NCERT Class 11 Sociology Samaj Ka Bodh Chapter 3 पर्यावरण और समाज

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NCERT Class 11 Sociology Samaj Ka Bodh Chapter 3 पर्यावरण और समाज

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Chapter: 3

समाज का बोध
अभ्यास

1. पारिस्थितिकी से आपका क्या अभिप्राय है? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर: पारिस्थितिकी (Ecology) प्रत्येक समाज का आधार होती है। ‘पारिस्थितिकी’ शब्द से अभिप्राय एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ घटित होती हैं और मनुष्य भी इसका एक अंग होता है। पर्वत तथा नदियाँ, मैदान तथा सागर और जीव-जंतु ये सब पारिस्थितिकी के अंग हैं। किसी स्थान की पारिस्थितिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमंडल की अंतः क्रियाओं का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, मरुस्थलीय प्रदेशों में रहने वाले जीव-जंतु अपने आपको वहाँ की परिस्थितियों के अनुरूप; जैसे-कम वर्षा, पथरीली अथवा रेतीली मिट्टी तथा अत्यधिक तापमान में अपने आपको ढाल लेते हैं। इसी प्रकार पारिस्थितिकीय कारक इस बात का निर्धारण करते हैं कि किसी स्थान विशेष पर लोग कैसे रहेंगे।

किंतु समय के साथ-साथ मनुष्य की क्रियाओं द्वारा पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। अगर ध्यानपूर्वक देखें तो हम पाएँगे कि पर्यावरण के प्राकृतिक कारक जैसे-अकाल या बाढ़ की स्थिति आदि की उत्पत्ति भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण होती है। नदियों के ऊपरी क्षेत्र में जंगलों की अंधाधुंध कटाई नदियों में बाढ़ की स्थिति को और बढ़ा देती है। पर्यावरण में मनुष्य के हस्तक्षेप का एक अन्य उदाहरण विश्वव्यापी तापमान वृद्धि के कारण जलवायु में आनेवाला परिवर्तन भी है। समय के साथ पारिस्थितिकीय परिवर्तन के लिए, कई बार प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों को अलग करना तथा उस में अंतर करना काफी कठिन होता है।

2. पारिस्थितिकी सिर्फ प्राकृतिक शाक्तियों तक ही सीमित क्यों नहीं है?

उत्तर: सामान्य अर्थों में पारिस्थितिकी को भौतिक या प्राकृतिक शक्तियों तक ही सीमित रखा जाता है। यह सही नहीं है। पारिस्थितिकी केवल प्राकृतिक शक्तियों तक सीमित न होकर प्राकृतिक एवं जैविक व्यवस्थाओं में अंत:संबंध पर बल देती है। क्योंकि मानवीय समाज पर पारिस्थितिकी का गहरा प्रभाव पड़ता है इसलिए इसे केवल प्राकृतिक शक्तियों तक सीमित करना उचित नहीं है। मनुष्य की क्रियाओं द्वारा पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। पर्यावरण के प्राकृतिक कारक; जैसे-अकाल या बाढ़ की स्थिति आदि की उत्पत्ति भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण होती है। व्यवसाय, भोजन, वस्त्र, आवास, धर्म, कला, आचार, विचार एवं इसी प्रकार के मानव निर्मित अनेक सांस्कृतिक निर्माण पारिस्थितिकी से ही प्रभावित होते हैं। किसी स्थान की पारिस्थितिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमंडल की अंत:क्रियाओं को भी प्रभाव पड़ता है।

3. उस दोहरी प्रक्रिया का वर्णन करें जिसके कारण सामाजिक पर्यावरण का उद्भव होता है?

उत्तर: सामाजिक पर्यावरण का उद्भव जैवभौतिक पारिस्थितिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की सिंधु-गंगा के बाढ़ के मैदान की उपजाऊ भूमि गहन कृषि के लिए उपयुक्त है। इसकी उच्च उत्पादक क्षमता के कारण यह घनी आबादी का क्षेत्र बन जाता है तथा अतिरिक्त उत्पादन और गैर कृषि क्रियाकलाप आगे चलकर जटिल अधिक्रमिक समाज तथा राज्य को जन्म देते हैं। ठीक इसके विपरीत, राजस्थान के मरुस्थल केवल पशुपालकों को ही सहारा देते हैं जो अपने पशुओं के चारे की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान तक भटकते रहते हैं। यह एक उदाहरण है कि किस प्रकार पारिस्थितिकी मनुष्य के जीवन तथा उसकी संस्कृति को आकार देती है। वहीं दूसरी तरफ पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने विश्वभर की प्रकृति को आकार दिया है। निजी परिवहन पूँजीवादी वस्तु का एक ऐसा उदाहरण है जिसने जीवन तथा भू-दृश्य को बदला है। शहरों में वायु प्रदूषण तथा भीड़भाड़, प्रादेशिक झगड़े, तेल के लिए युद्ध तथा विश्वव्यापी तापमान वृद्धि आदि पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों के कुछ एक उदाहरण हैं। बढ़ता हुआ मानवीय हस्तक्षेप पर्यावरण को पूरी तरह से बदलने में सक्षम है।

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4. सामाजिक संस्थाएँ कैसे तथा किस प्रकार से पर्यावरण तथा समाज के आपसी रिश्तों को आकार देती हैं?

उत्तर: सामाजिक संस्थाएँ तथा संगठन के द्वारा पर्यावरण तथा समाज के आपसी रिश्तों को आकार प्रदान किया जाता है। उदाहरणार्थ- यदि वनों पर सरकार का आधिपत्य है तो यह निर्णय लेने का अधिकार भी सरकार के पास होता है कि वह वनों को लकड़ी के किसी व्यापारी को पट्टे पर दे अथवा ग्रामीणों को वन उत्पादों को संग्रहीत करने का अधिकार दे। यदि भूमि तथा जल संसाधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व है तो मालिक ही यह निर्धारित करेंगे कि अन्य लोगों का किन नियमों एवं शर्तों के अंतर्गत इन संसाधनों के उपयोग का अधिकार होगा।

5. पर्यावरण व्यवस्था समाज के लिए एक महत्त्वपूर्ण तथा जटिल कार्य क्यों है?

उत्तर: पर्यावरण प्रबंधन हालाँकि एक कठिन कार्य है। हमारे पास इन जैव भौतिक प्रक्रियाओं के पूर्वानुमान तथा उसे रोकने के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। इसके साथ ही साथ पर्यावरण के साथ मनुष्य के संबंध और अधिक जटिल हो गए हैं। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर अत्यंत तीव्र गति से हो रहा है। जिसने पारिस्थितिकी तंत्र को कई तरह से प्रभावित किया है। जटिल औद्योगिक तकनीक तथा संगठन की व्यवस्थाओं के लिए बेहतरीन प्रबंधन व्यवस्था की जरूरत होती है जो अधिकांशतः गलतियों के प्रति कमजोर तथा सुभेद्य होते हैं। आज हम जोखिम भरे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसी तकनीकों तथा वस्तुओं का हम प्रयोग करते हैं जिसके बारे में हमें पूरी समझ नहीं है। नाभिकीय विपदा; जैसे-चेरनोबिल, भोपाल की औद्योगिक दुर्घटना, योरोप में फैली ‘मैड काऊ’ बीमारी, औद्योगिक पर्यावरण में होने वाले खतरों को दिखाते हैं।

6. प्रदूषण संबंधित प्राकृतिक विपदाओं के मुख्य रूप कौन-कौन से है?

उत्तर: प्रदूषण संबंधित प्राकृतिक विपदाओं के कई मुख्य रूप हैं‌। भूमि में से लगातार पानी निकलने से अकाल तथा सूखे की स्थिति आ सकती है। भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, बाढ़ अथवा ज्वारभाटीय लहरें (जैसे सुनामी लहरें) इत्यादि प्राकृतिक विपदाएँ समाज को पूर्ण रूप से बदलकर रख देती हैं। यह बदलाव, अपरिवर्तनीय अर्थात् स्थायी होते हैं तथा चीजों को वापस अपनी पूर्वावस्था में नहीं आने देते। साथ ही, प्रदूषण से संबंधित अनेक प्राकृतिक विपदाओं के उदाहरण आज हमारे सामने हैं। इन सब में वायु प्रदूषण से संबंधित विपदाएँ; जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण की तुलना में कहीं अधिक हुई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2012 में करीब 70 लाख लोगों की मृत्यु का कारण वायु प्रदूषण था। 3 दिसम्बर, 1984 ई० की रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट नामक गैस के रिसाव से 4,000 लोगों की मृत्यु हो गई तथा 2,00,000 व्यक्ति हमेशा के लिए अपंग हो गए। इस प्रकार की दुर्घटना रोकने हेतु इस फैक्ट्री में कंप्यूटरीकृत अग्रिम चेतावनी व्यवस्था नहीं थी जो अमेरिका स्थित इसी कंपनी के प्रत्येक प्लांट का एक अनिवार्य हिस्सा है।

7. संसाधनों की क्षीणता से संबंधित पर्यावरण के प्रमुख मुद्दे कौन-कौन से हैं?

उत्तर: अस्वीकृत प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करना पर्यावरण की एक गंभीर समस्या है। वैसे तो आए दिन जैव ऊर्जा मुख्यतः पेट्रोलियम की कमी ही समाचार पत्रों में दिखाई देती है लेकिन ध्यानपूर्वक देखा जाए तो पानी तथा भूमि में क्षीणता बहुत तेज गति से आ रही है या यूँ कहें कि वे समाप्ति के कगार की तरफ तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। भूजल के स्तर में लगातार कमी वैसे तो पूरे भारत में है परन्तु मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में स्पष्ट देखी जा सकती है। जहाँ पानी हजारों लाखों साल से लगातार जमा होता रहा है, कुछ ही दशकों में कृषि, उद्योग तथा शहरी केंद्रों की बढ़ती माँगों के कारण खत्म होता जा रहा है। नदियों के बहाव को मोड़े जाने के कारण जल बेसिन को जो क्षति पहुँची है उसकी भरपाई नहीं हो सकती। शहरों के जलाशय भर दिए गए हैं। और वहाँ निर्माण कार्य होने के कारण प्राकृतिक निकासी के साधनों को नष्ट किया जा रहा है।

8. पर्यावरण की समस्याएँ सामाजिक समस्याएँ भी हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: पर्यावरण से संबंधित अनेक सामाजिक समस्याएँ हैं। इससे जनता का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। मनुष्य अपने निजी मतलब के लिए पर्यावरण को काफी समय से प्रदूषित करता आ रहा है। मनुष्य के इन कामों के कारण ही प्रकृति विनाश की तरफ बढ़ रही है तथा मनुष्य को कई प्रकार की पर्यावरण से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आर्सेनिक कैंसर, टाइफाइड, हैजा एवं पीलिया जैसी बीमारियाँ प्रदूषित जल से फैलती हैं तथा गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर देती हैं। वायुमंडलीय प्रदूषण से विश्व तापमान में वृद्धि हो रही है। मृदा का कटाव होने से उपज कम हो जाती हैं जिससे महँगाई बढ़ती है तथा निर्धन लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ होने लगते हैं। ध्वनि प्रदूषण न केवल सिरदर्द अपितु बेचैनी बढ़ने, हृदय की गति तीव्र होने, ब्लड प्रेशर बढ़ने आदि अनेक अन्य बीमारियों के लिए भी उत्तरदायी है। प्रदूषण स्वस्थ शरीर में रोग निवारक शक्ति को कम करता है। प्रदूषण का जीवन-प्रक्रम तथा मानवीय गतिविधियों पर काफी प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक प्रदूषण शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है जिससे बच्चों का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण फसलें भी नष्ट हो जाती हैं। जलीय जीवों के नष्ट हो जाने से खाद्य पदार्थों की हानि होती है।

9. समाजिक पारिस्थितिकी से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: सामाजिक पारिस्थितिकी यह स्पष्ट करती है कि समाज के भीतर मौजूद आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक संबंध पर्यावरणीय सोच और प्रयासों को प्रभावित करते हैं। पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए विकसित सामाजिक पारिस्थितिकी इस बात पर जोर देती है कि पर्यावरणीय प्रबंधन को सामाजिक प्रभावों के संदर्भ में देखा जाए। समाज के विभिन्न वर्ग पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को अपने-अपने दृष्टिकोण से समझते और परिभाषित करते हैं। उदाहरण के लिए, वन विभाग अधिक राजस्व प्राप्त करने के उद्देश्य से बाँस का बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है, जबकि एक कारीगर के लिए बाँस उसके हस्तशिल्प और जीविका का साधन है। यद्यपि दोनों ही बाँस से जुड़े हैं, फिर भी उनके दृष्टिकोण भिन्न हैं। इसी प्रकार, अलग-अलग सामाजिक वर्गों और हितों के कारण पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर मतभेद उत्पन्न होते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो पर्यावरणीय संकट की जड़ें सामाजिक असमानताओं में निहित हैं।

वास्तव में, आज के अधिकतर पर्यावरणीय संकट सामाजिक असमानताओं और समस्याओं से जुड़े हैं। आर्थिक, नृजातीय, सांस्कृतिक, लैंगिक तथा अन्य सामाजिक विभाजन पर्यावरणीय व्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं। अतः पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का समाधान केवल तकनीकी उपायों से संभव नहीं, बल्कि इसके लिए समाज और पर्यावरण के आपसी संबंधों में व्यापक बदलाव आवश्यक है।

10. पर्यावरण संबंधित कुछ विवादास्पद मुद्दे जिनके बारे में आपने पढ़ा या सुना हो उनका वर्णन कीजिए। (अध्याय के अतिरिक्त)

उत्तर: पर्यावरण से जुड़े कई मुद्दे विवादास्पद बने हुए हैं। वास्तव में, मनुष्य और प्रकृति के बीच का संबंध तथा मानव गतिविधियों के कारण प्रकृति पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव, जो अब तक उपेक्षित रहे थे, आज वैश्विक चिंता के मुख्य विषय बन गए हैं। पर्यावरणीय राजनीति और आंदोलनों का बढ़ता प्रभाव इसी चिंता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। पूर्व-औद्योगिक समाजों में प्राकृतिक आपदाओं को अनिवार्य घटनाएँ माना जाता था, जिन्हें मानवीय हस्तक्षेप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। लेकिन औद्योगिक समाजों में जोखिम की प्रकृति बदल गई है। अब कार्यस्थलों पर होने वाली दुर्घटनाएँ, औद्योगिक जोखिम और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ मानव-निर्मित नीतियों और विकास मॉडल से जुड़ी हुई हैं, न कि केवल प्रकृति की देन।

26 अप्रैल 1986 को बेलारूस की सीमा से 12 किलोमीटर दूर चेरनोबिल परमाणु संयंत्र की एक इकाई में भयावह दुर्घटना हुई, जिसे परमाणु ऊर्जा के इतिहास की सबसे गंभीर आपदाओं में गिना जाता है। रिएक्टर में हुए विस्फोट के कारण भारी मात्रा में रेडियोधर्मी पदार्थ वातावरण में फैल गया, जिससे बेलारूस के 23% क्षेत्र और यूक्रेन के 4.8% भाग पर गंभीर प्रभाव पड़ा। इस क्षेत्र में लाखों लोग प्रभावित हुए, और उनके स्वास्थ्य तथा जीवन पर दीर्घकालिक प्रतिकूल असर पड़ा। पर्यावरण से जुड़ा एक अन्य प्रमुख विवादास्पद मुद्दा पारिस्थितिकीय आंदोलनों का है। ये आंदोलन आधुनिक विकास के उन पहलुओं को चुनौती देते हैं, जिन्हें अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा है। साथ ही, ये हमें प्रकृति और मनुष्यों के बीच मौजूद जटिल एवं सूक्ष्म संबंधों के प्रति अधिक संवेदनशील बनने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि भविष्य में पर्यावरणीय आपदाओं को रोका जा सके और एक संतुलित विकास मॉडल अपनाया जा सके।

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