकथाम और उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
6. किन्हीं दो कवक प्रजातियों के नाम लिखें, जिनका प्रयोग प्रतिजैविकों (ऐंटीबॉयोटिकों) के उत्पादन में किया जाता है।
उत्तर: ऐंटीबायोटिक्स ऐसी दवाइयाँ हैं जो कुछ सूक्ष्मजीवों द्वारा अन्य रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों को मारने के लिए बनाई जाती हैं। ये दवाइयाँ आमतौर पर सूक्ष्मजीवों और कवक से प्राप्त की जाती है।
ऐंटीबॉयोटिक दवाओं के उत्पादन में प्रयुक्त कवक की प्रजातियाँ हैं:
(i) रैमाइसिन को म्यूकर रैमोनियास नामक कवक से।
(ii) पैनीसिलिन को पैनीसिलियम नोटेटम नामक कवक से प्राप्त करते हैं।
7. वाहितमल से आप क्या समझते हैं, वाहितमल हमारे लिए किस प्रकार से हानिप्रद हैं?
उत्तर: प्रतिदिन नगर व शहरों से व्यर्थ जल की बहुत बड़ी मात्रा जनित होती है। इस व्यर्थ जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मल-मूत्र है। नगर में इस व्यर्थ जल को वाहित मल (सीवेज) कहते हैं।
(i) वाहित मल (सीवेज) में कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा तथा सूक्ष्मजीव पाये जाते हैं, जो अधिकांशतः रोगजनकीय होते हैं।
(ii) वाहित मल में ऑक्सीजन की कमी होती है। इसलिए कार्बनिक पदार्थों का विघटन भी नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप वाहित मल वातावरण को प्रदूषित करते हैं।
8. प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहितमल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अंतर कौन से हैं?
उत्तर: वाहित मल का उपचार वाहितमल संयन्त्र में किया जाता है जिससे यह प्रदूषण मुक्त हो सके। यह उपचार दो चरणों में सम्पन्न होता है –
(i) प्राथमिक उपचार (Primary treatment): प्राथमिक उपचार में मुख्यतः बड़े-छोटे कणों को भौतिक क्रियाओं; जैसे- अवसादन (सेडीमिंटेशन), निस्पंदन (फिल्ट्रेशन), तैरने की क्रिया आदि द्वारा अलग किया जाता है। सबसे पहले तैरते हुए कूड़े-करकट को निस्यंदन द्वारा हटा दिया जाता है। इसके बाद (ग्रिट) (मृदा तथा छोटे गुटिकाओं पेवल) को अवसादुन द्वारा निष्कासित किया जाता है। छोटे कण प्राथमिक आपंक (स्लज) के रूप में नीचे बैठ जाते हैं और प्लावी (सुपरनैटेंट) बहिःस्राव का निर्माण होता है। बहिःस्राव को प्राथमिक उपचार टैंक से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।
(ii) द्वितीयक उपचार (Secondary treatment): द्वितीयक उपचार में सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है। जैसे-ऑक्सीकृत तालाब एक उथला जलाशय होता है जिसमें वाहित मल एकत्रित किया जाता है। इसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक होने के कारण शैवाल और जीवाणुओं की अच्छी वृद्धि होने लगती है।
जीवाणु अपघटन करते हैं और शैवाल उनसे उत्पन्न कार्बन डायक्साइड का प्रकाश संश्लेषण में उपयोग करते हैं। प्रकाश संश्लेषण में मुक्त ऑक्सीजन जल को दूषित होने से बचाती है। इस प्रकार ऑक्सीकृत तालाब, शैवाल और जीवाणुओं के बीच सहजीविता का उदाहरण है। ऑक्सीकृत तालाब में होने वाली क्रियाओं द्वारा संक्रामक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के पश्चात् केवल नुकसान न देने वाले पदार्थ ही रह जाते हैं। द्वितीयक उपचार के पश्चात् संयंत्र से बहिःस्राव सामान्यतः जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे-नदियों, झरनों आदि में छोड़ दिया जाता है अथवा तृतीयक उपचार हेतु रासायनिक क्रियाविधियों द्वारा इससे नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस लवणों को अलग करने के पश्चात् बहिःस्राव को जलाशयों में छोड़ दिया जाता है
9. सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है। यदि हाँ; तो किस प्रकार से इस पर विचार करें?
उत्तर: सूक्ष्मजीव ऊर्जा के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बायोगैस एक ऐसी गैसों का मिश्रण है जो अवायवीय सूक्ष्मजीवों द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से उत्पन्न होती है और इसे ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। बायोगैस के उत्पादन में प्रयुक्त सूक्ष्मजीव मुख्यतः पूर्णतः अवायवीय जीवाणु होते हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण मीथेनोजेनिक आर्कबैक्टीरिया जैसे मीथेनोबैक्टीरियम हैं। ये सूक्ष्मजीव कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करके मीथेन (CH₄) उत्पन्न करते हैं, जो बायोगैस का सबसे ज्वलनशील और प्रमुख घटक (50–68%) होता है। इसके अतिरिक्त, बायोगैस में कार्बन डाइऑक्साइड (25–35%), हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और थोड़ी मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड भी पाई जाती है। बायोगैस का व्यावसायिक उत्पादन विशेष संयंत्रों में किया जाता है, जिन्हें ‘बायोगैस संयंत्र’ या ‘गोबर गैस संयंत्र’ कहा जाता है, क्योंकि इनमें मुख्य रूप से पशुओं के मल (गोबर) और पानी का मिश्रण (1:1 अनुपात) डाला जाता है। गोबर सैल्यूलोज़ जैसे जटिल कार्बनिक पदार्थों का अच्छा स्रोत होता है, जो सूक्ष्मजीवों के लिए पोषण का कार्य करता है। उत्पन्न बायोगैस का उपयोग खाना पकाने, तापन, प्रकाश व्यवस्था और सिंचाई जैसे कार्यों में किया जाता है। यह पारंपरिक ईंधनों का एक पर्यावरण-अनुकूल और प्रदूषण रहित विकल्प प्रदान करती है, इसलिए इसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोत माना जाता है।
10. सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रसायन उवर्रकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग को कम करने के किए भी किया जा सकता है। यह किस प्रकार संपन्न होगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: जैव नियंत्रण पादप रोगों और कीट-पीड़कों को नियंत्रित करने की एक जैविक विधि है, जो रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करती है। रासायनिक पदार्थ जहाँ मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं, वहीं जैव नियंत्रण सुरक्षित विकल्प प्रदान करता है।
जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव: जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबेक्टीरिया होते हैं। लेग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर स्थित ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम जीवाणु के सहजीवी संबंध द्वारा होता है। ये जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं। मृदा में मुक्तावस्था में रहने वाले अन्य जीवाणु जैसे-एजोस्पाइरिलम तथा एजोटोबैक्टर भी वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर मृदा में नाइट्रोजन अवयव की मात्रा को बढ़ाते हैं। कवक अनेक पादपों के साथ सहजीवी सम्बन्ध स्थापित करते हैं। इस संबंध को माइकोराइजा कहते हैं। ग्लोमस जीनस के बहुत-से कवक सदस्य माइकोराइजा बनाते हैं। इस संबंध में कवकीय सहजीवी मृदा से जल एवं पोषक तत्वों का अवशोषण कर पादपों को प्रदान करते हैं और पादपों से भोजन प्राप्त करते हैं। सायनोबेक्टीरिया स्वपोषित सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमंडल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजनी यौगिक के रूप में स्थिर करके मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं। जैसे-ऐनाबीना, नॉसरटॉक आदि। धान के खेत में सायनोबेक्टीरिया महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं।
पीड़क एवं रोगों का जैविक नियंत्रण जैविक नियंत्रण विधि से विषैले रसायनों और कीटनाशकों पर हमारी निर्भरता को काफी हद तक कम किया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, बेसिलस थूरिजिएन्सिस (Bt) नामक बैक्टीरिया का प्रयोग तितली के कैटरपिलर को नियंत्रित करने में किया जाता है। आनुवांशिक अभियांत्रिकी की सहायता से वैज्ञानिकों ने Bt टॉक्सिन जीन को पादपों में स्थानांतरित कर दिया है, जिससे वे पीड़कों के प्रति प्रतिरोधी बन जाते हैं। Bt-कॉटन इसका प्रमुख उदाहरण है, जो भारत के कई राज्यों में उगाया जाता है। इस फसल को ड्रैगनफ्लाई, मच्छर तथा एफिड जैसे कीट नुकसान नहीं पहुँचा सकते।
पादप रोगों के जैविक उपचार में ट्राइकोडर्मा नामक कवक का उपयोग प्रभावी सिद्ध हुआ है। यह कई पादप रोगजनकों का कारगर जैव नियंत्रण करता है।
इसी प्रकार, बैक्यूलोवायरस ऐसे विषाणु हैं जो कीटों (विशेषकर ऑर्थोपोड) पर हमला करते हैं। इनमें न्यूक्लिओपॉलीहाइड्रोसिस वायरस (NPV) प्रमुख हैं, जिनका उपयोग संकीर्ण स्पेक्ट्रम वाले, प्रजाति-विशिष्ट जैव कीटनाशकों के रूप में किया जाता है।
11. जल के तीन नमूने लो एक नदी का जल, दूसरा अनुपचारित वाहितमल जल तथा तीसरा-वाहितमल उपचार संयत्र से निकला द्वितीयक बहिःस्राव; इन तीनों नमूनों पर ‘अ’ ‘ब’ ‘स’ के लेबल लगाओ। इस बारे में प्रयोगशाला कर्मचारी को पता नहीं है कि कौन सा क्या है? इन तीनों नमूनों ‘अ’ ‘ब’ ‘स’ का बीओडि का रिकार्ड किया गया जो क्रमशः 20 mg/L. 8 mg/L तथा 400 mg/L निकाला। इन नमूनों में कौन सा सबसे अधिक प्रदूषित नमूना है? इस तथ्य को सामने रखते हुए कि नदी का जल अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ है। क्या आप सही लेबल का प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर: बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड ऑक्सीजन की उस मात्रा को संदर्भित करता है जो जीवाणु द्वारा एक लीटर पानी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की खपत निश्चित समय-काल में करता है। तथा उन्हें ऑक्सीकृत करता है। अनुपचारित वाहितमल जल सबसे अधिक प्रदूषित होता है क्योंकि इसमें मनुष्य का मल-मूत्र, कपड़े की धुलाई से उत्पन्न जल, औद्योगिक तथा कृषि अपशिष्ट आदि उपस्थित रहता है, इसलिए इस जल का बीओडी सबसे अधिक होगा। नदी का जल साफ होता है क्योंकि इसमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बहुत कम होती है, अतः इस जल को बीओडी सबसे कम होगा।
इसलिए ये निम्नलिखित प्रकार से लेबल किए जा सकते हैं:
नमुना | नमूने का प्रकार | नमूने का प्रकार |
(अ) | 20 mg/L | वाहितमल उपचार संयंत्र से निकला द्वितीयक बहिःस्रावः |
(ब) | 8 mg /L | नदी का जल |
(स) | 400 mg /L | अनुपचारित वाहितमल जल |
12. उस सूक्ष्मजीवी का नाम बताओ जिससे साइक्लोस्पोरिन ए (प्रतिरक्षा निषेधात्मक औषधि) तथा स्टैटिन (रक्त कोलिस्ट्रॉल लघुकरण कारक) को प्राप्त किया जाता है।
उत्तर: साइक्लोस्पोरिन-ए (प्रतिरक्षा निषेधात्मक औषधि) कवक ट्राइकोडर्मा पॉलीस्पोरम से प्राप्त की जाती है, जबकि स्टेटिन (रक्त कोलिस्ट्रॉल लघुकरण कारक) यीस्ट मोनॉस्कस परप्यूरीअस से प्राप्त की जाती है।
13. निम्नलिखित में सूक्ष्मजीवियों की भूमिका का पता लगाओ तथा अपने अध्यापक से इनके विषय में विचार विमर्श करें।
(क) एकल कोशिका प्रोटीन (एससीपी)।
उत्तर: एससीपी हानिरहित सूक्ष्मजीवी कोशिकाओं को संदर्भित करता है, जो प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोत के रूप में उपयोगी हैं। मशरूम (एक कवक) को भोजन और प्रोटीन स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
इसी तरह, स्पिरुलीना और मेथिलोफिलस मिथाइलोट्रॉफ़स जैसे सूक्ष्मजीवों को भी प्रोटीन, खनिज, वसा और विटामिन से भरपूर भोजन के रूप में औद्योगिक स्तर पर उगाया जाता है। इन्हें आलू के पौधों, पुआल, गुड़ और वाहितमल जैसी स्टार्च युक्त सामग्री पर पनपाया जाता है। ये सूक्ष्मजीवी पोषक तत्वों का समृद्ध स्रोत हैं और प्रोटीन की कमी को दूर करने में सहायक हो सकते हैं।
(ख) मृदा।
उत्तर: मृदा एक ऐसा निवास स्थल है जिसमें अनेक सूक्ष्मजीव और प्राणी पाए जाते हैं। यह पौधों को सहारा देने के साथ आवश्यक पोषक तत्व भी प्रदान करती है। राइजोस्फीयर सूक्ष्मजीव पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं। वे CO₂ और कार्बनिक अम्ल बनाकर अकार्बनिक पोषकों को घुलनशील बनाते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव वृद्धि को प्रोत्साहित करने वाले पदार्थ भी बनाते हैं। जीवाणु, कवक और सायनोबैक्टीरिया जैसे जैव उर्वरक मृदा की गुणवत्ता बढ़ाते हैं।
14. निम्नलिखित को घटते क्रम में मानव समाज कल्याण के प्रति उनके महत्त्व के अनुसार संयोजित करें; महत्त्वपूर्ण पदार्थ को पहले रखते हुए कारणों सहित अपना उत्तर लिखें।
बायोगैस, सिट्रिक एसिड, पैनीसिलिन तथा दही।
उत्तर: पैनीसिलिन > बायोगैस > दही > सिट्रिक एसिड।
(i) पैनीसिलिन एक एंटीबायोटिक है जो संक्रमण और बीमारियों के कारक रोगज़नक़ों को मारने में मदद करता है और इस प्रकार, यह जीवन बचाता है|
(ii) बायोगैस एक गैर-प्रदूषणकारी स्वच्छ ईंधन है जो वाहितमल उपचार के उत्पादन द्वारा उत्पन्न किया जाता है| यह ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में खाना बनाने और प्रकाश व्यवस्था के लिए प्रयोग किया जाता है|
(iii) साइट्रिक एसिड भोजन के परिरक्षक के रूप में प्रयोग किया जाता है|
(iv) साइट्रिक एसिड भोजन के परिरक्षक के रूप में प्रयोग किया जाता है|
15. जैव उवर्रक किस प्रकार से मृदा की उवर्रता को बढ़ाते हैं?
उत्तर: जैव उर्वरक ऐसे जीव हैं जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। इनके मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक और सायनोबैक्टीरिया होते हैं।
लैग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर स्थित राइजोबियम जीवाणु सहजीवी संबंध द्वारा ग्रंथियों का निर्माण करते हैं। ये जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं, जिससे पादप पोषण प्राप्त करते हैं। कुछ अन्य जीवाणु मुक्तावस्था में रहते हुए भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होते हैं, जिससे मृदा में नाइट्रोजन अवयव बढ़ जाते हैं।
कवक में ग्लोमस जीनस के कई सदस्य माइकोराइजा बनाते हैं, जो मृदा से फास्फोरस का अवशोषण कर पादपों में पहुंचाते हैं। इस सहजीवी संबंध से पादप में मूलवातोढ़ रोग के प्रति प्रतिरोधकता, लवणता और सूखे के प्रति सहनशीलता बढ़ती है।
सायनोबैक्टीरिया जैसे ऐनाबीना, नॉसटॉक और ऑसिलेटोरिया स्वपोषी सूक्ष्मजीव हैं, जो जलीय और स्थलीय वायुमंडल में पाए जाते हैं। ये वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर मृदा की उर्वरता में योगदान करते हैं।

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