Class 9 Ambar Bhag 1 Chapter 17 वैचित्र्यमय असम

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Class 9 Hindi (MIL) Ambar Bhag 1 Chapter 17 वैचित्र्यमय असम

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आहोम

पाठ – 17

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. आहोम लोग पहले किस जाति के थे? 

उत्तरः ताई।

2. आहोम लोगों का मूल निवास स्थान कहाँ था?

उत्तरः चीन देश के दक्षिण–पशचम अंचल, वर्तमान यूनान के मूंगमाउ राज्य में था।

3. आहोम लोगों ने कितने सालों तक असम पर शासन किया? 

उत्तरः 600 सालों तक।

4. आहोम लोगों की मूल भाषा क्या थी?

उत्तरः ताई या शान थी।

5. आहोम लोगों के कुछ उत्सवों के नाम लिखो?

उत्तरः मे–दाम–मे–फी, उमफा, साइफा, रिकखम, जासिंगफा, लाईलौगखाम आदि।

6. संक्षेप में टिप्पणी लिखो:

(क) लाचित बरफुकन।

उत्तरः लाचित बोड़फुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। लाचित बरफुकन आहोम साम्राज्य के एक सेनापति और बरफूकन थे, जो कि सन 1671 में हुई सराईघाट की लड़ाई में अपनी नेतृत्व-क्षमता के लिए जाने जाते हैं, जिसमें असम पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए रामसिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुग़ल सेनाओं का प्रयास विफल कर दिया गया था।

लाचित और उनकी सेना द्वारा पराजित होने के बाद, मुगल सेना ब्रह्मपुत्र नदी के रास्ते ढाका से असम की ओर चलीं और गुवाहाटी की ओर बढ़ने लगीं। रामसिंह के नेतृत्व वाली मुग़ल सेना में 30,000 पैदल सैनिक, 15,000 तीरंदाज़, 18,000 तुर्की घुड़सवार, 5,000 बंदूकची और 1,000 से अधिक तोपों के अलावा नौकाओं का विशाल बेड़ा था।

लड़ाई के पहले चरण में मुग़ल सेनापति राम सिंह असमिया सेना के विरुद्ध कोई भी सफलता पाने में विफल रहा। रामसिंह के एक पत्र के साथ अहोम शिविर की ओर एक तीर छोड़ा गया, जिसमें लिखा था कि लाचित को एक लाख रूपये दिये गये थे और इसलिए उसे गुवाहाटी छोड़कर चला जाना चाहिए। यह पत्र अंततः अहोम राजा चक्रध्वज सिंह के पास पहुंचा। यद्यपि राजा को लाचित की निष्ठा और देशभक्ति पर संदेह होने लगा था, लेकिन उनके प्रधानमंत्री अतन बुड़गोहेन ने राजा को समझाया कि यह लाचित के विरुद्ध एक चाल है।

सराईघाट की लड़ाई के अंतिम चरण में, जब मुगलों ने सराईघाट में नदी से आक्रमण किया, तो असमिया सैनिक लड़ने की इच्छा खोने लगे. कुछ सैनिक पीछे हट गए। यद्यपि लाचित गंभीर रूप से बीमार थे, फिर भी वे एक नाव में सवार हुए और सात नावों के साथ मुग़ल बेड़े की ओर बढे। उन्होंने सैनिकों से कहा, “यदि आप भागना चाहते हैं, तो भाग जाएं। महाराज ने मुझे एक कार्य सौंपा है और मैं इसे अच्छी तरह पूरा करूंगा। मुग़लों को मुझे बंदी बनाकर ले जाने दीजिए। आप महाराज को सूचित कीजिएगा कि उनके सेनाध्यक्ष ने उनके आदेश का पालन करते हुए अच्छी तरह युद्ध किया। उनके सैनिक लामबंद हो गए और ब्रह्मपुत्र नदी में एक भीषण युद्ध हुआ।

(ख) सती जयमती।

उत्तरः जयमती कुँवरी असम के राजकुमार गदापाणि की पत्नी थीं। पति और देश के लिये अपना जीवन त्याग करने वाली जयमती असम की एक उल्लेखनीय चरित्र हैं। इनके ही चरित्र को केन्द्र में रखकर ज्योतिप्रसाद आगरवाला ने १९३५ ई में ‘जयमती’ नामक प्रथम असमिया चलचित्र बनाया था। सन २००६ में पुनः मञ्जु बरा के निर्देशन में ‘जयमती’ नाम से ही एक और फिल्म बनी। कुछ इतिहासकार जयमती के अस्तित्व को लेकर सन्देह प्रकट करते हैं।

गदापाणि और जयमती के पुत्र रुद्र सिंह ने उस स्थान पर ‘जयसागर’ नम क तालाब निर्मित कराया जहाँ जयमती को प्रताड़ित करके मारा गया था। जिस जगह पर राजा ने जॉयमती को प्रताड़ना दी थी, वहां पर इस समय जॉयसागर नाम से एक तालाब बना है। यह अहोम राजाओं की तरफ से बनवाए गए सभी तालाबों में सबसे बड़ा है। दो किलोमीटर लंबी पाइपलाइन से कभी शाही महल में पानी की सप्‍लाई की जाती थी।

(ग) टेंगाई महन।

उत्तर: पंडित टेंगाई महन का जन्म सन् 1715 में चराईदेउ के महंग माइसेऊ परिवार के तकन्वरी के घर में हुआ था। टेंगाई महन को असम का प्रथम शब्दकोश प्रणेता माना जाता है। आहोम भाषा की पुस्तकों का अनुवाद करने के लिए अंग्रेजी अधिकारी भी उनको विदेश ले गए थे। इस महान शब्दकोशकार का देहांत सन् 1823 में डिब्रुगढ़ जिले के खुवांग में हुआ।

आहोम शासन के अंत समय में बुद्धिजीवियों को संकटों का सामना करना पड़ा था। इसकी वजह से आहोम दरबार में आहोम भाषा के स्थान पर असमीया भाषा का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था और आहोम भाषा धीरे–धीरे उपेक्षित होने लगी थी। ऐसे में बुद्धिजीवियों को आहोम भाषा को लेकर चिंता होने लगी कि कहीं आहोम भाषा पूरी तरह से लुप्त न हो जाए। इसी कारण भविष्य की पीढ़ी आहोम भाषा सीख सके इसके लिए उन्होंने आहोम शब्दकोश रचने का काम हाथों में लिया। सन् 1795 में गौरी नाथ सिंह के शासन के अंतिम हिस्से में उन्होंने ‘बड़काकत ह मूंग पूथी’ नामक इस शब्दकोश की रचना की। इसमें प्रत्येक आहोम शब्द के सामने सम्भावित असमीया अर्थ दिए गए हैं। सन् 1912 में कोच बिहार के कैलाश चंद्र सेन नामक एक बाबू से हेमचंद्र गोस्वामी ने टेंगाई महन के लिखे बड़काकत हू मूंग ग्रंथ का उद्धार किया और इतिहास एवं पुरातत्व विभाग को सौंप दिया। सन् 1932 में नंदनाथ फुकन ने इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए सम्पादन का कार्य शुरू किया। महन के ग्रंथ का संपादित रूप असम इतिहास और पुरातत्व विभाग द्वारा 1964 में प्रकाशित आहोम लेक्सिकन का एक भाग है।

(घ) पंडित प्रवर डंबरूधर देऊधाई फुकन।

उत्तरः पंडित प्रवर डंबरूधर देऊधाई फुकन का जन्म अक्टूबर, 1912 में एक शुभ क्षण में चराईदेऊ महकमा के अन्तर्गत खालैघोगूरा मौजा के अन्तर्गत आखैया देऊधाई गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम गंगाराम फुकन और माता का नाम सादई फुकन था। 

डंबरूधर देऊधाई फुकन ने एम. वी. स्कूल की पढ़ाई करने के बाद आगे की पढ़ाई न करते हुए ताई भाषा–संस्कृति का अध्ययन करना शुरू किया। घर में रहकर खेतीबारी करते हुए ताई भाषा का अध्ययन करते समय असम इतिहास और पुरातत्त्व विभाग के प्रमुख डॉ. सूर्यकुमार भूइयाँ सन् 1931 में भाषा के विशेषज्ञ के तौर पर उनको आहोम इतिहास का अनुवाद करने के लिए गुवाहाटी लेकर गए। 4 वर्ष तक कार्य करने के पशचात् अवकाश लेकर 1935 में वे घर लौट आये। 1964 में ताई भाषा संस्कृति के उद्धार के लिए उन्होंने लकड़ी, बाँस से एक विद्यालय का निर्माण करवाया।यही बाद में केन्द्रीय ताई अकादमी, पारसको बना। 

(ङ) पदमनाथ गोहाईं बरुवा।

उत्तरः पदमनाथ गोहाईं बरुवा का जन्म 24 अक्टूबर, 1871 को उत्तर लखीमपुर के नकारिगाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम घिणाराम और माता का नाम लक्ष्मी देवी था। उन्होंने उत्तर लखीमपुर से छात्रवृत्ति परीक्षा में उत्तीर्ण होकर शिवसागर हाईस्कूल में दाखिला लिया। किन्तु बाद में कोहिमा हाईस्कूल से एंट्रस परीक्षा उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा हेतु वे कोलकाता गये और वहाँ से कानून की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि कई विधाओं में लेखनी चलाकर अपना अहम् योगदान दिया। उनके द्वारा रचित काव्य संकलनों में जुरणि, लोला, फूलर चानेको आदि शामिल हैं तथा इतिहास प्रसिद्ध नाटकों में जयमती, गदाधर, साधना, लाचित बरफुकन आदि एवं प्रहसन नाटकों में गाँवबूढ़ा, टेटोन तामुली, भूत ने भ्रम आदि प्रख्यात है। वे असम के शिवसागर जिले में हुए असम साहित्य सभा के प्रथम अधिवेशन 1917 के अध्यक्ष भी रहे। ऐसे महान साहित्यकार की मृत्यु 7 अप्रैल, 1946 को हुई।

(च) कृष्णकांत संदिकै।

उत्तरः कृष्णकांत हांदिकी असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना कृष्णकांत हांदिकी रचना संभार के लिये उन्हें सन् 1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया।

कृष्णकांत संदिकै का जन्म सन् 1898 में जोरहाट जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम राधाकांत संदिकै तथा माता का नाम नारायणी संदिकै था। उन्होंने जोरहाट सरकारी हाईस्कूल से प्रथम विभाग में एंट्रेस परीक्षा पास कर कॉटन कॉलेज में दाखिला लिया। कृष्णकांत संदिकै संस्कृत भाषा के पंडित थे। उन्होंने श्रीहर्ष रचित नैषध चरित का अंग्रेजी अनुवाद तथा टीका संबंधी पुस्तक ‘निषेध चरित’ (1934), सोमदेव द्वारा रचित यशगान संबंधी पुस्तक’ यशस्तिलक एंड इंडियन कल्चर’ (1949) का अनुवाद किया। सन् 1951 में उन्होंने भारतीय प्राच्यविद्या सम्मिलन के लखनऊ अधिवेशन को अध्यक्षता की। उनकी रुचि असमीया भाषा साहित्य में भी पर्याप्त थी, इसीलिए वे समय–समय पर बाँही, मिलन, आवाहन, चेतना आदि पत्र – पत्रिकाओं में लिखते रहे।

कछार की जनगोष्ठियाँ:

पाठयपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. नृतत्वविदों ने बराक घाटी को क्या कह कर संबोधित किया है? 

उत्तरः एंथ्रोपोलॉजिकल गार्डन (Anthropological garden) यानी ‘नृतत्व का बगीचा’ कह कर संबोधित किया है।

2. बराक घाटी में रहने वाली विभिन्न जनगोष्ठियों के नाम क्या–क्या हैं? 

उत्तर: मणिपुरी, मणिपुरी विष्णुप्रिया, बंगीय समाज, भोजपुरी, असमीया, राजवंशी, राजस्थानी, बर्मन (डिमासा), रंगमाई नगा आदि।

3. बराक घाटी के लोगों की मुख्य जीविका क्या है? 

उत्तरः खेती–बारी, व्यवसाय और नौकरी है।

4. द बैकग्राउंड ऑफ असामीज कल्चर (The Background of Assamese Culture) पुस्तक की रचना किसने की थी?

उत्तर: राज मोहन नाथ।

5. हैदराबाद में आयोजित संतोष ट्रॉफी फुटबॉल प्रतियोगिता में असम फुटबॉल टीम के मैनेजर कौन थे? 

उत्तर: सुनील मोहन।

6. संक्षिप्त टिप्पणी लिखो:

(क) राजमोहन नाथ।

उत्तरः राजमोहन नाथ बचपन से हो उन्हें इतिहास के अध्ययन में अत्यंत रूचि थी। इस बात का प्रमाण उनका उल्लेखनीय ग्रंथ है ‘द बैकग्राउंड ऑफ असामीज कल्चर’ (The Background of Assamese Culture)। उनके इस ग्रंथ का प्रकाशन सन् 1948 में हुआ था। सन् 1958 में तिनसुकिया में असम साहित्य सभा का तेरहवाँ अधिवेशन हुआ था, जिसमें राजमोहन नाथ इतिहास शाखा के अध्यक्ष थे।

(ख) कमालुद्दीन अहमद।

उत्तर: कमालुद्दीन अहमद करीमगंज कॉलेज के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष थे। उनके द्वारा सम्पादित साहित्यिक–पत्र का नाम ‘दिग्वलय’ था। उन्होंने उपन्यास, शोध पत्र आदि के अतिरिक्त अन्य रचनात्मक साहित्य की भी रचना की थी। उन्होंने असम के शिल्प और स्थापत्य के संबंध में पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम ‘द आर्ट एंड आर्किटेक्चर ऑफ असम’ (1994) (The Art and Architecture of Assam (1994) था। 

(ग) नन्दलाल बर्मन।

उत्तर: बर्मन समाज के राजमंत्री वंश के नंदलाल बर्मन एक प्रसिद्ध समाज सेवक थे। वर्मन समाज के लोग उन्हें आदर के साथ ‘मिलाउ’ तथा अन्य समाज के लोग ‘महाजन’ कह कर संबोधित करते थे। ग्रामीण विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए कछार जिले के बरखोला में सन् 1901 में एक स्कूल की स्थापना की थी। इस प्रकार नंदलाल बर्मन ने बराक घाटी के लोगों के विकास के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

(घ) नलिनींद्र कुमार बर्मन।

उत्तरः नलिनींद्र कुमार बर्मन एक शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने सन् 1930 में दीमा हसाओ जिले के सदर हाफलांग मिशन स्कूल से शिक्षक की नौकरी शुरू की थी। उन्होंने डिमासा जाति की विरासत और परम्परा के संबंधित कई किताबों की रचना भी की थी। इससे संबंधित उनको एक कृति का नाम The Queen of Cachar or Herambo and History of the Cacharis है। उन्होंने कीर्तन पदावली के एक संकलन के रूप में प्रकाशित किया था। उस पुस्तक का नाम है ‘हैडिंबराज गोविंदा चंद्र कृत हिन्दू शास्त्रीय श्राद्धादि कीर्तन गीतिका’। 

(ङ) इरुंगवम चंद्र सिंह।

उत्तर: इरुंगबम चंद्र सिंह प्रथम मणिपुरी समाज के अर्थशास्त्र विज्ञान के पाण्मासिक स्नातक थे। ग्रामीण विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए उन्होंने कई सार्थक कदम उठाए थे। गरीब विद्यार्थियों की मदद करने के लिए उन्होंने एक स्कूल की स्थापन की थी। स्कूल का वर्तमान नाम ‘खेलम हाईस्कूल’ है। इस प्रकार उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने समाज व देशहित के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये। 

(च) बिपिन सिंह।

उत्तर: विपिन सिंह नृत्य कला के क्षेत्र में अविस्मरणीय व्यक्तित्व हैं। बिपिन सिंह को सन् 1966 में ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ प्रदान किया गया था। परवर्ती समय में उनको मध्य प्रदेश सरकार का ‘कालिदास सम्मान’ भी मिला था। उन्होंने कोलकाता में ‘मणिपुरी नर्तनालय’ नामक एक नृत्य कला शिक्षण संस्थान की भी स्थापना की थी। उन्होंने नृत्य कला के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कार्बी

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. कार्बी लोगों को असम का कोलंबस किसने कहा था? 

उत्तरः विष्णुप्रसाद राभा ने।

2. कार्बी पारंपरिक वेशभूषा के बारे में लिखिए?

उत्तर: पुरुषों के वस्त्रों को घुटनों तक पे सेलेंग, सई हंगथर, सई इक, सई लक्, पहो आदि कहते हैं। स्त्रियों के वस्त्र हैं–पीनी, पेकक और वांकक । इसके अलावा पे सेलेंग, पे खंजारी, पे सारपी आदि प्रमुख वस्त्र भी होते हैं।

3. कार्वी उत्सव–पर्व के बारे में लिखो? 

उत्तर: पेंग हेम्फू, रंगकेर, सजून आदि कार्बी उत्सव–पर्व में प्रमुख हैं। पेंग हेम्फू साल की शुरुआत में ही यह उत्सव होता है; ताकि साल भर कोई अमंगल न हो। इसे घरेलू उत्सव कहा जाता है। सजून उत्सव हर साल नहीं मनाया जाता, 4, 5 या 9 साल के अंतराल पर मनाया जाता है। रंगकेर उत्सव को गाँव का उत्सव कहा जाता है। पूजा की मूल वेदी पर पंछी, बकरी, अंडे आदि समर्पित कर देवता की पूजा की जाती है। इसे साल के आरम्भ में मनाया जाता है।

4. कार्बी लोगों के मूल गुट क्या–क्या है?

उत्तरः कार्बी लोगों के मूल गुट तिमूंग, टेरन, टेरांग, इंग्ही, इंग्ती  है।

5. कार्बी महिलाओं द्वारा परिधान किए गए कुछ वस्त्रों और अलंकारों के नाम लिखिए?

उत्तर: वस्त्रों में पोनी, पेकक और वांकक प्रमुख हैं तथा अलंकारों में लेक हिकी, नर्थेरपी, नलांगपंग, नजांगसाई, लेक रुवे आदि प्रमुख हैं।

6. संक्षिप्त में टिप्पणी लिखिए:

(क) सेमसनसिंग इंग्ली।

उत्तर: सेमसनसिंग इंग्ती का जन्म 8 फरवरी, 1910 को पश्चिम कार्बी आंग्लांग के टीका पहाड़ नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम थेंकुरसिंग इंग्ती और माता का नाम रूथ माधवी (काजीर तीमूंग्पी) था। 

उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा सन् 1916 में गोलाघाट के मिशन स्कूल से प्रारम्भ कर 1928 में गोलाघाट बेजबरुवा हाईस्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1933 में सिलहट के मुरीरचंद कॉलेज से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर कार्बी समाज के प्रथम स्नातक बन गए। उन्होंने कार्बी समाज को शिक्षा प्रदान करने हेतु अनेक प्रकार के पाठ्य–पुस्तकों की रचना की, जिसमें ‘बिट्स अकिताप’, ‘कालाखा अकिताप’, ‘टेमपुरु और वपी’ आदि उल्लेखनीय है। सन् 1934 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नगांव जिले के शिक्षा विभाग में उप–निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया।

(ख) सामसिंग हांसे।

उत्तरः सामसिंग हांसे का जन्म 18 अप्रैल, 1948 को नगांव जिले के सरुबाट के अन्तर्गत पंडितघाट गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम जयसिंग हांसे और माता का नाम काएट टेरनपी था। 

उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा टीका मध्य अंग्रेजी विद्यालय से प्रारंभ कर 1967 में बैठालांग्स उच्च अंग्रेजी विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1973 में उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की।

उन्होंने असमीया भाषा में कई पुस्तकों की रचना की है, उनमें ताई हाईमू, कार्बी प्रणय गीत साबिन आलून, कुमलिन, कार्बी कविता आदि प्रमुख हैं। सन् 1985 में विधानसभा चुनाव में डिफू सीट से विजयी होकर कैबिनेट मंत्री बने। सामसिंग हांसे का 13 जनवरी, 1998 को देहांत हो गया।

(ग) बंगलंग तेरांग।

उत्तरः बंगलंग तेरांग का जन्म 10 अक्टूबर, 1909 को दिलाई नदी के किनारे निहांगलांग्सों नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम सार तेरांग तथा माता का नाम कारेंग तिस्सपी था। 

सर्वप्रथम उन्होंने ही कार्बी साहित्य को लिखित रूप प्रदान किया था। उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों की रचना की, जिनमें वर्ड बुक (Word Book), आदाम आसार (विवाह नियम), रुकासेन, हाईमू, कार्बी कपूसन, कार्बी सरंगजे, रंगलीन आदि उल्लेखनीय हैं। सन् 1973 में कार्बी साहित्य सभा ने उन्हें कार्बी साहित्य के पुरोधा व्यक्ति के रूप में पुरस्कृत किया तथा असम सरकार ने उन्हें एक सौ रुपए की वित्तीय मदद के साथ ही साहित्यिक पेंशन भी प्रदान किया। बंगलंग तेरांग का अन्त 17 जुलाई, 2001 को हो गया।

(घ) लंकाम तेरन।

उत्तर: लंकाम तेरन का जन्म सन् 1932 में हुआ था। उनके पिता का नाम डिप्लू तेरन और माता का नाम कासाई हसिपी था। कासे रंगहांग्पी के साथ उनका विवाह हुआ। 

वे कार्बी साहित्य के संस्थापक तथा अध्यक्ष थे तथा 1986 में उन्हें असम साहित्य सभा का उपाध्यक्ष भी बनाया गया। उनके द्वारा लिखित पुस्तकों में रंग केसेंग, तामाहीदी, किताब किमी, कार्बो लामकुरु, कार्बी जनगोष्ठी आदि उल्लेखनीय हैं। उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का लेखन, संकलन और अनुवाद किया था। 

कोच–राजवंशी

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. कोच–राजवंशी लोगों का धर्म क्या है? 

उत्तर: हिंदू।

2. कोच–राजवंशी लोगों की भाषा और संस्कृति के बारे में लिखिए। 

उत्तर: कोच–राजवंशी लोगों की भाषा के शब्द–भंडार, शब्द–रूप, सर्वनाम, उच्चारण भंगिमा, वाक्य संरचना, मौखिक व लिखित साहित्य की एक अलग पहचान है।

कोच–राजवंशी लोग हिंदू धर्म अपनाने के बावजूद उनका धार्मिक विश्वास, पूजा विधि, संस्कार परंपरा, खान–पान, पोशाक परिधान अलग है। 

3. कोच–राजवंशी लोगों के भोजन और वेशभूषा के बारे में लिखिए?

उत्तर: कोच–राजवंशी लोग पारंपरिक तौर पर सेका, पेलका, भेलका, सिदल, सुट्का, तोपला भात आदि खाते हैं। कोच–राजवंशी जाति के पुरुष धोती–कुर्ता और रंगीन मफलर या गमछा लेते हैं जबकि महिलाएँ पाटानी, बुकुनी, फोटा, सेउता का व्यवहार करती हैं।

4. कोच–राजवंशी लोगों के गीत–संगीत क्या–क्या हैं?

उत्तर: भवाईया गान, विभिन्न पूजा के गीत, रावण गान, कुषाण गान, दोतारा गान, बिषहरी पूजा का गान, मारी पूजा का गान, तुक्खा गान, लाहांकरी गान, नटुवा, सांगी ढाक का गान, डाक नाम, जाग गान आदि।

5. संक्षेप में टिप्पणी लिखिए–

(क) जन नेता शरतचंद्र सिंह।

उत्तरः जननेता शरतचंद्र सिंह का जन्म 1 जनवरी, 1914 को हुआ था। इनके पिता का नाम लालसिंग सिंह और माता का नाम आयासिनी सिंह था। जननेता शरतचंद्र सिंह असम के मुख्यमंत्री थे। वे सन् 1972 से 1978 तक असम के मुख्यमंत्री रहे। मुख्यमंत्री रहते समय उन्होंने विकास की कई योजनाएँ शुरू की थीं, जैसे – आपातकालीन रबी फसल योजना, गांव पंचायत सहकारी समिति, कृषि निगम, आकलन पत्र योजना, निगरानी कोष योजना, शैक्षिक संस्थान सुधार योजना, शिलांग से दिसपुर तक अस्थायी राजधानी का स्थानांतरण आदि। जनता की सेवा करना ही शरतचंद्र सिंह के जीवन का संकल्प था। वे महात्मा गाँधी के आदर्श से अनुप्रेरित थे। सरल जीवन उच्च विचार उनका आदर्श था। इनकी मृत्यु 24 दिसंबर, 2005 को हुई।

(ख) अंबिका चरण चौधरी।

उत्तरः 16 अगस्त 1930 को बोंगाईगांव के बोरपारा गांव में एक गरीब परिवार, नरेश्वर चौधरी (पिता) और काशीगुरी देवी (मां) के घर जन्मे अंबिका चरण चौधरी ने स्थानीय बिरझारा हाई स्कूल, बोंगाईगांव में स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कॉटन कॉलेज, गुवाहाटी से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद वह शिलांग में सरकारी सेवाओं में शामिल हो गये। बाद में उन्होंने कई नौकरियाँ बदलीं और अंततः बोंगाईगांव नॉर्मल स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में सेवानिवृत्त हुए।

अंबिका चौधरी ने अपनी प्रमुख साहित्यिक यात्रा 1961 में लिखी पुस्तक रत्नपीठोट एभूमिकी के माध्यम से शुरू की। उन्होंने गुवाहाटी से प्रकाशित रामधेनु पत्रिका में नियमित रूप से कॉलम लिखे। उन्होंने 123 से अधिक मूल्यवान लेख और 29 पुस्तकें लिखीं, जिनमें से अधिकांश राजबंग्शी भाषा और संस्कृति पर थीं। कोच-राजबंशी जतिर इतिहाख अरु संस्कृति, कामतापुरोत मोहपुरुष श्रीमंत शंकरदेव, ज़ांतिरदुत हज़रत मोहम्मद, द कोचेस अराउंड द वर्ल्ड, कोच-राजबंशीज़ ने धोखा दिया, बिश्वबीर चिला रॉय साहित्य प्रतिभा, रानी अभयेश्वरी और बिजनी राजयार इतिब्रिट्टा असमिया और अंग्रेजी में लिखी गई उनकी कुछ उल्लेखनीय पुस्तकें हैं।

चौधरी असम सरकार द्वारा स्थापित बीर चिलाराय पुरस्कार के प्राप्तकर्ता थे। उन्हें कोच-राजबंशी भाषा आंदोलन की रीढ़ माना जाता था और कई सांस्कृतिक और साहित्यिक संगठनों द्वारा उन्हें कामरत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

(ग) अरुण कुमार राय।

उत्तर: अरुण कुमार राय का जन्म 8 अक्टूबर, 1925 को हुआ। उनका निवास बंगाईगाँव के सीपन सीला गाँव में था। उनके पिता का नाम प्रकाश चंद्र राय और माता का नाम अभयेश्वरी राय था। 

अरुण कुमार राय किसान आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े थे। वे आजीवन कोच–राजवंशी जनजाति की भाषा – साहित्य – संस्कृति की उन्नति के लिए काम करते रहे। उन्होंने नाटक, कविता और शब्दकोश भी लिखे। उनकी कुल 10 पुस्तकें प्रकाशित हैं। कोच–राजवंशी साहित्य सभा ने उन्हें मरणोपरांत ‘साहित्य रत्न’ का सम्मान प्रदान किया। 

(घ) रुक्मिणी कांत राय।

उत्तर: साधारण परिवार में जन्मे रुक्मिणी कांत राय विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर वे जीवन में सफलता हासिल करने में कामयाब हुए थे। वे विद्यार्थी–जीवन से ही मेधावी थे। सामाजिक–सांस्कृतिक, शैक्षिक, राजनीतिक, धार्मिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में उन्होंने आदर्श स्थापित किया था। उन्होंने गौहाटी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर वे एक साधारण क्लर्क की नौकरी से वे कॉलेज के प्राध्यापक प्राचार्य और बाद में विधायक भी बने। उनका भाषण सुनकर जनता मंत्र – मुग्ध हो जाती थी। उन्होंने समाजसेवा के लिए कई स्कूलों, कॉलेजों और मठ – मंदिरों की स्थापना की। 

(ङ) ‘दूरंत तरुण’ पानीराम दास।

उत्तर: ‘दूरंत तरुण’ पानीराम दास का जन्म 7 अप्रैल, 1917 को मंगलदै के समीप जलजली गाँव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। सन् 1941 में महात्मा गाँधी के सत्याग्रह में शामिल होकर जेल की सजा काटी थी। इनकी मृत्यु 30 नवंबर, 2010 को हुई। 

गरिया, मरिया और देशी लोग

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. बख्तियार खिलजी ने असम में कब प्रवेश किया था?

उत्तरः सन् 1205 – 06 में।

2. बख्तियार खिलजी ने किसलिए असम में प्रवेश किया था? 

उत्तरः बख्तियार खिलजी ने तिब्बत–चीन जीतने के मकसद से।

3. बख्तियार खिलजी को किसने परास्त किया था? 

उत्तरः कामरूप के राजा पृथु ने।

4. इस्लाम धर्म में धर्मांतरित होने वाले प्रथम जनजातीय राजा का नाम क्या था?

उत्तर: आली मेस था।

5. ‘गरिया’ शब्द का विश्लेषण कीजिए। असम में गरिया किसे कहते हैं?

उत्तर: इस्लाम धर्म अपनानेवाले लोग जो मूल समाज से अलग छूट चुके समाज मे शामिल हो गए। ऐसे लोगों को ‘गरिया’ कहा जाता है।

6. आहोम काल में असम में कुछ स्थानीय लोगों द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने के दो कारण लिखिए।

उत्तरः (i) जनजातीय राजा मेस के इस्लाम धर्म अपनाने के बाद राजा के साथ अधिकांश प्रजा भी इस्लाम के प्रति आकर्षित हुई थी।

(ii) विभिन्न पीर–फकीरों के संदेश के प्रभाव से लोगों के मन पर इस्लाम का गहरा असर पड़ा था। 

7. मरिया और देशी जनगोष्ठी के बारे में वर्णन कीजिए?

उत्तरः आहोम शासनकाल में पीतल–कांसे के धंधे से जुड़े मुसलमानों को ‘मरिया’ के नाम से जाना जाता है। कोच– राजवंशी भाषा–संस्कृति सम्पन्न स्थानीय मुसलमान देशी या देशी मुसलमान कहलाते हैं।

मरिया लोग नगाँव जिला, निचले असम की गुवाहाटी के उजान बाजार और कामरूप के हाजो में रहते हैं। देशी लोग मुख्य रूप से अविभाजित ग्वालपाड़ा जिले में रहते हैं।

8. महान असमीया समाज गठन का उदाहरण किसने किसके राज में प्रस्तुत किया?

उत्तरः महान असमीया समाज गठन का उदाहरण अजान फकीर ने आहोम राज में प्रस्तुत किया।

9. संक्षिम लिखिए–

(क) बाघ हजारिका।

उत्तर: बाघ को युद्ध में परास्त करने की वजह से इनका नाम बाघ पड़ा। इनका असली नाम इस्माइल सिद्दीकी था। न्हें सांस्कृतिक रूप से ” असम में स्वदेशी मुस्लिम समुदायों के नायक ” के रूप में दर्शाया गया है । उनका जन्म असम में गढ़गांव के पास ढेकेरीगांव गांव में एक असमिया मुस्लिम परिवार में हुआ था। 

बाग हजारिका ने अहोम जनरल लाचित बोरफुकन , शाही मंत्री अतन बुरहागोहेन और अन्य जनरलों को मुगल बंदूकों को निष्क्रिय करने की योजना का सुझाव दिया। योजना से प्रभावित होकर, उन्होंने बाघ हजारिका को ऑपरेशन का नेतृत्व करने की कमान सौंपी।

उस रात बाघ हजारिका के नेतृत्व में एक अग्रिम दल कुछ सैनिकों के साथ नाव से ब्रह्मपुत्र पार कर गया और नदी के उत्तरी तट पर उतर गया और सही समय की प्रतीक्षा में बैठ गया। जब मुगल सैनिक अपनी फज्र या भोर की प्रार्थना करने में व्यस्त थे, बाग हजारिका और उनके सैनिक ऊंचे तटबंधों पर चढ़ गए और मुगल तोपों में पानी डाला, जिससे वे बेकार हो गईं।

कुछ समय बाद, अहोम सेना ने तुरही बजाकर अपनी प्रगति की घोषणा की। जवाब में, मुगल सैनिक अपनी चौकियों की ओर दौड़े और आगे बढ़ रही अहोम सेना पर तोपें चलाने की कोशिश की। लेकिन, गीली तोपें काम नहीं करेंगी. अहोम सेना ने अपनी तोपों का पूरी ताकत से इस्तेमाल किया और अहोम सेना उत्तरी तट पर सुरक्षित रूप से उतरी और मुगल सैनिकों के असहाय होकर पीछे हटने पर जमकर हमला किया।

(ख) अज़ान फकीर साहब।

उत्तर: अज़ान फकीर साहब का दूसरा नाम शाह मिलन है। इन्होंने इस्लाम धर्म की वाणियों को सहज–सरल भाषा में प्रचारित किया। वह बगदाद से आए थे। उन्होंने कुल 108 जिकिर की रचना की, जो असमीया भाषा की अनमोल धरोहर है। अज़ान फकीर बगदाद में ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के शागिर्द थे। वह अपने भाई शाह नवी के साथ असम आये थे। उन्होंने उच्च सामाजिक कद की एक अहोम महिला से विवाह किया और आधुनिक शिवसागर शहर के पास गोरगांव में बस गए। पीर के रूप में उन्होंने ज़िक्र (एक प्रकार का आध्यात्मिक गीत) की रचना की। मूल रूप से वह अरबी भाषी थे, लेकिन उन्होंने अपने द्वारा अपनाई गई भूमि की भाषा में पूरी तरह से महारत हासिल कर ली, जिससे उनके गीतों की तुलना उनके वैष्णव समकालीनों से की जा सके।

(ग) सैयद अब्दुल मलिक।

उत्तर: सैयद अब्दुल असमिया साहित्य के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय लेखकों में से एक थे। सैयद अब्दुल मलिक का जन्म 15 जनवरी 1919 को गोलाघाट जिले के नहरानी गांव में हुआ था। उनके पिता सैयद रहमत अली और मां सैयदा लुत्फुन निसा थे। सैयद अब्दुल मलिक ने कम उम्र में ही कथा लेखन करना शुरू कर दिया था। उनका पहला उपन्यास, ला सा गु, 1945-46 में मासिक पत्रिका बन्ही में श्रृंखलाबद्ध रूप से प्रकाशित हुआ था। अब्दुल मलिक ने 40 वर्षों तक असमिया भाषा और साहित्य के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। अब्दुल मलिक कई साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े थे। वह 1917 में स्थापित उत्तर-पूर्व भारत की सबसे पुरानी और सबसे प्रमुख साहित्यिक संस्था असम साहित्य सभा के प्रमुख सदस्यों में से एक थे। वह 1977 में अभयपुरी में आयोजित साहित्य सभा के अध्यक्ष थे। अब्दुल मलिक एक कार्यकाल (1983 में) के लिए राज्य सभा के सदस्य भी रहे। अब्दुल मलिक को पद्मश्री से सम्मानित किया गया(1984) और पद्म भूषण (1992), और प्रतिष्ठित राज्य पुरस्कार श्रीमंत शंकरदेव पुरस्कार (1999)। उनके उपन्यास ” अघरी आत्मा कहिनी ” के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 20 दिसंबर, 2000 को 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

(घ) नवाब साहिदूर रहमान।

उत्तरः नवाब साहिदूर रहमान सुभाष चंद्र बोस की ‘आजाद हिंद फौज’ के प्रमुख नेता थे। नवाब साहिदूर रहमान एक क्रांतिकारी नेता थे। 31 मार्च, 1945 को मित्र वाहिनी के बम धमाके की वजह से इनकी मौत हो गई। आजादी की लड़ाई में ये शहीद हो गए।

(ङ) फकरुद्दीन अली अहमद।

उत्तरः फकरुद्दीन अली अहमद जन्म 13 मई, 1905 को दिल्ली में हुआ। उन्होंने केंब्रीज सेंट कैथोलिक कॉलेज से इतिहास में स्नातक और लंदन के इनरटेंपल से ‘बार एट लॉ’ की डिग्री हासिल की थी। फकरुद्दीन अली अहमद भारत के पांचवे राष्ट्रपति थे। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद १९३१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। जवाहर लाल नेहरू के सुझाव पर वह मुस्लिम आरक्षित सीट पर चुनाव लड़े और जीते। 1938 में बारदोली के नेतृत्व उन्हें वित्तमंत्री भी बनाया गया।1940 में सत्याग्रह आंदोलन एवं 1942 में भारत छोडो आंदोलन के समर्थन की वजह से जेल गए। उन्होंने तीन साल से ज्यादा समय जेल में बिताया। 1952 में असम से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए।  इसके बाद 1957 से 1967 तक असम में विधायक रहे। 1971 से दोबारा केंद्रीय राजनीती में आये और कई मंत्रालय संभाले। राष्ट्रपति पद के लिए नामित होने से पहले वह खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में कार्यरत थे। 1974 में प्रधानमंत्री इन्दिरा गान्धी ने अहमद को राष्ट्रपति पद के लिए चुना और वे भारत के दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति बन गए। इन्दिरा गान्धी के कहने पर उन्होंने 1975 में अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल किया और आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी। 11 फरवरी 1977 (उम्र:72) में हृदयगति रुक जाने से अहमद का कार्यालय में निधन हो गया।

गारो

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. गारो लोगों की उप–जनगोष्ठियाँ कौन–कौन–सी हैं?

उत्तरः आमबॅग, मातसी, माताबेंग, गारागानसी, दुवाल, रुगा और मेगाम।

2. गारो बहुल इलाके कौन–कौन–से हैं?

उत्तरः गारो जनजाति असम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और बांग्लादेश के पड़ोसी क्षेत्र में पाई जाती है।

3. गारो समुदाय में पूजा करने वाले व्यक्ति को क्या कहा जाता है?

उत्तरः ‘संसारेक’ कहा जाता है।

4. प्रारंभ में गारो लोगों का धर्म क्या था और बाद में कौन–सा धर्म अपना लिया?

उत्तरः प्रारंभ में गारो लोगों का धर्म हिंदू था। बाद में ईसाई धर्म अपना लिया।

5. गारो लोगों के प्रधान वाद्य यंत्र क्या–क्या है?

उत्तरः ढोल, गगना, भैंस की सींग से निर्मित बाँस की पाइप लगी बाँसुरी आदि है।

6. संक्षिप्त टीका लिखो:

(क) रामखे ओवाचे मोमीन।

उत्तरः रामखे ओवाथ्रे मोमीन का जन्म सन् 1834 में मेघालय राज्य के उत्तर गारो पहाड़ पर स्थित ‘माटडक ग्रे’ नामक एक पहाड़ी गाँव में हुआ था। रामखे गारो समाज के प्रथम साहित्यकार, गीतकार व शिक्षाविद थे, जिन्होंने समाज के सामूहिक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्होंने डॉ. माइल्स बनसन से ईसाई धर्म ग्रहण किया था। इन्होंने चालीस गारो सदस्यों को लेकर सबसे पहले एक ईसाई मिशनरी के रूप में एक गिरजाघर की स्थापना की थी। इसके बाद डामरा में मिशन की स्थापना की और एक ‘स्कूल भी खोला। वे गारो समाज के मार्गदर्शक माने जाते हैं। सन् 1990 में उनकी हस्त लिखित कला और संस्कृति को मेघालय सरकार ने प्रकाशित किया।

(ख) रेवरेंड गिलबर्थ के मराक।

उत्तर: रेवरेंड गिलबर्थ के मराक का जन्म सन् 1925 में पशचम खासी पहाड़ और दक्षिण कामरूप जिले की सीमा पर अवस्थित रांग्सापाड़ा गाँव में हुआ था।  रेवरेंड गिलबर्थ ईसाई धर्म के प्रचारक के साथ–साथ शिक्षा के विकास के लिए भी काफी काम किए। उन्हें वर्ल्ड काउंसिल फॉर चर्च का सदस्य भी बनाया गया था।  इनकी कार्यक्षमता को देखते हुए ईसाई संगठनों ने उन्हें ‘रेवरेंड’ (अर्थात् श्रद्धेय) की उपाधि से सम्मानित किया था। इन्होंने सन् 1972 में पवित्र बाईबल का गारो भाषा में अनुवाद किया था। इनकी मृत्यु सन् 2007 में मेघालय राज्य के तुरा शहर में हुई।

(ग) सोनाराम रंगरकग्रे सांगमा।

उत्तरः सोनाराम रंगरकग्रे सांगमा एक साहसी, आत्मविशवासी, परोपकारी और सबसे स्नेह–प्रेम रखनेवाले व्यक्ति थे। सोनाराम रंगरकग्रे सांगमा का जन्म सन् 1867 में उत्तर–पूर्व गारो पहाड और ग्वालापाड़ा जिले की सीमा पर अवस्थित नासिरंगदिक नामक गाँव में हुआ। निशानग्राम में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने तुरा मिशन स्कूल में छठी तक की पढ़ाई की। 21 अगस्त, 1916 को उनका निधन हो गया।

(घ) हावर्ड डेनिसन मोमीन।

उत्तरः हावर्ड डेनिसन मोमीन का जन्म 20 फरवरी, 1913 को मेघालय के तुरा शहर में हुआ था। हावर्ड डेनिसन मोमीन को ‘आधुनिक गारो साहित्य का जनक’ कहा जाता है। जबांग डी मराक ने हावर्ड विश्वविद्यालय के ‘डेनिसन स्कूल’ में शिक्षा हासिल की थी। उन्होंने सबसे पहले ‘Achik Kurang’ (गारो लोगों की आवाज) नामक गारो भाषा की एक पत्रिका का प्रकाशन किया था। उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं– ‘Nangko Gisik Ragen’ (गारो बातचीत), ‘Do Ma Skini Git’ (चातकी चिड़िया का गीत), ‘Me. Chikaro Tamaku’ (महिला और तंबाकू), ‘Bilsi Gital’ (नववर्ष), ‘Sengwat (जुगनू) आदि। वे गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक नियुक्त हुए थे।

साउताल (संथाल)

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. सुनीति कुमार चट्टोपाध्याय के अनुसार साउताल शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुई है? 

उत्तरः ‘समांतराल’ से हुई है।

2. साउताल लोगों की मुख्य जीविका क्या है? 

उत्तर: खेती है।

3. ‘मोड़े होड़’ (पाँच व्यक्ति) के प्रधान व्यक्ति को क्या कहा जाता है?

उत्तरः ‘माझी’ कहा जाता है।

4. साउताल लोगों की उपाधियाँ कितनी और क्या–क्या हैं? 

उत्तरः 12 उपाधियाँ (गोत्र) हैं। जैसे – 

1. मुर्मू।

2. हेंब्रम।

3. किस्कू।

4. बेसरा।

5. टुडु।

6. सरेन।

7. बास्के।

8. हासडा।

9. मार्डी।

10. चोंडे।

11. पाओरिया। और 

12. बेडेया।

5. साउताल लोगों की कला–संस्कृति के बारे में संक्षेप में लिखिए?

उत्तर: साठताल समाज में पुरुष पंछी या धोती पहनते हैं और महिलाएँ पंछी और पाड़हाड़ पहनती हैं। साउताल हिंदू धर्मावलंबी होते हैं और वे अपने पर्व–उत्सव, विवाह आदि हिंदू धर्म के अनुसार करते हैं। गीत – नृत्य में प्रयुक्त वाद्य यंत्र हैं – तामाक, टुमडा, करताल, ढोल आदि। गीत–नृत्य में दंग, लंगड़े प्रमुख हैं। साउताल लोगों के प्रमुख उत्सव है – बाहा और सहराई।

6. साउताल लोगों के सामाजिक जीवन का वर्णन कीजिए। 

उत्तरः साउताल लोग अक्सर गाँव बसाकर रहा करते हैं। गाँव के सुसंचालन और सुशासन के लिए गाँव के पाँच व्यक्तियों को चुनते हैं और गाँव को प्रणालीबद्ध तरीके से शासन करने का भार उन पर सौंपते हैं। मुखिया या प्रधान को ‘माझी’ कहा जाता है। गाँव के सभी विवादों और शिकायतों का निपटारा माझी ही करता है। 

7. अर्थ लिखिए–

सिंदूर खांडी, टटड़वा, होर: बांडे, माझी, पाड़ हाँड़ 

उत्तर: सिंदूर खंडी: शादी के समय कन्या द्वारा पहनी जाने वाली हल्दी सनी वेशभूषा।

टटड़वा: शादी के समय पर पहनी जानेवाली वर की टोपी।

होर बांडे: पोशाक, वस्त्र।

माझी: मुखिया।

पाड़ हाँड़: महिलाओं द्वारा कमर के नीचे के हिस्से में पहनी जाने – वाली पोशाक विशेष।

8. संक्षेप में टिप्पणी लिखिए–

(क) बेनेडिक्ट हेंब्रम।

उत्तरः बेनेडिक्ट हेंब्रम का जन्म 18 अक्टूबर, 1967 को कोकराझाड़ जिले के गोसाईंगाँव महकमा के पलाशगुड़ी (जियाडांगा) गाँव में हुआ था। उन्होंने गाँव के प्राथमिक स्कूल में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उच्च शिक्षा गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से प्राप्त की। संथाली भाषा–साहित्य के विकास में बेनेडिक्ट हेंब्रम का अतुलनीय योगदान रहा है। वे सफल वक्ता और कर्मठ व्यक्ति थे। इनकी मृत्यु 5 अक्टूबर 2013 को हुई।

(ख) वदन हासडा।

उत्तर: बदन हासडा का जन्म सन् 1957 में कोकराझाड़ जिले के खापरगाँव में हुआ था। बदन हासडा साउताल जनगोष्ठी के एक मूर्धन्य व्यक्ति थे। वे कोकराझाड़ कॉलेज से आई.ए. की पढ़ाई कर अपनी जनगोष्ठी के शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान के कार्यों में जुट गए। सन् 1980 में उनके नेतृत्व में ‘अखिल असम संथाल छात्र संघ’ की स्थापना हुई। एक आतंकी हमले में 1 मई, 2007 को उनकी मृत्यु हो गई।

(ग) मिथियस टुडु।

उत्तरः मिथियस टुडु का जन्म सन् 1930 में कोकराझाड़ जिले के गोसाईंगाँव महकमा के माटियाजुरी गाँव में हुआ। इन इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के प्राथमिक स्कूल में ही पाई और उच्च शिक्षा गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से प्राप्त की। असम में साउताल समुदाय के लिए मिथियस टुडु एक ध्रुव तारे के समान थे। गोसाईंगाँव विधानसभा क्षेत्र से वे लगातार सात बार विधायक चुने गए थे। वे एक अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी भी थे। इनकी मृत्यु 10 जुलाई, 2017 को हुई। असम की जातीय समृद्धि में इनका योगदान प्रशंसनीय रहा है।

(घ) राहेल किस्कू।

उत्तरः राहेल किस्कू बचपन से ही तेज बुद्धि की बालिका थीं। राहेल किस्कू का जन्म सन् 1925 में कोकराझाड़ जिले के गोसाईंगाँव महकमा में बरसनपुर गाँव में हुआ। वे समीप के हाराफुटा मिशन स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पशचात् उन्होंने सन् 1951 में लखनऊ के एक कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। राहेल किस्कू संथाली भाषा की कवयित्री और दक्ष लेखिका थीं। उन्होंने सामाजिक, शैक्षिक और धार्मिक विकास के लिए लोगों में जागरूकता पैदा की और बच्चों व महिलाओं को शिक्षित बनाने के लिए अहम भूमिका निभाई। उनकी देहांत 6 अप्रैल, 2001 को हुआ।

चाय जनगोष्ठी

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. असम का पहला चाय बागान कौन–सा है और कब स्थापित हुआ था? 

उत्तरः “चाबुआ चाय बागान” है और इसे सन् 1835 में स्थापित हुआ था।

2. असम की पहली चाय कंपनी का नाम क्या था और कब स्थापित हुई थी?

उत्तरः ‘असम चाय कंपनी’ था और सन् 1840 में इसकी स्थापना हुई थी। 

3. ‘गिरमिटिया’ और ‘आड़काठिया’ चालान के बारे में क्या जानते हैं? लिखिए।

उत्तरः लिखित समझौते के तहत निश्चित समय के लिए मजदूरों को लाया जाना ‘गिरमिटिया’ चालान कहलाता था और समझौते के बगैर छल–बल–कौशल से लाए गए मजदूरों को ‘आड़काठिया’ चालान कहा जाता था।

4. चाय जनगोष्ठी समाज की 10 जातियों–उपजातियों के नाम लिखिए?

उत्तरः 1. मुंडा।

2. साउताल।

3. कुर्मी।

4. ताँती।

5. घटवार।

6. कोइरी।

7. तासा।

8. तेली।

9. धनोवार।

10. बढ़ई।

5. चाय जनगोष्ठी के बीच कौन–कौन–से धर्म के लोग हैं? 

उत्तरः हिंदू और ईसाई।

6. स्वाधीनता संग्राम में पहली महिला शहीद का नाम क्या है?

उत्तरः मांगड़ी उरांव।

7. असम आंदोलन में प्राण न्योछावर करने वाले चाय बागान के प्रथम शहीद का नाम क्या है?

उत्तरः बाधना उरांव।

6. संक्षिप में लिखिए:

(क) मेघराज कर्मकार।

उत्तर: मेघराज कर्माकर एक शिक्षक और असम की चाय जनजाति से संबंधित पहले साहित्यिक पेंशनभोगी थे। ऊपरी असम के जामिता चाय बागान के मेघराज पेशे से हाईस्कूल के शिक्षक थे। असम प्रकाशन परिषद ने ‘मेघराज कर्मकार रचनावली’ (मघराज कर्मकार की संपूर्ण रचनाएँ) प्रकाशित की हैं। ‘चालुक बचन’ उनकी एक प्रसिद्ध पुस्तक है। चाय जनगोष्ठी के जिन लोगों ने असमीया भाषा–साहित्य की समृद्धि में अपना अमूल्य योगदान दिया है, उनमें मेघराज कर्मकार अन्यतम हैं। 

(ख) संतोष कुमार तप्न।

उत्तरः संतोष कुमार तप्न का जन्म सन् 1924 में शिवसागर जिले के मरान में हुआ था। उन्होंने जोरहाट के जेबी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की थी। संतोष कुमार तप्न एक असमीया भाषा साहित्य के लेखक और समाजसेवी थे। संतोष कुमार तप्न की ‘मुंडा जातिर चमु परिचय’ (मुंडा जाति का संक्षिप्त परिचय) नामक पुस्तक चाय जनगोष्ठी की पहली प्रकाशित पुस्तक है। असम के विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित हुए हैं।

(ग) साइमन सिंह होर।

उत्तर: साइमन सिंह होरने जोरहाट के जे.  बी. कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की थी। ईसाई धर्मावलंबी होते हुए भी हिंदू धर्म का नामघर बनाने के लिए उन्होंने अपनी जमीन का दान किया था। शिक्षा के महत्व को समझते हुए उन्होंने पिछड़े इलाके में स्कूल की स्थापना की। सिंह होर का देहांत 26 जून, 1980 को हुआ। साइमन सिंह होर चाय जनगोष्ठी के लोगों के लिए मसीहा थे।

सुतिया

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. सुतिया लोगों का मूल निवास स्थान कहाँ था? 

उत्तर: सुतिया लोगों का मूल निवास स्थान था – हिमालय के उत्तर के मानस सरोवर से पूर्व में स्थित स्वात सरोवर के आस–पास का इलाका।

2. सुतिया शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई थी? 

उत्तरः स्वात सरोवर के किनारे के इलाके से आने के कारण सुतिया लोगों को स्वातिया कहा जाता था। बाद में इसी स्वातिया शब्द से सुतिया शब्द की उत्पत्ति हुई। 

3. सुतिया लोगों की एक वीरांगना का नाम लिखिए? 

उत्तरः रानी सती साधनी। 

4. नीचे दिए गए किसी एक के बारे में संक्षेप में लिखिए?

(i) सोनाराम सुतिया।

(ii) डॉ. स्वर्णलता बरुवा।

(iii) चिदानंद सइकिया।

(iv) कोषेश्वर बरुवा।

(i) सोनाराम सुतिया।

उत्तरः सोनाराम सुतिया का जन्म जोरहाट जिले के काकजान अंचल के बाम कुकरासोवा गाँव में सन् 1915 में हुआ था। बाल्यकाल से ही मेधावी छात्र का परिचय देते हुए उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पाँच विषयों में लेटर सहित उत्तीर्ण की। 

सुतिया को 1972 में केंद्र सरकार और 1973 में असम सरकार द्वारा एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मानित किया गया था। उन्हें 1994 में श्रीमंत शंकरदेव -माधबदेव पुरस्कार मिला। 2000 में, असम सरकार ने उन्हें श्रीमंत शंकरदेव पुरस्कार से सम्मानित किया। 2005 में, उन्हें नॉर्थ ईस्टर्न रिसर्च ऑर्गनाइजेशन द्वारा जोरहाट एकलब्य और दलित दाराडी के रूप में सम्मानित किया गया था। जीवन में गांधीवादी, सुतिया दसवीं कक्षा के छात्र थे, जब उन्होंने गांधीजी को पहली बार देखा और बाद में महाराष्ट्र में उनसे व्यक्तिगत रूप से मिले।

पनी मृत्यु तक, उन्होंने कई अलग-अलग असमिया पत्रिकाओं में विभिन्न किताबें और लेख लिखे। 1954 में उन्होंने अपनी पहली पुस्तक “नाम धर्म प्रकाश” प्रकाशित की।

(ii) डॉ. स्वर्णलता बरुवा।

उत्तरः श्रीमती बरुवा डिब्रुगढ़ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की अध्यक्षा थीं। सेवानिवृत्त होने के पश्चात् असम में एकमात्र महिला इतिहासकार के रूप में डॉ. स्वर्णलता बरुवा को ख्याति मिली। ये ‘सुतिया जातिर बुरंजी’ (सुतिया जाति का इतिहास) नामक पुस्तक की मुख्य संपादिका है। इन्होंने कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना की है। उनमें A Comprehensive History of Assam, Last Day of Ahom monarchy: A History of Assam from 1769-1826 आदि प्रमुख हैं। असम में इतिहासकार के रूप में डॉ. स्वर्णलता बरुवा का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है।

(iii) चिदानंद सड़किया।

उत्तरः चिदानंद सइकियाने कुल 27 पुस्तकों की रचना की, जिनमें ‘सोवियत नारी’, ‘सीमांत गांधी’, ‘महर्षि कार्ल मार्क्स’, ‘जुये पोरा सोन’, ‘रंगसुवा पृथ्वीर सेउजिया बोल’, ‘जिया ढल बागरि जाय’ आदि प्रमुख हैं। सन् 1924 में गोलाघाट जिले के बोकाखात गाँव में जन्मे शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी तथा साम्यवादी दर्शन के समर्थक, उदारमना चिदानंद सइकिया को सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, साहित्यिक पेंशन और कृती शिक्षक पुरस्कार मिले थे। असमीया को समृद्ध बनाने में साहित्यकार चिदानंद सइकिया का योगदान सराहनीय रहा है।

(iv) कोषेश्वर बरुवा।

उत्तरः कोषेश्वर बरुवा को इतिहासकार के रूप में जाना जाता है। कोषेश्वर बरुवा का जन्म सन् 1936 में लखीमपुर जिले के धौलपुर मौजा के बरठेकेबारी गाँव में हुआ था। दुबरी वन के कवि के रूप में प्रसिद्ध कोषेश्वर बरुवा ने इतिहास की कई पुस्तकें लिखी हैं। कोषेश्वर बरुवा द्वारा रचित उल्लेखनीय पुस्तकें निम्नलिखित हैं– ‘कलेजार दुबरी वन’, ‘अनुभव’, ‘प्रजन्मर उमान्त’, ‘लगन’, “आगंतुक’, ‘ धन्य जन्म भारतवरिषे’, ‘जननेता भीमवर देवरी’, ‘लुइतर अगारीर असमीया सभ्यता’, ‘छोट कोंवरर बुरंजी’, ‘ऐतिहासिक विवर्तनत असमर सुतिया जनगोष्ठी’, ‘सुतिया रजा रत्नध्वज पाल’, ‘Sati Sadhani’, ‘Deuri Chutia Language’ और ‘An outline Grammar of the Deuri Chutia Language Spoken in Upper Assam by W.B. Brown’.

5. सुतिया लोगों के बारे में संक्षिप्त परिचय लिखिए?

उत्तरः सुतिया जनसमुदाय के लोग मुख्यतः ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट पर शासन करते आ रहे थे। बाद में आहोम स्वर्गदेव सुहुंगमूंग दिहिंगिया राजा के शासनकाल में सुतिया राज्य सम्मिलित हो गया। सुतिया लोग खुद का परिचय विदर्भ राज्य के राजा भीष्यकर के वंशज के रूप देते हैं। ये लोग देवी के उपासक थे और सदिया की केंसाईखाती या ताम्रेश्वरी देवी की पूजा नरबलि से करते थे। सुतिया राज्य जब आहोम राज्य में शामिल हुआ, तब आहोम लोग भी केंसाईखाती देवी की पूजा लगे। स्वर्गदेव गौरीनाथ सिंह के समय से नरबलि की प्रथा समाप्त हो गई। सुतिया लोगों की एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा थी। ये लोग मंगोल जाति की बृहद बोड़ो जनगोष्ठी के अंतर्गत हैं। सुतिया लोगों की सभ्यता-संस्कृति उन्नत थी। वे लोग नगर बसाकर रहते थे। कुंडिल नगर, भीष्मकर नगर, लक्ष्मी नगर, रतनपुर आदि प्राचीन नगरों के अवशेषों से सुतिया लोगों की उन्नत सभ्यता-संस्कृति का प्रमाण मिलता है। सुतिया लोगों की युद्ध शक्ति को झाँपकर आहो राजा ने विद्रोह की आशंका से उन्हें अलग-अलग स्थानों पर बसा दिया था। इसलिए सुतिया लोग अपनी प्राचीन व समृद्ध सभ्यता – संस्कृति का ठीक तरह से संरक्षण नहीं कर पाए। असमीया जातीय जीवन में सुतिया लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है।

ठेंगाल कछारी

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. मंगोलीय किरातों की शारीरिक विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर: रंग गोरा और भूरा, बाल काला, शरीर रोम कम, मुखमंडल चौड़ा, नाक चिपटी तथा नेत्र छोटे या टेढ़े होते हैं।

2. मंगोलीय किरातों को संस्कृत भाषा में क्या कहकर संबोधित किया जाता था?

उत्तर: ‘कक्षवाट’ कहकर।

3. कछारी नाम की उत्पत्ति कैसे हुई थी?

उत्तरः मंगोलीय या किरातीय समुदाय के लोग सामान्य रूप से नदी या पहाड़ के निकटवर्ती क्षेत्रों में रहने के कारण संस्कृत में इन्हें ‘कक्षवाट’ कहा जाता था। ‘कक्षवाट’ शब्द के कक्ष’ के साथ ‘अरि’ प्रत्यय जुड़कर कछारी नाम की उत्पत्ति हुई है। 

4. डॉ. भुवन मोहन दास ने मंगोलीय लोगों को कितने भागों में विभाजित किया है?

उत्तर: छह भागों में विभाजित किया है।

5. ठेंगाल कछारी लोग किस प्राचीन समुदाय से आये हुए थे? 

उत्तर: मंगोलीय या किरातीय समुदाय से।

6. ठेंगाल कछारियों के मौजूदा अवस्थान के बारे में उल्लेख कीजिए।

उत्तर: सदिया से दैमांग–धनसिरि घाटी तथा नगाँव तक, जोरहाट, गोलाघाट, कार्बी आंग्लंग, शिवसागर, डिब्रूगढ़ और लखीमपुर, धेमाजी जिलों में ठेंगाल कछारियों रह रहे हैं।

7. टिप्पणी लिखिए:

(क) लौहपुरुष गिरिधर ठेंगाल।

उत्तरः लौहपुरुष गिरिधर ठेंगाल का जन्म 12 जनवरी, 1921 को जोरहाट जिले के तितावर अनुमंडल के अंतर्गत ठेंगाल मौजा के उलुतली गाँव में हुआ था। गरीब किसान परिवार में जन्मे गिरिधर ठेंगाल बचपन से ही पढ़ने में तेज थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा समीप के बजालबारी प्राथमिक विद्यालय और तिताबर मध्य अंग्रेजी विद्यालय में पाई। फिर जोरहाट सरकारी हाई स्कूल से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण होकर जोरहाट के जगन्नाथ बरुवा कॉलेज से आई. ए. और बी. ए. की परीक्षा उत्तीण की। सामाजिक, शैक्षिक विकास में उनकी गहरी रुचि के कारण उन्होंने तिताबर नन्दनाथ सइकिया कॉलेज और जालुकनिबाड़ा हाईस्कूल की स्थापना भी की। उन्होंने जोरहाट कोर्ट में भी वकालत की। 

(ख) कमल कछारी।

उत्तरः कमल कछारी का जन्म सन् 1939 में जोरहाट जिले के तितावर अनुमंडल के अंतर्गत ठेंगाल मौजा के मरलि कछारी गाँव में हुआ था। कमल कछारी असम के एक प्रख्यात कवि, गीतकार, चित्रकार तथा लेखक थे। वे असम के प्रसिद्ध पत्र–पत्रिकाओं में निरंतर लिखते रहे। असमीया साहित्य–कला–संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान की स्वीकृति स्वरूप उन्हें विष्णु प्रसाद राभा पुरस्कार, साहित्यिक पेंशन प्रदान किया गया था। कवि कमल कछारी की मृत्यु सन् 2013 में हुई।

डिमासा

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. डिमासा लोग कितने वंशों में विभाजित हैं?

उत्तर: 40 वंशों में।

2. डिमासा भाषा असम की किस भाषा से मिलती–जुलती है? 

उत्तर: बोड़ो भाषा।

3. खेती के अंत में दिमासा लोग किस उत्सव का आयोजन करते हैं? 

उत्तरः ‘बिसु डिमा’ उत्सव। 

4. डिमासा लोगों के गोत्रों के नामों का अंतिम अक्षर आम तौर पर क्या होता है? 

उत्तर: ‘सा’ होता है।

5. डिमासा लोगों के कुछ गोत्रों के नाम लिखिए? 

उत्तरः गारलोसा होजाईसा, माईबांगसा, लांग्थासा, डिफुसा आदि।

कलिता

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर:

1. कलिता जनसमुदाय की खाद्य–परंपरा के बारे में संक्षिप में लिखिए?

उत्तरः कलिता लोगों का मुख्य भोजन चावल है। चावल के साथ वे तरह-तरह की साग – सब्जियाँ, माँस – मछली, चोखा – चटनी, तरह – तरह के व्यंजन खाते हैं। कलिता लोग अतिथि का स्वागत घरेलू पिठा – लड्डू आदि से करते हैं। खानपान में दूध – दही का खूब व्यवहार किया जाता है। भोजन के बाद पान – तांबूल खाने – खिलाने का नियम है।

2. कलिता जनसमुदाय के आभूषण और पोशाक के बारे में संक्षेप में लिखिए?

उत्तरः परिधान के रूप में यह समुदाय सूती, एड़ी, पाट और मूंगा के कपड़े पहनते हैं। पर्व-त्योहार व शादी में चादर-मेखला व धोती-कुर्ता पहनते हैं। कलिता समाज में लड़कियों को हथकरघे पर कपड़ा बुनने का काम जानना अनिवार्य होता है। लाल पाढ़ वाला फूलाम गामोछा के द्वारा समाज में बड़ों का सम्मान किया जाता है। सोने-चांदी के आभूषण कलिता समाज की महिलाएँ पहनती हैं। शादीसुदा औरतें अपने कपाल पर बिंदी और माँग में सिंदूर लगाती हैं।

3. कलिता जनसमुदाय के पर्व–त्योहारों के बारे में लिखिए?

उत्तरः कलिता जनसमुदाय अनेक उत्सव-पर्व मनाते हैं। उनमें बिहु, शाकेति, बांस पूजा, भथेली, ओजापाली, नगाड़ा नाम आदि प्रमुख हैं। असम की लोक संस्कृति कलिता लोक–संस्कृति के साथ एकाकार होकर सामूहिक परिचय का प्रतीक बन गई है। असम में मनाए जाने वाले पर्व–त्योहारों में विभिन्न जनसमुदाय के लोगों के साथ कलिता लोगों की भागीदारी और सहभागिता उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण रहती है।

4. संक्षेप नोट लिखिए:

(क) कुमार भास्कर वर्मा।

उत्तरः कुमार भास्कर वर्मा (600 – 650) कामरूप के वर्मन राजवंश के शासकों में अन्तिम एवं अन्यतम राजा थे। अपने ज्येष्ठ भ्राता सुप्रतिश्थि वर्मा की मृत्यु के पश्चात् उन्होने सत्ता सम्भाली। वे अविवाहित रहे तथा उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उनकी मृत्यु के बाद शालस्तम्भ ने कामरूप पर आक्रमण करके सत्ता पर अधिकार कर लिया और शालस्तम्भ राज्य अथवा म्लेच्छ राजवंश की स्थापना की।

उत्तर भारत के राजा हर्षवर्धन (या शीलादित्य) कुमार भास्कर वर्मा के समकालीन थे। हर्षवर्धन के साथ उनकी मित्रता थी। उस समय गौड़ देश (या कर्णसुवर्ण, या बंगाल) में शशांक नामक राजा का शासन था। शशांक ने हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या कर दी। शशांक से अपने भाई की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिये हर्षवर्धन ने शशांक के राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण के समय कुमार भास्कर वर्मा ने हर्षवर्धन की सहायता की। गौड़ राजा शशांक पराजित हुआ। फलस्वरूप शशांक के राज्य कर्णसुबर्ण तथा गौड़ या पौण्ड्रबर्द्धन, भास्कर वर्मा के अधिकार में आ गये। इसके बाद भास्कर वर्मा विशाल राज्य का स्वामी बन गया। भास्कर वर्मा के समय में कामरूप राज्य की सीमा पश्चिम में बिहार तक और दक्षिण में ओडीसा तक विस्तृत थी। भास्कर वर्मा ने निधानपुर (सिलहट जिला, बांग्लादेश) में अपने शिविर से तांबे की छाप अनुदान जारी किए और इसे एक अवधि के लिए अपने नियंत्रण में रखा।

चीनी यात्री युवान् च्वांग ने सातवीं शताब्दी में कामरुप का भ्रमण किया था। अपनी यात्रा के वर्मा में उसने लिखा है कि कामरूप राज्य का विस्तार १६७५ मील था और राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर ६ मील विस्तृत थी। यद्यपि भास्कर वर्मन सनातन धर्म के अनुयायी थे किन्तु बौद्ध धर्म के अनुयायियों और बौद्ध भिक्षुओं का सम्मान करते थे। हर्षबर्द्धन, भास्कर वर्मा का यथेष्ट सम्मान करते थे। एक बार युवान् च्वांग के सम्मान के लिये राजा हर्षबर्धन ने प्रयाग में विशाल सभा का आयोजन किया था। जिसमें भारत के सभी विख्यात राजाओं को आमन्त्रित किया गया था।

युवान् च्वांग ने यह भी लिखा है कि कामरुप में प्रवेश करने से पहले उसने एक महान नदी कर्तोय् को पार किया। कामरुप के पूर्व में चीनी सीमा के पास पहाड़ियों की एक पंक्ति थी। उन्होंने उल्लेख किया की फसलें नियमित हैं, लोग सत्यनिष्ट हैं और राजा ब्राह्मण हैं।

(ख) आनंदराम बरुवा।

उत्तरः आनन्दराम बरुवा संस्कृत में एक महान विद्वान थे। वह असम से प्रथम आईसीएस थे, असम से प्रथम स्नातक थे और एक प्रख्यात वकील थे। उनका जन्म 21 मई, 1850 को उत्तर गुवाहाटी में हुआ था। उनके पिता का नाम गर्गराम बरुवा और माता का नाम दुर्लभेश्वरी बरुवा था। वे कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी. ए. उत्तीर्ण होने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इंगलैंड गए। इन्होंने संस्कृत भाषा पर अंग्रेजी में अनेक मूल्यवान ग्रंथों की रचना की। असम सरकार ने उनके सम्मान में सन् 2005 से उच्च माध्यमिक शिक्षांत परीक्षा (H.S.L.C.) में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण विद्यार्थियों के लिए “आनंदराम बरुवा पुरस्कार” की शुरुआत की है। इनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1889 को हुई।

(ग) डॉ. वाणीकांत काकति।

उत्तर: काकति का जन्म नवंबर, 1894 ई. में कामरूप जिले के बाटीकुरिहा ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम ललितराम काकति, माता का लाहोबाला काकति तथा पत्नी का कनकलता था। 1918 में इनकी नियुक्ति कॉटन कालेज में अध्यापक पद पर हुई। उक्त कालेज में अध्यापन कार्य करते हुए इन्होंने असमिया भाषा, इसके गठन और क्रमपरिवर्तन, विषय पर शोधप्रबंध लिखकर कलकता विश्वविद्यालय से ‘पी-एच.डी.’ की उपाधि प्राप्त की। ये दो वर्ष तक कॉटन कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। अवकाश प्राप्त करने के कुछ दिनों पश्चात्‌ इनकी नियुक्ति गौहाटी विश्वविद्यालय के डीन, फ़ैकल्टी ऑव आर्ट्स पद पर हुई और मृत्युपर्यंत ये इसी पद पर कार्य करते रहे। कामरूप अनुसंधान समिति के पुनर्गठन का श्रेय इन्हीं को है। 15 नवम्बर 1952 को शनिवार के दिन इनका निधन हुआ।

इनकी रहन-सहन सर्वसाधारण से भिन्न न थी। सत्य तथा ईश्वर में इनका अगाध विश्वास था, किंतु ये किसी कार्य को ईश्वर के भेरोसे न छोड़ते थे। कठोर परिश्रम द्वारा व्यक्ति अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है, इस सिद्धांत में इनकी आस्था थी। स्पष्टवादिता और कठोर सत्य बोलने के कारण कुछ लोग इनसे अप्रसन्न भी रहते थे।

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